अमरीकी सरकार सीधे तौर पर जंग में कूद पड़ी, क्योंकि उसे लगा कि अगर वह नहीं कूदी तो ज़ायोनिस्ट रेजीम पूरी तरह मिट जाएगी। इस्लामी गणराज्य ने पलट कर अमरीका को बहुत ज़ोरदार थप्पड़ लगाया। हमारी संस्कृति और सभ्यता की धऱोहर अमरीका और उसके जैसों से सैकड़ों गुना ज़्यादा है। कोई यह अपेक्षा रखे कि ईरान किसी देश के आगे सरेंडर होगा यह एक निरर्थक बात है।
ईरानी क़ौम थोपी गयी जंग के मुक़ाबले में मज़बूती से डट जाएगी जैसा कि अब तक डटी हुयी है थोपी गयी सुलह के मुक़ाबले में भी मज़बूती से डट जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
18 जून 2025
आज इस घमंडी, जाहिल और धर्मांधी ने मुक़ाबले के ऐसे मैदान में क़दम रखा है जिसमें उसकी क़ब्र खुदी हुयी है। पूरी क़ौम तैयार है, हम सब ल़ड़ेंगे। हम बड़ी ताक़तों पर क्षेत्रीय स्तर पर फ़तह हासिल करने के लिए बढ़ने वाले हैं। यह जंग हमारे लिए, एक मुक़द्दस और मुबारक जंग है।
वे अमरीकी जो इस इलाक़े को पहचानते हैं, जानते हैं कि इस मामले में अमरीका का कूदना, सौ फ़ीसदी उसके नुक़सान में है। इस मामले में जो नुक़सान उसे पहुंचेगा, वह ईरान को संभवतः पहुंचने वाले नुक़सान से ज़्यादा होगा। इस मैदान में कूदने पर, इस मैदान में सैनिक हस्तक्षेप करने पर अमरीका को पहुंचने वाला नुक़सान, ऐसा होगा जिसकी निश्चित तौर पर वह भरपाई नहीं कर पाएगा।
इमाम ख़ामेनेई
18 जून 2025
यह वही चीज़ है जिसके बारे में दसियों साल पहले, ज़ायोनी हुकूमत के मुख्य संस्थापकों में से एक और इस हुकूमत के प्रधान मंत्री बिन गोरियन ने उसने कहा था कि जब भी हमारी डिटेरन्स ताक़त ख़त्म हो जाएगी, हमारी हुकूमत बिखर जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
22 अप्रैल 2023
दुश्मन के मुक़ाबले में चेतना के मामले में भी चरम सीमा पर हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि “और जो सो गया तो उससे कोई ग़फ़लत नहीं करेगा” अगर तुम्हें दुश्मन की लोरी से नींद आ गयी तो जान लो इसका यह मतलब नहीं कि दुश्मन भी सो गया होगा, वह जाग रहा है।
इमाम ख़ामेनेई
25 जून 2024
हम ज़ायोनिस्टों को इस बड़े जुर्म के बाद जो उन्होंने अंजाम दिया है, बच कर नहीं जाने देंगे। यक़ीनन इस्लामी जम्हूरिया ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ इस ख़बीस ज़ायोनी दुश्मन पर भारी वार करेंगी।
ग़दीर का अर्थ, इलाही व इस्लामी शासन के सिलसिले को जारी रखना है ताकि यह शासन इमामत की मदद से विकसित इस्लामी जीवन शैली के आदर्श पेश करने का सिलसिला जारी रखे।
इमाम ख़ामेनेई
25 जून 2024
