अबू हम्ज़ा सिमाली दुआ में इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ.स.) कहते हैं “ मेरे और मेरे उन गुनाहों के बीच दूरी पैदा कर दे जो तेरी इताअत की राह में रुकावट हैं।“ इससे यह पता चलता है कि इन्सान जो गुनाह करता है वह इन्सानों को परवाज़ से और ऊपर उठने से रोकते हैं।
ख़ुद अपना हिसाब करना बहुत अच्छा काम है। इन्सान को अपना हिसाब लेना चाहिए, यानि एक एक करके अपने गुनाहों की तादाद कम करना चाहिए। हमें कुछ गुनाहों की आदत पड़ जाती है। किसी किसी को तो पांच-छे-दस गुनाहों की आदत पड़ जाती है, पक्का इरादा करें और इन गुनाहों को एक एक करके छोड़ दें।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़रूरतमंद क़ैदियों की रिहाई के लिए ‘दियत सेंटर’के पैंतीसवें ‘गुलरीज़ान फ़ेस्टिवल’ के मौक़े पर इस नेक काम में 1 अरब तूमान (क़रीब 40000 डॉलर) की मदद की है।
मकारिमे अख़लाक़ की उस दुआ को जो सहीफ़ए सज्जादिया की बीसवीं दुआ है, बहुत ज़्यादा पढ़ें ताकि आप यह देख सकें कि इस दुआ में इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ.स.) ने ख़ुदा से जो चीज़ें मांगी हैं वह क्या हैं? इमामों के बयानों से, सहीफ़ए सज्जादिया की दुआओं से यानि हमारी अख़लाक़ी बीमारियों को ठीक करने वाली इन दवाओं की जो हमारे वजूद के ज़ख्मों को भर सकती हैं, हमें मालूमात हासिल करना चाहिए।
इसका रास्ता यह है कि हमारे बच्चे क़ुरआन के मैदान में उतरें। बच्चे मैदान में उतर पड़े तो यह मिशन मुमकिन हो जाएगा। इसका तरीक़ा यह है कि यह काम मस्जिदों में अंजाम पाए। हर मस्जिद क़ुरआनी मरकज़ बन जाए।
इमाम ख़ामेनेई
3 अप्रैल 2022
रमज़ान के महीने का सब से अहम फल, तक़वा है। “वह हाथ जो अपनी लगाम थामे रहे” यह है तक़वा का मतलब। हम दूसरों की लगाम तो बहुत अच्छे से पकड़ लेते हैं लेकिन अगर हम अपनी लगाम भी पकड़ सकें, ख़ुद को बिगड़ने, वहशीपन और ख़ुदा की रेड लाइनों को पार करने से रोक सकें तो यह बहुत बड़ा कमाल है। तक़वा का मतलब है अल्लाह के सीधे रास्ते पर चलने के दौरान अपने ऊपर नज़र रखना।
अपने गुनाहों की माफ़ी अगर सही तरीक़े से मांगी जाए तो इस से इन्सान के लिए ख़ुदा की बरकतों के दरवाज़े खुल जाते हैं। इन्सानी समाज और ख़ुद इन्सान को ख़ुदा की जिन नेमतों और बरकतों की ज़रूरत होती है उन सब का रास्ता, गुनाहों की वजह से बंद हो जाता है। गुनाह हमारे और खुदा की रहमतों व बरकतों के बीच दीवार की तरह है। तौबा, इस दीवार को गिरा देती है और ख़ुदा की रहमत व बरकत का रास्ता हमारे लिए खुल जाता है।
सैयद अली ख़ामेनेई
1997-01-17
शुरु से आख़िर तक। मुसलसल और लगातार। क़ुरआन पैग़म्बर का चमत्कार है। पैग़म्बर का दीन अमर है तो उनका चमत्कार भी अमर होना चाहिए। यानी इतिहास के हर दौर में इंसान ज़िंदगी के लिए ज़रूरी शिक्षाएं क़ुरआन से हासिल कर सकता है।
रमज़ान, तौबा और “इनाबा” का महीना है, माफी मांगने और अपने गुनाहों को बख़्शवाने का महीना है। तौबा का मतलब, उस राह से वापसी है जिस पर हम अपनी ग़लतियों और अपने गुनाहों की वजह से चलने लगे थे। इनाबा का मतलब, हमारा दिल खुदा की तरफ़ मुड़ जाए और हम दिन रात ख़ुदा से उम्मीद लगाएं। कहते हैं कि तौबा और इनाबा में यह फर्क़ है कि तौबा, बीते हुए कल के लिए होता है जबकि इनाबा, आज और आने वाले कल के लिए होता है।
#क़ुरआन की गहराइयों और पोशीदा तथ्यों तक पहुंचने का रास्ता है चिंतन, अध्ययन और ध्यान। अलबत्ता इसकी एक शर्त भी है दिल की पाकीज़गी और यह आप नौजवानों के लिए इस नाचीज़ जैसे लोगों की तुलना में आसान है।
रमज़ान का माहौल, ख़ुलूस, रूहानीयत और सच्चाई का माहौल है। हमें कोशिश करना चाहिए कि हम इस माहौल से ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठाएं। हमारे दिल और ख़ुदा के बीच जो ताल्लुक़ है, इस रूहानी ताल्लुक़ को, खुदा से इस ज़ाती ताल्लुक़ को मज़बूत करना चाहिए क्योंकि किसी भी इन्सान के लिए सब से ज़्यादा बड़े फ़ायदे की बात यही होती है कि उसका ख़ुदा के साथ ताल्लुक़ मज़बूत हो जाए।
