यह जो क्रूरता व बेरहमी ज़ायोनी शासन ने दिखायी है, यह जो बेरहमी की है, उससे न सिर्फ़ यह कि उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गयी है, बल्कि अमरीका भी बेइज़्ज़त हुआ है, युरोप के कुछ मशहूर मुल्कों की इज़्ज़त भी गयी है, बल्कि इससे पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति की इज़्ज़त भी चली गयी है।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महान कमांडर शहीद फ़ुआद अली शुक्र की जेहादी ज़िंदगी की एक झलक, उनकी बेटी ख़दीजा शुक्र की ज़बानी और शहीद फ़ुआद शुक्र के जेहाद और संघर्ष के ज़माने की ख़ास तस्वीरें और इसी तरह इमाम ख़ामेनेई के साथ शहीद की कुछ तस्वीरें पेश हैं।
वाइज़मैन इंस्टिट्यूट पर ईरान का मीज़ाइल हमला ऐसी स्थिति में हुआ कि इस इंस्टिट्यूट को गूगल मैप से डिलीट कर दिया गया था ताकि इसकी लोकेशन का पता न चले। वाइज़मैन इंस्टिट्यूट ज़ायोनी सरकार के ख़ुफ़िया परमाणु हथियारों की तैयारी के प्रोग्राम में बहुत आगे आगे था।
कोई भी चीज़ इससे बढ़कर नहीं है कि कोई इंसान अपने हाथों से, अपने इरादे और अख़्तियार से अपनी जान और अपना वजूद एक बड़े पाकीज़ा और अज़ीम मक़सद के लिए क़ुर्बान कर दे। शहादत के मानी यह हैं।
इमाम ख़ामेनेई
27 सितम्बर 1998
हिज़्बुल्लाह के कमांडर शहीद फ़ुआद शुक्र की बेटी आदरणीय ख़दीजा शुक्र ने वेबसाइट Khamenei.ir को विशेष इंटरव्यू में अपने पिता, उनके संघर्ष, हिज़्बुल्लाह में उनका शामिल होने, उनके रोल और उनकी शहादत के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि अगर ज़ायोनी शासन का लक्ष्य हिज़्बुल्लाह का अंत था, तो हालिया तजुर्बे से साबित हुआ कि कमांडरों की शहादत, हथियारों के भंडारों के नेष्ट होने और हिज़्बुल्लाह के बड़ी तादाद में शहीदों, आम नागरिकों को होने वाने नुक़सान के बावजूद, उसका कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। दुश्मन न तो रेज़िस्टेंस को ख़त्म कर पाया और न ही उसके जनाधार को कमज़ोर कर सका। यह हक़ीक़त सैयद हसन के अंतिम संस्कार में साफ़ तौर पर नज़र आयी।
हिज़्बुल्लाह और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के वजूद की बरकत से लेबनान एक आइडियल सरज़मीन में बदल गया है और इस पूरे क्षेत्र पर उसका असर है। यह आप (हिज़्बुल्लाह और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़) के शहीदों के ख़ून की बरकत है।
हालिया थोपी गयी जंग के शहीदों के चेहलुम का प्रोग्राम मंगलवार 29 जुलाई 2025 को तेहारन के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयोजित हुआ, जिस में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता, शहीदों के घर वालों, कुछ सिविल और सैन्य अधिकारियों और आम लोगों ने शिरकत की।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 29 जुलाई 2025 को एक शोक कार्यक्रम में जो बारह दिवसीय जंग के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए आयोजित किया गया था अपने संक्षितप्त ख़ेताब इस्लामी जुम्हूरिया के बारे में कुछ अहम बिंदु बयान किए।
यह जो क्रूरता व बेरहमी ज़ायोनी शासन ने ग़ज़ा के अवाम के ख़िलाफ़ दिखायी है, उससे न सिर्फ़ यह कि उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गयी है, बल्कि अमरीका भी बेइज़्ज़त हुआ है, युरोप के कुछ मशहूर मुल्कों की इज़्ज़त भी गयी, बल्कि इससे पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति की इज़्ज़त भी चली गयी है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई
