24/03/2025
क़ुरआन मजीद में राह या रास्ते के लिए कई लफ़्ज़ इस्तेमाल हुए हैं। 'तरीक़' जब एक फ़र्ज़ किए हुए रास्ते पर कोई बढ़ता है जबकि उस पर न कोई निशान है, न उसे समतल किया गया है, बस कोई एक फ़र्ज़ किए हुए रास्ते पर चलने लगे तो उसे तरीक़ कहते हैं। इस रास्ते में कोई ख़ुसूसियत नहीं सिवाए इसके कि कोई रास्ता चलने वाला उस पर चले। तो यह एक आम मानी है। 'सबील' के मानी इससे ज़्यादा सीमित हैं, यह वह रास्ता है जिस पर चलने वाले ज़्यादा हैं। सबील ऐसा रास्ता है जिस पर चलने वालों की ज़्यादा तादाद की वजह से वह समतल और स्पष्ट हो गया है, अलबत्ता मुमकिन है कभी इंसान इस रास्ते को खो दे। 'सिरात' पूरी तरह स्पष्ट रास्ते को कहते हैं। यह रास्ता इतना स्पष्ट है कि इस रास्ते को खो देना मुमकिन नहीं है। "इहदेनस्सिरात" यानी बिल्कुल साफ़ रास्ता दिखा, उस पर 'अलमुस्तक़ीम' की शर्त भी लगा दी यानी बिल्कुल साफ़ और सीधा रास्ता दिखा। इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
23/03/2025
आज ज़ायोनिस्ट रेजीम की बेरहमी ने, बल्कि बेरहमी लफ़्ज़ भी कम है, कई ग़ैर-मुस्लिम नेशन्ज़ के दिलों को दुख दर्द से भर दिया है।
23/03/2025
सीधा रास्ता हक़ीक़त में क्या है? यह सीधा रास्ता क्या है जिसकी ओर हम अल्लाह से हिदायत चाहते हैं? जिनके योग से समझा जा सकता है कि सीधा रास्ता क्या है।सूरए आले इमरान की आयत 51 में अल्लाह फ़रमाता हैः "बेशक अल्लाह मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है तो तुम उसकी इबादत करो, यही सीधा रास्ता है।" तो इस आयत में सीधा रास्ता क्या है? बंदगी; बंदगी के मक़ाम तक पहुंचना। मानव इतिहास में आपको जो ये गुमराहियां, ये पीड़ाएं, ये ज़ुल्म बहुत ज़्यादा नज़र आते हैं उसकी वजह वे लोग हैं जिन्होंने अल्लाह की बंदगी को क़ुबूल नहीं किया बल्कि वे अपनी इच्छाओं के ग़ुलाम थे। एक दूसरी आयत है। सूरए यासीन की आयत नंबर 61 में आया हैः "हाँ अलबत्ता मेरी इबादत करो कि यही सीधा रास्ता है।" तो इस आयत के मुताबिक़ सीधा रास्ता अल्लाह की बंदगी है, ख़ुदा की बदंगी करना यानी अल्लाह के सामने समर्पित होना। इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991
23/03/2025
अमरीकियों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि ईरान के मामले में धमकियों से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।
22/03/2025
इस रात, अपनी ज़िंदगी के अंजाम, बल्कि एक राष्ट्र की ज़िंदगी के अंजाम को एक दुआ से बदल सकते हैं।  
22/03/2025
कुछ लोग यह सवाल करते हैं कि जब क़ुरआन पढ़ते वक़्त, नमाज़ पढ़ते वक़्त "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" कहते हैं, तो हम हिदायत याफ़्ता हैं; इसका जवाब यह है कि हम अल्लाह से ज़्यादा से ज़्यादा हिदायत की दरख़ास्त करें, क्योंकि उसकी ओर से हिदायत का दायरा बहुत व्यापक है। पैग़म्बरे इस्लम भी कहते थे "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" पैग़म्बरे इस्लाम भी अल्लाह से हिदायत चाहते थे, क्यों? क्योंकि जो हिदायत पैग़म्बरे इस्लाम के पास थी, मुमकिन है उसमें और इज़ाफ़ा हो जाए; इंसान के कमाल का दायरा बहुत व्यापक है जिसकी हदबंदी नहीं की जा सकती।  दूसरा बिंदु यह है कि इंसान के सामने हमेशा दो रास्ते होते हैं, इंसान की वासनाएं, इंसान की इच्छाएं, इंसान के भीतर अस्वस्थ जज़्बे कभी भी ख़त्म नहीं होते, नेक बंदे भी बड़े ख़तरे के निशाने पर हैं...कभी कभी हम ऐसे दो राहे पर होते हैं कि सही रास्ते का चयन नहीं कर पाते तो बार बार "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" कहने का मतलब यह है कि हर क्षण हमें अल्लाह की ओर से हिदायत की ज़रूरत है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991 
