इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 24 मई 2023 को सांसदों से मुलाक़ात में तक़रीर करते हुए विधायिका की अहमियत, ज़िम्मेदारियों, कार्यशैली सहित अनेक विषयों पर बात की। उन्होंने विधायी प्रक्रिया के बारे में बड़े अहम बिंदुओं पर प्रकाश डाला और कुछ अनुशंसाएं कीं। (1)
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने देश के अधिकारियों से रमज़ान मुबारक की अपनी मुलाक़ात में, अमरीका के पतन की हालत की ओर इशारा करते हुए कहाः “मैंने कहा कि हमारे मुक़ाबले में मौजूद मोर्चा कमज़ोर हो रहा है जिसकी मिसालें मैं अभी पेश करुंगा। विश्व स्तर पर हमारा सबसे बड़ा विरोधी अमरीका ही तो है। ओबामा का अमरीका, बुश के अमरीका की तुलना में कमज़ोर था, ट्रम्प का अमरीका, ओबामा के अमरीका से कमज़ोर था, इन साहब (बाइडेन) का अमरीका, ट्रम्प के अमरीका से ज़्यादा कमज़ोर है।” (4/4/2023)
इस्लाम नस्लों के बीच समानता का अमली तौर पर पैग़ाम देता है। हज में काले भी हैं, गोरे भी हैं। दुनिया के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों, दुनिया की मुख़्तलिफ़ तहज़ीबों और अलग अलग ऐतिहासिक बैक ग्राउंड के लोग सब एक दूसरे के साथ होते हैं। यह हज के अहम रहस्यों में से है।
इमाम ख़ामेनेई
17 मई 2023
अगर आप ने एक दिन देखा कि, अल्लाह वह दिन कभी न लाए, कोई हज पर जाने वाला नहीं है, तो आप पर वाजिब है कि हज के लिए जाएं, चाहे इससे पहले आप दस बार हज कर चुके हों। इस घर, इस असली व बुनियादी केन्द्र को कभी भी ख़ाली नहीं रहना चाहिए। "लोगों को सहारा देने वाली बुनियाद" यह इबारत बहुत अहम है।
दिलचस्प बात यह है कि क़ुम शहर की पैदाइश भी एक जेहादी ऐक्शन का नतीजा है जो बसीरत के साथ अंजाम दिया गया। यानी अशअरियों का ख़ानदान जब यहां आया और इस इलाक़े में बस गया तो अस्ल में उसने अहले बैत अलैहेमुस्सलाम की शिक्षाओं को फैलाने के लिए एक कल्चरल अभियान चलाया था। अशअरियों ने इससे पहले कि वे क़ुम आएं, जंग के मैदान में जेहादी कारनामे भी अंजाम दिए थे। अशअरियों के बुज़ुर्ग जनाब ज़ैद बिन अली (अलैहिस्सलाम) के नेतृत्व में जेहाद किया था। यही वजह थी कि हज्जाज बिन यूसुफ़ उनका दुश्मन हो गया और ये लोग यहां आने पर मजबूर हुए। उन्होंने अपनी कोशिशों से, अपनी बसीरत से, अपने इल्म से इस इलाक़े को इल्म का केन्द्र बनाया और यही चीज़ इस बात का कारण बनी कि हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा जब इस इलाक़े में पहुंचीं तो आपने क़ुम आने की इच्छा ज़ाहिर की। यहां उन्हीं अशअरियों के बुज़ुर्गों की वजह से लोग गए, उनका स्वागत किया,हज़रत मासूमए (क़ुम) को इस शहर में ले आए और यह आध्यात्मिक जगह उस दिन से इस महान हस्ती की वफ़ात के बाद से ही क़ुम शहर में रौशनी बिखेर रही है। क़ुम के लोगों ने जिनकी वजह से वह महा सांस्कृतिक आंदोलन वजूद में आया था, उसी दिन से इस शहर में अहले बैत अलैहेमुस्सलाम की शिक्षाओं को फैलाने का केन्द्र क़ायम किया और सैकड़ों विद्वानों, धर्मगुरुओं, मोहद्दिसों, मोफ़स्सिरों और इस्लाम व क़ुरआन के प्रचारकों को इस्लामी जगत के पूरब व पश्चिम में रवाना किया। क़ुम से ही ख़ुरासान के इलाक़े, इराक़ और सीरिया के विभिन्न हिस्सों में इल्म फैला। पहले दिन से क़ुम वालों की बसीरत इस सतह की है, क्योंकि क़ुम की पैदाइश ही जेहाद और बसीरत की बुनियाद पर हुई है।