29 नवम्बर 2023
अपराधी ज़ायोनी सरकार के हाथों ईरान के कुछ अवाम, कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की शहादत के चेहलुम के मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने एक पैग़ाम जारी किया है।
23 जून 2025 को इस्लामी गणराज्य की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने मुल्क के परमाणु प्रतिष्ठान पर अमरीका के हमले के जवाब में, "फ़तह की ख़ुशख़बरी" नामक ऑप्रेशन के दौरान, अमरीका की अलउदैद छावनी को मीज़ाईल से निशाना बनाया।
इस्लामी सरकारों पर आज बहुत भारी ज़िम्मेदारी है। इस्लामी सरकारों में से कोई भी सरकार, किसी भी रूप में, किसी भी बहाने से ज़ायोनी सरकार का समर्थन करेगी तो निश्चित तौर पर वह जान ले कि उसके माथे पर यह शर्मनाक कलंक हमेशा के लिए बाक़ी रह जाएगा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 16 जूलाई 2025 को न्यायपालिका के अधिकारियों से मुलाक़ात में कहा, "हालिया थोपी गयी जंग में अवाम ने बड़ा कारनामा अंजाम दिया है। यह बड़ा कारनामा फ़ौजी आप्रेशन नहीं, बल्कि इरादा था, संकल्प था और आत्मविश्वास था। एक वक़्त था, हम से पहले भी और हमारी नौजवानी के ज़माने में भी, इंक़ेलाब से पहले, अमरीका के नाम से ही लोग डर जाते थे, उसका सामना और मुक़ाबला करने की तो बात ही दूर थी। अब वही क़ौम है जो अमरीका की आँख में आँख डालकर खड़ी हो जाती है।"
हम जंग में मज़बूती से उतरे। इसकी दलील यह है कि ज़ायोनी सरकार अमरीकी सरकार का सहारा लेने पर मजबूर हो गयी। अगर उसकी कमर टूट न गयी होती, अगर वह गिर न गयी होती, अगर असहाय न हो गयी होती, अगर अपनी रक्षा करने में सक्षम होती तो इस तरह अमरीका से मदद न मांगती।
इमाम ख़ामेनेई
16 जूलाई 2025
हम जंग में मज़बूती से उतरे, इसका सुबूत यह है कि जंग में हमारे सामने वाला पक्ष ज़ायोनी सरकार अमरीकी सरकार का सहारा लेने पर मजबूर हो गयी। अगर उसकी कमर टूट न गयी होती, अगर वह गिर न गयी होती, अगर असहाय न हो गयी होती, अगर अपनी रक्षा करने में सक्षम होती तो इस तरह अमरीका से मदद न मांगती।
ईरानी क़ौम किसी मैदान में कमज़ोर पक्ष की हैसियत से सामने नहीं आएगी। क्योंकि हमारे पास सभी ज़रूरी क्षमताएं मौजूद हैं, हमारे पास तर्क भी है, ताक़त भी है। डिप्लोमैसी के मैदान में भी और फ़ौजी मैदान में भी।
ईरानी क़ौम ने हालिया थोपी गयी जंग में ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ बड़ा कारनामा अंजाम दिया यह बड़ा काम, सैन्य आप्रेशन का नहीं था, इरादे का था। ख़ुद यह इरादा, ख़ुद यह आत्मविश्वास एक बहुत ही असाधारण अहमियत रखता है।
ईरान ने नवातीम एयरबेस पर इसलिए हमला किया क्योंकि ज़ायोनी सरकार का कमांड ऐन्ड कंट्रोल सेंटर और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफ़ेयर सेंटर वहाँ था। इस्लामी गणराज्य ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के मीज़ाईल हमलों के नतीजे में इस अड्डे को भारी नुक़सान पहुंचा।
न्यायपालिका के प्रमुख मोहसिनी इजेई और पालिका के कुछ दूसरे उच्चाधिकारियों ने बुधवार 16 जुलाई 2025 की सुबह इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।
