इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बुधवार 20 नवम्बर 2024 को महिलाओं के मदरसे जामेअतुज़्ज़हरा के शिक्षकों और स्टूडेंट्स से तेहरान में मुलाक़ात में समाज के नए मसलों का जवाब देने के लिए मदरसों में बदलाव और अपटूडेट होने की ज़रूरत पर बल दिया।
बैरूत में ज़ायोनी शासन के पेजर हमलों के आतंकवादी कृत्य में घायल होने वाले ईरानी राजदूत जनाब मुजबता अमानी ने रविवार 17 नवंबर 2024 को तेहरान में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात की, जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने उनका हाल-चाल पूछा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने 30 दिसम्बर 2019 को फ़िक़्ह के दर्से ख़ारिज में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि वआलेही वसल्लम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की आख़िरी बातचीत के बारे में एक हदीस की व्याख्या की।
सही मानी में एक रहनुमा, एक पैग़म्बर की तरह, पूरी इंसानियत की रहनुमा, इतने आला रुतबे पर सबसे पाकीज़ा हज़रत ज़हरा एक नौजवान महिला नज़र आती हैं। यह है इस्लाम के मद्देनज़र महिला।
यह संघर्ष जो बेहम्दिल्लाह आज पूरी ताक़त से जारी है लेबनान में भी, ग़ज़ा में और फ़िलिस्तीन में भी, इस संघर्ष के नतीजे में निश्चित तौर पर सत्य को कामयाबी, सत्य के मोर्चे को कामयाबी, रेज़िस्टेंस मोर्चे को कामयाबी मिलेगी।
साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ यही काम गांधी जी ने भारत में किया लेकिन मीरज़ाए शीराज़ी के 30 साल बाद, यानी इस बेनज़ीर साफ़्ट वार में इनोवेशन मीरज़ाए शीराज़ी ने पेश किया।
आक़ा मैं यह बताने आयी हूं कि हम्ज़ा जैसे बूट पहने हुए, ज़ीन कसे हुए, कांधे पर हथियार उठाए हुए तैयार हैं ताकि अपने मौला के हुक्म पर इस जाली और मनहूस शासन को भुगोल के नक़्शे से हमेशा के लिए मिटा दें।
अमरीका का दूतावास इस्लामी इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ आंतरिक स्तर पर विद्रोह कराने, इंक़ेलाब को ख़त्म करने, यहाँ तक कि इमाम ख़ुमैनी के मुबारक जीवन को ख़त्म करने के लिए प्लानिंग करने वाला गढ़ था।
हम साम्राज्यवाद से मुक़ाबले में हर वह काम जो लाज़िम और ज़रूरी है निश्चित तौर पर अंजाम देंगे और अलहम्दुलिल्लाह इस वक़्त भी देश के अधिकारी उसे अंजाम देने में लगे हुए हैं।
फ़िलिस्तीन किसका है? क़ाबिज़ कहाँ से आए हैं? कोई भी अंतर्राष्ट्रीय संगठन फ़िलिस्तीनी क़ौम पर एतेराज़ करने का हक़ नहीं रखता कि वह क्यों क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ सीना तान कर खड़ी है। किसी को हक़ नहीं है। जो लोग फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की मदद कर रहे हैं वे भी अस्ल में अपने फ़रीज़े पर अमल कर रहे हैं।
अगर शहीद सिनवार जैसे लोग न होते जो आख़िरी लम्हे तक लड़ते रहे तो क्षेत्र का भविष्य किसी और तरह का होता। अगर सैयद नसरुल्लाह जैसे महान लोग न होते तो आंदोलन किसी और तरह का होता, अब जब ऐसे लोग हैं तो आंदोलन किसी और तरह का है।