इमाम ख़ामेनेई
19 अक्तूबर 2010
रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने संविधान के आर्टिकल 176 के तहत एक फ़रमान जारी करके जनरल अली अकबर अहमदियान को नेश्नल सेक्युरिटी की सुप्रीम काउंसिल में अपना नुमाइंदा नियुक्त किया।
फ़रमान इस तरह हैः
रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने एक फ़रमान जारी करके जनाब अली शमख़ानी को इस्लामी व्यवस्था हित समीक्षक काउंसिल (Expediency Discernment Council) का सदस्य और रहबरे इंक़ेलाब का सियासी सलाहकार नियुक्त किया।
फ़रमान इस तरह हैः
मेरी ताकीद है कि अलग अलग एज ग्रुप के बच्चों के लिए जहाँ तक मुमकिन हो किताबें तैयार करें और इस सिलसिले में हमें ग़ैरों की किताबों की ज़रूरत न पड़े। ताकि हम इंशाअल्लाह अपनी दिशा और अपने मक़सद के साथ किताबें अपने बच्चों को दे सकें।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों, राजदूतों और विदेशों में मौजूद प्रतिनिधि कार्यालयों के प्रमुखों से मुलाक़ात में, सफल विदेश नीति के उसूलों व पैमानों को बयान किया।
जब हम कहते हैं वेक़ार तो इसका मतलब है ख़ुशामद की डिप्लोमेसी को नकारना। दूसरों के इशारों और बयानों से आस लगाने को नकार देना। फ़ुलां मुल्क की फ़ुलां बड़ी और पुरानी राजनैतिक हस्ती ने यह बयान दे दिया, यह राय दे दी। वेक़ार यानी हम इन चीज़ों के आसरे पर न रहें। हम अपने उसूलों पर भरोसा करें।
क़ुरआन में हज के बारे में कई आयतें हैं। एक सूरए मायदा की आयत है जिसमें अल्लाह कहता है किः "ख़ुदा ने काबा को जो एहतेराम वाला घर है लोगों की मज़बूती और कामयाबी का मरकज़ बनाया है।" मायदा 97
ख़ुदा ने काबे को समाज की बक़ा और मज़बूती का ज़रिया बनाया है। यह बहुत अहम है। यानी अगर हज का वजूद न हो और हज अंजाम न पाए तो इस्लामी उम्मत और इस्लामी समाज बिखर जाएगा।
दूसरी सूरए हज की आयत हैः "और लोगों में हज का एलान कर दो कि लोग (आपकी आवाज़ पर लब्बैक कहते हुए) आपके पास आएंगे। पैदल और हर दुबली सवारी पर कि वो सवारियां दूरदराज़ से आई हुई होंगी। ताकि वो अपने फ़ायदों के लिए हाज़िर हों।" सूरए हज 27 व 28
क़ौम, उम्मते इस्लामी, अवाम, दुनिया के कोने कोने से हज के लिए आएं ताकि अपनी आंखों से अपने फ़ायदों को देखें। फ़ायदों की आमाजगाह में ख़ुद मौजूद हों।
इमाम ख़ामनेई
17 मई 2023
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने हज संस्था के अधिकारियों, कर्मचारियों और कुछ हाजियों से मुलाक़ात में हज के बारे में सही नज़रिये और इस अहम फ़रीज़े के बारे में सही समझ पर बल दिया और कहा कि हज एक विश्वस्तरीय व सभ्यता से संबंधित विषय है जिसका मक़सद इस्लामी जगत का उत्थान, मुसलमानों के दिलों को एक दूसरे के क़रीब लाना और कुफ़्र, ज़ुल्म, साम्राज्यवाद, इंसानी और ग़ैर इंसानी बुतों के ख़िलाफ़ इस्लामी जगत की एकता है।
