बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

ख़ुदा का शुक्र है कि उसने दो तीन बरसों तक क़रीब से आप लोगों से मुलाक़ात से महरूमी के बाद हमें यह मौक़ा दिया कि एक बार फिर यहां एक साथ बैठें और माननीय स्पीकर की ज़बानी आप सब की बातें सुनें और अपनी बातें आपसे कहें।

आज कल ख़ुर्रमशहर की जीत की सालगिरह के दिन हैं, कल के दिन ही यह बड़ी जीत हासिल हुई थी। इसे भी हम अच्छा शगून समझते हैं। इस बारे में एक बात कहना ज़रूरी है।

भाईयो! बहनो! ख़ुर्रमशहर की जीत, एक शहर को जीतना ही नहीं था कि सोचा जाए कि हम ने अपने उस शहर को वापस ले लिया जिस पर दुश्मन ने क़ब्ज़ा कर लिया था, बस यही नहीं था। यह तो ख़ुर्रमशहर की जीत की एक निशानी थी। लेकिन अस्ल में ख़ुर्रमशहर की जीत, इस्लामी मुजाहिदों के हक़ में हालात का रुख़ बदल जाने की वजह बनी, अस्ली बात यह है। बड़े सख़्त हालात थे। मैं उन दिनों की कड़वाहट कभी नहीं भूल सकता कि जब मैं अहवाज़ में हेडक्वाटर में था तो वहां के कमांडर, (2) शहीद चमरान के कमरे में एक बोर्ड लगा हुआ था जिस पर ईरान का नक़्शा था और नक़्शे पर जगह जगह नीले और लाल रंग की पिनें लगी हुई थी, जहां नीली पिनें लगी थीं वह इलाक़े हमारे क़ब्ज़े में थे और जहां-जहां लाल पिन लगी थी वह इलाक़े दुश्मन के क़ब्ज़े में थे। नई ख़बरों के मुताबिक़ हर रोज़ पिनों की जगह बदली जाती थी। मुझे उन दिनों की कड़वाहट आज भी  याद है कि जब भी हम उस कमरे में जाते और उस बोर्ड को देखते थे तो रेड पिनों की तादाद बढ़ी रहती थी, इस इलाक़े पर भी दुश्मन का क़ब्ज़ा हो गया, इस शहर पर भी दुश्मन ने क़ब्ज़ा कर लिया! अहवाज़ में तो शहर से दस-ग्यारह किलोमीटर की दूरी तक दुश्मन पहुंच गया था। यहां तक कि उसमें इतनी हिम्मत पैदा हो गयी थी कि वह नादेरी पुल भी पार करके दूसरी तरफ़ आ गया था, जो फ़ौजी स्ट्रैटेजी के मुताबिक़ ग़लती थी इसी लिए दुश्मन को लगा कि यह अच्छा नहीं है तो वह लौट गया। बड़े सख़्त हालात थे, जंग शुरु होने के नौ महीनों बाद हमारी यह हालत थी। यह हालात बहुत ही सख़्त थे हमारे लिए। फिर आबादान की घेराबंदी तोड़ने के लिए “सामिनुलअइम्मा” नाम का जो आप्रेशन शुरु किया था उससे हालात में बदलाव शुरु हो गया। इसके बाद “तरीक़ुल-क़ुद्स” उसके बाद “फ़त्हुल-मुबीन” और आख़िर में “बैतुल-मुक़द्दस” आप्रेशन हुआ और ख़ुर्रमशहर आज़ाद हो गया। अब हालात उलट गये यानी उस दिन तक हम अगर हमेशा इस फ़िक्र में रहते थे कि कल हम कौन सा इलाक़ा गवांएगे तो उस दिन के बाद से हमें इस बात का इंतेज़ार रहता था कि कल देखें हम कौन सा नया इलाक़ा वापस लेते हैं। यह सही है कि ख़ुर्रमशहर की आज़ादी के बाद भी जो आप्रेशन किये गये उनमें से कुछ में जीत मिली और कुछ में नहीं मिली लेकिन कुल मिलाकर हालात बेहतर हो रहे थे, जीत मिल रही थी, हमारे इरादे मज़बूत हो रहे थे, हौसला बढ़ रहा था। यह तो ख़ुर्रमशहर पर जीत की बात है। मतलब ख़ुर्रमशहर अस्ल में सख़्त हालात को बेहतर हालात में बदलने का एक प्रतीक था जिसने ईरानी क़ौम को बचा लिया। शायद बहुत से लोगों को जंग के हालात का सही से अंदाज़ा नहीं था लेकिन जिन लोगों को अंदाज़ा था वह हमेशा फ़िक्र, सख़्ती और परेशानी में रहते थे लेकिन ख़ुर्रमशहर की आज़ादी ने लोगों को इस हालत से नजात दिलाई।

तो सवाल यह है कि क़ौम को जो इस तरह से बचाया गया उसका तरीक़ा क्या था? ख़ुर्रमशहर की फ़तह और उससे पहले की घटनाओं की वजह क्या थी? यह बहुत अहम है और मैं इसी की बात करना चाहता हूं। कई वजहें थीं। जेहाद, क़ुरबानी, पक्का इरादा, नयी पहल यानी नये रास्तों की तलाश। पता नहीं आप लोगों ने बैतुल-मुक़द्दस आप्रेशन के बारे में लिखी गयी किताबों को जो वाक़ई बहुत अच्छी हैं, पढ़ा है या नहीं? यह भी हो सकता है कि आप लोगों में से कुछ लोग, ख़ुद भी उस आप्रेशन में मौजूद रहे हों लेकिन आप लोगों में अक्सर, जवान हैं और वह सारी बातें शायद आप लोगों को याद भी न होंगी बल्कि आप में से शायद कुछ लोग तो उस वक़्त पैदा भी न हुए होंगे। इन किताबों को पढ़ें और देंखें कि क्या हुआ था? क्या क्या हुआ था? इस दौरान जो लोग शहीद हुए जिनका कभी-कभी ज़िक्र किया जाता है, चाहे मशहूर शहीद हों या गुमनाम शहीद हों, उन्होंने क्या रोल अदा किये? छावनियों के कमांडरों, डिवीजन और ब्रिग्रेड के कमांडरों से लेकर एक टुकड़ी के कमांडरों तक, इन लोगों ने क्या काम किये हैं? उनका रोल क्या रहा है? पक्का इरादा। और अपने मक़सद पर दूरदर्शी निगाह यानी हर रोज़ सोच कर प्लान नहीं बनाते थे, बल्कि गहराई से ग़ौर करते थे, क्योंकि इमाम ख़ुमैनी ने इस जंग और इन घटनाओं के बारे में खुल कर बातें की थीं इस लिए हर रोज़ होने वाले बदलाव और रोज़ रोज़ होने वाली बातें, इस बड़े काम के ज़िम्मेदारों की सोच पर असर नहीं डालती थीं। वह बड़े मक़सद के लिए आगे बढ़ रहे थे और उस इशारे के मुताबिक़ चल रहे थे जो इमाम ख़ुमैनी ने किया था।

हमने जेहाद की बात की, हमने क़ुरबानी की बात की, हम ने पक्के इरादे और इस तरह की ख़ूबियों की बातें कीं, इन सब के पीछे “सही नीयत” थी, अल्लाह के लिए काम करने और उसी पर भरोसे की नीयत थी। अल्लाह के लिए और अल्लाह पर भरोसे के साथ काम के लिए नयी सोच भी ज़रूरी थी। पक्का इरादा, जेहाद और क़ुरबानी भी ज़रूरी थी और वह सब कुछ ज़रूरी था जिनका मैंने ज़िक्र किया।

अब मैं यहां पर यह कहना चाहता हूं कि यह ख़ूबिया उसी दौर के लिए नहीं थीं, हमारे मुल्क में होने वाले तरह तरह के वाक़ेआत में जिनका आप सामना कर रहे हैं या जिनका सामना आप लोग करेंगे जिसका ज़िक्र अभी मैं करुंगा, उन सब में अस्ल चीज़ यही है। यानी आदमी को अल्लाह के लिए काम के इरादे और उस पर भरोसे के साथ मैदान में उतरना चाहिए। इसके साथ ही क़ुरबानी का जज़्बा होना चाहिए, मेहनत करना चाहिए, पक्का इरादा रखना चाहिए, नये नये रास्तों को तलाश करना चाहिए। यही हर मैदान में होना चाहिए। अगर यह सब होता है तो यक़ीनी तौर पर नतीजा, जीत की शक्ल में हासिल होगा, यक़ीनी तौर पर। अब आप ग़ौर करें कि हमें कितने मसलों का सामना है?!

