क़ुद्स दिवस की रैली इस बात का भी सबूत है कि ईरानी क़ौम अपने अज़ीम सियासी और बुनियादी लक्ष्यों पर अडिग और दृढ़ है। ऐसा नहीं है कि फ़िलिस्तीन के समर्थन का नारा देकर एक-दो साल बाद भूल जाए। 40 से अधिक वर्षों से ईरानी राष्ट्र क़ुद्स दिवस पर रैलियां निकालता आ रहा है।
सूरए अलहम्द में हमें सीधे रास्ते पर चलने वालों की निशानियां बतायी गयी हैं: " रास्ता उन लोगों का जिन पर तूने इनाम व एहसान किया" सिराते मुस्तक़ीम या सीधा रास्ता उन लोगों का जिन्हें तूने नेमत दी है। ज़ाहिर सी बात है कि यह नेमत खाना, पीना नहीं है, अल्लाह की ओर से मार्गदर्शन की नेमत है...अध्यात्मिक नेमत है जो सबसे बड़ी नेमत है। ये उन लोगों की राह है जिन्हें तूने नेमत अता की है, उन पर क्रोधित नहीं हुआ और वे गुमराह भी नहीं हुए। ये तीन ख़ुसूसियतें होनी चाहिएः अल्लाह ने मार्गदर्शन की नेमत दी हो, उन्होंने अपने बुरे कर्म से उस नेमत को अल्लाह के क्रोध का पात्र न बनाया हो और गुमराह भी न हुए हों। ये शर्त जिन लोगों पर पूरी उतरती है उन्हें आप अपने ज़माने में, अतीत में, इस्लाम के आरंभिक दिनों में और इतिहास में बड़ी आसानी से तलाश कर सकते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 1997
क़ुरआन मजीद के आग़ाज़ में ही सूरए अलहम्द में अल्लाह से हमारी दरख़ास्त "हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद मांगते हैं" से शुरू होती है। इस मदद तलब करने का एक बड़ा मक़सद अगली आयत में आता हैः "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह।" मानो यह सारी तैयारी, इस इबारत के लिए हैः "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह।" फिर सूरए अलहम्द के आख़िर तक इस सीधे रास्ते की व्याख्या की जाती है। सीधा रास्ता, अल्लाह की बंदगी का रास्ता है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है अपनी इच्छाओं को कंट्रोल करना। इस्लाम इच्छाओं को ख़त्म नहीं करता, उन्हें कंट्रोल करता है, क्योंकि ये इच्छाएं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। इस्लाम इन इच्छाओं को लगाम लगाता है और उनका दिशा निर्देश करता है। इस्लाम यौनेच्छा को ख़त्म नहीं करता बल्कि उस पर लगाम लगाता है। धन दौलत की इच्छा को ख़त्म नहीं करता क्योंकि ये तरक़्क़ी का साधन हैं लेकिन इसे कंट्रोल करता है, यानी हिदायत करता है।
इमाम ख़ामेनेई
6 मार्च 2000
नए ईरानी साल के आग़ाज़, ईदुल फ़ित्र और इस्लामिक रिपब्लिक की सालगिरह के मद्देनज़र, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने न्यायपालिका प्रमुख की तरफ़ से कुछ क़ैदियों की सज़ा को माफ़ करने, या कम करने या बदलने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी। यह अलग अलग अदालतों से सज़ा पाने वाले क़ैदी हैं।
सूरए अनआम की आयत 161 में पैग़म्बरे इस्लाम से कहा गया हैः "आप कहें! बेशक मेरे परवरदिगार ने मुझे बड़े सीधे रास्ते की रहनुमाई कर दी है यानी उस सही और सच्चे दीन की तरफ़ जो बातिल से हटकर सिर्फ़ हक़ की तरफ़ राग़िब इब्राहीम (अ) की मिल्लत है..." यानी दीन का मतलब दीनी विचार, पहचान और अमल है और इसे सीधा रास्ता कहा गया है। सूरए निसा की आयत नंबर 175 में कहा गया हैः " तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और मज़बूती से उसका दामन पकड़ा..." इस्मत यानी ख़ता से महफ़ूज़ रखा गया जिसमें लड़खड़ाना मुमकिन न हो, तो अल्लाह उन्हें अपनी रहमत और फ़ज़्ल के विशाल दायरे में दाख़िल करेगा और सीधे रास्ते की ओर उनकी रहनुमाई करेगा। इससे पता चलता है कि सीधे रास्ते पर पहुंचने का ज़रिया अल्लाह से जुड़े रहना है।
