झूले में मौजूद बच्चे, पांच साल, छह साल के बच्चों पर, महिलाओं पर, अस्पतालों में भरती बीमारों पर, इन लोगों ने तो एक गोली भी नहीं चलायी होती है, लेकिन इन पर बम गिराए जा रहे हैं।
मैं यह कहना चाहता हूं ऐ इमाम अली बिन मूसा रज़ा यह मेरा दिल, आपका है। मैं आपसे कुछ चीज़ें मांगता हूं। लेकिन मैं ख़ुद क्या देना चाहता हूं ताकि मेरे काम की वो गिरहें खुल जाएं। वह चीज़ जो मैं आपके पास रखना चाहता हूं, वह मेरा दिल है।
हमास ने एक सरकार की हैसियत ने नहीं, एक देश की हैसियत से नहीं, एक संघर्षशील गिरोह की हैसियत से, क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार को, उसके इतने सारे संसाधनों के साथ नॉकआउट कर दिया।
ज़ायोनी कालोनियों वग़ैरह में जो लोग रह रहे हैं वो आम लोग नहीं हैं, वो हथियारों से लैस हैं। चलिए मैं मान लेता हूं कि वो आम लोग हैं! कितने आम लोग मारे गए? इससे 100 गुना ज़्यादा इस वक़्त यह क़ाबिज़ सरकार बच्चों, औरतों, बूढ़ों और जवानों को क़त्ल कर रही है जो आम नागरिक हैं।
अमीरुल मोमेनीन फ़रमाते हैं: “जब पैग़म्बर की बेसत हुई और अल्लाह ने पैग़म्बर को भेजा तो उस वक़्त दुनिया तारीकियों में डूबी हुई थी। उसका फ़रेबी रूप सामने था।” क़ुरआन के मुताबिक़ (बेसत) अल्लाह का पैग़ाम ‘वहि’ नाज़िल होने का मक़सद हैः “कि तुम्हें अंधेरे से प्रकाश में लाए।”
आप बच्चियों को, अपनी प्यारी बच्चियों को मैं जो नसीहत करना चाहता हूं, वह यह है कि अल्लाह से दोस्ती कीजिए। कोशिश कीजिए कि नौजवानी के आग़ाज़ से ही मेहरबान अल्लाह की दोस्त बन जाइए।