मैं आप लोगों से यह कहना चाहता हूं कि यह जो हमारे सामने इतनी सारी परेशानियां हैं, अंदरूनी, बाहरी, प्लानिंग के लिहाज़ से, काम करने के लिए लिहाज़ से, जो भी है सब को हम ख़त्म कर सकते हैं, बस उसके लिए इसी चीज़ की ज़रूरत होगी। यानी अल्लाह की राह में मेहनत और जेहाद के अंदाज़ में काम करना, अल्लाह के लिए काम करना, पक्का इरादा रखना, नयी सोच और इसी तरह की वो चीज़ें जिनका मैंने ज़िक्र किया है। यह क़ुरआन मजीद की तालीम है। मैं यहां पर दो आयतें पढ़ रहा हूं। “ऐ ईमान लाने वालो! क्या मैं तुम  लोगों को उस तिजारत के बारे में बताऊं जो तुम लोगों को सख़्त अज़ाब से बचा ले। तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखो और अल्लाह की राह में अपने माल व दौलत और जान से जेहाद करो , मैं इस “जान“ के बारे में बात करुंगां, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम्हें पता हो तो। तो अल्लाह तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें उन जन्नतों में ले जाएगा जहां नहरें बह रही होंगी और जन्नत में तुम्हें अच्छे घरों में ले जाएगा तो बहुत बड़ी कामयाबी है और इससे बढ़ कर जो तुम्हें पसंद है, तुम्हें अल्लाह की तरफ़ से जल्द ही मदद और कामयाबी मिलेगी।” (3) अगर ईमान, जेहाद का जज़्बा वग़ैरा हो तो सिर्फ़ यह नहीं होगा कि अल्लाह आप के गुनाह माफ़ कर देगा, नहीं! कामयाबी का मतलब वह चीज़ मिलना है जिसके लिए आप कोशिश कर रहे हैं और अल्लाह वही चीज़ आप को दे देगा। आयत में इस बात का ज़िक्र नहीं है लेकिन सिर्फ़ जंग में नहीं बल्कि हर जगह, यह बात सिर्फ़ जंग के लिए नहीं है बल्कि ज़िंदगी के हर मैदान में यही उसूल है।

एक दूसरी आयत भी है जो आले इमरान सूरे की आख़िरी आयतें हैं। कहा गया है कि “पालने वाले हमें वह दे दे जिसका तूने अपने रसूलों से वादा  किया था” पैग़म्बरे इस्लाम से जो वादा किया था वह वादा क्या है? दुश्मन पर जीत का वादा था “पालने वाले हमें वह दे दे जिसका तूने अपने रसूलों से वादा किया था और हमें क़यामत के दिन शर्मिंदा न कर और तू कभी वादा नहीं तोड़ता।“ मोमिनीन यह दुआ करते हैं। तो अल्लाह क्या करता है? “तो उनके पालने वाले ने उनकी दुआ सुन ली“ खुदा दुआ पूरी करता है और उनसे कहता है कि ”मैं तुम लोगों में से किसी मर्द या औरत के काम को बर्बाद नहीं करता।“ (4) मैं आप लोगों की कोशिशों को आप के कामों को बर्बाद नहीं होने दूंगा। आप सब यह जान लें, यह दर अस्ल मोमिनों और ईमान रखने वाले समाज के लिए उसूल और बुनियाद है और इसे आज़माया भी जा चुका है। हो सकता था कि हम इस के बारे में पढ़ते और क़ुरआन की आयत समझ कर मान भी लेते लेकिन ईरान में इन्क़ेलाब के बाद से लेकर अब तक हमने इसे आज़माया है और यह सब होते हुए ख़ुद देखा है कि यह होता है। तो मैं यह कहना चाहता हूं कि आप लोगों में से अक्सर जवान हैं। मतलब आप लोगों के सामने एक बड़ा मौक़ा है, इन्शाअल्लाह आज से पचास साठ बरस तक जीने का आप के पास मौक़ा है और इस दौरान बहुत कुछ होगा, मुद्दे आएंगे, खुशियां होंगीं, ग़म होंगे, इस अजीब व ग़रीब दुनिया में, चालीस, पचास, साठ साल गुज़ारना कोई मज़ाक़ नहीं है, आप लोगों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। मैं आप लोगों से कह रहा हूं कि इन बातों का उन तमाम परेशानियों में ख़्याल रखें। मेहनत करें, जेहादी सतह पर काम करें, पक्का इरादा करें, “पालने वाले अपनी ख़िदमत के लिए मुझे ताक़त दे, मेरे इरादे को पक्का कर और तक़वा में मुझे मेहनत व संजीदगी अता कर दे।“(5) यह जज़्बा, ज़िंदगी में आने वाली सभी  परेशानियों में आप की मदद करेगा और जीत आप की होगी।

तो मैंने जेहाद और क़ुरबानी की बात की थी और यह भी कहा था कि मैं इस बारे में ज़्यादा बात करुंगा कि क़ुरबानी का क्या मतलब है? हमेशा यह नहीं है कि आगे जाएं और अपनी जान क़ुर्बान कर दें, बेशक कभी यह होता है कि इन्सान को अपनी जान हथेली पर रख कर जंग के मैदान में जाना होता है जैसा कि ईरान पर इराक़ के हमले के बाद होने वाली जंग में हुआ था या आज जो बहुत सी जगहों पर इस तरह के हालात हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। क़ुरबानी बहुत व्यापक अर्थ है और उसका मतलब भी बड़ा है, कभी कभी क़ुरबानी का मतलब, छोटी छोटी  ख़्वाहिशों के जाल में न फंसना भी होता है। हमारी मुश्किल यह है, हम कभी कभी अपनी छोटी छोटी ख़्वाहिशों में फंस जाते हैं, और फिर उससे निकल नहीं पाते। क़ुर्बानी का मतलब यह है कि इन्सान ख़ुद को इस जाल से छुड़ा ले। अब सवाल यह है कि यह ख़्वाहिशें किस तरह की होती हैं? बहुत सी ख़्वाहिशें इस तरह की होती हैं कि मिसाल के तौर पर किसी प्रोग्राम में आदमी अपने दोस्त से ज़्यादा आगे बैठे, किसी जश्न में दोस्त से ऊपर बैठने की चाहत से लेकर, मुल्की सतह पर प्रेसीडेंट और बड़े ओहदों पर बैठने की चाह तक, यह सब ख़्वाहिशें हैं, सब की सब छोटी ख़्वाहिशें हैं, यह नहीं है कि इन दोनों में से एक ख़्वाहिश छोटी हो और दूसरी बड़ी हो, जी नहीं, किसी जश्न में ऊपर बैठना और बड़े ओहदे पर बैठने की ख़्वाहिश में कोई फ़र्क़ नहीं है, इन्सान की चाहत है और दोनों ही ख़्वाहिशें, तुच्छ हैं। जब ज़िम्मेदारी की बात होती है तो इन्सान उस पर अमल करता है और अगर अमल नहीं हो पाता या ज़िम्मेदारी के ख़िलाफ वह काम होता है तो इन्सान उसे छोड़ देता है। दौलत की लालच से लेकर, लोगों में इज़्ज़त पाने और मशहूर होने के लिए हो सकता है हम कोई काम करें यह दरअस्ल छोटी ख़्वाहिश के जाल में फंसना है, इन सब से दूर रहना चाहिए। हम यह नहीं कह रहे हैं कि दुनिया की दौलत बुरी चीज़ है या फिर, सरकारी ओहदा या लोगों की ख़िदमत या जो भी हो यह सब बुरी चीज़ है। नहीं! यह बुरी चीज़ नहीं है! न दुनिया की दौलत बुरी है न ही बड़ा ओहदा बुरा है, न ही समाज में इज़्ज़त की ख़्वाहिश बुरी चीज़ है। यह सब अच्छी चीज़ें हैं, इन सब चीज़ों के लिए कोशिश करना और अल्लाह से उसके लिए दुआ करना भी बुरा नहीं है। हमारी दुआओं में यही सब तो होता है। बात यह है कि कभी यह होता है कि इन्सान की कोई ज़िम्मेदारी होती है जिसपर उसे अमल करना है लेकिन उसकी राह में इसी तरह की कोई एक ख़्वाहिश आ जाती है तो उस वक़्त उस ख़्वाहिश को पैरों तले रौंद देना चाहिए। क़ुर्बानी का मतलब यह होता है।

जी तो यह कुछ बातें थीं जो मुझे आप लोगों से करना थीं वैसे अस्ल में ख़ुद मुझे आप सब से ज़्यादा इन बातों पर अमल करने की ज़रूरत है। यानी मुझे आप लोगों से ज़्यादा इस नसीहत की ज़रूरत है और अल्लाह से दुआ है कि वह इन नसीहतों का असर हमारे दिल पर गहराई से डाले जो हम अपने भाइयों को करते हैं। जहां तक पार्लियामेंट की बात है तो ईरान की पार्लियामेंट, “मजलिसे शूराए इस्लामी” देश के संचालन का एक सुतून है। मुल्क को चलाने के लिए एक बहुत ही अहम संस्थान, हमारी पार्लियामेंट है, मुल्क के अहम संस्थान हैं जिनमें से एक पार्लियामेंट है। आप अगर किसी दूरदराज़ के इलाक़े और कम आबादी वाली जगह से जीत कर पार्लियामेंट के मेंबर बने हैं, पार्लियामेंट में आए हैं तो भी आप को पार्लियामेंट को इस नज़र से देखना चाहिए, आप इस तरह की पोज़ीशन के मालिक हैं। मुल्क को चलाने वाले अहम संस्थान में आप बैठे हैं। मुल्क को कई संस्थान चलाते हैं जिनमें से एक पार्लियामेंट है।, दूसरे संस्थान भी हैं, जैसे हुकूमत के दूसरे संस्थान या फ़ौज भी हैं लेकिन एक अहम संस्थान, पार्लियामेंट है। यह इतना अहम है, इस नज़र से पार्लियामेंट को देखना चाहिए, पार्लियामेंट से बाहर और पार्लियामेंट के अंदर भी पार्लियामेंट के बारे में यह नज़रिया रखना चाहिए।