सचमुच हमारी क़ौम अटल इरादे की मालिक क़ौम है, क्या आप किसी ऐसी क़ौम को जानते हैं जो उन ताक़तों के मुक़ाबले में जो दूसरों पर अपना हुक्म चला रही हैं, डट जाए, सीना तान कर खड़ी हो जाए और पूरी दृढ़ता से और स्पष्ट अंदाज़ में अपनी बात रखे? हमारी क़ौम के अलावा बहुत ढूंढने पर कोई ऐसी क़ौम मिलेगी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने हर साल की तरह इस साल भी सम्मानीय हाजियों के नाम एक पैग़ाम जारी करके, इस्लामी जगत के अहम मुद्दों की ओर उन्हें ध्यान दिलाया है।
हैरत होती है कि इंसान कितना पस्त, दुष्ट, निर्दयी और शैतान हो जाए कि ऐसी करतूत करे। अलबत्ता इस अपराध में अमरीका भी भागीदार है। यही वजह है कि हमने कहा है, बारंबार कहा है और हम इसरार कर रहे हैं कि अमरीका इस इलाक़े से निकल जाए।
रमिये जमरात (कंकड़ियाँ मारना) यानी शैतान को मारो, जहां भी हो, जिस शक्ल में भी हो, जहाँ भी शैतान मिले, उसे कुचल दो। शैतान को कुचल दो, शैतान को पहचानो और मार दो।
इमाम ख़ामेनेई
4 मई 2025
ज़ायोनी सरकार पर भरोसे से कोई भी सरकार सुरक्षित नहीं रह पाएगी। ज़ायोनी शासन अल्लाह के अटल फ़ैसले की वजह से बिखर रहा है और इंशाअल्लाह इसमें ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा।
सफ़ा व मरवा के बीच सई (तेज़ क़दमों से चलना) एक इबादत है, लेकिन इसका एक गहरा प्रतीकात्मक संदेश है। (यानी) ज़िंदगी की मुश्किलों के पहाड़ों के बीच लगातार आगे बढ़ते रहिए, कोशिश करते रहिए।
तवाफ़ आपको यह सबक़ देता है: ज़िंदगी का अस्ली सबक़ तौहीद है। और यह सबक़ सिर्फ़ मोमिनों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए हैः और लोगों में हज का एलान कर दीजिए। (सूरए हज, आयत-27)
ये सारे इबादती काम जो हज में हैं, इनमें से हर एक का एक सांकेतिक पहलू है। किसी न किसी इंसानी पहलू की तरफ़ इशारा है। जैसे शैतान को कंकड़ियाँ मारना (यानी) शैतान को मारो, जहां भी हो, जिस शक्ल में भी हो, जहाँ भी शैतान मिले, उसे कुचल दो! शैतान को कुचल दो।
लोगों से गर्मजोशी से मिलिए। जनता के बीच जाइए। उनकी सभाओं में जाइए, उनकी बातें सुनिए, कभी-कभी वे कड़वी बातें करते हैं, सहनशीलता दिखाइए। इसके लिए अभ्यास की ज़रूरत है।
एहराम ख़ुदा के सामने नम्रता दिखाने का एक तरीक़ा है। ज़िंदगी के अलग-अलग कपड़ों, गहनों और सजावटों को कपड़े के एक टुकड़े से बदल देना। यह काम हज में मौजूद दुनिया का सबसे अमीर और सबसे ग़रीब इंसान दोनों एक ही तरह से करेंगे, उनमें कोई फ़र्क़ नहीं। क़ानून यही है: ख़ुदा के सामने सब इंसानों को बराबर कर देना।
अमरीका के राष्ट्रपति कुछ अरब देशों को एक मॉडल का प्रस्ताव देते हैं, निश्चित रूप से यह मॉडल पूरी तरह नाकाम हो चुका है। इलाक़े के लोगों के मज़बूत इरादे से अमरीका को यहाँ से जाना ही पड़ेगा और वो जाएगा।
राष्ट्रपति बनने के बाद शहीद रईसी ने जो पहला इंटरव्यू दिया था, उसमें पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या आप अमरीका से वार्ता करेंगे? उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा: "नहीं"। उन्होंने कहा: "नहीं", बिना किसी हिचकिचाहट के और उन्होंने वार्ता नहीं की।
