सवालः एक शख़्स मन्नत मानता है कि फ़ुलां इबादत ख़ास वक़्त पर अंजाम देगा (मिसाल के तौर पर किसी ख़ास दिन रोज़ा रखेगा या एक ख़ास वक़्त पर नमाज़ पढ़ेगा) लेकिन किसी भी वजह से, जान बूझकर या भूले से उस मन्नत पर अमल नहीं करता तो क्या उस मन्नत की क़ज़ा है?
जवाबः रोज़े के अलावा दूसरे आमाल की क़ज़ा नहीं है अगरचे जान बूझकर मन्नत की ख़िलाफ़वर्ज़ी पर कफ़्फ़ारा देना होगा।