जी मुल्क को चलाने का काम, जिसका एक हिस्सा आप के हाथों में है, बहुत सख़्त, पेचीदा, मुश्किल और बहुत ही अहम काम है। वह भी ईरान जैसी पोज़ीशन वाले मुल्क को चलाने का काम। ईरान की पोज़ीशन का क्या मतलब है? यानी पूरा मुल्क, पूरे मुल्क की आबादी, मुल्क का पूरा इलाक़ा, मुल्क की तारीख़, मुल्क के अलग अलग मौसम, यह सब हमारे मुल्क की ख़ूबियां हैं जिनकी वजह से हमारा मुल्क ईरान, दुनिया के अलग और अहम मुल्कों में शामिल हो गया है, यह बात है। इस तरह के एक मुल्क को आप चलाना चाहते हैं। वैसे ही मुल्क को चलाना मुश्किल काम है, ख़ासतौर पर यह मुश्किल उस वक़्त और बढ़ जाती है जब, दुनिया में कुछ ख़ास वाक़या हो जाता है जैसा कि आज कल हो रहा है, आजकल दुनिया के जिस तरह के हालात हैं वह सिर्फ़ हमारे लिए नहीं, बल्कि दुनिया के हर मुल्क के लिए, मुल्क चलाना मुश्किल बना रहे हैं। हालात कैसे हैं? मैं कुछ अहम बातों का ज़िक्र करता हूं। बड़ी ताक़तों की एक दूसरे से दुश्मनी, यानी मिसाल के तौर पर एटमी ताक़तें एक दूसरे के सामने खड़ी हो रही हैं और एक दूसरे को धमकी दे रही हैं, यह एक अहम चीज़ है। इससे दुनिया की पोज़ीशन बहुत संवेदनशील हो जाती है। दुनिया के एक संवेदनशील इलाक़े में, फ़ौजी गतिविधियां! आप को पता है कि, दुनिया में सब से ज़्यादा जंगें युरोप में होती रही हैं। मैंने जो पढ़ा है (6) अब यह हो सकता है कि मालूमात पूरी न हो  लेकिन जितना पढ़ा है उसके हिसाब से युरोप जितने बड़े दुनिया के किसी और इलाक़े में इतनी जंगे नहीं हुई हैं जितनी युरोप में हुई हैं। युरोप दरअस्ल जंग का एक इलाक़ा है। जिसकी हालिया मिसाल, दो वर्ल्ड वॉर हैं जो युरोप में हुई हैं। यानी वहां से शुरु हुईं और फिर पूरी दुनिया उसमें फंस गयी, इससे पहले भी जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और दूसरे युरोपी मुल्कों के बीच तरह तरह की जंगे होती रहती थीं। यानी इस इलाक़े में बहुत जंगे होती रही हैं। इस वक़्त भी दुनिया के इस जंग वाले इलाक़े में एक जंग हुई है, तो इस से दुनिया में हालात ख़राब हो रहे हैं, यह बहुत अहम इलाक़ा है। बढ़ते हुए फ़ौजी ख़तरे, महामारी, यह भी ऐसी चीज़ें हैं जिसकी दुनिया में मिसाल कम मिलती है या मिलती ही नहीं। इस वक़्त भी दुनिया इसी तरह की एक बीमारी में फंसी है, आज दुनिया का कोई भी इलाक़ा इससे बचा नहीं है यह भी एक अहम बात है। या फिर बड़े पैमाने पर खाने पीने की चीज़ों के लिए पैदा होने वाला ख़तरा। एक ज़माना था जब अफ़्रीक़ा के किसी दूर के इलाक़े में सूखा और भुखमरी होती थी, खाने पीने की चीज़ों की कमी हो जाती थी। लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज पूरी दुनिया में खाने पीने की चीज़ों की कमी का ख़तरा है। ग़ौर  करें, आज दुनिया के हालात, ख़ास हालात हैं।  बहुत ही ख़ास हालात हैं। आज की तरह दुनिया में कम ही हालात पैदा हुए हैं। तो ज़ाहिर सी बात है कि इस तरह के हालात में मुल्क को चलाना, सब के लिए, ज़्यादा मुश्किल हो रहा है, ज़्यादा पेचीदा हो रहा है। हमारे सामने तो एक और परेशानी है, इस्लामी जुम्हूरिया ईरान के सामने दूसरे मुल्कों के मुक़ाबले में एक और मसला है और वह यह है कि हम ने दुनिया के सामने एक नयी चीज़ पेश की है, दीनी जुम्हूरीयत, इस्लामी जुम्हूरीयत। यह एक नयी चीज़ है, हम ने दुनिया के सामने, दुनिया के पॉलिटिकल सिस्टम में एक नयी चीज़ पेश की है। यह यूं तो एक नाम है लेकिन अस्ल में क्या है? उसके अंदर वही चीज़ है जिसकी वजह से दुनिया की बड़ी ताक़तें, अहम ताक़तें इस नयी पहल और इस नयी चीज़ के ख़िलाफ़ दुश्मनी निकालती हैं। मतलब इस्लामी जुम्हूरिया ईरान में जो यह काम हुआ है उसने दुनिया पर क़ब्ज़ा जमाने के पूरे सिस्टम को ख़राब कर दिया है। दुनिया को अपनी मर्ज़ी से चलाने वाली ताक़तों ने इसके लिए एक मंसूबा बना रखा था, दुनिया पर क़ब्ज़ा करने वाले सिस्टम के बारे में मैंने कई बार बात की है, इसका मतलब यह है कि दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया जाए। कुछ अपनी चलाएं और बाक़ी उनकी मानें, बीच की कोई जगह नहीं है। कुछ मुल्कों को हर हाल में क़ब्ज़ा करने वाला और अपनी मनमानी करने वाला होना होगा और कुछ दूसरे मुल्कों को हर हाल में उनकी बातें माननी होंगी। यह है दुनिया का वर्चस्ववादी सिस्टम। इन्होंने पूरी दुनिया के लिए प्रोग्राम बनाए थे, कभी साम्राज्यवाद व कॉलोनियलिज़्म की शक्ल में कभी नियो कॉलोनियलिज़्म के नाम पर और कभी पोस्ट कॉलोनियलिज़्म के नाम पर। इन लोगों ने नियो कॉलोनियलिज़्म के बाद पूरी दुनिया के लिए एक क्रम बना दिया था। एक पॉलिसी बना दी थी। लेकिन इस्लामी जुम्हूरिया ईरान में जो नयी पहल हुई उसने उनके इस क्रम को, इस प्रोग्राम को ख़राब कर दिया। इस लिए यह ताक़तें उसके सामने खड़ी हो गयीं और इसी लिए उसके ख़िलाफ़ काम कर रही हैं। आप लोग पार्लियामेंट के मेंबर हैं, आप की मालूमात बहुत ज़्यादा हैं, आप को मालूम है कि इस्लामी जुम्हूरिया के ख़िलाफ़ कितनी वेब साइटें, टीवी चैनल और सैटेलाइट चैनल चल रहे हैं। रात दिन कितना पैसा ख़र्च किया जा रहा है और कितने लोग, कितने दिमाग़, उनके मुताबिक़ कितने थिंक टैंक, बैठकर इस्लामी जुम्हूरिया के ख़िलाफ प्लान बनाते हैं, यह हो रहा है। यक़ीनी तौर पर इस्लामी जुम्हूरिया ईरान भी सीना ताने खड़ा है, सिर उठाए है, बड़े बड़े क़दम उठा रहा है और आगे बढ़ रहा है। दुश्मन कामयाब नहीं हुए। तो यह बात साबित है कि मुल्क को चलाना आसान काम नहीं है, आप लोग इस तरह के काम में रोल अदा कर रहे हैं, मैं यह कहना चाहता हूं। तो इसकी वजह से मुल्क को चलाने वाले हर संस्थान को ज़्यादा एहतियात करना और ज़्यादा नज़र रखना चाहिए। आप लोग ज़िम्मेदार हैं, आप को पता होना चाहिए कि आप क्या काम कर रहे हैं, हुकूमत की भी यही ज़िम्मेदारी है, न्यायपालिका की भी यही ज़िम्मेदारी और दूसरे संस्थानों की भी यही ज़िम्मेदारी है, जो भी मुल्क चलाने में कोई रोल रखता है उसे यह मालूम होना चाहिए कि वह कितना बड़ा और कितना अहम काम कर रहा है।

