इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने वली-अहद का ओहदा क़ुबूल करके वह क़दम उठाया जो सन 40 हिजरी में अहलेबैत की ख़ेलाफ़त का दौर ख़त्म होने के बाद से लेकर पूरी ख़ेलाफ़त की तारीख़ में बेनज़ीर है। वह क़दम था पूरी इस्लामी दुनिया की सतह पर शिया अक़ीद-ए-इमामत का एलान, तक़ैया के पर्दे को चाक करके शिया अक़ीदे को सारे मुसलमानों तक पहुंचाना।
इमाम ख़ामेनेई
9 अगस्त 1984
पैग़म्बर की नज़र में इंसान की नजात का तरीक़ा यह नहीं था कि आप एक एक व्यक्ति की इस्लाह करें। नहीं, पहले दिन से पैग़म्बरे इस्लाम का तरीक़ा यह रहा कि इस तरह का समाज बनाया जाए जिसमें लोग मुत्तहिद रहें और उसमें इस्लामी मूल्यों के मुताबिक़ परवान चढ़ें और इस्लाम के मद्देनज़र बुलंदी तक पहुंचें।
इमाम ख़ामेनेई
1 नवम्बर 1986
पैग़म्बर की जंग और जेहाद सिर्फ़ तलवार की लड़ाई तक सीमित नहीं है बल्कि यह आम लड़ाई है। इसमें वैचारिक लड़ाई भी है, सियासी लड़ाई भी है, प्रचारिक लड़ाई भी है और फ़ौजी लड़ाई भी है। बेशक हिजरत से पहले पैग़म्बर ने मक्के में जो जेहाद अंजाम दिया वह बद्र व ओहोद, ख़ैबर व ख़ंदक़ और दूसरी जंगों के ख़तरों से कम ख़तरनाक नहीं था।
इमाम ख़ामेनेई
1 नवम्बर 1986
पैग़म्बर ने बड़ी सख़्तियां बर्दाश्त कीं। हज़रत अली ने बड़े दुख उठाए, दूसरे इमामों ने भी ज़ुल्म का सामना किया लेकिन इमाम हसन जैसी हालत किसी की न थी। यहीं से इमाम हसन अलैहिस्सलाम की अज़मत का पता चलता है। क्योंकि दूसरे इमामों को दुश्मनों ने तकलीफ़ें पहुंचाईं और दोस्तों ने ज़ख़्मों पर मरहम रखा मगर इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ यह स्थिति नहीं थी। आपके बिल्कुल क़रीबी व्यक्ति ने आपको मुख़ातिब करके कहा ऐ मोमिनों के लिए रुस्वाई!
इमाम ख़ामेनेई
28 जुलाई 1980
यह उन्हें बर्दाश्त न था कि एक क़ौम अमरीका से और उस ज़माने में दुनिया पर छायी फ़ौजी, सियासी और आर्थिक ताक़त से न डरे। लेहाज़ा वे ईरान से बदला लेने की कोशिश में थे। बग़ावत, तबस हवाई हमला, जातियों को भड़काने जैसी हरकतें कीं, कुछ हाथ न आया तो एक पड़ोसी के ज़रिए जंग थोप दी।
इमाम ख़ामेनेई
21/09/2022
ब्रितानी शिया और अमरीकी सुन्नी में कोई फ़र्क़ नहीं। दोनों ही क़ैंची के दो फल हैं। साम्राज्यवाद चाहता है कि इस्लामी दुनिया में इख़तेलाफ़ की लकीरों को गहरा करे शिया-सुन्नी जंग के ज़रिए, अरब व ग़ैर अरब जंग के ज़रिए, कभी शिया-शिया जंग और कभी सुन्नी-सुन्नी जंग के ज़रिए। जबकि अस्ली और बुनियादी फ़ासला एक ही है और वह इस्लामी दुनिया और कुफ़्र व साम्राज्यवाद की दुनिया के बीच का फ़ासला है। बाक़ी सारे मतभेदों को कम करने की ज़रूरत है।
इमाम ख़ामेनेई
3 सितम्बर 2022 और 17 दिसम्बर 2016
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आठ साल चलने वाले पाकीज़ा डिफ़ेंस की मुनासिबत से मनाए जाने वाले पाकीज़ा डिफ़ेंस के हफ़्ते के आग़ाज़ पर एक पैग़ाम जारी किया।
पैग़ाम इस तरह हैः
