इस्लाम का बाक़ी रहना, अल्लाह के रास्ते का बाक़ी रहना, अल्लाह के बंदों की ओर से इस राह पर चलते रहने पर निर्भर है, इस राह ने इमाम हुसैन बिन अली अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़ैनब के कारनामे से मदद और ऊर्जा हासिल की है।
जिस तरह अरबईन की अज़ीम पैदल ज़ियारत में मज़बूती के साथ करबला की जानिब आप गए, इंशाअल्लाह हर मैदान में रूहानियत, हक़ीक़त और तौहीद के प्रभुत्व की राह को इसी मज़बूती से तय करेंगे।
इमाम ख़ामेनेई
6 सितम्बर 2023
यह आशूर का पैग़ाम है जो हज़रत इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब के गले से बड़ी बेबसी और तनहाई के वक़्त निकला और आज आलमगीर बन गया है, दुनिया पर छा गया है। यह अल्लाह की अज़ीम निशानी है जो अल्लाह दिखा रहा है।
जब कर्बला का वाक़ेया हुआ और उस जगह पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों व रिश्तेदारों ने बेमिसाल बलिदान का प्रदर्शन कर दिया तो अब बारी थी क़ैदियों की कि वो पैग़ाम को आम करें।
इमाम ख़ामेनेई
27 जूलाई सन 1988 को आयतुल्लाह ख़ामेनेई जो तत्कालीन राष्ट्रपति थे, अहवाज़ के एक सैन्य अस्पताल का 19 घंटे मुआयना करते हैं, जिसके दौरान वे केमिकल बमबारी के क़रीब 750 पीड़ितों में से हर एक से मिलते, उसकी ख़ैरियत पूछते और उसे तोहफ़ा देते हैं।
"मैंने जब भी जनाब फ़र्शचियान की पेंटिंग को देखा, जिसे उन्होंने कई साल पहले मुझे दिया था, रोया हूं; हम ऐसी हालत में कि मर्सिया पढ़ना जानते हैं, जनाब फ़र्शचियान ऐसा मर्सिया पढ़ते हैं कि हम सब को रुलाते हैं। यह कितनी फ़ायदेमंद और अर्थपूर्ण कला है कि एक चित्रकार उसमें ऐसी हालत पैदा कर दे।
इमाम ख़ामेनेई
1 सितम्बर 1993
इस बार मानवाधिकार के विश्व घोषणापत्र का इम्तेहान है। इस घोषणापत्र की, जिसे पश्चिमी विचारकों के हाथों और दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया पर उनके वर्चस्व के मज़बूत होने के बाद लिखा गया, आज ग़ज़ा में हर दिन ज़ायोनियों के हाथों धज्जियां उड़ रही हैं और "विश्व समुदाय" अपने हाथों से लिखे गए क़ानून के उल्लंघन पर ख़ामोश ही नहीं बल्कि वित्तीय और हथियारों से मदद कर रहा है।
यह जो क्रूरता व बेरहमी ज़ायोनी शासन ने दिखायी है, यह जो बेरहमी की है, उससे न सिर्फ़ यह कि उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गयी है, बल्कि अमरीका भी बेइज़्ज़त हुआ है, युरोप के कुछ मशहूर मुल्कों की इज़्ज़त भी गयी है, बल्कि इससे पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति की इज़्ज़त भी चली गयी है।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महान कमांडर शहीद फ़ुआद अली शुक्र की जेहादी ज़िंदगी की एक झलक, उनकी बेटी ख़दीजा शुक्र की ज़बानी और शहीद फ़ुआद शुक्र के जेहाद और संघर्ष के ज़माने की ख़ास तस्वीरें और इसी तरह इमाम ख़ामेनेई के साथ शहीद की कुछ तस्वीरें पेश हैं।
वाइज़मैन इंस्टिट्यूट पर ईरान का मीज़ाइल हमला ऐसी स्थिति में हुआ कि इस इंस्टिट्यूट को गूगल मैप से डिलीट कर दिया गया था ताकि इसकी लोकेशन का पता न चले। वाइज़मैन इंस्टिट्यूट ज़ायोनी सरकार के ख़ुफ़िया परमाणु हथियारों की तैयारी के प्रोग्राम में बहुत आगे आगे था।
कोई भी चीज़ इससे बढ़कर नहीं है कि कोई इंसान अपने हाथों से, अपने इरादे और अख़्तियार से अपनी जान और अपना वजूद एक बड़े पाकीज़ा और अज़ीम मक़सद के लिए क़ुर्बान कर दे। शहादत के मानी यह हैं।
इमाम ख़ामेनेई
27 सितम्बर 1998
हिज़्बुल्लाह के कमांडर शहीद फ़ुआद शुक्र की बेटी आदरणीय ख़दीजा शुक्र ने वेबसाइट Khamenei.ir को विशेष इंटरव्यू में अपने पिता, उनके संघर्ष, हिज़्बुल्लाह में उनका शामिल होने, उनके रोल और उनकी शहादत के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि अगर ज़ायोनी शासन का लक्ष्य हिज़्बुल्लाह का अंत था, तो हालिया तजुर्बे से साबित हुआ कि कमांडरों की शहादत, हथियारों के भंडारों के नेष्ट होने और हिज़्बुल्लाह के बड़ी तादाद में शहीदों, आम नागरिकों को होने वाने नुक़सान के बावजूद, उसका कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। दुश्मन न तो रेज़िस्टेंस को ख़त्म कर पाया और न ही उसके जनाधार को कमज़ोर कर सका। यह हक़ीक़त सैयद हसन के अंतिम संस्कार में साफ़ तौर पर नज़र आयी।
हिज़्बुल्लाह और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के वजूद की बरकत से लेबनान एक आइडियल सरज़मीन में बदल गया है और इस पूरे क्षेत्र पर उसका असर है। यह आप (हिज़्बुल्लाह और रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़) के शहीदों के ख़ून की बरकत है।
