बेसत का दिन और बेसत की रात, ऐसा दिन और रात है जब अल्लाह के सबसे अच्छे बंदे पैग़म्बरे इस्लाम को सृष्टि का सबसे अच्छा तोहफ़ा दिया गया जिसे बेसत की रात की ख़ास दुआ में महान जलवा कहा गया है।
बेसत का सबसे पहला मक़सद अख़लाक़ और दिल की पाकीज़गी बयान किया गया है। जैसा कि जुमा सूरे की दूसरी आयत में है “वह जिसने उम्मी लोगों में उन्हीं के एक शख़्स को पैग़म्बर बनाया ताकि उन्हें आयतें सुनाए और उन्हें पाक करे।” पहले मन का पाक होना ज़रूरी है। इसी तरह आले इमरान सूरे की 164 वीं आयत में है “यक़ीनन मोमिनों पर अल्लाह का एहसान है कि उनके बीच उन्हीं में से एक को पैग़म्बर बनाया, ताकि उसकी आयत की तिलावत करे और उन्हें पाक करे।” क़ुरआन में कुछ दूसरी जगहें भी हैं जहां बेसत के मक़सद को तय किया गया है।
पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी या बेसत के बारे में एक अहम बात यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत से वह चीज़ अमली तौर पर अंजाम पायी जो नामुमकिन नज़र आ रही थी, वह क्या चीज़ थी? वह यह थी कि उसने जेहालत के दौर के अरब प्रायद्वीप के लोगों को, एक नेक क़ौम में बदल दिया और वह भी ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम के दौर में; यह चीज़ आम नज़रों से नामुमकिन दिखाई देती है; जाहेलियत के दौर के अरब प्रायद्वीप के लोग, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से पहले कुछ ऐसी ख़ुसूसियत रखते थे जिनमें से कुछ का ज़िक्र नहजुल बलाग़ा मैं है और कुछ का इतिहास में; गुमराह, लक्ष्यहीन, जेहालत में डूबे, बड़ी बड़ी साज़िश में लिप्त, भेदभाव और बड़ी जेहालत की वजह से होने वाले फ़ित्ने, इन सारी ख़ुसूसियतों के अलावा, अज्ञानता, इल्म की रौश्नी का अभाव, अख़लाक़ से दूरी, लक्ष्यहीनता और इन सबके साथ बहुत ज़्याद घमंड में चूर, चरमपंथी सोच, सच को क़ुबूल न करना, अड़ियल रवैया, हठधर्मी, यह अरब प्रायद्वीप, मक्के और दूसरी जगहों पर उस वक़्त मौजूद लोगों की ख़ुसूसियत थी।
उनके बड़ों से लेकर छोटों तक और सरदारों से लेकर अधीनस्थ लोगों तक में ये बातें मौजूद थीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने मुख़्तसर सी मुद्दत में इन्हीं लोगों को ऐसी क़ौम में बदल दिया जो पूरी तरह से एकजुट थी। आप पैग़म्बर के ज़माने के मुसलमानों को देखिए, चाहे उस वक़्त के हों जब वे मदीने तक सीमित थे और चाहे उस वक़्त के हों जब मक्के, ताएफ़ और कुछ दूसरी जगहों तक फैल गए थे, एकजुट, नेक, दूसरों को माफ़ करना, बलिदान देना और भलाई से सजी एक ऐसी क़ौम में बदल गए थे, पैग़म्बरे इस्लाम ने इन्हीं लोगों को, इस तरह के इंसानों में बदल दिया।
यह ज़ाहिरी तौर पर नामुमकिन था, यह चीज़ किसी भी लेहाज़ से मुमकिन नहीं लगती थी कि एक मुख़्तसर सी मुद्दत में इस तरह की आदतों व ख़ुसूसियत वाले ये लोग, जब इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं तो 20 साल से भी कम मुद्दत में पूरी दुनिया में उनका डंका बजने लगता है, उन्होंने अपने पूरब की ओर, अपने पश्चिम की ओर अपनी सोच को, अपने नज़रिए को और अपनी महानता को फैला दिया, आज की शब्दावली में हार्डवेयर की नज़र से भी और सॉफ़्टवेयर की नज़र से भी बढ़ावा दिया। यह वह काम था जो इस्लाम की वजह से अंजाम पाया और सच में यह एक नामुमकिन काम था, नामुमकिन दिखाई दे रहा था, लेकिन इस्लाम ने उसे कर दिखाया; बेसत ने उसे अमली रूप दिया।
तो यह वह वाक़ेआ है जो इतिहास में हुआ लेकिन हम आज भी इस वाक़ेए से फ़ायदा उठा सकते हैं, इस अर्थ में कि यह पूरे इतिहास में सभी मुसलमानों के लिए ख़ुशख़बरी है कि जब भी लोग, अल्लाह के इरादे की ओर, उसके रास्ते की ओर आ जाएं और ईश्वरीय इरादे के आगे झुक जाएं तो वे ऐसे ऐसे काम अंजाम दे सकते हैं जो नामुमकिन दिखाई देते हैं, ऐसे लक्ष्य हासिल कर सकते हैं जो आम नज़रों से और सामान्य अंदाज़ों से इंसान की पहुंच से बाहर हैं, हमेशा यह होता रहा है। पूरे इतिहास में पैग़म्बरे इस्लाम का यह तजुर्बा दोहराए जाने के लायक़ है; अगर इंसान, इस दिशा में आ जाएं तो वे ऐसे उच्च लक्ष्य हासिल कर सकते हैं जो आम निगाहों और आम अंदाज़ों से नामुमकिन नज़र आते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
1 मार्च 2022