हम हर हफ़्ते वक़्त निकाल लेते हैं और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की सेवा में हाज़िर होकर मौजूदा रिपोर्ट्स और प्रोग्रामों के बारे में उनसे मशविरा करते हैं। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की मुख्य प्राथमिकता अवाम की रोज़ी-रोटी है।
उन लोगों का सारा हिसाब किताब यह था कि अगर हमला करें तो मुल्क में विद्रोह होगा; लेकिन अवाम ने अपने ईरान की, अपनी सरज़मीन की, अपने धर्म की, अपनी संस्कृति की रक्षा की और वे इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के सपोर्ट में सामने आए।
क़ुरआन मजीद के मुताबिक़, दुनिया के तमाम मर्द अगर मोमिन बनना चाहते हैं तो उनके लिए नमूना, दो महिलाएं हैं, एक फ़िरऔन की बीवी (हज़रत आसिया) और दूसरे हज़रत मरयम।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सद्दाम शासन की ओर से इस्लामी गणराज्य ईरान पर थोपी गयी 8 साल की जंग के कुछ ईसाई शहीदों के घर वालों से क्रिसमस के मौक़े पर मुलाक़ातें कीं। इन मुलाक़ातों की कुछ झलकियां पेश हैं।
हमारी अज़ीज़ सैन्य फ़ोर्सेज़, उस वक़्त की तुलना में ज़्यादा ताक़तवर हैं जब उन्होंने हम पर हमला किया था। इसलिए अगर वे हम से टकराए तो स्वाभाविक रूप से उन्हें ज़्यादा मुंहतोड़ जवाब मिलेगा।
मेरी नज़र में आज की हमारी जवान नस्ल बहुत अच्छी है और तैयार है। हमारा प्रोग्राम ऐसा होना चाहिए कि हम इन मूल्यों को जिनसे शहादत का ऐसा जज़्बा पैदा हुआ, ईरानी क़ौम में ऐसी महानता और बलिदान ने जन्म लिया, इन मूल्यों को आने वाली नस्ल में पैदा करें ताकि वह इंशाअल्लाह मुल्क को आगे ले जाए।
हमें प्रचारिक जंग का सामना है। दुश्मन समझ गया है कि इस मुल्क पर सैन्य ताक़त के ज़रिए क़ब्ज़ा करना मुमकिन नहीं है। वह समझ गया है कि अगर किसी तरह का क़ब्ज़ा करना चाहे, तो उसे दिलों को बदलना होगा। उसे दिमाग़ और सोच को बदलना होगा।
ईरानी क़ौम दिन ब दिन इस्लाम की इज़्ज़त को चार चाँद लगा रही है। वह दिखा रही है कि इस्लाम का मतलब है दृढ़ता, इस्लाम का मतलब है ताक़त, इस्लाम का मतलब है सच्चाई और पाकीज़गी। इस्लाम का मतलब है दूसरों का भला चाहना और इंसाफ़ पसंदी।
इस्लामी गणराज्य में यह दिखा दिया गया है कि एक मुसलमान और धर्म पर अमल करने वाली महिला, पर्दा करने वाली और इस्लामी हेजाब पर अमल करने वाली महिला सभी मैदानों में दूसरों से ज़्यादा प्रगतिशील अंदाज़ में आगे बढ़ सकती है।
हमारा मीडिया ध्यान दे कि महिला के बारे में पश्चिम और पूंजीवादी व्यवस्था की ग़लत सोच के प्रचार का साधन न बन जाए, उनका हथकंडा न बन जाए।आप इस्लाम का प्रचार कीजिए, इस्लाम के विचार को बयान कीजिए, इस्लाम की राय फ़ख़्र के क़ाबिल है।
मर्द की आय, मिसाल के तौर पर आफ़िस की एक बंधी हुयी रक़म है, चीज़ें महंगी हो जाती हैं लेकिन घर चलता रहता है। दोपहर को खाना तैयार है। कौन हुनरमंद है जो घर को चलाता है?
