इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच में, अवाम, इस्लामी जगत और पूरी दुनिया के हक़परस्तों को ईदे बेसत की मुबारकबाद पेश की।

उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत को पूरी इंसानियत के लिए अल्लाह का सबसे बड़ा व क़ीमती तोहफ़ा और अल्लाह की नेमत बताया और पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत अर्थात पैग़म्बरी पर नियुक्ति के पीछे छिपे ख़ज़ाने की वज़ाहत करते हुए कहा कि तौहीद और अल्लाह के अलावा दूसरों की बंदगी से छुटाकरा, बेसत का सबसे अज़ीम ख़ज़ाना है क्योंकि पूरी तारीख़ में जो भी जंग, जुर्म और बुराइयां हुयी हैं, उनकी वजह अल्लाह को छोड़ दूसरों की बंदगी है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत के हमेशा बाक़ी रहने वाले ख़ज़ाने के उपयोग को इस्लामी दुनिया की सभी मुश्किलों का इलाज और लोक-परलोक दोनों की कामयाबी का रास्ता बताया।

उन्होंने बेसत के ख़ज़ानों की वज़ाहत के लिए क़ुरआन मजीद की आयतों का हवाला देते हुए दृढ़ता को हर मक़सद को हासिल करने का रास्ता क़रार दिया और कहा कि इंसाफ़ का क़ायम होना भी अल्लाह के बेनज़ीर तोहफ़ों में से है जो पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत की नेमत की छांव में इंसान को मिला है।

उन्होंने समाज के लोगों के बीच प्यार, मोहब्बत, अपनाइयत और ख़ुलूस को पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत का एक और क़ीमती तोहफ़ा बताया और कहा कि सरकशों से दूरी, अज्ञानता, पक्षपात और रूढ़िवाद के अंधकार से रिहाई, इस्लाम और बेसत के हज़ारों ख़ज़ानों में से एक है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि बेसत के ख़ज़ानों को न पहचानना, उसका शुक्र अदा न करना और सिर्फ़ ज़बान से उस पर फ़ख़्र करना, इस अथाह नेमत के संबंध में इंसानी समाजों का ग़लत रवैया रहा है और फूट, पिछड़ापन तथा दूसरी अनेक इल्मी व अमली कमज़ोरियां, बेसत के सिलसिले में इस रवैये का नतीजा हैं।

उन्होंने तीसरी और चौथी सदी हिजरी में इंसानी समाज की सबसे अज़ीम सभ्यता की स्थापना को क़ुरआन मजीद की शिक्षाओं पर किसी सीमा तक अमल का नतीजा बताया और कहा कि आज भी अगर बेसत और क़ुरआन की बेनज़ीर सलाहियतों से फ़ायदा उठाया जाए तो इस्लामी दुनिया की कमज़ोरियां ख़त्म हो जाएंगी और उसकी मुक्ति व तरक़्क़ी का रास्ता हमवार हो जाएगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने फ़िलिस्तीन के मसले को इस्लामी दुनिया की बड़ी कमज़ोरियों और ज़ख़्मों में से एक बताते हुए कहा कि एक मुल्क, एक क़ौम, इस्लामी दुनिया की नज़रों के सामने एक वहशी व दुष्ट हुकूमत के रोज़ाना बेलगाम ज़ुल्म का निशाना बन रही है और इस्लामी हुकूमतें इतनी दौलत, सलाहियत और क्षमता के बावजूद सिर्फ़ तमाशा देख रही हैं, बल्कि कुछ इस्लामी हुकूमतें तो हालिया कुछ बरसों के दौरान, इस ख़ूंख़ार हुकूमत के साथ सहयोग भी कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि इस तरह के मुल्कों की कमज़ोरी, ज़ायोनियों से सहयोग और उनके जुर्म पर ख़ामोशी का नतीजा है और हालात यहाँ तक पहुंच गए हैं कि अमरीका, फ़्रांस और कुछ दूसरे मुल्क, मुसमलानों के मसलों के हल के दावे के साथ, इस्लामी दुनिया में हस्तक्षेप को अपना अधिकार समझने लगे हैं जबकि वे ख़ुद अपने मुल्कों को चलाने और अपने मसलों को हल करने में बेबस हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने बल दिया कि अगर पहले ही दिन इस्लामी मुल्कों ने नजफ़ के बड़े धर्मगुरुओं सहित ख़ैरख़्वाहों की बात मानी होती और क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत के ख़िलाफ़ डट गए होते तो आज यक़ीनी तौर पर वेस्ट एशिया के इलाक़े के हालात दूसरे होते और इस्लामी जगत ज़्यादा एकजुट और मुख़्तलिफ़ पहलुओं से ज़्यादा ताक़तवर होता।

उन्होंने पीड़ित फ़िलिस्तीनी क़ौम के सपोर्ट में इस्लामी जुम्हूरिया के साफ़ व एलानिया स्टैंड की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस्लामी सिस्टम को किसी से तकल्लुफ़ नहीं है और वह फ़िलिस्तीनी क़ौम का खुलकर सपोर्ट करने के साथ ही जिस तरह भी मुमकिन हो, उसकी मदद करेगा।

सुप्रीम लीडर ने इस्लामी जुम्हूरिया की ओर से फ़िलिस्तीन का सपोर्ट किए जाने की वजह से दुश्मनों की ओर से ईरानोफ़ोबिया फैलाए जाने का भी ज़िक्र किया और कहा कि अफ़सोस की बात है कि वे हुकूमतें भी, जिनकी ज़िम्मेदारी है कि वे ख़ुद भी फ़िलिस्तीनी क़ौम की मदद करें, ईरानोफ़ोबिया फैलाकर इस्लाम के दुश्मन के सुर से सुर मिला रही हैं। उन्होंने मुसलमान क़ौमों से बेसत की शिक्षाओं, एकता और हमदिली की ओर लौटने और मुस्लिम हुकूमतों की ओर से दिखावे के बजाए सही मानी में सहयोग को इस्लामी जगत की सभी मुश्किलों का हल बताया।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के आख़िर में एक बार फिर तुर्किये और सीरिया में आने वाले हालिया ख़तरनाक ज़लज़ले पर दुख जताते हुए, जिसमें बहुत ज़्यादा जानी व माली नुक़सान हुआ है, कहा कि फ़िलिस्तीन और अमरीका के हस्तक्षेप जैसे सियासी मुद्दों पर हर हालत में ध्यान दिया जाना चाहिए और इस्लामी जगत को इस पर नज़र रखनी चाहिए।

इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने अपनी स्पीच में इस बात का ज़िक्र करते हुए कि पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत का मक़सद, कुरआन की शिक्षाओं की बुनियाद पर इंसानों और इंसानी समाजों का निर्माण है, कहा कि इस्लामी इंक़ेलाब के बाद दुश्मनों ने, इस्लाम के आग़ाज़ के दौर की तरह हमारी क़ौम के सामने फ़ौजी, आर्थिक, सियासी और प्रचारिक जंग के ज़रिए लामबंदी की लेकिन ईरान के अवाम ने बेनज़ीर दृढ़ता के ज़रिए साम्राज्यवादियों की हर तरह की साज़िश को नाकाम बना दिया।