सब से पहली बात तो यह है कि हमें अपनी ताक़त और सलाहियत के बारे में पता होना चाहिए। दूसरी बात यह है कि हमें अपनी कमज़ोरियों का भी सही तौर पर एहसास होना चाहिए। हमें अपनी ख़ूबियों और इसी तरह अपनी कमज़ोरियों के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए। फ़ारसी कहावत के मुताबिक “इस्फंदयार की आंखें”(7) अपने अंदर तलाश करें और यह देखें कि हमारे यहां कहां कमज़ोरी पाई जाती है। इस पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है। इसके अलावा हमें यह भी कोशिश करना चाहिए कि कोई ग़लती न करें, दुश्मन को अपनी ताक़त से ज़्यादा हमारी ग़लतियों से उम्मीद है। उसे हमारी ग़लती का इंतेज़ार है। वह जो फ़ौज में कहा जाता है कि दुश्मन को मौक़ा न दें के पहलू पर हमला करे, वही चीज़। आप के दुश्मन हैं ना।  तो अगर लापरवाही की और दुश्मन, घूम कर आए और आप के पहलू पर हमला कर दे तो फिर आप कुछ नहीं कर सकते। जंग के वक़्त कमांडर जो एक बात पर बहुत ध्यान देते हैं वह यही है कि दुश्मन को पहलू पर हमला करने का मौक़ा न दिया जाए। तो यह पार्लियामेंट के आम मुद्दों की बात है।

हमनें कहा “इन्क़ेलाबी पार्लियामेंट” कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन हमने सच्चाई बयान की है। अब किसी को अच्छा लगे या बुरा, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। सच्चाई यही है कि यह पार्लियामेंट, इन्क़ेलाबी नारों से बनी है, लोगों ने ग़ौर किया, और उन लोगों को वोट दिया जिनका रास्ता, जिनका नज़रिया, जिनका नारा, जिनकी बातें, इन्क़ेलाबी थीं। इस लिए लोग भी इसी  नज़रिये और इसी रास्ते पर चलने वाले हैं जिसके लिए आप ने अपने शहर, अपने गांव में एक इन्क़ेलाबी की शक्ल में नारा लगाया था और उसकी बातें की थीं। इस बुनियाद पर इन्क़ेलाबी पार्लियामेंट का यह मतलब है। इन्क़ेलाब के नारे मुल्क के फ़ायदे में हैं, उनके दावों के विपरीत जो यह कहते हैं कि इन्क़ेलाब मुल्क के लिए परेशानी की वजह है। जी नहीं! मामला इसके उलट है। इन्क़ेलाब, इन्क़ेलाब के नारे और इन्क़ेलाब का मक़सद, हालांकि अभी हम उस मक़सद तक नहीं पहुंचे हैं, लेकिन इस मक़सद की तरफ़ बढ़ना भी, मुल्क की परेशानियों को ख़त्म करने का रास्ता है। परेशानी नहीं है, परेशानी ख़त्म करने का ज़रिया है। इन्क़ेलाब यह है। अब सोशल मीडिया पर या किसी अख़बार में या किसी किताब में किसी की अपनी कोई राय है जिसे वह ज़ाहिर करता है तो कोई बात नहीं। अपनी राय रखे लेकिन सच्चाई यही है कि यह काम, इन्क़ेलाबी काम था, पार्लियामेंट भी इन्क़ेलाबी है।

लेकिन भाईयो और बहनो! बुनियादी बात, इन्क़ेलाबी बने रहना है। देखें यह बैठक, आपस की और अपनों की है, भाइयों की मुलाक़ात है। इस वक़्त भी मेरी नज़रों में वे लोग हैं जो मिसाल के तौर पर सन उन्नीस सौ उनासी में कि जब मैं इन्क़ेलाब काउंसिल का मेंबर था और ईरान का प्रेसीडेंट नहीं बना था, यह लोग जब हमारे पास आते थे जबकि हम ख़ुद भी इन्क़ेलाबी थे और इन्क़ेलाब के काम का हमारा अपना रिकार्ड भी था लेकिन यह लोग ऐसी बातें करते थे, बड़ी बड़ी, जोशीली बातें कि जिन्हें सुन कर हमारी आंखें खुली की खुली रह जाती थीं और हम सोचते थे यह लोग क्या हैं? मतलब वह जो कहा जाता है न “सुपर इन्क़ेलाबी” हमें वही लगते थे लेकिन वह भी पलट गये और इन्क़ेलाबी तक नहीं रह गये। वह लोग, उस तरह के नज़रिये और उस तरह के अपने रवैये के बावजूद भी अपनी राह पर नहीं चल सके, यानी बर्दाश्त नहीं कर पाए। देखिए अस्ल बात यही है कि वह संयम नहीं रख पाए। कुछ लोग यह जो कहते नज़र आते हैं कि हम ने ग़ौर किया तो हमें लगा कि उस राह से ज़्यादा बेहतर यह राह है। यह सब बेबुनियाद बातें हैं, ऐसी कोई बात नहीं है। इस राह पर आगे बढ़ने और इस राह पर बाक़ी रहने के लिए संयम की ज़रूरत होती है। वह संयम नहीं रख पाए। अगर मुझे सही से याद हो तो इमाम ख़ुमैनी ने सूरए हूद की इस आयात के बारे में कि जिसमें कहा गया है कि “तुम हुक्म के मुताबिक़ डटे रहो और वह लोग भी जिन्होंने तौबा की है। (8) तुम भी इस राह पर डटे रहो और वह लोग भी जो तुम्हारे साथ ख़ुदा की राह में आगे बढ़े हैं। मुझे फिर से देखने का वक़्त नहीं मिला लेकिन मेरे ख़्याल में उन्होंने कहा कि यह जो पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है कि “सूरए हूद ने मुझे बूढ़ा कर दिया“ (9) तो अस्ल में इस आयत ने उन्हें बूढ़ा किया। इतना मुश्किल है! डटे रहो, क़ायम रहो, राह पर चलते रहो। जी तो देखिए इन्क़ेलाबी होने से इन्क़ेलाबी नज़रिया रखने से ज़्यादा मुश्किल, इन्क़ेलाबी बाक़ी रहना है। चाहे वह कोई अकेला शख़्स हो, या फिर कोई समाज हो या फिर पार्लियामेंट हो। अब सवाल यह है कि इन्क़ेलाबी होने का क्या मतलब है? यहां पर मैंने इन्क़ेलाबी मेंबर होने की कुछ निशानियां बतायी हैं। आप लोग कामयाब हैं, ख़ुदा के शुक्र से, आप सब को अल्लाह ने यह मौक़ा दिया और आप पार्लियामेंट में हैं, अच्छे काम कर रहे हैं, मैंने जनाब क़ालीबाफ़ साहब की रिपोर्ट भी सुनी। बाहर भी जो प्रदर्शनी लगाई गई वहां भी हमने इन चीज़ों को देखा है। (10) इसके अलावा यह जो जनाब ने अपनी रिपोर्ट में बताया है वह पहले हमारे पास पहुंचने वाली रिपोर्टों में भी बताया गया है, ख़ुदा का शुक्र है। आप सब काम कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद याद दिलाते रहना चाहए। हमें यह पता होना चाहिए कि अगर हम पार्लियामेंट के इन्क़ेलाबी मेंबर बने रहना चाहते हैं तो हमें क्या करना चाहिए, मैंने यहां कुछ बातें लिखी हैं।

सब से पहली चीज़ तो सादगी के साथ ज़िंदगी गुज़ारना है, दिखावे और चमक-दमक में नहीं फंसना चाहिए। आप पार्लियामेंट में आने से पहले अपने तरीक़े से ज़िंदगी गुज़ारते थे, लेकिन अब जब पार्लियामेंट में आ गये तो यह ख़याल न आए कि अब तो हम पार्लियामेंट के मेंबर हैं तो हमें अब उस तरह से ज़िदंगी गुज़ारना चाहिए! जी नहीं! सादगी के साथ ज़िदंगी, वही सादगी की ज़िंदगी जो अब तक आप गुज़ारते थे, सांसद चुने जाने के बाद भी जारी रहे। एक दूसरी चीज़ अमानतदारी है, अमानत की हिफ़ाज़त करना बहुत ज़रूरी है। अमानदारी बहुत अहम है। यह जो हमारे क़ारी ने आयत पढ़ी कि “हमने आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों के सामने यह अमानत पेश की तो उन्होंने संभालने से इन्कार कर दिया और इन्सान ने क़ुबूल कर लिया।” (11) तो अल्लाह की उस अमानत का एक हिस्सा जिसे इन्सान ने क़ुबूल किया यह भी है जो इस वक़्त आप के पास है, आप को बख़ूबी इसकी हिफ़ाज़त करना चाहिए। एक और बात, जवाबदेही की ज़िम्मेदारी क़ुबूल करना है। आप कोई क़ानून पास करते हैं, अगर आप की नज़र में वह अच्छा क़ानून था और उसे पास होना चाहिए था तो डट कर खड़े हो जाएं और कहें जी हां! मैंने इसे पास किया है, जी हां! हमने इस क़ानून को पास किया है। यह न हो कि हम यह सोचें कि चलो हम पास कर देते हैं यह क़ानून जबकि हमें मालूम है कि गार्डियन कौंसिल तो इसे पास नहीं करेगी तो फिर इसकी ज़िम्मेदारी भी कौंसिल पर ही होगी। हमें मालूम होता है कि इस क़ानून को लागू नहीं किया जा सकता, कुछ क़ानून इसी तरह के हैं, देखिए मैं ख़ुद पार्लियामेंट का मेंबर रह चुका हूं, मैं पार्लियामेंट को अंदर से जानता हूं। कभी मेंबर को पता होता है कि हुकूमत के पास जो चीज़ें हैं और जो हालात हैं उनके मद्देनज़र वह इस क़ानून को लागू नहीं कर सकती, लेकिन आप कहते हैं ठीक है, हम पास कर देते हैं, हुकूमत उसे लागू न करे! पब्लिक तो हुकूमत को ही ग़लत कहेगी, उसे ही दोषी ठहराएगी कि उसने लागू क्यों नहीं किया? नहीं, यह सही नहीं है। आप को ज़िम्मेदारी क़ुबूल करने वाला बनना चाहिए।