जहाँ भी उसने हस्तक्षेप किया या तो जंग की आग है या नस्ली सफ़ाया या विनाश और दरबदरी है, ये अमरीका के हस्तक्षेप के नतीजे हैं। अमरीकी, तेल और भूमिगत संसाधनों के लिए दुनिया में कहीं भी जंग की आग भड़काने को तैयार हैं। और आज जंग की यह आग, लैटिन अमरीका तक भी पहुंच गयी है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 27 नवम्बर 2025 को ईरानी क़ौम से ख़ेताब में बल दिया कि 20 साल की योजनाबंदी के बावजूद, ज़ायोनियों और अमरीकियों को जून में ईरान पर हमले में शिकस्त हुयी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 27 नवम्बर 2025 को ईरानी क़ौम से ख़ेताब में, 12 दिवसीय जंग में ईरानी क़ौम की एकता को अमरीका की नाकामी का सबब बताया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 27 नवम्बर 2025 को ईरानी क़ौम से ख़ेताब में बल दिया कि ग़ज़ा पट्टी की त्रासदी ने ज़ायोनी सरकार और अमरीका को घृणित और बदनाम कर दिया।
अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम का पाकीज़ा वजूद, सबसे बड़ी नेकी है, उनका वजूद सभी भलाइयों का साक्षात रूप है। हज़रत ज़हरा ने उनकी रक्षा की, उनकी रक्षा करके, सत्य के मोर्चे को बचा लिया।
तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) के शहादत दिवस के उपलक्ष्य में दूसरी मजलिस में "इस्राईल मुर्दाबाद" के गगन भेदी नारे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता, जंग के मोर्चे का पल पल नेतृत्व कर रहे थे और ज़रूरी आदेश जारी कर रहे थे, यहाँ तक कि क़रीब क़रीब पूरे वक़्त वे जंग और अवाम की ज़रूरतों को पूरा करने में लगे रहे।
ईरान के मिज़ाईल उद्योग के जनक ब्रिगेडियर जनरल शहीद हसन तेहरानी मुक़द्दम, दोस्तो! हमने सीखा है कि बड़े कामों और कठिन रास्तों को इरादे, दृढ़ता और फ़ौलादी संकल्प से जीता जाता है। हमें, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के बाज़ुओं की ताक़त बनना है।
पश्चिम का राजनैतिक और सुरक्षा वर्चस्व जमाने का स्वभाव है कि जिसकी जड़ें कई सदी पुरानी हैं। इस्लामी इंक़ेलाब की बुनियाद ही इस वर्चस्व को उखाड़ने के लिए पड़ी। अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति, दूसरे मुल्कों की स्वाधीनता के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
पहलवी दौर का ईरान, ग़ुलामों की तरह पश्चिम का अनुसरण करता था। ब्रिटेन और अमरीका के दूत, आए दिन शाह के साथ बैठक करते थे और उसे निर्देश देते थे। इंक़ेलाब होने की एक वजह, पश्चिम की ओर से अपमान किया जाना था जिसे महान ईरानी राष्ट्र बर्दाश्त न कर सका।
कुछ लोग पूछते हैं कि हम अमरीका के सामने झुके नहीं, क्या अमरीका के साथ कभी भी संबंध क़ायम नहीं होगा? क्या हमेशा अमरीका के मुख़ालिफ़ रहेंगे? जवाब यह है कि अमरीका की साम्राज्यवादी फ़ितरत, समर्पण के अलावा किसी चीज़ पर राज़ी नहीं होती।
इस्लामी गणराज्य और अमरीका के बीच मतभेद की वजह बुनियादी है, यह दो धाराओं के हितों का टकराव है। यह भोलापन है अगर कोई यह सोचता है कि चूंकि एक क़ौम अमरीका मुर्दाबाद का नारा लगाती है इसलिए अमरीका इस तरह दुश्मनी करता है।
मलऊन ज़ायोनी शासन की मदद और उसके साथ सहयोग और ईरान के साथ सहयोग एक साथ मुमकिन नहीं है। अगर (अमरीका) ज़ायोनी शासन का सपोर्ट करना पूरी तरह छोड़ दे, यहाँ (क्षेत्र) से अपनी सैन्य छावनियों को ख़त्म कर दे, इस इलाक़े में हस्तक्षेप न करे, उस वक़्त इस मसले की समीक्षा की जा सकती है।