22/03/2025
शक न कीजिए कि इस दृढ़ता का नतीजा, दुश्मनों की हार है। दुष्ट, भ्रष्ट और अपराधी ज़ायोनी सरकार की हार है।
21/03/2025
यमन के अवाम, यमन के लोगों पर यह हमला भी अपराध है, जिसे अवश्य रोका जाना चाहिए।  
21/03/2025
हिदायत की एक चौथी क़िस्म भी है जिसका नाम हमने "मोमिनों के एक गिरोह से मख़सूस हिदायत" रखा है। यह सारे मोमिनों के लिए भी नहीं है बल्कि उनमें से ख़ास लोगों से मख़सूस है। यह बहुत ही आला स्तर की हिदायत है जो पैग़म्बरों और अल्लाह के विशेष दोस्तों से मख़सूस है। सूरए अनआम की आयतें पैग़म्बर से कहती हैं कि "ये वे लोग हैं जिनको अल्लाह ने हिदायत दी है तो आप भी उनके रास्ते और तरीक़े पर चलें" (सूरए अनआम, आयत-90) अल्लाह के चुने हुए बंदे उसकी ओर से कुछ चीज़ें, कुछ इशारे, कुछ ख़ास हिदायतें हासिल करते हैं। आप देखते हैं कि किसी को क़ुरआन की कोई आयत सुनाई जाती है तो उसके आंसू बहने लगते हैं, उसका दिल बदल जाता है, वह कुछ ख़ास चीज़ समझता है। यह वह मख़सूस हिदायत है। इंसान का स्तर जितना ऊपर उठता वह कुछ इशारे हासिल करता है, उस आयत के कुछ लफ़्ज़ उनके लिए एक हिदायत लिए होते हैं जो हमारे लिए नहीं हैं। ये सभी अल्लाह की हिदायतें हैं, हिदायत का यह मानी मुराद है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991
21/03/2025
21 मार्च 2025 की सुबह इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई का सालाना ख़ेताब, जो हर साल मशहद शहर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में होता था, इस साल नौरोज़ के दिनों के शबे क़द्र के साथ पड़ने की वजह से, इस साल अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों की मौजूदगी में तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में हुआ।
21/03/2025
अमेरिकियों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि ईरान के मामले में धमकियों से कुछ हासिल नहीं होगा। अगर उन्होंने ईरान के अवाम के ख़िलाफ़ कोई दुष्टता की, तो उन्हें सख़्त जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।  
21/03/2025
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हिजरी शम्सी साल 1404 के पहले दिन, जुमा 21 मार्च 2025 को तेहरान में विभिन्न वर्गों के लोगों से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में पाकीज़ा स्थलों पर जमा होकर दुआ, अहलेबैत से तवस्सुल की परंपरा को, नौरोज़ के सिलसिले में ईरानी राष्ट्र के आध्यात्मिक रुझान की निशानी बताया। उन्होंने पूरे इतिहास में सत्य के मोर्चे की बड़ी कामयाबियों में दुआ और दृढ़ता के असर की व्याख्या करते हुए, पिछले साल को ईरानी अवाम के धैर्य, दृढ़ता और उसकी आध्यात्मिक ताक़त के ज़ाहिर होने का साल बताया। 
21/03/2025
अगर ईरानी क़ौम और मुसलमान क़ौमें इस महान इंसान और पैग़म्बरे इस्लाम के बाद सबसे श्रेष्ठ हस्ती से फ़ायदा उठाना चाहती हैं तो नहजुल बलाग़ा ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें।  
21/03/2025
