यक़ीनन क़ुम को क़ुम बनाने और इस तारीख़ी-मज़हबी शहर को ख़ास अज़मत दिलाने में हज़रत मासूमा का किरदार नुमायां है। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं। यह अज़ीम हस्ती और ख़ानदाने पैग़म्बर में परवरिश पाने वाली नौजवान ख़ातून इमामों के अक़ीदतमंदों, साथियों और चाहने वालों के बीच अपनी गतिविधियों के ज़रिए, अलग अलग शहरों से गुज़र कर, पूरे रास्ते में लोगों के बीच ज्ञान और मुहब्बते अहलेबैत की ख़ुशबू फैला कर और फिर इस इलाक़े में पहुंच कर और क़ुम में ठहर कर, इस बात का कारण बनीं कि यह शहर ज़ालिम हुकूमत के उस तारीक दौर में ख़ानदाने पैग़म्बर के उलूम और शिक्षाओं के अहम मरकज़ की हैसियत से जगमगा उठे और वह मरकज़ बन जाए जो अहलेबैत के उलूम और उनकी शिक्षाओं की रौशनी पूरे इस्लामी जगत में और दुनिया के पूरब व पश्चिम तक पहुंचा दे।
इमाम ख़ामेनेई
21 अकतूबर 2010