इन वाक़यों से दुश्मन जिस नतीजे तक पहुंचा वह यह है कि ईरान को जंग से, सैन्य हमले से झुकाया नहीं जा सकता। सिस्टम और मुल्क की रक्षा और दुश्मन के मुक़ाबले में दृढ़ता को लेकर आज अवाम में एकता है। यह एकता उनके हमले को रोकने वाली है। वे इसे ख़त्म करना चाहते हैं। इस ओर से सावधान रहिए।
अली लारीजानी, सचिव, ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद
आज यमन के बहादुर अवाम जो काम कर रहे हैं, सही है...हम हर उस काम के लिए जो इस्लामी गणराज्य के लिए मुमकिन होगा, हर काम जो मुमकिन होगा, पूरी तरह तैयार हैं।
जहाँ तक मुझे जानकारी है, जनाब अलबरादई के ज़माने से और उनके बाद की पीढ़ी जो इन साहब (राफ़ाएल ग्रोसी) तक पहुंची वाक़ई आईएईए कभी भी आज के जितनी विध्वंसक स्थिति में नहीं थी! यानी ये लोग थोड़ा बहुत तो तार्किक व्यवहार करते थे; इस शख़्स ने मानो ज़ायोनी दुश्मन और अमरीका को ब्लैंक चेक दे दिया हो; यानी इस जंग में उसने आग में घी का काम किया था।
अगर आज आप फ़िलिस्तीन में तकलीफ़ उठा रहे हैं तो जान लेना चाहिए कि यह तकलीफ़, पैग़म्बर की पाकीज़ा रूह को भी तकलीफ़ पहुंचाती है, हमारे पैग़म्बर इस तरह के हैं।
ज़ायोनी अपने लक्ष्यों से पीछे नहीं हटे हैं। उन्होंने "नील से फ़ुरात तक" के अपने घोषित लक्ष्य को वापस नहीं लिया है। उनका इरादा आज भी यही है कि वे नील से फ़ुरात तक के इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लें!
आज इस्लामी जगत ताक़त की एक मिसाल को देख रहा है और वह अर्बईन मार्च है। अर्बईन मार्च इस्लाम की ताक़त है, सत्य की ताक़त है, इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे की ताक़त है।
यह आशूर का पैग़ाम है जो हज़रत इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब के गले से बड़ी बेबसी और तनहाई के वक़्त निकला और आज आलमगीर बन गया है, दुनिया पर छा गया है। यह अल्लाह की अज़ीम निशानी है जो अल्लाह दिखा रहा है।
27 जूलाई सन 1988 को आयतुल्लाह ख़ामेनेई जो तत्कालीन राष्ट्रपति थे, अहवाज़ के एक सैन्य अस्पताल का 19 घंटे मुआयना करते हैं, जिसके दौरान वे केमिकल बमबारी के क़रीब 750 पीड़ितों में से हर एक से मिलते, उसकी ख़ैरियत पूछते और उसे तोहफ़ा देते हैं।
यह जो क्रूरता व बेरहमी ज़ायोनी शासन ने दिखायी है, यह जो बेरहमी की है, उससे न सिर्फ़ यह कि उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गयी है, बल्कि अमरीका भी बेइज़्ज़त हुआ है, युरोप के कुछ मशहूर मुल्कों की इज़्ज़त भी गयी है, बल्कि इससे पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति की इज़्ज़त भी चली गयी है।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महान कमांडर शहीद फ़ुआद अली शुक्र की जेहादी ज़िंदगी की एक झलक, उनकी बेटी ख़दीजा शुक्र की ज़बानी और शहीद फ़ुआद शुक्र के जेहाद और संघर्ष के ज़माने की ख़ास तस्वीरें और इसी तरह इमाम ख़ामेनेई के साथ शहीद की कुछ तस्वीरें पेश हैं।
वाइज़मैन इंस्टिट्यूट पर ईरान का मीज़ाइल हमला ऐसी स्थिति में हुआ कि इस इंस्टिट्यूट को गूगल मैप से डिलीट कर दिया गया था ताकि इसकी लोकेशन का पता न चले। वाइज़मैन इंस्टिट्यूट ज़ायोनी सरकार के ख़ुफ़िया परमाणु हथियारों की तैयारी के प्रोग्राम में बहुत आगे आगे था।
इस्लामी सरकारों पर आज बहुत भारी ज़िम्मेदारी है। इस्लामी सरकारों में से कोई भी सरकार, किसी भी रूप में, किसी भी बहाने से ज़ायोनी सरकार का समर्थन करेगी तो निश्चित तौर पर वह जान ले कि उसके माथे पर यह शर्मनाक कलंक हमेशा के लिए बाक़ी रह जाएगा।
हम जंग में मज़बूती से उतरे, इसका सुबूत यह है कि जंग में हमारे सामने वाला पक्ष ज़ायोनी सरकार अमरीकी सरकार का सहारा लेने पर मजबूर हो गयी। अगर उसकी कमर टूट न गयी होती, अगर वह गिर न गयी होती, अगर असहाय न हो गयी होती, अगर अपनी रक्षा करने में सक्षम होती तो इस तरह अमरीका से मदद न मांगती।