1404 हिजरी शम्सी साल के पहले दिन 21 मार्च 2025 को अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों की सभा से ख़ेताब में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने नए साल के आग़ाज़, रमज़ानुल मुबारक की रूहानियत और नए साल के नारे के सिलसिले में बात की। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अमरीकी धमकियों का मुंहतोड़ जवाब दिया।
20/03/2025
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने नौरोज़ के पैग़ाम में पिछले हिजरी शम्सी साल के अहम वाक़यों का ज़िक्र किया और नए हिजरी शम्सी साल में कोशिशों और योजनाओं की दिशा निर्धारित करने के लिए नारा तय फ़रमायाः "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश"
20/03/2025
एक हिदायत है जो मोमिनों से मख़सूस है "हिदायत है उन परहेज़गारों के लिए" (सूरए बक़रह, आयत-2) यह उस हिदायत के ऊपर है जो इंसान के वजूद में पायी जाती है, जिसे ईमान की ओर हिदायत कहते हैं। इसी हिदायत का ज़िक्र सूरए नह्ल में है कि जो लोग अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, अल्लाह उनकी हिदायत नहीं करता। इसका क्या मतलब है कि अल्लाह हिदायत नहीं करता? क्या इसका मतलब यह है कि ये लोग फिर कभी मोमिन नहीं बन सकते? उन्हें कभी ईमान की हिदायत हासिल नहीं हो सकती? क्यों नहीं, जो ईमान नहीं रखता, मुमकिन है कि उसके पास आज ईमान न हो, कल वह अपनी अक़्ल और अपनी फ़ितरत की ओर लौट आए और ईमान ले आए, तो यह ईमान की हिदायत नहीं है, तीसरी क़िस्म की हिदायत है, वह हिदायत मोमिनों से मख़सूस है।   इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991
20/03/2025
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने नौरोज़ के पैग़ाम में पिछले हिजरी शम्सी साल के अहम वाक़यों का ज़िक्र किया और नए हिजरी शम्सी साल में कोशिशों और योजनाओं की दिशा निर्धारित करने के लिए नारा तय फ़रमायाः "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश"
20/03/2025
ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के नौरोज़ के पैग़ाम से 20 मार्च 2025  
20/03/2025
यमन के अवाम, यमन के लोगों पर यह हमला, यह भी अपराध है जिसे अवश्य रोका जाना चाहिए। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के नौरोज़ के पैग़ाम से 20 मार्च 2025  
20/03/2025
ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है। पूरी दुनिया में आज़ाद प्रवृत्ति के लोग इस करतूत का मुक़ाबला करें।  
20/03/2025
यह कृत्य अमरीका के इशारे पर या कम से कम अमरीका की सहमति और उसकी ओर से दी गयी हरी झंडी से हुआ है। इसलिए अमरीका भी इस जुर्म में शरीक है।
19/03/2025
हिदायत के मानी रहनुमाई करने और रास्ता दिखाने के हैं। अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत के कई चरण और कई मानी हैं। एक आम स्तर की हिदायत है जिसमें कायनात की सभी चीज़ें शामिल हैं। यह हिदायत वजूद मिलने से जुड़ी है, यह आम हिदायत है और सब चीज़ें इसके दायरे में आती हैं। जिस स्वभाव के तहत चीटियां या शहद की मक्खियां ख़ास तरीक़े से अपना घर बनाती हैं और सामाजिक तौर पर ज़िंदगी गुज़ारती हैं, उसका स्रोत अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत है। हमारी मुराद यह हिदायत नहीं है। हिदायत की एक क़िस्म इंसान से मख़सूस है, एक निहित समझ जो अल्लाह के वजूद और कुछ धार्मिक शिक्षाओं की ओर उसकी रहनुमाई करती रहती है। आप अल्लाह को अक़्ल से पहचानते हैं। फ़ितरत और अक़्ल के अलावा अल्लाह को पहचानने का कोई और ज़रिया नहीं है। यही इंसान की अक़्ल की हिदायत है लेकिन यहां हमारी मुराद यह हिदायत भी नहीं है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991