एक और चीज़, अवामी और लोगों से जुड़ा हुआ होना भी ज़रूरी है, इसका क्या मतलब है? लोगों से जुड़ा होने का मतलब आम आदमियों से मिलना जुलना, उनके साथ उठना बैठना, उनकी बातें सुनना और उनके दिल व दिमाग़ की उलझनों को ख़त्म करने वाली ज़बान का मालिक होना है। अब अगर हम कुछ लोगों के बीच जाएं जिनकी कोई मांग हो तो हम वहां जाकर उनकी बातें सुनें और कहें कि हां सही बात है! आप की बात बिल्कुल सही है और जो लोग आप की बात नहीं सुन रहे हैं वे ऐसे हैं वैसे हैं! जी नहीं! यह सही नहीं है। कभी यह भी होता है कि लोगों के दिमाग़ में कुछ सवाल होते हैं, आप को उन सवालों का जवाब देना चाहिए। कुछ उलझनें होती हैं जिन्हें आप को ख़त्म करना होता है। यह हमने जो ‘बयान के जेहाद’ (12) की बात की है यह चीज़ उसमें शामिल है। परेशानियां हैं मिसाल के तौर पर कुछ लोगों की कोई मांग है, तो आप पार्लियामेंट के मेंबर हैं, आप को मुल्क के ख़र्चों और आमदनी का पता है। आप को मालूम है कि वह मांग पूरी नहीं की जा सकती। जब आप को मालूम है कि उसे पूरा नहीं किया जा सकता तो फिर इसका इंतेज़ार न करें कि हुकूमत या न्यायपालिका का कोई ओहदेदार आकर कहे कि यह नहीं हो सकता। नहीं! आप ख़ुद कहें कि यह नहीं हो सकता। मतलब यह कि आप, लोगों की बातें भी सुनें और उनकी उलझनों को ख़त्म भी करें। हो सकता है उन लोगों में से एक दो ऐसे भी हों जो यह कहें कि चलो चलते हैं, इनके बस का कुछ भी नहीं है। तो कहनें दीजिए! आप अपना फ़र्ज़ अदा कीजिए। लोगों से जुड़े होने का मतलब यह है। यह जो हम लोगों से जुड़े रहने की रट लगाते हैं, उसका यह मतलब नहीं है कि हम हमेशा यूं ही लोगों से जुड़े होने और उनका साथ देने का नारा लगाते रहें। नहीं! बल्कि हमें लोगों की मदद करना चाहिए और यह मदद उनकी बातें सुनना भी है, मुमकिन होने की सूरत में उनकी मांगें पूरी करना और उनकी उलझनें ख़त्म करना भी है।

एक और चीज़, मुल्क की बुनियादी प्राब्लम्स को ख़त्म करने की कोशिश करना भी है। यानी आप बुनियादी परेशानियों पर नज़र रखें, मैं दूसरे लफ़्ज़ों में यूं कहूं कि मुल्क की जो समस्याएं हैं, वह दो तरह की हैं। एक तो अस्ली और बुनियादी हैं और दूसरी वह समस्याएं हैं जो दूसरे नंबर पर आती हैं। इस लिए जब तक हमारे सामने बुनियादी मुश्किलें हैं, दूसरे नंबर की समस्याओं की बारी नहीं आएगी। जब बुनियादी मुश्किलें हमारी नज़रों के सामने हों तो दूसरे नंबर की समस्याओं के लिए कोशिश करना सही नहीं है। आप बुनियादी मुश्किलों और अहम परेशानियों को ख़त्म करने की कोशिश कीजिए, मुश्किलों को इस तरह अलग अलग हिस्सों में बांटें।

इसी तरह करप्शन और भेदभाव से बचना ज़रूरी है। हम कहते हैं कि करप्शन की संजीदगी के साथ मुख़ालेफ़त। जी हां करप्शन के तो सभी ख़िलाफ़ हैं, लेकिन यह भी होता है कि हम दूसरों के करप्शन के ख़िलाफ़ होते हैं, दूसरों की तरफ़ से किए जाने वाले भेदभाव के हम ख़िलाफ़ होते हैं। मगर हमें अपना ख़्याल रखना चाहिए, हमें ख़ुद संजीदा होना चाहिए, हमें दूसरों में करप्शन और भेदभाव के ख़िलाफ़ होना चाहिए और अपने अदंर भी करप्शन और भेदभाव के ख़िलाफ़ होना चाहिए।

मुल्क चलाने वाले दूसरे संस्थानों के साथ दिल से कोआपरेशन करना भी ज़रूरी है। हमारे मुल्क का एक मसला, आपस में कोआर्डिनेशन का न होना है, मुल्क के तीनों अहम संस्थानों में कोआर्डिनेशन का न होना हमारा मसला रहा है। कभी यह भी होता है कि ओहदेदार एक दूसरे के दोस्त हैं, आपस में बैठ कर कुछ मामले तय कर लेते हैं लेकिन उनका संस्थान तैयार नहीं होता। इस से मुल्क चलाने में समस्या पैदा होती है, यह हमारा बरसों का तजुर्बा है। कोआपरेशन होना चाहिए, ब्लैकमेलिंग न हो, बिला वजह की मुख़ालेफ़त न हो। सरकार के साथ, न्यायपालिका के साथ, दूसरों के साथ क़रीबी कोआपरेशन, बल्कि जिसका भी इन सब कामों से ताअल्लुक़ हो उन सब के साथ मुल्क की तरक़्क़ी के लिए कोआपरेशन होना चाहिए। इन हालात में अगर किसी की कोई ग़लती नज़र आती है तो खुल कर उसे उसकी ग़लती बतायी जाए लेकिन जहां तक हो सके कोआपरेशन करना चाहिए।

इन्क़ेलाबी मेंबर की एक ख़ूबी यह है कि वह आम लोगों के साथ होता है लेकिन आम लोगों का उस पर असर नहीं होता। मैं आप लोगों से कह रहा हूं कि आप कभी भी माहौल का असर लेकर जोश में न आएं। हालिया बरसों में हमारी कुछ परेशानियों की वजह यह थी कि हम माहौल के बहाव में आ गये। मिसाल के तौर पर हम किसी मीटिंग में बैठे हैं, जहां मुल्क के बड़े-बड़े ओहदेदार हैं। यह हो चुका है, मैंने भी उसी वक़्त जब लोग मीटिंग में बैठे थे एतेराज़ किया। या मिसाल के तौर पर युनिवर्सिटी के टीचर्स भी वहां हों, किसी ने कुछ कह दिया, तो किसी दूसरे ने उठ कर वहीं उसी मीटिंग में एक बड़ी सहूलत देने का एलान कर दिया जो मुनासिब भी नहीं थी, इसे कहते हैं माहौल के असर में आकर जोश में क़दम उठाना, इसका कोई फ़ायदा नहीं, यह नुक़सानदेह है। लोगों से जुड़ने का मतलब, लोगों के असर में आने और माहौल की वजह से कोई क़दम उठाने से अलग चीज़ है। जी नहीं! इमाम ख़ुमैनी की एक ख़ूबी यही थी, अगर उनकी कोई राय होती और सारे लोग उसके ख़िलाफ़ होते लेकिन उन्हें यक़ीन होता कि उनका नज़रिया, ख़ुदा के हुक्म और दीन के मुताबिक़ है तो वह डट जाते थे। कहते थे कि पूरी दुनिया मेरे ख़िलाफ़ होती है तो हो जाए। क़ुरआने मजीद ने भी पैग़म्बरे इस्लाम को यही हुक्म दिया है। “और अगर तुम दुनिया के अक्सर लोगों की बात मानोगे तो वह तुम्हें अल्लाह की राह से हटा देंगे।” (13) क़ुरआन में यह बात बार बार कही गयी है। इन्क़ेलाबी सांसद वह है कि जो माहौल की वजह से जोश में नहीं आता। आप ने कोई क़ानून पास किया, जो आप की नज़र में सही क़ानून था, कुछ लोगों ने उसकी मुख़ालेफ़त की, यक़ीनी तौर पर तरीक़ा यह है कि आप ग़ौर करें कि जो लोग इस क़ानून के ख़िलाफ़ हैं उनकी बातें तर्किक हैं या नहीं? अगर उनकी दलील सही हो तो आप को क़ुबूल करना चाहिए और अगर दलील सही न हो तो आप डट जाएंगे, कहेंगे जी हां, मैंने पास किया है इस क़ानून को और अपने फ़ैसले पर क़ायम हूं। अगर वेबसाइटों पर, सोशल मीडिया या इस तरह की जगहों पर हमारे ख़िलाफ़, पार्लियामेंट के ख़िलाफ़, इस सिस्टम के ख़िलाफ़, इस क़ानून के ख़िलाफ़ हंगाम खड़ा किया जाए तो  उससे आप को पीछे नहीं हटना चाहिए, पार्लियामेंट के इन्क़ेलाबी मेंबर की एक ख़ासियत यह है।