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 1991
सूरए साफ़्फ़ात की आयत 118 में हज़रत मूसा और हज़रत हारून के बारे में कहा गया हैः "और हमने (ही) इन दोनों को राहे रास्त दिखाई।" अगर आप हज़रत मूसा और हज़रत हारून की ज़िंदगी पर नज़र डालें तो यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी कि इन दोनों की ज़िंदगी सरकश का अनुपालन न करने और अल्लाह के अलावा किसी और के हुक्म को न मानने और इस राह में यानी लोगों के मार्गदर्शन, उन्हें सरकश शासन से मुक्ति दिलाने और उन्हें अल्लाह के आदेश के पालन के दायरे में लाने के लिए निरंतर संघर्ष और इस राह में मुसीबत बर्दाश्त करने की तस्वीर पेश करती है। सूरए यासीन की आयत नंबर 3 और 4 में पैग़म्बरे इस्लाम से अल्लाह फ़रमाता हैः "यक़ीनन आप (स) (ख़ुदा के) रसूलों में से हैं। (और) सीधे रास्ते पर ही हैं।" जैसा कि आपने हज़रत मूसा की ज़िंदगी में देखा, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम की सीरत, उनका व्यवहार, उनकी राह भी वही सीधा रास्ता है।
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 1991
अमरीकी, योरोपीय और उन जैसे दूसरे राजनेता जो एक बड़ी ग़लती करते हैं वह यह है कि क्षेत्र में रेज़िस्टेंस के सेंटरों को ईरान की प्रॉक्सी फ़ोर्सेज़ कहते हैं। फ़िलिस्तीन पर नाजायज़ क़ब्ज़े के वक़्त से ही उसके ख़िलाफ़ खड़े होने वालों की अग्रिम पंक्ति में जो मुल्क थे, उनमें से एक यमन था।
क़ुरआन मजीद में राह या रास्ते के लिए कई लफ़्ज़ इस्तेमाल हुए हैं। 'तरीक़' जब एक फ़र्ज़ किए हुए रास्ते पर कोई बढ़ता है जबकि उस पर न कोई निशान है, न उसे समतल किया गया है, बस कोई एक फ़र्ज़ किए हुए रास्ते पर चलने लगे तो उसे तरीक़ कहते हैं। इस रास्ते में कोई ख़ुसूसियत नहीं सिवाए इसके कि कोई रास्ता चलने वाला उस पर चले। तो यह एक आम मानी है। 'सबील' के मानी इससे ज़्यादा सीमित हैं, यह वह रास्ता है जिस पर चलने वाले ज़्यादा हैं। सबील ऐसा रास्ता है जिस पर चलने वालों की ज़्यादा तादाद की वजह से वह समतल और स्पष्ट हो गया है, अलबत्ता मुमकिन है कभी इंसान इस रास्ते को खो दे। 'सिरात' पूरी तरह स्पष्ट रास्ते को कहते हैं। यह रास्ता इतना स्पष्ट है कि इस रास्ते को खो देना मुमकिन नहीं है। "इहदेनस्सिरात" यानी बिल्कुल साफ़ रास्ता दिखा, उस पर 'अलमुस्तक़ीम' की शर्त भी लगा दी यानी बिल्कुल साफ़ और सीधा रास्ता दिखा।
इमाम ख़ामेनेई
24 अप्रैल 1991