18/03/2025
सारी ताक़त पर उसका कंट्रोल है। जहाँ अल्लाह इरादा कर लेता है वहाँ दुनिया की मज़बूत ताक़तें भी अपने काम अंजाम नहीं दे पातीं। अमरीका, ईरान में दाख़िल होना चाहता है, तबस में उस पर मुसीबत आ जाती है हालांकि उसके पास ज़ाहिरी ताक़त थी। इस वक़्त भी साम्राज्यवादी ताक़तें, बड़े ज़ायोनी और पूंजीपति, एक इस्लामी सरकार से बुरी तरह भयभीत हैं। कोशिश कर रहे हैं कि उसे ख़त्म कर दें लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए हैं जबकि ज़ाहिरी तौर पर उनके पास सब कुछ है। जब अल्लाह इरादा करता है कि उसकी ताक़त असर न कर पाए तो वह असर नहीं करती। कभी अल्लाह का इरादा यह होता है कि वह ताक़त असर करे, तो असर करती है। मोमिन और एकेश्वरवादी इंसान, ताक़त को सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह से विशेष समझता है।  इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
17/03/2025
जब हम कहते हैं "इय्याका ना’बुदो व इय्याका नस्तईन" क्या इसका मतलब यह है कि किसी भी दूसरे से मदद नहीं लेनी चाहिए? हम, लोगों से, इंसानों से, भाई से, दोस्त से मदद लेते हैं। ख़ुद क़ुरआन मजीद में भले काम के लिए एक दूसरे से मदद लेने की सिफ़ारिश की गयी हैः "भलाई और तक़वे में एक दूसरे की मदद करो।" इसका मतलब यह है कि तौहीद को मानने वाला इंसान, हर ताक़त का स्रोत अल्लाह को मानता है और जो भी आपकी मदद करता है, वह सक्षम नहीं है बल्कि अल्लाह सक्षम है। वास्तविक ताक़त और शक्ति, अल्लाह की है। ये हमारी ताक़तें अवास्तविक हैं। अगर आप किसी से अल्लाह को नज़रअंदाज़ करके मदद लें और उसे ताक़त व शक्ति का स्वामी समझें तो यह शिर्क है। इमाम ख़ामेनेई  24 अप्रैल 1991
16/03/2025
फ़ारसी भाषा और साहित्य के कुछ शायरों और उस्तादों ने शनिवार 15 मार्च 2025 की रात इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
16/03/2025
अगर इंसान उस क़ाबिज़ बादशाह पर जो उसके भीतर है -यानी उस वास्तविक तानाशाह पर- हावी होने में कामयाब हो जाए तो फिर वह दुनिया की सबसे बड़ी ताक़तों को हराने में कामयाब हो जाएगा। यह कोई शेर नहीं, कोई निबंध नहीं बल्कि यह खुली हक़ीक़तें हैं। हमने इस्लामी इंक़ेलाब के दौरान, पूरी तरह से इन चीज़ों को देखा है। अगर कुछ लोगों ने अपनी इच्छाओं पर क़ाबू पा लिया तो बलिदान देंगे और कोई क़ौम बलिदान दे तो कोई भी ताक़त उसे हरा नहीं पाएगी। दुश्मन तब हम पर फ़तह हासिल करता है जब हम अपनी इच्छाओं को क़ाबू नहीं कर पाते। इंसान की हार का पहला चरण, ख़ुद उसकी भीतरी हार है। जब ईर्ष्या और देखा-देखी और इसी तरह की चीज़ें इंसान पर हावी हो जाती हैं तो उसका इरादा डावांडोल होने लगता है और जब आपका इरादा डावांडोल होने लगता है तो दुश्मन का हाथ मज़बूत हो जाता है। यह एक स्वाभाविक सी बात है।  इमाम ख़ामेनेई  24 अप्रैल 1991
16/03/2025
बेशक परहेज़गार लोग बहिश्तों और चश्मों में होंगे (51:15) और उनका परवरदिगार जो कुछ उन्हें अता करेगा वह वे ले रहे होंगे बेशक वे इस (दिन) से पहले ही (दुनिया में) नेकूकार थे। (51:16) ये लोग रात को बहुत कम सोया करते थे (51:17)और सहर के वक़्त मग़फ़ेरत तलब किया करते थे। (51:18) और उनके मालों में से सवाल करने वाले और सवाल न करने वाले मोहताज सबका हिस्सा था।(51:19) और ज़मीन में यक़ीन करने वालों के लिए (हमारी क़ुदरत की) निशानियां हैं। (51:20)