मुल्क के संविधान का सम्मान भी ज़रूरी है। पार्लियामेंट के मेंबर के लिए एक बहुत अहम चीज़ संविधान के मुताबिक़ काम करना है, जहां जहां संविधान ने कुछ ज़िम्मेदारी डाली है हर हाल में उसे पूरा किया जाना चाहिए। संविधान को कोई भी नुक़सान नहीं पहुंचना चाहिए। अब आप जो क़ानून बनाते हैं वह संविधान के मुताबिक़ है या नहीं, यह ज़िम्मेदारी गार्डियन कौंसिल की है लेकिन कुछ जगहों पर आप ख़ुद यह जायज़ा ले सकते हैं। इसकी बहुत सी मिसालें भी हैं। पार्लियामेंट के एक इन्क़ेलाबी मेंबर की एक निशानी यह भी है और हम तो इन्क़ेलाबी मेंबरों के दोस्त और उनके चाहने वाले हैं।

एक वह चीज़ जो पार्लियामेंट के इन्क़ेलाबी मेंबर की ख़ूबी नहीं है, बीच में बार बार टोकना और जोशीली तक़रीरें करना है। यह जो कुछ लोग बीच में उठ कर तक़रीरें करते हैं और बस एतेराज़ ही करते हैं तो यह किसी भी तरह से पार्लियामेंट के इन्क़ेलाबी मेंबर की पहचान नहीं है। इन्क़ेलाबी मेंबर की पहचान और ख़ूबियां वह हैं जिनका मैंने ज़िक्र किया है और इसी तरह की दूसरी चीज़ें हैं। एतेराज़ करना, ग़ुस्से में आना यह सब काम किसी भी तरह से इन्क़ेलाबी मेंबर होने की निशानी नहीं है।

यक़ीनी तौर पर पिछले दो बरसों में पार्लियामेंट ने अहम काम किये हैं, वही काम जिनका ज़िक्र स्पीकर क़ालीबाफ़ साहब ने किया है,  यह सब बहुत अहम काम हैं। इनमें से कुछ कामों के बारे में हमें ख़ुद भी पूरी तफ़सील का पता है जबकि कुछ दूसरे कामों के बारे में जानकारी तो है लेकिन पूरी तफ़सील नहीं मालूम मगर उसके बारे में, इस प्रदर्शनी में हर काम के बारे में एक कागज़ पर लिखा गया था। उन पर भी मैंने एक नज़र डाली। यह सब बहुत अच्छे काम हैं। क़ानून बनाने के सिलसिले में भी मैं कुछ सिफ़ारिशें करना चाहता हूं।

एक सिफ़ारिश तो यह है कि क़ानून को हर पहलू को परख कर और आगे के बारे में सोच कर बनाएं। अगर कोई भी छोटी बात हो जाए या थोड़ी बड़ी बात भी हो जाए और हम फ़ौरन क़ानून बनाने लगें कि जिसके लिए सरकार के पास भी बिल न हो और हम बिल भी तैयार करें, वैसे मैं बिल के बारे में भी बात करूंगा, तो इससे सिर्फ़ क़ानूनों का ढेर लग जाएगा, क़ानूनों की भरमार हो जाएगी जिसके नतीजे में यह क़ानूनी प्राब्लम्स पैदा होंगीं और फिर हमें क़ानून में सुधार की ज़रूरत होगी, जो आप लोगों ने पिछले दो बरसों से शुरु कर रखा है। मतलब, क़ानूनों का ढेर कोई अच्छी चीज़ नहीं है। पार्लियामेंट जब क़ानून बनाए तो भविष्य पर नज़र रखे, हर पहलू पर नज़र रखे, छोटी छोटी चीज़ों के लिए क़ानून बनाने की ज़रूरत नहीं है। यह तो एक बात है।

दूसरी बात यह है कि उन क़ानूनों को अहम समझना चाहिए जो मुल्क की जनरल पॉलीसियों के अंदर से निकले गए हैं। संविधान के मुताबिक़ मुल्क की जनरल पॉलीसियां, तीनों पालिकाओं को भेजी जाती हैं, मुल्क की यह जनरल पॉलीसियां, हुकूमत, पार्लियामेंट और न्यायपालिका को भेजी जाती हैं और उनमें से हरेक की इन पॉलीसियों के बारे में कुछ ज़िम्मेदारियां होती हैं। पार्लियामेंट की ज़िम्मेदारी यह है कि वह इन पॉलीसियों के मुताबिक़ क़ानून बनाए, क़ानून इन पॉलीसियों के ख़िलाफ़ न हों। जी यह बहुत अहम है, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मैं यह कहना चाहता हूं कि मिसाल के तौर पर इलेक्शन की जनरल पॉलीसियां, जिसकी तरफ़ मेरे ख़्याल में क़ालीबाफ़ साहब ने भी इशारा किया है, पांच छे बरस हो चुके हैं इन पॉलीसियों का नोटीफ़िकेशन जारी हो चुका है। (14) लेकिन अभी तक क़ानून नहीं बना है, यह काम होना चाहिए। या क़ानून साज़ी की जनरल पॉलीसियां (15) इस पर भी काम हुआ है, उनका भी जायज़ा लिया गया है, यह भी मेरे ख़्याल से दो तीन बरस पहले भेजी गयी हैं लेकिन उनकी बुनियाद पर अभी तक कोई क़ानून नहीं बना है। यह भी हमारी एक सिफ़ारिश है। एक दूसरी सिफ़ारिश, प्रस्ताव बनाना है, कभी आप को किसी कमी का एहसास होता है, सरकार भी या तो बिल नहीं भेजती या उसके पास होता ही नहीं, जैसा कि यह हो चुका है। अभी कुछ बरस पहले की बात है पार्लियामेंट बने कुछ वक़्त गुज़र चुका था तो वहां से कुछ लोगों ने मेरे पास आकर शिकायत की कि हुकूमत कोई बिल ही नहीं भेज रही है हमारे पास! पांच छे महीनों में कोई भी बिल नहीं आया। तो ज़ाहिर है पार्लियामेंट की एक ज़िम्मेदारी यही है, जब कोई काम ज़रूरी हो और उसके लिए कोई बिल भी न हो तो पार्लियामेंट को प्रस्ताव तैयार करना चाहिए। यह पार्लियामेंट का हक़ भी है और ज़िम्मेदारी भी है और यह काम यक़ीनी तौर पर संविधान में लिखी गयी शर्तों के साथ होना चाहिए। लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि इस तरह के प्रस्तावों की तादाद बहुत ज़्यादा न होने दें। मतलब यह कि ज़्यादा प्रस्ताव तैयार हों और आगे बढ़ाए जाएं तो इससे मुश्किल पैदा होगी जिसके बारे में मैंने सुना है, मुझे बताया गया है लेकिन इस बारे में मुझे क़ालीबाफ़ साहब से पूछने का मौक़ा नहीं मिला क्योंकि इस पार्लियामेंट में किसी भी दूसरी पार्लियामेंट से ज़्यादा प्रस्ताव तैयार किये गये और उन्हें आगे बढ़ाया गया, यह कोई अच्छा काम नहीं है। आप जब कोई बिल तैयार करते हैं, फिर मिसाल के तौर पर वह पास भी हो जाता है तो उसे हुकूमत के पास भेजा जाता है, मिसाल के तौर पर हुकूमत कहती है कि मैं इस बिल को लागू नहीं कर सकती और किसी भी वजह से सरकार के लिए उसे लागू करना मुमकिन नहीं होता तो इस सूरत में ज़िम्मेदारी, अंधेरे में चली जाती है और इन्सान को पता ही नहीं चलता कि वह हुकूमत से सवाल करे कि क्यों इस क़ानून को लागू नहीं किया गया? या फिर पार्लियामेंट से पूछे कि क्यों ऐसा क़ानून बनाया गया जिसे लागू नहीं किया जा सकता, यह है ज़िम्मेदारियों का अंधेरे में होना।

