हमें आशा है कि ईरानी राष्ट्र और मोमिन क़ौमें, इंशा अल्लाह फ़िलिस्तीन पर हमला करने वालों और फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा करने वालों पर फ़िलिस्तीन की जीत के दिन को अपनी आंखों से देखेंगी।
आज दुनिया में राष्ट्रों के ख़िलाफ़ जो शत्रुतापूर्ण नीतियां अपनाई जा रही उनमें फ़िलिस्तीन से संबंधित मुद्दों को भुलाने का प्रयास किया जाता है। पूरी दुनिया को इसके ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए।
यह सभा बुनियादी तौर पर लोगों के फ़ायदे के लिए है। आज यह फ़ायदा क्या है? इस्लामी उम्मत की एकता। मेरी राय में इस्लामी उम्मत के लिए इससे बड़ा कोई फ़ायदा नहीं। अगर इस्लामी उम्मत एकजुट हो जाए, तो ग़ज़ा की त्रासदी न घटे, फ़िलिस्तीन की बर्बादी न हो, यमन इस तरह दबाव का शिकार न बने।
मेरी राय में इस्लामी उम्मत के लिए एकता से बड़ा कोई फ़ायदा नहीं। अगर इस्लामी उम्मत एकजुट हो जाए, तो ग़ज़ा की त्रासदी न घटे, फ़िलिस्तीन की बर्बादी न हो। यमन इस तरह दबाव का शिकार न बने।
ग़ज़ा के वाक़ए, हक़ीक़त में यह अपराधी गैंग जो फ़िलिस्तीन पर शासन कर रहा है, बर्बरता की सारी हदों को पार कर गया है। मेरी नज़र में इस्लामी जगत को कोई क़दम उठाना चाहिए, कुछ करना चाहिए।
वार्ता में अच्छी तरह से आगे बढ़ा जाए। मुमकिन है नतीजे पर पहुंचे, मुमकिन है नतीजा न निकले। न तो हम बहुत आशावादी हैं और न ही बहुत बदगुमान हैं। अलबत्ता सामने वाले पक्ष के संबंध में बहुत बदगुमान हैं, सामने वाले पक्ष को हम नहीं मानते, उसे हम पहचानते हैं।
दुश्मन, हमारी तरक़्क़ी से बौखला गया है, क्रोधित है। बहुत से दुष्प्रचार जिसे आप दुश्मन के मीडिया में प्रसारित होते हुए सुनते हैं, वह बौखलाहट की वजह से है। इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं है। ऐसे दावे करते हैं जिनकी कोई हक़ीक़त नहीं है।
जो लोग इस मुबारक महीने से फ़ायदा उठा सके, इंशाअल्लाह वे साल भर इस रूहानी ज़ख़ीरे को बचाए रखें और अगले रमज़ान तक अपने दिलों को पाकीज़ा बनाए रखें। इंशाअल्लाह, अगला रमज़ान उनके लिए नई बुलंदी का सबब होगा!
दो साल से भी कम वक़्त में क़रीब 20000 बच्चों को ज़ायोनी सरकार ने शहीद किया और उनके माँ बाप को दुखी किया लेकिन जो लोग मानवाधिकार का नारा लगाते हैं, वे खड़े तमाशा देख रहे हैं।
रमज़ान हक़ीक़त में तौहीद का जलवा है। यह दिलों को अल्लाह से जोड़ता है, रमज़ान का महीना अल्लाह से क़रीब होने का मौक़ा है। तक़वे का ट्रेनिंग स्थल है और नई रूहानी ज़िंदगी का स्रोत है।
क्षेत्र की बहादुर क़ौम, क्षेत्र के ग़ैरतमंद जवानों पर प्रॉक्सी होने का इल्ज़ाम लगाते हैं। मैं जो बात कहना चाहता हूं यह है कि इस क्षेत्र में सिर्फ़ एक प्रॉक्सी फ़ोर्स है और वह दुष्ट, क़ाबिज़ और भ्रष्ट ज़ायोनी शासन है।
हज़रत मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि तुम अल्लाह से मदद तलब करो और सब्र व तहम्मुल से काम लो, अल्लाह मसले हल कर देगा और हल हो गए। शक न करें कि इस दृढ़ता का नतीजा दुश्मनों की हार है। दुष्ट और अपराधी ज़ायोनी शासन की हार है।
क़ुद्स दिवस की रैली इस बात का भी सबूत है कि ईरानी क़ौम अपने अज़ीम सियासी और बुनियादी लक्ष्यों पर अडिग और दृढ़ है। ऐसा नहीं है कि फ़िलिस्तीन के समर्थन का नारा देकर एक-दो साल बाद भूल जाए। 40 से अधिक वर्षों से ईरानी राष्ट्र क़ुद्स दिवस पर रैलियां निकालता आ रहा है।
अमरीकी, योरोपीय और उन जैसे दूसरे राजनेता जो एक बड़ी ग़लती करते हैं वह यह है कि क्षेत्र में रेज़िस्टेंस के सेंटरों को ईरान की प्रॉक्सी फ़ोर्सेज़ कहते हैं। फ़िलिस्तीन पर नाजायज़ क़ब्ज़े के वक़्त से ही उसके ख़िलाफ़ खड़े होने वालों की अग्रिम पंक्ति में जो मुल्क थे, उनमें से एक यमन था।