15/03/2025
अल्लाह से मदद चाहने का मतलब यह है कि मैं ऐब और ग़लतियों का पुतला इंसान, अगर अपनी पूरी सलाहियतों को भी तेरी बंदगी और इबादत में लगा दूं, तब भी मैंने तेरी बंदगी और इबादत का हक़ अदा नहीं किया है, तुझे मेरी अतिरिक्त मदद करनी चाहिए ताकि मैं यह हक़ अदा कर सकूं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललाहो अलैहि व आलेही वसल्लम और इमाम अलैहेमुस्सलाम जैसे महापुरूष कहते हैं कि ऐ अल्लाह हम तेरी बंदगी का हक़ अदा नहीं कर सके। हज़रत अली अलैहिस्सलाम और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जैसी हस्तियां अल्लाह की बंदगी का हक़, जिसके वह योग्य है, अदा न कर पाने की बात करती हैं जबकि ये हस्तियां अल्लाह की बंदगी में जो काम करती थीं, हम उसके बारे में सोच भी नहीं सकते।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
16/03/2025
भारतीय शायर का कलाम सुनने के बाद इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की टिप्पणीः यह बात अहम है कि एक शख़्स जिसकी मातृ भाषा फ़ारसी न हो वह इतनी साफ़ सुथरी ज़बान में शेर कहे। फ़ारसी में बात करना एक कला है और फ़ारसी में शेर कहना दूसरी कला है।  
16/03/2025
इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर फ़ारसी भाषा के कुछ शायरों, साहित्यकारों और उस्तादों ने शनिवार 15 मार्च 2025 की रात को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इससे पहले मग़रिब और इशा की नमाज़ इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की इमामत में पढ़ी गयी।  
15/03/2025
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 14 रमज़ानुल मुबारक मुताबिक़ 15 मार्च 2025 को इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस पर फ़ारसी साहित्यकारों और शायरों से मुलाक़ात में तक़रीर करते हुए शेर और साहित्य संबंधित मुख्य बिंदुओं की समीक्षा की। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने शायरी का स्टैंडर्ड और ऊपर ले जाने पर बल दिया और कहा कि मौजूदा दौर में यह सलाहियत है की सादी, हाफ़िज़ और नेज़ामी जैसे शायर पैदा हो सकें। (1)
14/03/2025
"व इय्याका नस्तईन" और सिर्फ़ तुझ ही से मदद चाहते हैं। किस चीज़ में तुझसे मदद चाहते हैं? इस चीज़ में कि हम सिर्फ़ तेरी ही बंदगी करें, किसी दूसरे की नहीं। अल्लाह के अलावा किसी की बंदगी न करना ज़बान से तो बहुत आसान है लेकिन अमल में यह सबसे मुश्किल कामों में है; व्यक्तिगत ज़िंदगी में भी बहुत कठिन है और सामाजिक ज़िंदगी में भी कठिन है, एक क़ौम की हैसियत से भी कठिन है और आप इसकी कठिनाइयों को देख रहे हैं कि जब इस्लामी गणराज्य ने बड़ी ताक़तों के मुक़ाबले में तौहीद का पर्चम उठा रखा है, इससे भी ज़्यादा कठिन हमारे भीतर के उस शैतान और सरकश को भगाना है, यह उससे भी ज़्यादा कठिन है। इच्छाओं और वासनाओं की तुलना में अमरीका से मुक़ाबला आसान है, इच्छाओं से लड़ना कठिन है, उस जंग की बुनियाद भी यह जंग है।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
14/03/2025
अमरीकी राष्ट्रपति ने, इसी शख़्स ने पूरी हो चुकी, मुकम्मल हो चुकी वार्ता, दस्तख़त हो चुके समझौते को मेज़ से उठाकर फेंक दिया, फाड़ दिया। इस इंसान से किस तरह वार्ता की जा सकती है? वार्ता में इंसान को यक़ीन होना चाहिए कि सामने वाला पक्ष उस चीज़ पर अमल करेगा जिसका उसने वादा किया है हम जानते हैं कि वह अमल नहीं करेगा तो फिर किस लिए वार्ता हो?