या प्रस्तावों का ढेर, इस मामले में एक मसला यह है कि जब नयी नयी पार्लियामेंट बनती है तो पिछली पार्लियामेंट के बचे हुए प्रस्तावों को किनारे लगा दिया जाता है। यहां तक कि वह प्रस्ताव भी हटा दिये जाते हैं जिन पर फ़ौरन चर्चा होनी थी। कभी कभी तो उन प्रस्तावों को भी नज़र अदांज़ कर दिया  जाता है जो बहुत ज़रूरी बताए गये थे। मतलब नयी पार्लियामेंट बनने के बाद वह उस प्रस्ताव को  भी अलग हटा देती है जिस पर पिछली पार्लियामेंट के मेंबरों ने बैठ कर सोचा था, जायज़ा लिया था, काम किया था, पास किया था या पास हो रहा था। इतनी मेहनत, इतनी समीक्षा, इतना वक़्त बर्बाद हो जाता है। इसी तरह जब प्रपोज़ल ज़्यादा हो जाता है तो उस पर एक्सपर्ट की राय लेना भी मुश्किल हो जाता है, आप अगर इतने सारे प्रपोज़लों पर एक्सपर्ट्स की राय लेना चाहेंगे तो यह बहुत मुश्किल काम होगा, यह भी एक मसला है।

एक और मसला, बजट का है कि जिसका ज़िक्र क़ालीबाफ़ साहब ने किया है। जी नहीं! सच बात यह है कि बजट में सुधार नहीं हुआ है, यानी बजट का ग़लत ढांचा, सही नहीं किया गया है कि जिसकी कुछ ज़िम्मेदारी हुकूमत पर और कुछ पार्लियामेंट पर आती है। वैसे मुझे यह बात ज़्यादा हुकूमत वालों से कहना चाहिए और मैंने कही भी है, आइंदा भी कहूंगा इन्शाअल्लाह लेकिन आप का भी रोल है। बजट के सिलसिले में पार्लियामेंट एक काम यह कर सकती है कि बजट में घाटे को न बढ़ाए, यानी आमदनी का सही हिसाब और आमदनी के ज़रिए का सही से जायज़ा लिए बिना, ख़र्चे न बढ़ाए जाएं। कभी यह भी होता है कि बजट में जिस आमदनी के बारे में कहा गया होता है वह ख़यालों में ही होती है, आमदनी का ज़रिए सही नहीं होता तो ज़ाहिर है जब काल्पनिक आमदनी होगी और उसकी बुनियाद पर सही वास्तविक ख़र्चों का प्लान तैयार होगा तो इससे बजट में घाटा बढ़ेगा और बजट में घाटा, हर बुराई की जड़ है। हमारे मुल्क की इकोनामी के बहुत से प्राब्लम्स, बजट में घाटे की वजह से हैं, यह भी एक बात है।

एक और बात यह है कि आप पार्लियामेंट में एक्सपर्ट्स के सिस्टम को मज़बूत करें। मैंने एक दो बरस या तीन बरस पहले पार्लियामेंट के रिसर्च सेंटर के बारे में बात की थी और उसकी तारीफ़ की थी। (16) रिसर्च सेंटर बहुत अहम है। जितना हो सके इस सेंटर को मज़बूत करें यानी पार्लियामेंट के रिसर्च सेंटर में और इसी तरह स्पेशल कमीशनों में भी एक्सपर्ट की राय लेने का काम बहुत अच्छी तरह होना चाहिए, यानी पार्लियामेंट में एक्सपर्ट्स का रोल बढ़ाया जाना चाहिए, यह एक बहुत अहम मुद्दा है। मुझे अब भी पूरा इत्मीनान नहीं है लेकिन फिर भी रिसर्च सेंटर के बारे में जो रिपोर्टें मिल रही हैं वह दिल ख़ुश करने वाली नहीं हैं।

    एक दूसरा अहम मुद्दा, सातवां विकास कार्यक्रम है जिसे आप को तैयार करना है। सातवां विकास प्रोग्राम यानी आप अगले पांच बरसों तक मुल्क की ज़िम्मेदारियों को बताएं, सातवां डेवलपमेंट प्रोग्राम एक साल पीछे हो चल रहा है। इसे पिछले बरस ही पूरा हो जाना था लेकिन नहीं हुआ। अस्ल में यह जो तरक़्क़ी के लिए पांच साल के प्रोग्राम होते हैं जिन्हें डेवलपमेंट प्रोग्राम कहा जाता है हालांकि मुझे यह डेवलपमेंट का शब्द बहुत सही नहीं लगता लेकिन बहरहाल कहा यही जाता है। इन प्रोग्रामों में जनरल बातें कहने का कोई फ़ायदा नहीं होता। प्रोग्राम में रास्ता सही तौर पर दिखाया जाना चाहिए और उसे लागू करने वालों के हवाले किया जाना चाहिए। हमारे ख़याल में इसका रास्ता यह है कि सातवें डेवलपमेंट प्रोग्राम में मुद्दों को बुनियाद बनाया जाए यानि इस प्रोग्राम में जो एक चीज़ अहम है वह यह है कि इसमें मुद्दों पर ख़ास तौर पर ध्यान दिया जाए। यक़ीनी तौर पर यह भी हुकूमत की ज़िम्मेदारी है यानी हुकूमत को इस पर ध्यान देना चाहिए। मैं हुकूमत से भी यह बात कहूंगा इन्शाअल्लाह, आप भी  ध्यान दें। मिसाल के तौर पर, खदानों का मामला, खदानों का विषय, हम इस मैदान में बहुत पीछे हैं। हमारे मुल्क में इतनी क़ीमती खदानें हैं लेकिन हमारा मुल्क इन माइन्स की आमदनी से, उनके फ़ायदे से अगर सौ फ़ीसद नहीं तो नब्बे फ़ीसद फ़ायदे से ज़रूर दूर है। बहुत सी खदानों को तो हाथ भी नहीं लगाया गया है और बहुत सी खदानों की चीज़ें यूं ही निकाल कर बाहर भेजी जा रही हैं, वहां से निकलने वाली चीज़ पर कुछ काम किये बिना वैसे ही उन्हें बाहर भेज दिया जाता है। अब देखिए यही खदानों का मामला, यह तो मुल्क में एक अहम मुद्दा है ना! इसके लिए एक दस्तावेज़ तैयार करें। मिसाल के तौर पर माइन्स के दस्तावेज़ या इंडस्ट्री के दस्तावेज़, वह जो इंडस्ट्री के लोग यहां मेरे पास आए थे (17) मैंने उनसे कहा कि मुल्क में इंडस्ट्री का दस्तावेज़ क्या है? हम अगले कुछ बरसों में इंडस्ट्री के मैदान में क्या करना चाहते हैं? वह बुनियादी दस्तावेज़ जिससे यह पता चले कि इंडस्ट्री के मैदान में हमारी स्ट्रैटेजी क्या है? कहां है? हमारे पास ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है। एग्रीकल्चर का भी यही हाल है। इस तरह के दस्तावेज़ बनने चाहिएं, मुल्क के पास मौजूद चीज़ों को मद्दे नज़र रखते हुए, बहुत से और मुद्दों को नज़र में रखते हुए, ज़मीन को इस्तेमाल करने के तरीक़े और प्लान के हिसाब से यह काम करना चाहिए जब ज़मीन के इस्तेमाल के प्लान पर ध्यान नहीं दिया जाता तो फिर हम ऐसी जगह मिसाल के तौर पर कारख़ाने बना देते हैं जहां यह काम नहीं करना चाहिए था या फिर कोई चीज़ ऐसी जगह पर बो देते हैं जहां उस चीज़ को नहीं बोना चाहिए था। यह होता है। इसी तरह माइन्स के मामले में भी होता है। इस बुनियाद पर, मुद्दों की बुनियाद पर प्रोग्राम बनाना, ताकि यह दस्तावेज़ रिसर्च और ज़मीन के इस्तेमाल के प्रोग्राम के मुताबिक हो और उसे बनाने में मुल्क के पास मौजूद संसाधनों और चीज़ों पर भी ध्यान दिया गया हो। अगर यह हो जाए तो यह भी पांच साल के तरक़्क़ी के प्रोग्राम को उपयोगी बनाने का एक तरीक़ा है।

