इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने एक संदेश जारी करके आलिमे रब्बानी और आरिफ़े ख़ुदा आयतुल्लाह शैख़ मुहम्मद अली नासेरी के इंतेक़ाल पर शोक जताया है।
शहीद के ख़ून को ज़िंदा रखने की मशक़्क़त ख़ुद शहादत पेश करने से कम नहीं है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का 30 तक चलने वाला जेहाद और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का कई साल का संघर्ष इसकी मिसाल है। इस ख़ून को ज़िंदा रखने के लिए मशक़्क़तें उठाईं।
इमाम ख़ामेनेई
7 मई 1997
युक्रेन के मसले में सबने यूरोप की नस्ल परस्ती देखी। वे खुले आम इस बात पर दुख ज़ाहिर करते हैं कि इस बार जंग मध्यपूर्व में नहीं बल्कि यूरोप में छिड़ गयी है। दूसरे लफ़्ज़ों में यूं कहें कि अगर जंग और क़त्लेआम मध्यपूर्व में हो तो ठीक है।
जिस तरह साउथ लेबनान 22 साल बाद वापस मिला उसी तरह #फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा हिस्से भी वापस मिलेंगे और पूरा मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन फ़िलिस्तीनी क़ौम के पास लौटेगा।
इमाम ख़ामेनेई
3 जून 2000
तहरीके जेहादे इस्लामी ने अपने शुजाआना रेज़िस्टेंस से ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़ा करने वाली हुकूमत के मंसूबों पर पानी फेर दिया और साबित कर दिया कि रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के नेटवर्क का हर हिस्सा अकेले भी दुश्मन की नाक ज़मीन पर रगड़ देने की सलाहियत रखता है।
इमाम ख़ामेनेई
11 अगस्त 2022
क़ाबिज़ (अतिग्रहणकारी) दुश्मन का पतन हो रहा है और फ़िलिस्तीन की रेज़िस्टेंस की ताक़त बढ़ रही है ‘और बेशक अल्लाह की क़ूवत व ताक़त के बिना कोई क़ूवत व ताक़त नहीं।’ हम बदस्तूर आपके साथ हैं। आप पर सलाम हो और अह्द व पैमान अपनी जगह क़ायम हैं।
इमाम ख़ामेनेई
11 अगस्त 2022
शीया समुदाय के पैकर में आशूर की तपिश नुमायां है। हम देख रहे हैं कि हर जगह शीयों में नज़र आने वाली यह गर्मी उन शोलों से निकली है जिनकी लपटें उस मुक़द्दस रूह और मूल्यवान मिट्टी से उठ रही हैं। यह लोगों की रूहों में समा जाती हैं और इंसानों को दहकती गोलियों में तब्दील करके उनसे दुश्मन के दिल को निशाना बनाती हैं।
इमाम ख़ामेनेई
17 मार्च 1974
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फ़िलिस्तीन के इस्लामी जेहाद संगठन के सेक्रेट्री जनरल ज़्याद नोख़ाला के ख़त के जवाब इस्लामी जेहाद वीरता भरी द्रढ़ता को फ़िलिस्तीन के रेज़िस्टेंस नेटवर्क में इस संगठन का महत्व और बढ़ जाने, ज़ायोनी शासन की साज़िश पर पानी फिर जाने और उसकी नाक मिट्टी में रगड़ दिए जाने का सबब बताया और सभी फ़िलिस्तीनी संगठनों के बीच एकता व एकजुटता बने रहने पर ताकीद करते हुए कहा: क़ाबिज़ दुश्मन कमज़ोर और फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस मज़बूत हो रहा है।
इमाम हुसैन को हमेशा हक़ और सत्य के परचम के तौर पर बाक़ी रहना चाहिए। सच्चाई का परचम कभी बातिल की सफ़ में शामिल नहीं हो सकता और बातिल का रंग क़ुबूल नहीं कर सकता। यही वजह थी कि इमाम हुसैन ने फ़रमाया थाः ‘मोहाल है कि हम ज़िल्लत बर्दाश्त कर लें।’ गर्व उस इंसान, मिल्लत और समूह का हक़ है जो अपनी बात पर क़ायम रहे और जिस परचम को बुलंद किया है उसे तूफ़ानों में मिटने और गिरने न दे। इमाम हुसैन ने इस परचम को मज़बूती से थामे रखा और अपने अज़ीज़ों की शहादत और अहले हरम का क़ैदी बनना भी गवारा किया।
इमाम ख़ामेनेई
29 मार्च 2002
शबे तासूआ (नवीं मुहर्रम की रात) इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मजलिसे अज़ा इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयोजित हुई जिसमें इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शिरकत की।
मातमी अंजुमनों की मरकज़ी कमेटी, तेहरान प्रांत की मातमी अंजुमनों के ज़िम्मेदारों और तेहरान प्रांत की तबलीग़ी महिलाओं ने 3 अगस्त 1994 को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मातमी अंजुमनों, इमाम हुसैन के आंदोलन और दीनदारी के विषय पर बड़े अहम बिंदु बयान किए। (1)
तक़रीर निम्नलिखित हैः
अगर वे 72 लोग भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ न होते तब भी इमाम हुसैन की तहरीक रुकने वाली नहीं थी। यह एक सबक़ है। इमाम हुसैन से हमें यह सबक़ लेना चाहिए कि अल्लाह की राह में जेहाद को सख़्तियों और तनहाई के सबब छोड़ना नहीं चाहिए।
इस फ़रीज़े और वाजिब को तनहा पड़ जाने, तादाद कम होने और वतन से दूर होने, साथियों के न होने और दुश्मन सामने मौजूद होने के सबब छोड़ना नहीं चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
13 अगस्त 1988
इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी की पहली रात की मजलिस हुई जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शिरकत की।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों की शहादत के अवसर पर तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मजलिसें होंगी जिनमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई भी शरीक होंगे।
200 साल से पश्चिम यही कह रहा है कि औरत अख़लाक़ी, दीनी और लेबास की क़ैद से अगर आज़ाद न हो तो तरक़्क़ी नहीं कर पाएगी। इल्मी, समाजी और सियासी मक़ाम पर नहीं पहुंच पाएगी। ईरानी महिलाओं ने इसे ग़लत साबित किया। अहम और संवेदनशील केन्द्रों में महिला वैज्ञानिक योगदान दे रही हैं।
इमाम ख़ामेनेई
27 जुलाई 2022