अल्लाह ने इस्लामी व्यवस्था के तहत और क़ुरआन व इस्लाम की छाया में, ईरानी राष्ट्र के लिए मदद निश्चित कर दी है कि ईरानी राष्ट्र निश्चित रूप से विजयी होगा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बुधवार 16 जुलाई 2025 को न्यायपालिका के प्रमुख, वरिष्ठ अधिकारियों और पूरे देश की उच्च अदालतों के प्रमुख न्यायाधीशों से मुलाक़ात में हाल में थोपे गए युद्ध में ईरानी राष्ट्र के महान कारनामे की सराहना करते हुए हमलावरों के अनुमानों व षड्यंत्रों की विफलता पर ज़ोर दिया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 16 जूलाई 2025 को न्यायपालिका के प्रमुख और अधिकारियों से मुलाक़ात में इस विभाग की अहमियत और ज़िम्मेदारियों के बारे में बात की। उन्होंने ज़ायोनी सरकार के अग्रेशन और उसके बाद ईरान की ऐतिहासिक जवाबी कार्यवाही के पहलुओं पर रौशनी डाली।
दस घंटे से भी कम वक़्त में शहीद कमांडरों की रैंक के कमांडर नियुक्त किए जाते हैं और सफल आप्रेशन भी उसी सीमित वक़्त में शुरू हो जाते हैं। यह ख़ुसूसियत, सुप्रीम कमांडर की प्रशासनिक सलाहियत की नुमायां मिसाल है। अलबत्ता यह चीज़ सिर्फ़ बहादुरी से हासिल नहीं हुयी है बल्कि मामलों पर उनकी भरपूर पकड़ और उसमें उनका मूल किरदार है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता और आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के सुप्रीम कमांडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ज़ायोनी सरकार के हमले के बाद, टीवी से प्रसारित अपने तीसरे संदेश में इस जंग में फ़तह पर ईरान की महान क़ौम को मुबारकबाद पेश करते हुए कहा थाः "इतने शोर-शराबे, इतने दावों के बावजूद, ज़ायोनी शासन इस्लामी गणराज्य के वार से क़रीब क़रीब ढह गया और कुचल दिया गया। यह बात कि इस्लामी गणराज्य की ओर से ऐसे वार मुमकिन है इस शसान पर हों उनके मन में, उनके ख़याल में नहीं आती थी, जबकि ऐसा हुआ। अल्लाह का शुक्रगुज़ार हूं कि उसने हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की मदद की, जो उनके कई परतों वाले विकसित डिफ़ेंस को भेद सकीं और उनके बहुत से नगरीय और सैन्य इलाक़ों को अपने मीज़ाइलों की बौछार से अपने मज़बूत आधुनिक हथियारों से मिट्टी में मिला दिया। यह अल्लाह की बड़ी नेमतों में से एक है।"
ज़ायोनी खाना बाँटने के नाम पर एक केंद्र बनाते हैं। लोग वहाँ खाना लेने के लिए भीड़ लगा लेते हैं। जितने लोगों को ये पहले बम से मारते थे, अब एक मशीनगन से उससे दस गुना ज़्यादा लोगों को ख़त्म कर देते हैं! लोगों को मारने में ज़्यादा ख़र्च आ रहा था, इस लिए उसे सस्ता कर दिया। अमरीका पूरी तरह इस जुर्म में शामिल है।
इमाम ख़ामेनेई
4 जून 2025
ज़ायोनी फ़ौजी उन माँओं पर फ़ायरिंग कर रहे हैं जो खाने की लाइनों में अपने भूखे बच्चों के लिए खाना लेने की कोशिश कर रही हैं। यह तो जंग नहीं है, यह एक क़ौम का सुनियोजित जातीय सफ़ाया है।
ज़हरा शाफ़ेई, रिसर्च स्कॉलर
बग़दाद से काबुल तक और अब तेहरान के संबंध में, साम्राज्यवाद की शैतानी साज़िशों में कोई बदलाव नहीं आया हैः उस सरकार की छवि को शैतानी दिखाया जाता है जो साम्राज्यवाद की दुश्मन है, उन लोगों को इंसानियत के दायरे से बाहर दिखाया जाता है जो पश्चिम की साम्राज्यवादी नीतियों के मुक़ाबले में डट गए हैं।
उस रात उनका आना असमान्य घटना थी। शुरू के दो तीन मिनट सभी लोग हतप्रभ और एक ख़ास हालत में थे। एक बहुत ही आध्यात्मिक और क़ीमती माहौल था जिसका हम सभी पर प्रभाव पड़ा।