28/12/2022
बहुत कम मुद्दत के अंदर पैग़म्बरे इस्लाम के दिल को हज़रत ख़दीजा और हज़रत अबू तालिब की वफ़ात से दो गहरे सदमे पहुंचे। पैग़म्बर को शिद्दत से तनहाई का एहसास हुआ। उन दिनों हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा सहारा बनीं और अपने नन्हें हाथों से पैग़म्बर के चेहरे पर पड़ी दुख और पीड़ा की गर्द हटाई। उम्मे अबीहा यानी अपने वालिद की मां, पैग़म्बर की ढारस बंधाने वाली। यह लक़ब उसी दौर का है। इमाम ख़ामेनेई 24 नवम्बर 1994
27/12/2022
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की मुनासेबत पर तेरहान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में सोमवार की रात मजलिस हुयी, जिसमें इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई और सीमित तादाद में अवाम शरीक हुए।
27/12/2022
रवायतों में नज़र आता है कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के पास बस नबूवत व इमामत की ज़िम्मेदारी नहीं थी वरना रूहानी बुलंदी के एतेबार से उनमें और पैग़म्बर व अमीरुल मोमेनीन अलैहिमुस्सलाम में कोई फ़र्क़ न था। इससे औरत के बारे में इस्लाम के नज़रिए का पता चलता है। एक औरत इस मक़ाम पर पहुंच सकती है वह भी इस नौजवानी की उम्र में। इमाम ख़ामेनेई 29 नवम्बर 1993
26/12/2022
यह रिवायत, जिसे कभी इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने भी नक़्ल किया था कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के इंतेक़ाल के बाद, जिबरईल हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के पास आते थे, एक सही रवायत है।
26/12/2022
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामतुल्लाह अलैहा की शहादत की मुनासेबत से दूसरी मजलिस कल रात तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में हुई।
26/12/2022
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता की मुख़्तलिफ़ मौक़ों की तक़रीरों की रौश्नी में हज़रत ज़हरा की शख़्सियत और सीरत का जायज़ा
26/12/2022
अल्लाह के करम से इस्लामी इंक़ेलाब के बाद हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का नाम इंक़ेलाब से पहले के दौर की तुलना में दस गुना नहीं दर्जनों बल्कि सैकड़ों गुना ज़्यादा दोहराया जाता है। यानी समाज फ़ातेमी समाज बन चुका है। इमाम ख़ामेनेई 23 जनवरी 2022
09/12/2022
इमाम हसन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि शबे जुमा थी। मेरी वालेदा मुसल्ले पर खड़ी हुईं और पूरी रात सुबह तक इबादत करती रहीं। वालेदा रात की शुरुआत से सुबह तक इबादत, दुआ और मुनाजातें करती रहीं। इमाम हसन फ़रमाते हैं कि मैंने सुना की वो मुसलसल मोमेनीन और मोमेनात के लिए दुआ करती रहीं, लोगों के लिए दुआ करती रहीं, इस्लामी दुनिया के मसलों के लिए दुआ करती रहीं। सुबह हुई तो मैंने कहा कि आपने एक दुआ भी अपने लिए नहीं मांगी। शुरू से आख़िर तक पूरी रात दुआएं कीं दूसरों के लिए?! उन्होंने जवाब दिया कि मेरे बेटे पहले पड़ोसी फिर ख़ुद। यह अज़ीम जज़्बा है। इमाम ख़ामेनेई 16 दसिम्बर 1992
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