अमेरिकियों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि ईरान के मामले में धमकियों से कुछ हासिल नहीं होगा। अगर उन्होंने ईरान के अवाम के ख़िलाफ़ कोई दुष्टता की, तो उन्हें सख़्त जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
अगर ईरानी क़ौम और मुसलमान क़ौमें इस महान इंसान और पैग़म्बरे इस्लाम के बाद सबसे श्रेष्ठ हस्ती से फ़ायदा उठाना चाहती हैं तो नहजुल बलाग़ा ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने नौरोज़ के पैग़ाम में पिछले हिजरी शम्सी साल के अहम वाक़यों का ज़िक्र किया और नए हिजरी शम्सी साल में कोशिशों और योजनाओं की दिशा निर्धारित करने के लिए नारा तय फ़रमायाः "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश"
ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है। पूरी दुनिया में आज़ाद प्रवृत्ति के लोग इस करतूत का मुक़ाबला करें।
बेशक परहेज़गार लोग बहिश्तों और चश्मों में होंगे (51:15) और उनका परवरदिगार जो कुछ उन्हें अता करेगा वह वे ले रहे होंगे बेशक वे इस (दिन) से पहले ही (दुनिया में) नेकूकार थे। (51:16) ये लोग रात को बहुत कम सोया करते थे (51:17)और सहर के वक़्त मग़फ़ेरत तलब किया करते थे। (51:18) और उनके मालों में से सवाल करने वाले और सवाल न करने वाले मोहताज सबका हिस्सा था।(51:19) और ज़मीन में यक़ीन करने वालों के लिए (हमारी क़ुदरत की) निशानियां हैं। (51:20)
भारतीय शायर का कलाम सुनने के बाद इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की टिप्पणीः यह बात अहम है कि एक शख़्स जिसकी मातृ भाषा फ़ारसी न हो वह इतनी साफ़ सुथरी ज़बान में शेर कहे। फ़ारसी में बात करना एक कला है और फ़ारसी में शेर कहना दूसरी कला है।
अमरीकी राष्ट्रपति ने, इसी शख़्स ने पूरी हो चुकी, मुकम्मल हो चुकी वार्ता, दस्तख़त हो चुके समझौते को मेज़ से उठाकर फेंक दिया, फाड़ दिया। इस इंसान से किस तरह वार्ता की जा सकती है? वार्ता में इंसान को यक़ीन होना चाहिए कि सामने वाला पक्ष उस चीज़ पर अमल करेगा जिसका उसने वादा किया है हम जानते हैं कि वह अमल नहीं करेगा तो फिर किस लिए वार्ता हो?
इंसान दुआ से, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाकर, रोज़े से ख़ुद को भूल जाने की इस ग़फ़लत से मुक्ति पा सकता है और अगर यह ग़फ़लत दूर हो जाए तो उस वक़्त इंसान को अल्लाह का सवाल याद आता है और हम ध्यान देते हैं कि अल्लाह हमसे सवाल करेगा।
हम बैठे, कई साल बातचीत की; इसी शख़्स ने, बातचीत पूरी होने, समझौते पर दस्तख़त होने के बाद, समझौते को मेज़ से उठाकर फेंक दिया, फाड़ दिया। ऐसे शख़्स के साथ बातचीत कैसे की जा सकती है?
उन्होंने अल्लाह को भुला दिया तो अल्लाह ने भी ऐसा किया कि वे अपने आप को ही भूल गए, यानी ख़ुद फ़रामोशी का शिकार हो गए। व्यक्तिगत स्तर पर इंसान के ख़ुद को भुल जाने का मतलब यह है कि इंसान अपने पैदा होने के मक़सद को भूल जाता है।
कुछ बदमाश सरकारें, वार्ता पर इसरार कर रही हैं,उनका वार्ता पर इसरार मसले के हल के लिए नहीं बल्कि हुक्म चलाने के लिए है। वार्ता करें ताकि मेज़ की दूसरी ओर जो पक्ष बैठा है उस पर अपनी इच्छा थोपें।
रमज़ान का महीना ज़िक्र का महीना है, क़ुरआन का महीना है और क़ुरआन ज़िक्र की किताब है। 'ज़िक्र' का क्या मतलब है? ज़िक्र, ग़फ़लत और फ़रामोशी की ज़िद्द है।
अब तीन योरोपीय देश, विज्ञप्ति जारी कर रहे हैं, बयान दे रहे हैं कि ईरान ने परमाणु समझौते जेसीपीओए में अपने वचन पर अमल नहीं किया! कोई उनसे यह पूछे कि आपने अमल किया?!आपने पहले दिन से अमल नहीं किया! अमरीका के निकल जाने के बाद, आपने वादे किया था कि किसी न किसी तरह भरपाई करेंगे, आप अपने वादे से फिर गए, फिर कुछ और वादा किया, उस दूसरे वादे से भी फिर गए।