पहली चीज़ तो ये कि दुश्मनियों का सामना होने पर इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की प्रतिक्रिया बहुत साहसपूर्ण होती थी। न कभी कमज़ोरी दिखाते और न पीछे हटते। कभी घबराते नहीं थे, न कमज़ोरी महसूस करते और न कमज़ोरी का प्रदर्शन करते। दुश्मनों के मुक़ाबले में बड़े साहसी व सक्रिय अंदाज़ से डट जाते थे।

दूसरी बात यह कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह कभी भी घबराहट और हैजान में नहीं आते थे। किसी भी तरह के हालात में वो बेचैन और उत्तेजित नहीं होते थे, कभी भी बुद्धि व तर्क से हट कर जज़्बात की बुनियाद पर काम नहीं करते थे। उनके फ़ैसले हमेशा साहसिक और ठोस भावनाओं पर आधारित होते थे लेकिन साथ ही सूझबूझ के अनुसार होते थे।

तीसरी बात यह कि इमाम ख़ुमैनी हमेशा प्राथमिकताओं के क्रम का ख़याल रखते थे। हमेशा प्राथमिकताओं पर ज़ोर देते थे। मिसाल के तौर पर इन्क़ेलाबी आंदोलन के ज़माने में उनका मुक़ाबला सलतनत या शाही व्यवस्था से था तो कभी भी आंशिक मामलों को काम के मैदान में नहीं आने देते थे। थोपे गए युद्ध के ज़माने में उनकी प्राथमिकता जंग थी तो उन्होंने यह बात कई बार कही कि सभी मामलों में युद्ध सबसे ऊपर है, पवित्र प्रतिरक्षा सबसे ऊपर है और यही सच्चाई भी थी। वो हमेशा प्राथमिकता वाले मामले पर ध्यान केंद्रित रखते थे और आंशिक समस्याओं को अपने ध्यान के दायरे में नहीं आने देते थे। इन्क़ेलाब के आरंभ में, आरंभिक दिनों और शुरुआती हफ़्तों में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के काम का जो तरीक़ा है उसमें इंसान देख सकता है कि संविधान का संकलन, व्यवस्था का गठन और क़ानूनी प्रबंधन उनके ध्यान का केंद्र था। यानी उनका ध्यान इस केंद्रीय बिंदु पर लगा हुआ था।

चौथी बात अवाम की क्षमताओं पर उनका भरोसा है। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ईरानी राष्ट्र को बहुत महान, होशियार और सक्षम राष्ट्र मानते थे। उस पर उन्हें पूरा विश्वास और भरोसा था। वो जनता ख़ास कर नौजवानों के बारे में बहुत अच्छी राय रखते थे। उन पर उन्हें पूरा भरोसा था। उनकी बातों में देखिए कि वे अवाम की ओर से कितने आशावान रहते थे, नौजवानों के बारे में कितने आशावान दिखाई देते थे।

पांचवीं बात दुश्मन पर भरोसा न करना है। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इस्लामी व्यवस्था के प्रमुख की हैसियत से गुज़ारे गए अपने 10 साल के समय में एक पल के लिए भी दुश्मन पर भरोसा नहीं किया। वो दुश्मन के सुझावों को हमेशा शक की नज़र से देखते थे और उनके दिखावे पर कोई ध्यान नहीं देते थे। वो दुश्मन को सही अर्थ में दुश्मन समझते थे और उस पर कभी भरोसा नहीं करते थे।

छठी बात अवाम की एकता और समरसता पर ध्यान देने की है। उस दुश्मनी के मुक़ाबले में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के तरीक़े की एक ख़ासियत यह भी थी। उनकी नज़र में हर वो चीज़ ठुकरा देने के योग्य थी जो अवाम के बीच फूट डाले और लोगों को विभाजित कर दे।

सातवीं बात अल्लाह की मदद और उसके वादे पर गहरे ईमान और भरोसे की है। ये भी बड़ा बुनियादी बिंदु था। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह अल्लाह की मदद पर बहुत भरोसा रखते थे। वो जी जान से मेहनत करते थे, अपने पूरे वुजूद से काम के मैदान में सक्रिय रहते थे लेकिन सारी उम्मीद अल्लाह की मदद और उसकी ताक़त से लगाते थे। क़ुरआने मजीद में कही गई "दो बेहतरीन बातों में से एक" पर उनकी गहरी आस्था थी। उनका कहना था कि अगर अल्लाह के लिए काम किया जाए तो नुक़सान और घाटे के सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं। अगर काम अल्लाह के लिए किया जाए तो उसमें नुक़सान की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। या तो उसमें प्रगति होगी और अगर प्रगति न भी हुई तब भी हमने अपनी जो ज़िम्मेदारी थी उसे पूरा कर दिया है, इसलिए हम अल्लाह के सामने सरफ़राज़ हैं।

इमाम ख़ामेनेई

4 जून 2018