रज़ा ख़ान के कारिंदों ने हेजाब ख़त्म करने की जो साज़िश रची थी, उसकी कड़वाहट अब भी मुझे याद है। आप नहीं जानते कि उन लोगों ने उन सम्मानीय महिलाओं के साथ क्या किया, समाज के दूसरे तबक़ों के साथ क्या किया? ये लोग व्यापारियों को, दुकानदारों को, धर्मगुरुओं को, जहाँ भी उनका बस चलता था, सबको मजबूर करते थे कि पार्टी रखो और अपनी औरतों को पार्टी में लेकर आओ, आम पार्टियों में लेकर आओ। फिर अगर ये लोग उसके बरख़िलाफ़ अमल करते तो उन्हें मारा पीटा जाता था, बातें सुनायी जाती थीं, तरह तरह की बातें होती थीं। ये लोग चाहते थे कि औरतों को जवानों के मनोरंजन का सामान बना दें, ताकि जवानों को बुनियादी कामों से कोई लेना-देना ही न रहे। उन्होंने वेश्यालय बना रखे थे। तेहरान से लेकर तजरीश के आख़िर तक सड़कों पर ऐसे अड्डे थे जहाँ वेश्यावृत्ति होती थी, यह सब अय्याशी के अड्डे थे और इसीलिए हमारे जवान, बुनियादी मुद्दों पर, जिन पर उन्हें ध्यान देना चाहिए था, बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे पाते थे।

इमाम ख़ुमैनी

10/9/1980