यह गुफ़तुगू केवल अतीत और क़ुरआनी क़िस्सों के बारे में नहीं बल्कि हमारे मौजूदा हालात से संबंधित है जो इस ख़ास ज़बान में अंजाम पाती है। इसका मक़सद यह है कि हमें अपना रास्ता मिल जाए।
रमज़ान के महीने को “ मुबारक” कहा गया है, इसके मुबारक होने की वजह यह है कि यह महीना, जहन्नम की आग से ख़ुद को बचाने और इनाम में जन्नत पाने का महीना है जैसा कि हम, रमज़ान महीने की दुआ में पढ़ते हैं “और यह महीना जहन्नम से छुटकारे और जन्नत पाने का महीना है” अल्लाह की जहन्नम और इसी तरह उसकी जन्नत सब इसी दुनिया में है। आख़ेरत में जो कुछ होगा वह दर अस्ल इस दुनिया में मौजूद चीजों की वह अस्ली शक्ल होगी जो फ़िलहाल छुपी हुई है।
अगर आप सब बेहतरीन अंदाज़ में इस मेहमानी में शरीक हुए तो अल्लाह आपको क्या देगा? अल्लाह की मेहमान नवाज़ी यह है कि वह अपने क़रीब होने का मौक़ा देता है और इससे बड़ी कोई चीज़ नहीं।
रसूले ख़ुदा ने कहा है कि “यह वह महीना है जिसमें तुम सब को अल्लाह ने दावत दी है।” ख़ुद यही बात ग़ौर के लायक़ है, अल्लाह की तरफ़ से दावत। ज़बरदस्ती नहीं की गयी है कि सारे लोगों को इस दावत में जाना ही है। नहीं! ज़िम्मेदारी डाली गयी है लेकिन इस दावत से फ़ायदा उठाना या न उठाना ख़ुद हमारे अपने हाथ में रखा गया है।
सैयद अली ख़ामेनेई
2007-09-14
जिस तरह चौबीस घंटों में नमाज़ के वक़्त इस लिए रखे गये हैं कि इन्सान, कुछ देर के लिए दुनियावी चीज़ों से बाहर आ जाएं, उसी तरह साल में रमज़ान का महीना भी वह मौक़ा है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता इमाम ख़ामेनेई ने रविवार की शाम पहली रमज़ान को क़ुरआन से लगाव नाम की महफ़िल में तक़रीर की। यह महफ़िल तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामा बारगाह में आयोजित हुई।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने रमज़ान मुबारक के पहले दिन रूहानी प्रोग्राम ‘क़ुरआन से उन्सियत की महफ़िल’ में रमज़ान को, अल्लाह की ख़त्म न होने वाली रहमत के दस्तरख़ान पर मेहमान बनने का महीना बताया जिससे इंसान, मन की पाकीज़गी, क़ुरआन से गहरे लगाव और उसमें ग़ौर-फ़िक्र के ज़रिए फ़ायदा उठा सकता है।
रमज़ान महीने के आग़ाज़ पर तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में “क़ुरआन से उंसियत” नाम से एक महफ़िल का आयोजन हुआ जिसमें इस साल भी इस्लामी क्रांति के लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने भी भाग लिया। 3 अप्रैल 2022 के इस कार्यक्रम में इस्लामी इंक़ेलाब के लीडर ने अपनी तक़रीर में तिलावत, हिफ़्ज़े क़ुरआन, क़ुरआन के ज्ञान, क़ुरआन पढ़ने की शैलियों और क़ुरआनी उलूम के बारे में बड़ी अहम तक़रीर की।
स्पीच का अनुवाद पेश हैः
बीते बरसों की तरह इस साल भी रमज़ान के मुबारक महीने के पहले दिन "क़ुरआन की महफ़िल" का आयोजन होगा जिसमें सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई भी शरीक होंगे।
हमारी क़ौम ने साम्राज्य के मुक़ाबले में झुकने के बजाए प्रतिरोध का रास्ता चुना, यही सही फ़ैसला था। जब हम दुनिया के हालात को देखते हैं तो महसूस होता है कि यह फ़ैसला बिल्कुल दुरुस्त था।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने एक हुक्म जारी कर हुज्जतुल इस्लाम क़ाज़ी असकर को हज़रत शाह अब्दुल अज़ीम हसनी के पवित्र रौज़े, इससे संबंधित दूसरे पवित्र स्थलों और दूसरी संबंधित चीज़ों का मुतवल्ली नियुक्त किया।
दुनिया के हालात को देखिए तो साम्राज्यवाद के सिलसिले में ईरानी क़ौम का सही स्टैंड और भी स्पष्ट हो जाता है। हमारी क़ौम ने साम्राज्यवाद के सामने समर्पण नहीं चुना, प्रतिरोध और स्वाधीनता की हिफ़ाज़त का रास्ता चुना, आंतरिक सशक्तीकरण का रास्ता चुना। यह राष्ट्रीय फ़ैसला था।
इमाम ख़ामेनेई
21 मार्च 2022