वह मक़सद इस्लामी उम्मत का इत्तेहाद है। किस के मुक़ाबले में? कुफ़्र के मुक़ाबले में, ज़ुल्म के मुक़ाबले में, इम्पेरियलिस्ट ताक़तों के मुक़ाबले में, इंसानी व ग़ैर इंसानी बुतों के मुक़ाबले में। उन तमाम चीज़ों के मुक़ाबले में जिन्हें ख़त्म करने के लिए इस्लाम आया।
हज के लिए रवानगी से पहले हज संस्था के अधिकारियों, कार्यकर्ताओं और कुछ हाजियों ने रहबरे इंक़ेलाबे इस्लामी से मुलाक़ात की। 17 मई 2023 को होने वाली इस मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हज में छिपे गहरे अर्थों और तालीमात और फ़ायदों पर रौशनी डाली और ज़िम्मेदारियों के सिलसिले में कुछ निर्देश दिए।
बीवी के रोल में औरत सबसे पहले तो सुकून की प्रतीक है। और उसी (की जिन्स) से उसका जोड़ा क़रार दिया ताकि (उसके साथ रहकर) सुकून हासिल करे। (सूरए आराफ़ 189) क्योंकि ज़िंदगी में उतार चढ़ाव होता है। मर्द ज़िंदगी के समंदर में कामों और थपेड़ों से रूबरू होता है। जब घर आता है तो उसे सुकून और चैन की ज़रूरत होती है। घर में यह सुकून औरत पैदा करती है।
इमाम ख़ामेनेई
4 जनवरी 2023
मुल्क का कल्चर बनाने के लिए हमेशा किताब की ज़रूरत होती है। अगरचे आज बहुत से दूसरे साधन भी आ गए हैं, जैसे सोशल मीडिया वग़ैरह है, लेकिन किताब अब भी अपनी जगह बहुत अहम और आला दर्जा रखती है।
सही अर्थों में ज़ायोनी सरकार राजनैतिक अस्थिरता में घिरी हुयी है। उनके अधिकारी बार बार चेतावनी दे रहे हैं कि बहुत जल्द बिखराव होने वाला है। उनका राष्ट्रपति कह रहा है, उनका पूर्व प्रधान मंत्री कह रहा है, उनका सुरक्षा विभाग का प्रमुख कह रहा है, उनका रक्षा मंत्री कह रहा है, वे सभी कह रहे हैं कि जल्द ही बिखर जाएंगे और हम 80 साल के नहीं हो पाएंगे। हमने कहा था, ʺतुम अगले 25 साल नहीं देख पाओगेʺ लेकिन उनको तो (मिट जाने की) और भी जल्दी पड़ी है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने रविवार की सुबह 34वें तेहरान इंटरनेश्नल बुक फ़ेयर का मुआयना किया। आपने तीन घंटे इमाम ख़ुमैनी मुसल्ला में आयोजित बुक फ़ेयर में गुज़ारे।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने तेहरान में 34वें इंटरनेश्नल बुक फ़ेयर में आज तीन घंटे गुज़ारे। उन्होंने मीडिया और आर्ट के मैदान में काम करने वालों को भी किताब पढ़ने की सिफ़ारिश की।
आईआरआईबी पत्रकारः सलाम अर्ज़ है, मेज़ाज कैसा है
आप आर्थिक मामलों को बहुत ज़्यादा अहमियत देने के साथ ही, पिछले बरसों की तरह इस साल भी एक व्यवहारिक क़दम के तौर पर तेहरान इंटरनैश्नल बुक फ़ेयर में तशरीफ़ लाए।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने हालिया कुछ बरसों में कुछ अरब मुल्कों के ज़ायोनी हुकूमत से समझौते करने के ख़िलाफ़ बार बार स्टैंड लिया और इसे इस्लाम और मुसलमानों से ग़द्दारी बताया।
स्कूलों में दिलचस्प प्रशैक्षिक (तरबियती) प्रोग्राम होने चाहिए। राष्ट्रीय पहचान को मज़बूत बनाना, वतन दोस्ती के जज़्बे को मज़बूत करना, राष्ट्र ध्वज को मज़बूत करना और इस्लामी तर्ज़े ज़िंदगी सिखाना सबसे महत्वपूर्ण कामों में शामिल हैं जिन्हें अंजाम दिया जाना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
2 मई 2023