सीधा रास्ता हक़ीक़त में क्या है? यह सीधा रास्ता क्या है जिसकी ओर हम अल्लाह से हिदायत चाहते हैं? जिनके योग से समझा जा सकता है कि सीधा रास्ता क्या है।सूरए आले इमरान की आयत 51 में अल्लाह फ़रमाता हैः "बेशक अल्लाह मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है तो तुम उसकी इबादत करो, यही सीधा रास्ता है।" तो इस आयत में सीधा रास्ता क्या है? बंदगी; बंदगी के मक़ाम तक पहुंचना। मानव इतिहास में आपको जो ये गुमराहियां, ये पीड़ाएं, ये ज़ुल्म बहुत ज़्यादा नज़र आते हैं उसकी वजह वे लोग हैं जिन्होंने अल्लाह की बंदगी को क़ुबूल नहीं किया बल्कि वे अपनी इच्छाओं के ग़ुलाम थे। एक दूसरी आयत है। सूरए यासीन की आयत नंबर 61 में आया हैः "हाँ अलबत्ता मेरी इबादत करो कि यही सीधा रास्ता है।" तो इस आयत के मुताबिक़ सीधा रास्ता अल्लाह की बंदगी है, ख़ुदा की बदंगी करना यानी अल्लाह के सामने समर्पित होना।
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 1991
कुछ लोग यह सवाल करते हैं कि जब क़ुरआन पढ़ते वक़्त, नमाज़ पढ़ते वक़्त "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" कहते हैं, तो हम हिदायत याफ़्ता हैं; इसका जवाब यह है कि हम अल्लाह से ज़्यादा से ज़्यादा हिदायत की दरख़ास्त करें, क्योंकि उसकी ओर से हिदायत का दायरा बहुत व्यापक है। पैग़म्बरे इस्लम भी कहते थे "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" पैग़म्बरे इस्लाम भी अल्लाह से हिदायत चाहते थे, क्यों? क्योंकि जो हिदायत पैग़म्बरे इस्लाम के पास थी, मुमकिन है उसमें और इज़ाफ़ा हो जाए; इंसान के कमाल का दायरा बहुत व्यापक है जिसकी हदबंदी नहीं की जा सकती।
दूसरा बिंदु यह है कि इंसान के सामने हमेशा दो रास्ते होते हैं, इंसान की वासनाएं, इंसान की इच्छाएं, इंसान के भीतर अस्वस्थ जज़्बे कभी भी ख़त्म नहीं होते, नेक बंदे भी बड़े ख़तरे के निशाने पर हैं...कभी कभी हम ऐसे दो राहे पर होते हैं कि सही रास्ते का चयन नहीं कर पाते तो बार बार "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" कहने का मतलब यह है कि हर क्षण हमें अल्लाह की ओर से हिदायत की ज़रूरत है।
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 1991
हिदायत की एक चौथी क़िस्म भी है जिसका नाम हमने "मोमिनों के एक गिरोह से मख़सूस हिदायत" रखा है। यह सारे मोमिनों के लिए भी नहीं है बल्कि उनमें से ख़ास लोगों से मख़सूस है। यह बहुत ही आला स्तर की हिदायत है जो पैग़म्बरों और अल्लाह के विशेष दोस्तों से मख़सूस है। सूरए अनआम की आयतें पैग़म्बर से कहती हैं कि "ये वे लोग हैं जिनको अल्लाह ने हिदायत दी है तो आप भी उनके रास्ते और तरीक़े पर चलें" (सूरए अनआम, आयत-90) अल्लाह के चुने हुए बंदे उसकी ओर से कुछ चीज़ें, कुछ इशारे, कुछ ख़ास हिदायतें हासिल करते हैं। आप देखते हैं कि किसी को क़ुरआन की कोई आयत सुनाई जाती है तो उसके आंसू बहने लगते हैं, उसका दिल बदल जाता है, वह कुछ ख़ास चीज़ समझता है। यह वह मख़सूस हिदायत है। इंसान का स्तर जितना ऊपर उठता वह कुछ इशारे हासिल करता है, उस आयत के कुछ लफ़्ज़ उनके लिए एक हिदायत लिए होते हैं जो हमारे लिए नहीं हैं। ये सभी अल्लाह की हिदायतें हैं, हिदायत का यह मानी मुराद है।
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 1991
21 मार्च 2025 की सुबह इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई का सालाना ख़ेताब, जो हर साल मशहद शहर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में होता था, इस साल नौरोज़ के दिनों के शबे क़द्र के साथ पड़ने की वजह से, इस साल अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों की मौजूदगी में तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में हुआ।