ईरानी क़ौम ने हालिया थोपी गयी जंग में ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ बड़ा कारनामा अंजाम दिया यह बड़ा काम, सैन्य आप्रेशन का नहीं था, इरादे का था। ख़ुद यह इरादा, ख़ुद यह आत्मविश्वास एक बहुत ही असाधारण अहमियत रखता है।
ईरान ने नवातीम एयरबेस पर इसलिए हमला किया क्योंकि ज़ायोनी सरकार का कमांड ऐन्ड कंट्रोल सेंटर और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफ़ेयर सेंटर वहाँ था। इस्लामी गणराज्य ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के मीज़ाईल हमलों के नतीजे में इस अड्डे को भारी नुक़सान पहुंचा।
अल्लाह ने इस्लामी व्यवस्था के तहत और क़ुरआन व इस्लाम की छाया में, ईरानी राष्ट्र के लिए मदद निश्चित कर दी है कि ईरानी राष्ट्र निश्चित रूप से विजयी होगा।
दस घंटे से भी कम वक़्त में शहीद कमांडरों की रैंक के कमांडर नियुक्त किए जाते हैं और सफल आप्रेशन भी उसी सीमित वक़्त में शुरू हो जाते हैं। यह ख़ुसूसियत, सुप्रीम कमांडर की प्रशासनिक सलाहियत की नुमायां मिसाल है। अलबत्ता यह चीज़ सिर्फ़ बहादुरी से हासिल नहीं हुयी है बल्कि मामलों पर उनकी भरपूर पकड़ और उसमें उनका मूल किरदार है।
उस रात उनका आना असमान्य घटना थी। शुरू के दो तीन मिनट सभी लोग हतप्रभ और एक ख़ास हालत में थे। एक बहुत ही आध्यात्मिक और क़ीमती माहौल था जिसका हम सभी पर प्रभाव पड़ा।
बैत हानून का नाम, ज़ायोनियों के लिए कुछ कड़वी यादें लिए हुए है। यह एक ऐसा इलाक़ा है जिसने रेज़िस्टेंस के मुजाहिदों की बहादुरी से ज़ायोनी शासन की अपराधी फ़ौज की धौंस को बार बार मिट्टी में मिलाया है। ज़ायोनी मीडिया ने इस आप्रेशन को, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ का 7 अक्तूबर के बाद का सबसे जटिल और बड़ा आप्रेशन क़रार दिया है।
ईरानी, हमेशा आशूरा के संदेश से प्रेरित रहे हैं। यह घटना सिर्फ़ एक ऐतिहासिक वाक़या नहीं, बल्कि न्याय और सच्चाई के लिए संघर्ष और अत्याचार के ख़िलाफ़ डट जाने का प्रतीक है। ईरानियों के लिए, आशूरा सच और झूठ के बीच अनंत लड़ाई का एक शक्तिशाली प्रतीक है जो आज भी जारी है।
इस्लामी गणराज्य ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी सरकार के हमले के जवाब में ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने गावयाम टेक्नॉलोजी पार्क को बड़ी सटीकता से मीज़ाइलों का निशाना बनाया। ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने 20 जून को इस सेंटर पर ज़बरदस्त हमला किया और ज़ायोनी सरकार की वॉर मशीन पर भारी वार किया।
आज हमें इस बात की ज़रूरत है कि दुनिया को इमाम हुसैन इबने अली से परिचित कराएं। इस्लामी जगत को हुसैन इबने अली अलैहिस्सलाम का सबक़ यह है कि सत्य के लिए, इंसाफ़ के लिए, इंसाफ़ क़ायम करने के लिए, ज़ुल्म के मुक़ाबले के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और अपना सब कुछ मैदान में ले आना चाहिए।
किसी भी तर्क के मुताबिक़ यह बात स्वीकार्य नहीं है कि किसी क़ौम से कहा जाए कि वह सरेंडर कर दे, ईरानी क़ौम से यह कहना कि समर्पण कर दो, अक़्लमंदी की बात नहीं है।
फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा इलाक़ों पर ईरान की ओर से पहली बार मीज़ाईल बरसाए जाने के कुछ ही दिन के अंदर ज़ायोनी शासन के कमज़ोर होने की निशानियां ज़ाहिर हो गयीं।
अमरीकी सरकार सीधे तौर पर जंग में कूद पड़ी क्योंकि उसे लगा कि अगर वह नहीं कूदी तो ज़ायोनिस्ट रेजीम पूरी तरह मिट जाएगी। जंग में कूदी ताकि उसे बचाए लेकिन इस जंग से उसे कुछ हासिल नहीं हुआ।
इस्लामी गणराज्य ने अमरीका को बहुत ज़ोरदार थप्पड़ लगाया। क्षेत्र में अमरीका की बड़ी अहम छावनियों में से एक अल-उदैद बेस पर हमला किया और उसे नुक़सान पहुंचाया।