आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई इस्लामी रेज़िस्टेंस फ़्रंट की जीत की बात करते थे और हमेशा कहते थे कि उन्हें इस जीत का पूरा विश्वास है और इस विश्वास की वजह उनका ईमान और अक़ीदा है। 1996 के बाद वे कहते थे कि इस्राईल दलदल में फंस गया है, वह न आगे बढ़ सकता है कि पूरे लेबनान पर फिर क़ब्ज़ा कर ले, न वह पीछे हट सकता है और न ही वह अपनी जगह ठहरा रह सकता है। इसलिए हमें इंतजार करना और देखना चाहिए कि क्या होने वाला है? लेकिन ये मामला इस्लामी रेज़िस्टें फ़्रंट की मेहनत पर निर्भर है। सन 1999 के अंत में, इस्राईल में प्रधान मंत्री पद के चुनाव में नेतनयाहू और एहुद बराक के बीच मुक़ाबला हुआ। बराक ने घोषणा की कि इस्राईल जुलाई में लेबनान से पीछे हट जाएगा।
उस वक़्त लेबनान और सीरिया के हालात ऐसे थे कि हमें चिंता थी कि ये तारीख़ आ जाएगी और इस्राईल पीछे नहीं हटेगा। एहूद बराक ने लेबनान से पीछे हटने के वादे के जवाब में लेबनानी सरकार और (सीरियाई राष्ट्रपति) हाफ़िज़ असद से गारंटी और रियायतें हासिल करने की कोशिशें कीं लेकिन उसे विफलता ही हाथ लगी जिसके बाद यह सोचा जाने लगा कि इस्राईल, लेबनान से पीछे नहीं हटेगा बल्कि जब वादा पूरा करने का समय आएगा तो वह कह देगा कि उसने गारंटी लेने की कोशिश की थी जो उसे नहीं दी गई इसलिए वह लेबनान छोड़ कर पीछे नहीं हट सकता।
इस्लामिक रेज़िस्टेंस मूवमेंट हिज़्बुल्लाह के स्तर पर हम लोगों का भी यही ख़याल था कि यही होने वाला है। उन्हीं दिनों हमारी मुलाक़ात आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से हुई और हमने अपना ख़याल ज़ाहिर किया तो आपने बिल्कुल अलग राय पेश की और कहा कि लेबनान में आपकी फ़तह बिल्कुल क़रीब आ चुकी है। उससे भी ज़्यादा क़रीब जितना आप सोच सकते हैं।
यह बात उपलब्ध जानकारियों और विशलेषणों के विपरीत थी। सूचनाएं तो यह थीं कि इस्राईल की तरफ़ से इस निष्कासन की कोई तैयारी भी शुरू नहीं की गई थी। इसके बावजूद इस्लामी इंक़ेलाब के लीडर ने हमसे कहा कि आप ख़ुद को इस कामयाबी के लिए तैयार कीजिए, इस बारे में सोचिए कि इस्राईल के पीछे हट जाने के बाद आपको क्या करना है। यही वजह थी कि जब इस्राईल पीछे हटा तो हमें ताज्जुब नहीं हुआ। क्योंकि हम इसके लिए पहले से तैयार थे।
सैयद हसन नसरुल्लाह