अमेरिकियों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि ईरान के मामले में धमकियों से कुछ हासिल नहीं होगा। अगर उन्होंने ईरान के अवाम के ख़िलाफ़ कोई दुष्टता की, तो उन्हें सख़्त जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हिजरी शम्सी साल 1404 के पहले दिन, जुमा 21 मार्च 2025 को तेहरान में विभिन्न वर्गों के लोगों से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में पाकीज़ा स्थलों पर जमा होकर दुआ, अहलेबैत से तवस्सुल की परंपरा को, नौरोज़ के सिलसिले में ईरानी राष्ट्र के आध्यात्मिक रुझान की निशानी बताया। उन्होंने पूरे इतिहास में सत्य के मोर्चे की बड़ी कामयाबियों में दुआ और दृढ़ता के असर की व्याख्या करते हुए, पिछले साल को ईरानी अवाम के धैर्य, दृढ़ता और उसकी आध्यात्मिक ताक़त के ज़ाहिर होने का साल बताया।
अगर ईरानी क़ौम और मुसलमान क़ौमें इस महान इंसान और पैग़म्बरे इस्लाम के बाद सबसे श्रेष्ठ हस्ती से फ़ायदा उठाना चाहती हैं तो नहजुल बलाग़ा ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें।
1404 हिजरी शम्सी साल के पहले दिन 21 मार्च 2025 को अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों की सभा से ख़ेताब में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने नए साल के आग़ाज़, रमज़ानुल मुबारक की रूहानियत और नए साल के नारे के सिलसिले में बात की। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अमरीकी धमकियों का मुंहतोड़ जवाब दिया।
इमाम ख़ामेनेई का नए ईरानी साल 1404 के आग़ाज़ पर पैग़ाम:
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने नौरोज़ के पैग़ाम में पिछले हिजरी शम्सी साल के अहम वाक़यों का ज़िक्र किया और नए हिजरी शम्सी साल में कोशिशों और योजनाओं की दिशा निर्धारित करने के लिए नारा तय फ़रमायाः "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश"
एक हिदायत है जो मोमिनों से मख़सूस है "हिदायत है उन परहेज़गारों के लिए" (सूरए बक़रह, आयत-2) यह उस हिदायत के ऊपर है जो इंसान के वजूद में पायी जाती है, जिसे ईमान की ओर हिदायत कहते हैं। इसी हिदायत का ज़िक्र सूरए नह्ल में है कि जो लोग अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, अल्लाह उनकी हिदायत नहीं करता। इसका क्या मतलब है कि अल्लाह हिदायत नहीं करता? क्या इसका मतलब यह है कि ये लोग फिर कभी मोमिन नहीं बन सकते? उन्हें कभी ईमान की हिदायत हासिल नहीं हो सकती? क्यों नहीं, जो ईमान नहीं रखता, मुमकिन है कि उसके पास आज ईमान न हो, कल वह अपनी अक़्ल और अपनी फ़ितरत की ओर लौट आए और ईमान ले आए, तो यह ईमान की हिदायत नहीं है, तीसरी क़िस्म की हिदायत है, वह हिदायत मोमिनों से मख़सूस है।
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 1991
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने नौरोज़ के पैग़ाम में पिछले हिजरी शम्सी साल के अहम वाक़यों का ज़िक्र किया और नए हिजरी शम्सी साल में कोशिशों और योजनाओं की दिशा निर्धारित करने के लिए नारा तय फ़रमायाः "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश"
ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के नौरोज़ के पैग़ाम से