ईरानी क़ौम का जो दुश्मन है वही फ़िलिस्तीनी क़ौम का भी दुश्मन है, वही लेबनानी क़ौम, इराक़ी क़ौम, मिस्री क़ौम, सीरियाई क़ौम और यमनी क़ौम का भी दुश्मन है। दुश्मन एक ही है। बस अलग अलग मुल्कों में दुश्मन की शैलियां अलग हैं।
जो क़ौम भी चाहती है कि दुश्मन की बेबस कर देने वाली नाकाबंदी का शिकार न हो, उसे चाहिए कि पहले ही अपनी आँखें खुली रखे, जैसे ही देखे कि दुश्मन किसी दूसरी क़ौम की ओर बढ़ रहा है, ख़ुद को मज़लूम व पीड़ित क़ौम के दुख दर्द में शरीक जाने, उसकी मदद करे, उससे सहयोग करे ताकि दुश्मन वहाँ कामयाब न हो सके।
सैयद हसन नसरुल्लाह ज़ालिम और लुटेरे शैतानों के मुक़ाबले में प्रतिरोध का ऊंचा परचम थे। मज़लूमों की बोलती ज़बान और बहादुर रक्षक थे, मुजाहिदों और सत्य की राह पर चलने वालों के साहस और ढारस का सबब थे।
अलअक़्सा तूफ़ान आप्रेशन की सालगिरह पर Khamenei.ir की तरफ़ से ज़ायोनी सरकार पर निर्णायक वार करने वाले इस आप्रेशन से संबंधित इस्लामी इंक़ेलाब के नेता इमाम ख़ामेनेई के बयानों पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री पब्लिश की जा रही है।
हमारे इस इलाक़े में उस समस्या की जड़, जो संघर्ष, युद्ध, चिंताएं, शत्रुताएं वग़ैरा पैदा करती है उन लोगों की उपस्थिति है जो क्षेत्र के अमन व शांति का दम भरते हैं।
दुश्मन के पास पैसा है, हथियार हैं, संसाधन हैं, वैश्विक प्रचार है लेकिन जो विजयी है वह अल्लाह के लिए लड़ने वाला मुजाहिद है। फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस विजयी है। हिज़्बुल्लाह विजेता है।
इस जंग में भी काफ़िर और दुष्ट शत्रु सबसे ज़्यादा हथियारों से लैस है। अमेरिका उसके पीछे है। अमरीकियों का कहना है कि हमारी कोई भागीदारी नहीं है, हमें जानकारी नहीं है, वे झूठ बोलते हैं!
आज ज़ायोनी शासन बड़ी बेशर्मी से खुल्लम खुल्ला अपराध कर रहा है। इसकी वजह यह है कि हम अपनी आंतरिक ताक़त को इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। हमें इस्तेमाल करना चाहिए।
इस्लामी जगत की ताक़त कैंसर के इस दुष्ट फोड़े को इस्लामी समाज के दिल यानी फ़िलिस्तीन से निकाल सकती है, मिटा सकती है और इस इलाक़े से अमरीका की धौंस व धमकी भरे प्रभाव, कंट्रोल और हस्तक्षेप को ख़त्म कर सकती है। हम में ऐसा करने की ताक़त है!
आज हमें इस्लामी उम्मत के गठन की ज़रूरत है, यानी इसके लिए कोशिश होनी चाहिए। इस संबंध में कौन मदद कर सकता है। सरकारें प्रभावी हो सकती हैं। अलबत्ता सरकारों में जज़्बा बहुत ठोस नहीं है। जो लोग इस जज़्बे को ठोस कर सकते हैं वह इस्लामी जगत का विशिष्ट वर्ग है।
एक और चीज़ जो इस साल ओलंपिक मुक़ाबलों में नुमायां थी वह विश्व स्पोर्ट्स के मामलों को कंट्रोल करने वाले मुल्कों की दोहरी नीति है। वाक़ई उन्होंने दिखा दिया कि उनके रवैयों पर दोहरी और दुश्मनी भरी नीतियां छायी हुयी हैं।
अमरीकी अधिकारियों के दिमाग़ में आतंकवाद का अर्थ ग़लत रूप में है। वे आतंकवाद का ग़लत मानी निकालते हैं। एक रात में सबरा व शतीला के नरसंहार को, वे आतंकवाद नहीं मानते!