आयतुल्लाह ख़ामेनेई:अमरीका का वार्ता का दावा, जनमत को धोखा देने के लिए है

अगर अमरीका और उसके तत्वों ने कोई मूर्खता की तो हमारी ओर से मुंहतोड़ जवाब निश्चित है

13/03/2025
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बुधवार 12 मार्च 2025 की शाम को पूरे मुल्क से हज़ारों की तादाद में आए स्टूडेंट्स  और उनके राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों के कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात की।
13/03/2025
हम तेरी इबादत करते हैं; इस 'हम' के दायरे में कौन लोग हैं? उसमें एक मैं हूँ। मेरे अलावा, समाज के बाक़ी लोग हैं; 'हम' के दायरे में पूरी इंसानियत का हर शख़्स है न सिर्फ़ तौहीद को मानने वाले बल्कि वे भी हैं जो तौहीद को नहीं मानते और अल्लाह की इबादत करते हैं। जैसा कि हमने कहा कि उनकी फ़ितरत में अल्लाह की इबादत रची बसी है, उनके भीतर जिससे वे अंजान हैं, अल्लाह की इबादत करने वाला और अल्लाह का बंदा है; हालांकि उनका ध्यान इस ओर नहीं है। इससे भी ज़्यादा व्यापक दायरा हो सकता है जिसमें पूरी कायनात को शामिल माना जाए यानी पूरी कायनात अल्लाह की बंदगी का मेहराब हो। मैं और कायनात के सभी तत्व, सारे जीव-जन्तु तेरी इबादत करते हैं; यानी कायनात का हर ज़र्रा, अल्लाह की बंदगी की हालत में है, यह वह चीज़ है कि इंसान अगर इसे महसूस कर ले तो समझिए वह बंदगी के बहुत ऊंचे दर्जे पर पहुंच गया है। वह तौहीद के इस नग़मे को पूरी कायानात में सुनता है, यह एक हक़ीक़त है। मुझे उम्मीद है कि अल्लाह की बंदगी और इबादत में हम ऐसे स्थान पर पहुंच जाएं कि इस सच्चाई को महसूस कर सकें।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
12/03/2025
इस आयत के अंतर्गत एक अहम बिन्दु यह है कि यह बंदगी, इंसान की फ़ितरत में मौजूद है; इंसान अपने स्वभाव के तक़ाज़े के तहत ताक़त के एक बिन्दु, ताक़त के एक ऐसे केन्द्र की ओर आकर्षित होता है जिसे वह अपने से श्रेष्ठ समझता है और उसके सामने समर्पित हो जाता है। यह इंसान की रूह और उसके वजूद में है। चाहे इस ओर उसका ध्यान हो या न हो। दुनिया की सारी बंदगी, अल्लाह की बंदगी है; यहाँ तक कि मूर्ति पूजने वाला भी अपने दिल में, अल्लाह को पूजता है; लेकिन जिस चीज़ की वजह से उसका यह काम ग़लत हो गया है वह उस श्रेष्ठ ताक़त की पहचान में ग़लती है। धर्मों का रोल यह है कि वे इंसान के सोए हुए ज़मीर को जगाएं, उसकी आँख खोलें और कहें कि वह श्रेष्ठ ताक़त कौन है। उस हद तक जितना इंसान का दिमाग़ उसे समझने की सलाहियत रखता है। इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
12/03/2025
इंसान दुआ से, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाकर, रोज़े से ख़ुद को भूल जाने की इस ग़फ़लत से मुक्ति पा सकता है और अगर यह ग़फ़लत दूर हो जाए तो उस वक़्त इंसान को अल्लाह का सवाल याद आता है और हम ध्यान देते हैं कि अल्लाह हमसे सवाल करेगा।
12/03/2025
मुल्क के हज़ारों की तादाद में स्टूडेंट्स ने बुधवार 12 मार्च 2025 की शाम को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। यह सालाना मुलाक़ात हर साल रमज़ान के मुबारक महीने में होती है।   
12/03/2025
अगर दो तत्व एक आला मक़सद और दूसरे कोशिश किसी क़ौम में हों तो शख़्सियतों के न होने से नुक़सान तो होता है लेकिन मूल अभियान को कोई नुक़सान नहीं पहुंचता।  
12/03/2025
हम बैठे, कई साल बातचीत की;  इसी शख़्स ने, बातचीत पूरी होने, समझौते पर दस्तख़त होने के बाद, समझौते को मेज़ से उठाकर फेंक दिया, फाड़ दिया। ऐसे शख़्स के साथ बातचीत कैसे की जा सकती है?