हालिया थोपी गयी जंग के शहीदों के चेहलुम का प्रोग्राम मंगलवार 29 जुलाई 2025 को तेहारन के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयोजित हुआ, जिस में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता, शहीदों के घर वालों, कुछ सिविल और सैन्य अधिकारियों और आम लोगों ने शिरकत की।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 29 जुलाई 2025 को एक शोक कार्यक्रम में जो बारह दिवसीय जंग के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए आयोजित किया गया था अपने संक्षितप्त ख़ेताब इस्लामी जुम्हूरिया के बारे में कुछ अहम बिंदु बयान किए।
यह जो क्रूरता व बेरहमी ज़ायोनी शासन ने ग़ज़ा के अवाम के ख़िलाफ़ दिखायी है, उससे न सिर्फ़ यह कि उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गयी है, बल्कि अमरीका भी बेइज़्ज़त हुआ है, युरोप के कुछ मशहूर मुल्कों की इज़्ज़त भी गयी, बल्कि इससे पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति की इज़्ज़त भी चली गयी है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई
29 नवम्बर 2023
अपराधी ज़ायोनी सरकार के हाथों ईरान के कुछ अवाम, कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की शहादत के चेहलुम के मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने एक पैग़ाम जारी किया है।
23 जून 2025 को इस्लामी गणराज्य की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने मुल्क के परमाणु प्रतिष्ठान पर अमरीका के हमले के जवाब में, "फ़तह की ख़ुशख़बरी" नामक ऑप्रेशन के दौरान, अमरीका की अलउदैद छावनी को मीज़ाईल से निशाना बनाया।
इस्लामी सरकारों पर आज बहुत भारी ज़िम्मेदारी है। इस्लामी सरकारों में से कोई भी सरकार, किसी भी रूप में, किसी भी बहाने से ज़ायोनी सरकार का समर्थन करेगी तो निश्चित तौर पर वह जान ले कि उसके माथे पर यह शर्मनाक कलंक हमेशा के लिए बाक़ी रह जाएगा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 16 जूलाई 2025 को न्यायपालिका के अधिकारियों से मुलाक़ात में कहा, "हालिया थोपी गयी जंग में अवाम ने बड़ा कारनामा अंजाम दिया है। यह बड़ा कारनामा फ़ौजी आप्रेशन नहीं, बल्कि इरादा था, संकल्प था और आत्मविश्वास था। एक वक़्त था, हम से पहले भी और हमारी नौजवानी के ज़माने में भी, इंक़ेलाब से पहले, अमरीका के नाम से ही लोग डर जाते थे, उसका सामना और मुक़ाबला करने की तो बात ही दूर थी। अब वही क़ौम है जो अमरीका की आँख में आँख डालकर खड़ी हो जाती है।"
हम जंग में मज़बूती से उतरे। इसकी दलील यह है कि ज़ायोनी सरकार अमरीकी सरकार का सहारा लेने पर मजबूर हो गयी। अगर उसकी कमर टूट न गयी होती, अगर वह गिर न गयी होती, अगर असहाय न हो गयी होती, अगर अपनी रक्षा करने में सक्षम होती तो इस तरह अमरीका से मदद न मांगती।
इमाम ख़ामेनेई
16 जूलाई 2025
हम जंग में मज़बूती से उतरे, इसका सुबूत यह है कि जंग में हमारे सामने वाला पक्ष ज़ायोनी सरकार अमरीकी सरकार का सहारा लेने पर मजबूर हो गयी। अगर उसकी कमर टूट न गयी होती, अगर वह गिर न गयी होती, अगर असहाय न हो गयी होती, अगर अपनी रक्षा करने में सक्षम होती तो इस तरह अमरीका से मदद न मांगती।
ईरानी क़ौम किसी मैदान में कमज़ोर पक्ष की हैसियत से सामने नहीं आएगी। क्योंकि हमारे पास सभी ज़रूरी क्षमताएं मौजूद हैं, हमारे पास तर्क भी है, ताक़त भी है। डिप्लोमैसी के मैदान में भी और फ़ौजी मैदान में भी।
ईरानी क़ौम ने हालिया थोपी गयी जंग में ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ बड़ा कारनामा अंजाम दिया यह बड़ा काम, सैन्य आप्रेशन का नहीं था, इरादे का था। ख़ुद यह इरादा, ख़ुद यह आत्मविश्वास एक बहुत ही असाधारण अहमियत रखता है।
ईरान ने नवातीम एयरबेस पर इसलिए हमला किया क्योंकि ज़ायोनी सरकार का कमांड ऐन्ड कंट्रोल सेंटर और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफ़ेयर सेंटर वहाँ था। इस्लामी गणराज्य ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के मीज़ाईल हमलों के नतीजे में इस अड्डे को भारी नुक़सान पहुंचा।
न्यायपालिका के प्रमुख मोहसिनी इजेई और पालिका के कुछ दूसरे उच्चाधिकारियों ने बुधवार 16 जुलाई 2025 की सुबह इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।