4 नवम्बर को हमारे नौजवान स्टूडेंट्स ने जाकर अमरीकी दूतावास को अपने कंट्रोल में ले लिया। यह दिन, इस बात में शक नहीं कि इतिहास की नज़र से मुल्क के भविष्य के लिए फ़ख़्र के क़ाबिल और क़ौम की जीत का दिन शुमार होगा। यह वह दिन है जब हमारे नौजवानों ने उस ताक़त के मुक़ाबले में हिम्मत दिखाई जिससे दुनिया के नेता डरते थे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से पूरे मुल्क के टीचरों की मुलाक़ात के मौक़े पर ग़ज़ा पट्टी के स्टूडेंट्स और बहादुर टीचरों के लिए ईरानी टीचरों के दिल की गहराई से निकलने वाले जुमले। (17 मई 2025)
सामने वाले पक्ष ने धमकी दी है कि अगर तुमने वार्ता नहीं की तो ऐसा और वैसा होगा, हम बमबारी करेंगे। ऐसी वार्ता को स्वीकार करना जो धमकी के साथ जुड़ी हो, कोई सम्मानीय राष्ट्र बर्दाश्त नहीं करता, कोई भी समझदार राजनीतिज्ञ इसका समर्थन नहीं करता है।
ज़रूरी समझता हूं कि महान मुजाहिद शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह की शहादत की बर्सी पर उनका ज़िक्र करूं। सैयद हसन नसरुल्लाह इस्लामी दुनिया के लिए बहुत क़ीमती संपत्ति थे सिर्फ़ शियों के लिए नहीं, सिर्फ़ लेबनान के लिए नहीं, अलबत्ता यह संपत्ति ख़त्म नहीं हुयी। यह संपत्ति बाक़ी है।
यानी हम अमरीका के वार्ता की मेज़ पर बैठें और उनके साथ होने वाली बातचीत का नतीजा वह बात हो जो उसने कही है, यह वार्ता नहीं है, यह तो मुंहज़ोरी है, ऐसे पक्ष के साथ बैठकर वार्ता कीजिए कि जिसका नतीजा आवश्वयक रूप से वही होगा जो वह चाहता है, क्या इसे वार्ता कहेंगे?
अमरीकी पक्ष, ढिठाई से कह रहा है कि ईरान युरेनियम एनरिचमेंट न करे, ज़ाहिर है कि ईरान जैसी ग़ैरतमंद क़ौम, ऐसी बात करने वाले के मुंह पर दे मारेगी और इस बात को क़ुबूल नहीं करेगी।
मैं यह कहना चाहता हूं कि मौजूदा हालात में, जो स्थिति है, मुमकिन है, 20 साल बाद, 30 साल बाद हालात दूसरे हों, उससे मुझे कुछ लेना देना नहीं है, मौजूदा हालात में अमरीका के साथ बातचीत हमारे राष्ट्रीय हित में नहीं है।
आज दुनिया को हमेशा की तरह शांति, सुलह और सुरक्षा की ज़रूरत है। इंसान की मूल ज़रूरतों में से एक शांति है। अलबत्ता हम हमेशा से कहते आए हैं कि शांति न्यायपूर्ण होनी चाहिए। किसी क़ौम पर थोपी गयी अन्यायपूर्ण शांति, जंग से भी ज़्यादा बुरी है।
दुनिया में जो भी चाहे मुसलमान हो या ग़ैर मुसलमान अगर फ़िलिस्तीन के वाक़ए की हक़ीक़त को जान लेगा तो क़ाबिज़ शासन के ख़िलाफ़ हो जाएगा, उससे मुक़ाबला करेगा। फ़िलिस्तीनी क़ौम का व्यापक संघर्ष तब तक जारी रहना चाहिए जब तक वे लोग, जिन्होंने फ़िलिस्तीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा कर रखा है, फ़िलिस्तीनी क़ौम की राय के सामने झुक न जाएं।
एतेराज़ करने वाले मुल्क - जिसमें इस्लामी और ग़ैर इस्लामी मुल्क दोनों शामिल हैं -ख़ास तौर पर इस्लामी मुल्कों को चाहिए कि वे ज़ायोनी शासन से अपने व्यापारिक संबंध पूरी तरह ख़त्म करें और राजनैतिक संबंध भी, उसे अलग थलग कर दें।
आज इस्लामी जगत को बहुत बड़ी मुश्किलों का सामना है और उन मुश्किलों का हल इस्लामी एकता है। एकता क़ुरआन का एक हुक्म है। फ़िलिस्तीन का मसला, इस्लामी जगत का सबसे अहम मसला है। अगर मुसलमान एकजुट हो जाएं, तो फ़िलिस्तीन की हालत वैसी न होगी जैसी आज हम देख रहे हैं।