अमरीकी पक्ष, जो इन अप्रत्यक्ष वार्ताओं में बातचीत कर रहा है, कोशिश करे कि फ़ुज़ूल बातें न करे। यह कहना कि हम ईरान को यूरेनियम संवर्धन की अनुमति नहीं देंगे, यह अपनी औक़ात से बढ़कर बोलना है।
इलाक़े के लोगों के मज़बूत इरादे से अमरीका को यहाँ से जाना ही पड़ेगा और वो जाएगा। ज़ायोनी शासन, जो इस इलाक़े में एक ख़तरनाक कैंसर और जानलेवा नासूर है, उसे पूरी तरह से मिटा देना चाहिए और ऐसा होकर रहेगा।
हमें आशा है कि ईरानी राष्ट्र और मोमिन क़ौमें, इंशा अल्लाह फ़िलिस्तीन पर हमला करने वालों और फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा करने वालों पर फ़िलिस्तीन की जीत के दिन को अपनी आंखों से देखेंगी।
आज दुनिया में राष्ट्रों के ख़िलाफ़ जो शत्रुतापूर्ण नीतियां अपनाई जा रही उनमें फ़िलिस्तीन से संबंधित मुद्दों को भुलाने का प्रयास किया जाता है। पूरी दुनिया को इसके ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए।
यह सभा बुनियादी तौर पर लोगों के फ़ायदे के लिए है। आज यह फ़ायदा क्या है? इस्लामी उम्मत की एकता। मेरी राय में इस्लामी उम्मत के लिए इससे बड़ा कोई फ़ायदा नहीं। अगर इस्लामी उम्मत एकजुट हो जाए, तो ग़ज़ा की त्रासदी न घटे, फ़िलिस्तीन की बर्बादी न हो, यमन इस तरह दबाव का शिकार न बने।
मेरी राय में इस्लामी उम्मत के लिए एकता से बड़ा कोई फ़ायदा नहीं। अगर इस्लामी उम्मत एकजुट हो जाए, तो ग़ज़ा की त्रासदी न घटे, फ़िलिस्तीन की बर्बादी न हो। यमन इस तरह दबाव का शिकार न बने।
ग़ज़ा के वाक़ए, हक़ीक़त में यह अपराधी गैंग जो फ़िलिस्तीन पर शासन कर रहा है, बर्बरता की सारी हदों को पार कर गया है। मेरी नज़र में इस्लामी जगत को कोई क़दम उठाना चाहिए, कुछ करना चाहिए।
वार्ता में अच्छी तरह से आगे बढ़ा जाए। मुमकिन है नतीजे पर पहुंचे, मुमकिन है नतीजा न निकले। न तो हम बहुत आशावादी हैं और न ही बहुत बदगुमान हैं। अलबत्ता सामने वाले पक्ष के संबंध में बहुत बदगुमान हैं, सामने वाले पक्ष को हम नहीं मानते, उसे हम पहचानते हैं।
दुश्मन, हमारी तरक़्क़ी से बौखला गया है, क्रोधित है। बहुत से दुष्प्रचार जिसे आप दुश्मन के मीडिया में प्रसारित होते हुए सुनते हैं, वह बौखलाहट की वजह से है। इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं है। ऐसे दावे करते हैं जिनकी कोई हक़ीक़त नहीं है।
जो लोग इस मुबारक महीने से फ़ायदा उठा सके, इंशाअल्लाह वे साल भर इस रूहानी ज़ख़ीरे को बचाए रखें और अगले रमज़ान तक अपने दिलों को पाकीज़ा बनाए रखें। इंशाअल्लाह, अगला रमज़ान उनके लिए नई बुलंदी का सबब होगा!
दो साल से भी कम वक़्त में क़रीब 20000 बच्चों को ज़ायोनी सरकार ने शहीद किया और उनके माँ बाप को दुखी किया लेकिन जो लोग मानवाधिकार का नारा लगाते हैं, वे खड़े तमाशा देख रहे हैं।