हमारी एक और सिफ़ारिश मीडिया में हालात को बयान करना है। आप कहेंगे कि नेशनल मीडिया तो है! हां ठीक है, उसकी अपनी ज़िम्मेदारियां हैं। कभी उन पर अमल करता है कभी अमल नहीं करता। लेकिन आप की भी अपनी ज़िम्मेदारी है। आप एक क़ानून बनाते हैं, उस पर काम करते हैं, उसकी स्टडी करते हैं, हंगामे के साथ उसे पास करते हैं लेकिन पब्लिक को यह नहीं बताते कि कैसा क़ानून है और क्यों पास हुआ है? और आप, लोगों को उसके बारे में नहीं बताते तो कुछ दूसरे लोगों को यह मौक़ा मिल जाता है कि वह उस क़ानून के ख़िलाफ़ माहौल बनाएं, हंगामा खड़ा करें और आप को क़ानून बनाने पर पछताने पर मजबूर कर दें! यही होता है। इस बुनियाद पर मीडिया में क़ानूनों के बारे विवरण देना भी उन कामों में शामिल हैं जो आप पार्लियामेंट वालों को ख़ुद करना चाहिए। एक और चीज़ जो मेरी नज़र में अहम है वह ऑडिट कोर्ट का मुद्दा है। ख़ुदा के शुक्र से हालिया बरसों में ऑडिट कोर्ट, तेज़, एक्टिव और बेहतर हुई है यानी बजट के बारे में उसकी रिपोर्ट सही वक़्त पर बहुत जल्द और अच्छी तरह से पेश कर दी जाती है। यह बहुत अच्छी चीज़ है और हालिया दिनों में तो वह सरकारी कंपनियों का भी जायज़ा ले रही है। यह काम जारी रहना चाहिए। ऑडिट कोर्ट कुछ ख़ास सरकारी कंपनियों पर ध्यान देती है। लेकिन अगर यह काम सभी सरकारी कंपनियों के बारे में किया जाए हालांकि अभी यह एक राय है जिसका मैं ज़िक्र कर रहा हूं इस का जायज़ा लिये जाने की ज़रूरत है लेकिन अगर यह काम किया जाए तो आप की पार्लियामेंट का एक बहुत बड़ा कारनामा होगा।

एक और ज़रूरी सिफ़ारिश भी कर दूं, हालांकि क़ालीबाफ़ साहब ने जब हम अदंर आ रहे थे तो हम से कहा कि आप ने नियुक्तियों के मामले में पार्लियामेंट के मेंबरों के रोल के बारे में कुछ कहा था (18) जिससे हमारे कुछ दोस्तों को तकलीफ़ पहुंची थी। मैं आप लोगों को तकलीफ़ नहीं पहुंचाना चाहता और न ही मुझे यह अच्छा लगता है। दरअस्ल आप लोगों को मैं बहुत चाहता हूं, आप की भलाई चाहता हूं, ओहदों के मामले में आप लोगों को वाक़ई दख़ल नहीं देना चाहिए। हां! इन्होंने बताया कि कुछ साथियों को यह बात पसंद नहीं आयी। नहीं! यह नहीं होना चाहिए, आप मिसाल के तौर पर यह सोचें कि जब आप किसी डायरेक्टर, या ओहदेदार या किसी गर्वनर या इस तरह के किसी ओहदेदार के बारे में मिनिस्टर के सामने नाम पेश करते हैं। या ख़ुदा न करे मिनिस्टर पर दबाव डालते हैं, तो इससे यह होता है कि अगर वह अफ़सर ग़लत काम करे, तो इन्सान को पता नहीं चलता कि वह किसे ज़िम्मेदार समझे?! न अवाम को मालूम होता है, न जूडीशरी को पता होता है कि उस मिनिस्टर का गिरेबान पकड़ना चाहिए कि क्यों इस आदमी को ओहदा दिया या पार्लियामेंट के उस मेंबर का कि क्यों दबाव डाल कर ओहदा दिलाया? क्यों यह काम किया?

संविधान का एक अहम मुद्दा, अलग अलग इदारों को अपना काम करने की आज़ादी है। यानी आप दूसरे को अपना काम करने दें और ख़ुद आप अपना काम करें। अगर कोई कमी है तो उसे सही और ज़रूरी तरीक़े से पेश करें। यक़ीनी तौर पर मैंने सरकार में बैठे लोगों से भी हमेशा यही सिफ़ारिश की है। पहले भी यही सिफ़ारिश की है और आज भी कर रहा हूं कि उन्हें पार्लियामेंट के मेंबरों की राय और नज़रिये से फ़ायदा उठाना चाहिए। मेंबर उसी शहर से होता है यानि शहर को अच्छी तरह से जानता है, वहां के मुद्दों को जानता है इस लिए उससे मशविरा करना बहुत अच्छा है। यह काम होना चाहिए और आप को भी यह काम करना चाहिए मेरे ख़्याल में यह अहम है।

एक और बात, लोगों की इज़्ज़त की है, लोगों की इज़्ज़त का ख़याल रखें। मिसाल के तौर पर आप पार्लियामेंट में तक़रीर करते हैं, पार्लियामेंट का माइक हो या फिर कोई वेबसाइट और सोशल मीडिया हो, कोई फ़र्क़ नहीं, यह पार्लियामेंट एक अहम और ज़िम्मेदारी वाली जगह है। कभी कभी यहां के माइक पर किसी के बारे में ऐसी बातें कही जाती हैं जिसकी जांच पड़ताल नहीं की गयी होती है! इस काम का बोझ और दाग़ हटने और मिटने वाला नहीं है, आप इस दाग़ को कैसे साफ़ करेंगे? अगर बाद में यह साबित हो गया कि आप की बात ग़लत थी, तो आप इसकी भरपाई कैसे करेंगे? यह बहुत मुश्किल काम है, भरपाई हो सकती है लेकिन बहुत मुश्किल है, ख़याल रखें कि यह काम न होने पाए।

मेरी आख़िरी बात यह है कि मेरे प्यारे भाईयो! प्यारी बहनो! आप सब ज़िम्मेदार हैं, इन्सान की ज़िम्मेदारियां जितनी बढ़ती जाती हैं, उसे अल्लाह से उतना ही ज़्यादा दुआ करनी चाहिए और मदद मांगनी चाहिए। इबादत, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाना, दुआ, अल्लाह से मदद और क़ुरआने मजीद की तिलावत को कभी न भूलिए, यह बहुत ज़रूरी कामों में से है। इस से आप को मदद मिलेगी, इससे आप अल्लाह और उसके बंदों के सामने इज़्ज़तदार बनेंगे। अल्लाह से मदद मांगिए, इमामों से शिफ़ाअत की दुआ कीजिए, इमामों के वसीले से अल्लाह से दुआ कीजिए, अल्लाह आप को बरकत अता करेगा, दुआ है कि अल्लाह आप सब को कामयाब करे।

पालने वाले! तुझे मुहम्मद व आले मुहम्मद का वास्ता है  हमें अपनी ज़िम्मेदारियों से आगाह रख और हमें अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी करने की तौफ़ीक़ दे। पालने वाले! जो बातें हमने की हैं और जो बातें हमने सुनी हैं, इन सारी बातों को अपने लिए और अपनी राह में क़रार दे और इसे हमारे कामों में तरक़्क़ी की वजह बना दे। पालने वाले! इमाम ख़ुमैनी और  शहीदों की पाकीज़ा रूहों और परसों शहीद होने वाले हमारे शहीद (19) की रूह का हिसाब किताब जो मियाना के थे, पैग़म्बरे इस्लाम के साथ कर और उनके दरजात को बुलंद कर।

वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहू।

  1. शुरु में इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की पार्लियामेंट के स्पीकर मुहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ ने एक रिपोर्ट पेश की
  2.  छापामार जंग का हेडक्वार्टर
  3. सूरए सफ़, आयत 10 से 13
  4. सूरए आले इमरान आयत 194 और 195
  5. मिस्बाहुलमुतहज्जिद व सेलाहुल मुतअब्बिद, जिल्द 2 पेज 844, दुआए कुमैल
  6.  रिसर्च और तहक़ीक़
  7. शाहनामे की मशहूर कहानी का ज़िक्र किया है जिसमें इस्फंदयार की एक ही कमज़ोरी उसकी आंखें थीं।
  8. सूरए हूद, आयत 112
  9.  अलमीज़ान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन जिल्द 6 पेज 338
  10. इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े की गैलरी में ग्यारहवीं पार्लियामेंट के कामों की झलकियां पेश की गयीं।  
  11. सूरए अहज़ाब आयत 72
  12. हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की विलादत के दिन क़सीदा पढ़ने वालों और शायरों से मुलाक़ात में भी यह कहा था। 1 जून 2021
  13. सूरए अनआम, आयत 116
  14. 15 अकतूबर 2016
  15. 28 सितम्बर 2019
  16. 12 जुलाई 2020 को सांसदों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए होने वाली मुलाक़ात में भी कहा था।
  17. 30 जनवरी 2022 को इंडस्ट्री के मैदान में काम करने वालों से मुलाक़ात में अपनी तक़रीर का ज़िक्र किया है।
  18. 27 मई 2021 को पार्लियामेंट के मेंबरों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए होने वाली मुलाक़ात में भी कहा था।
  19. मेजर जनरल हसन सैयाद ख़ुदाई को 22 मई सन 2022 को उनके घर के सामने आतंकवादियों ने पांच गोली मार कर शहीद कर दिया था।