20 मार्च 2025
ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है। पूरी दुनिया में आज़ाद प्रवृत्ति के लोग इस करतूत का मुक़ाबला करें।
हिदायत के मानी रहनुमाई करने और रास्ता दिखाने के हैं। अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत के कई चरण और कई मानी हैं। एक आम स्तर की हिदायत है जिसमें कायनात की सभी चीज़ें शामिल हैं। यह हिदायत वजूद मिलने से जुड़ी है, यह आम हिदायत है और सब चीज़ें इसके दायरे में आती हैं। जिस स्वभाव के तहत चीटियां या शहद की मक्खियां ख़ास तरीक़े से अपना घर बनाती हैं और सामाजिक तौर पर ज़िंदगी गुज़ारती हैं, उसका स्रोत अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत है। हमारी मुराद यह हिदायत नहीं है। हिदायत की एक क़िस्म इंसान से मख़सूस है, एक निहित समझ जो अल्लाह के वजूद और कुछ धार्मिक शिक्षाओं की ओर उसकी रहनुमाई करती रहती है। आप अल्लाह को अक़्ल से पहचानते हैं। फ़ितरत और अक़्ल के अलावा अल्लाह को पहचानने का कोई और ज़रिया नहीं है। यही इंसान की अक़्ल की हिदायत है लेकिन यहां हमारी मुराद यह हिदायत भी नहीं है।
इमाम ख़ामेनेई
1 मई 1991
सारी ताक़त पर उसका कंट्रोल है। जहाँ अल्लाह इरादा कर लेता है वहाँ दुनिया की मज़बूत ताक़तें भी अपने काम अंजाम नहीं दे पातीं। अमरीका, ईरान में दाख़िल होना चाहता है, तबस में उस पर मुसीबत आ जाती है हालांकि उसके पास ज़ाहिरी ताक़त थी। इस वक़्त भी साम्राज्यवादी ताक़तें, बड़े ज़ायोनी और पूंजीपति, एक इस्लामी सरकार से बुरी तरह भयभीत हैं। कोशिश कर रहे हैं कि उसे ख़त्म कर दें लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए हैं जबकि ज़ाहिरी तौर पर उनके पास सब कुछ है। जब अल्लाह इरादा करता है कि उसकी ताक़त असर न कर पाए तो वह असर नहीं करती। कभी अल्लाह का इरादा यह होता है कि वह ताक़त असर करे, तो असर करती है। मोमिन और एकेश्वरवादी इंसान, ताक़त को सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह से विशेष समझता है।
इमाम ख़ामेनेई
24 अप्रैल 1991
जब हम कहते हैं "इय्याका ना’बुदो व इय्याका नस्तईन" क्या इसका मतलब यह है कि किसी भी दूसरे से मदद नहीं लेनी चाहिए? हम, लोगों से, इंसानों से, भाई से, दोस्त से मदद लेते हैं। ख़ुद क़ुरआन मजीद में भले काम के लिए एक दूसरे से मदद लेने की सिफ़ारिश की गयी हैः "भलाई और तक़वे में एक दूसरे की मदद करो।" इसका मतलब यह है कि तौहीद को मानने वाला इंसान, हर ताक़त का स्रोत अल्लाह को मानता है और जो भी आपकी मदद करता है, वह सक्षम नहीं है बल्कि अल्लाह सक्षम है। वास्तविक ताक़त और शक्ति, अल्लाह की है। ये हमारी ताक़तें अवास्तविक हैं। अगर आप किसी से अल्लाह को नज़रअंदाज़ करके मदद लें और उसे ताक़त व शक्ति का स्वामी समझें तो यह शिर्क है।
इमाम ख़ामेनेई
24 अप्रैल 1991
फ़ारसी भाषा और साहित्य के कुछ शायरों और उस्तादों ने शनिवार 15 मार्च 2025 की रात इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
