20/10/2021
शाह के काल में क़ुरआन और उसकी व्याख्या की क्लास में जो नौजवान आया करते थे, मैं उनसे कहा करता था कि अपनी जेब में एक क़ुरआन रखा कीजिए, जब भी वक़्त मिले या किसी काम के इंतेज़ार में रुकना हो तो एक मिनट, दो मिनट, आधा घंटे क़ुरआन खोलिए और तिलावत कीजिए ताकि इस किताब से लगाव हो जाए।