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने एक फ़रमान जारी करके, हित संरक्षक काउंसिल (मसलहत काउंसिल) के नये टर्म के मेंबरों के नामों का एलान कर दिया।
रहबरे इन्क़ेलाब का फ़रमान इस तरह हैः
‘मुक़द्दस डिफ़ेन्स’ की सालगिरह के मौक़े पर मनाए जाने वाले हफ़्ते की मुनासिबत से कमांडरों और बहादुर सिपाहियों, इसी तरह शहीदों के परिवारों से रहबरे इंक़ेबलाक की मुलाक़ात होगी।
पाकीज़ा डिफ़ेंस के कमांडरों, मुजाहिद सिपाहियों और शहीदों के परिवारों के एक समूह ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। यह मुलाक़ात, पाकीज़ा डिफ़ेंस के हफ़्ते के मौक़े पर बुधवार 21 सितम्बर 2022 को तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में हुयी।
इस्लामी इंक़ेलाब नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 21 सितम्बर 2022 को पाकीज़ा डिफ़ेंस सप्ताह के मौक़े पर आठ वर्षीय जंग के कमांडरों और सीनियर सैनिकों के बीच तक़रीर में आठ साल तक चलने वाले पाकीज़ा डिफ़ेंस के बड़े अहम आयामों पर प्रकाश डाला और कुछ निर्देश दिए।
तक़रीर इस तरह हैः
आपके पासबाने हरम शहीदों की क़ुरबानी जो इस दौर में मुल्क से बाहर जाकर शहीद हुए, दर हक़ीक़त उन लोगों की क़ुरबानियों जैसी है जिन्होंने अपनी जानें देकर इमाम हुसैन की क़ब्र की हिफ़ाज़त की। जाकर क़ुरबानियां देने का यही अमल था कि जो अरबईन के दो करोड़ पैदल ज़ायरीन के नतीजे तक पहुंचा। अगर उस वक़्त इन लोगों ने क़ुरबानियां न दी होतीं तो आज इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का इश्क़ इस अंदाज़ से सारी दुनिया पर न छा जाता। आप देखते हैं कि अरबईन मार्च में अलग अलग मुल्कों से फ़ार्स तुर्क, उर्दू ज़बान बोलने वाले, यूरोपीय मुल्कों यहां तक कि अमरीका से लोग इसमें शिरकत करते हैं। यह कारनामा किसने अंजाम दिया। इसका पहला संगे बुनियाद और बुनियादी काम उन्हीं लोगों के हाथों अंजाम पाया जिन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए अपनी जान की भी क़ुरबानी दी।
इमाम ख़ामेनेई
12/10/2018
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम में, तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में स्टूडेंट्स की अंजुमनों ने अज़ादारी की जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने भी शिरकत की। मजलिस में मौजूद अज़ादारों ने, इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए कर्बला गये अज़ादारों की आवाज़ से आवाज़ मिलाते हुए “लब्बैक या हुसैन” के नारे लगाए।
अरबईन का अज़ीम प्रोग्राम एक ग़ैर मामूली वाक़या है। हम अपने दिलो दिमाग़ में इमाम हुसैन की याद ताज़ा करते हैं। ख़ुलूस व अक़ीदत से भरा दुरूद व सलाम उस अज़ीम हस्ती और शहीदों की पाकीज़ा ख़ाक को हदिया करते हैं और अर्ज़ करते हैं,
ऐ बादे सबा ऐ दूर पड़े लोगों के पैग़ाम पहुंचाने वाली! हमारे आंसुओं को उन हस्तियों की पाकीज़ा ख़ाक तक पहुंचा दे।
इमाम ख़ामेनेई
4 अकतूबर 2018