अगर इंसान उस क़ाबिज़ बादशाह पर जो उसके भीतर है -यानी उस वास्तविक तानाशाह पर- हावी होने में कामयाब हो जाए तो फिर वह दुनिया की सबसे बड़ी ताक़तों को हराने में कामयाब हो जाएगा। यह कोई शेर नहीं, कोई निबंध नहीं बल्कि यह खुली हक़ीक़तें हैं। हमने इस्लामी इंक़ेलाब के दौरान, पूरी तरह से इन चीज़ों को देखा है। अगर कुछ लोगों ने अपनी इच्छाओं पर क़ाबू पा लिया तो बलिदान देंगे और कोई क़ौम बलिदान दे तो कोई भी ताक़त उसे हरा नहीं पाएगी। दुश्मन तब हम पर फ़तह हासिल करता है जब हम अपनी इच्छाओं को क़ाबू नहीं कर पाते। इंसान की हार का पहला चरण, ख़ुद उसकी भीतरी हार है। जब ईर्ष्या और देखा-देखी और इसी तरह की चीज़ें इंसान पर हावी हो जाती हैं तो उसका इरादा डावांडोल होने लगता है और जब आपका इरादा डावांडोल होने लगता है तो दुश्मन का हाथ मज़बूत हो जाता है। यह एक स्वाभाविक सी बात है।
इमाम ख़ामेनेई
24 अप्रैल 1991
बेशक परहेज़गार लोग बहिश्तों और चश्मों में होंगे (51:15) और उनका परवरदिगार जो कुछ उन्हें अता करेगा वह वे ले रहे होंगे बेशक वे इस (दिन) से पहले ही (दुनिया में) नेकूकार थे। (51:16) ये लोग रात को बहुत कम सोया करते थे (51:17)और सहर के वक़्त मग़फ़ेरत तलब किया करते थे। (51:18) और उनके मालों में से सवाल करने वाले और सवाल न करने वाले मोहताज सबका हिस्सा था।(51:19) और ज़मीन में यक़ीन करने वालों के लिए (हमारी क़ुदरत की) निशानियां हैं। (51:20)
अल्लाह से मदद चाहने का मतलब यह है कि मैं ऐब और ग़लतियों का पुतला इंसान, अगर अपनी पूरी सलाहियतों को भी तेरी बंदगी और इबादत में लगा दूं, तब भी मैंने तेरी बंदगी और इबादत का हक़ अदा नहीं किया है, तुझे मेरी अतिरिक्त मदद करनी चाहिए ताकि मैं यह हक़ अदा कर सकूं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललाहो अलैहि व आलेही वसल्लम और इमाम अलैहेमुस्सलाम जैसे महापुरूष कहते हैं कि ऐ अल्लाह हम तेरी बंदगी का हक़ अदा नहीं कर सके। हज़रत अली अलैहिस्सलाम और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जैसी हस्तियां अल्लाह की बंदगी का हक़, जिसके वह योग्य है, अदा न कर पाने की बात करती हैं जबकि ये हस्तियां अल्लाह की बंदगी में जो काम करती थीं, हम उसके बारे में सोच भी नहीं सकते।
इमाम ख़ामेनेई
24 अप्रैल 1991
भारतीय शायर का कलाम सुनने के बाद इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की टिप्पणीः यह बात अहम है कि एक शख़्स जिसकी मातृ भाषा फ़ारसी न हो वह इतनी साफ़ सुथरी ज़बान में शेर कहे। फ़ारसी में बात करना एक कला है और फ़ारसी में शेर कहना दूसरी कला है।
इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर फ़ारसी भाषा के कुछ शायरों, साहित्यकारों और उस्तादों ने शनिवार 15 मार्च 2025 की रात को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इससे पहले मग़रिब और इशा की नमाज़ इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की इमामत में पढ़ी गयी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 14 रमज़ानुल मुबारक मुताबिक़ 15 मार्च 2025 को इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस पर फ़ारसी साहित्यकारों और शायरों से मुलाक़ात में तक़रीर करते हुए शेर और साहित्य संबंधित मुख्य बिंदुओं की समीक्षा की। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने शायरी का स्टैंडर्ड और ऊपर ले जाने पर बल दिया और कहा कि मौजूदा दौर में यह सलाहियत है की सादी, हाफ़िज़ और नेज़ामी जैसे शायर पैदा हो सकें। (1)