कितने ख़ुशनसीब हैं वे लोग जो अरबईन मार्च में शामिल हैं और ज़ियारते अरबईन का शरफ़ हासिल करेंगे और अरबईन के दिन इमाम हुसैन को मुख़ातिब करके अज़ीम मज़मून रखने वाली यह ज़ियारत पढ़ेगे। हम यहां शौक़ व हसरत से इन क़दमों को देख रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
6 नवम्बर 2017 |
जो लोग यह सफ़र तय कर रहे हैं और यह आशेक़ाना और मोमेनाना अमल अंजाम दे रहे हैं वे वाक़ई नेक अमल अंजाम दे रहे हैं। यह यक़ीनन शआयरुल्लाह में शामिल है। हम जैसे लोग जो इस अमल से महरूम हैं, मुनासिब है कि यह जुमला दोहराएं, "काश हम आपके साथ होते तो हम भी अज़ीम कामयाबी हासिल करते।"
इमाम ख़ामेनेई
30 दिसम्बर 2015
हर साल चेहलुम का यह मार्च जो बुनियादी तौर पर नजफ़ व कर्बला के बीच अंजाम पाता है ग्लोबल हैसियत हासिल कर चुका है। दुनिया के इंसानों की निगाहें इस मार्च पर लगी रहती हैं। इस अज़ीम अवामी अमल की बरकत से हुसैनी मुहब्बत व मारेफ़त पूरी दुनिया में फैल रही है।
इमाम ख़ामेनेई
18 सितम्बर 2019
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सारी इंसानियत के लिए हैं। हम शियों को फ़ख़्र है कि हम इमाम हुसैन के मानने वाले हैं। लेकिन इमाम हुसैन सिर्फ़ हमारे नहीं हैं, अलग अलग इस्लामी मसलक, शिया सुन्नी सब इमाम हुसैन के परचम तले जमा हैं। चेहलुम के इस अज़ीम मार्च में वे लोग भी शामिल होते हैं जो मुसलमान नहीं हैं। यह सिलसिला इंशाअल्लाह जारी रहेगा। यह एक अज़ीम निशानी है जो अल्लाह दिखा रहा है।
इमाम ख़ामेनेई
18 सितम्बर 2019
ईरानी क़ौम अपने पूरे वजूद से आप अज़ीज़ इराक़ी भाइयों की शुक्रगुज़ार है, ख़ास तौर पर मौकिब के ज़िम्मेदारों की। हम तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करते हैं। हमें मुतनब्बी का यह शेर याद आता हैः अगर किसी भले इंसान का इकराम व एहतेराम किया तो उसके मालिक बन जाओगे।
इमाम ख़ामेनेई
18 सितम्बर 2019
आज की इस पेचीदा और प्रचारिक शोर-शराबे से भरी #दुनिया में चेहलुम का प्रोग्राम एक बेनज़ीर #मीडिया और दूर दूर तक पहुंचने वाली आवाज़ है। दुनिया में इसकी कोई नज़ीर नहीं है। यह कि दसियों लाख लोग चल पड़ते हैं। अलग अलग मुल्कों से, अलग अलग मसलकों यहां तक कि दूसरे धर्मों से तअल्लुक़ रखने वाले लोग भी। यह हुसैनी इत्तेहाद है। यह बात बिल्कुल दुरुस्त हैः ‘हमें एक धागे में पिरो देने वाले #हुसैन हैं। ’
इमाम ख़ामेनेई
13 अकतूबर 2019
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अरबईन या चेहलुम की मुनासेबत से शनिवार 17 सितम्बर को इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में स्टूडेंट्स की मातमी अंजुमनें अज़ादारी करेंगी जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई भी शिरकत करेंगे।
यह आशूर का पैग़ाम है जो हज़रत इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब के गले से बड़ी बेबसी और तनहाई के वक़्त निकला और आज आलमगीर बन गया है, दुनिया पर छा गया है। यह अल्लाह की अज़ीम निशानी है जो अल्लाह दिखा रहा है।