यह जो 'हल अता' सूरे में अल्लाह, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और उनके घराने के अमल का ज़िक्र करता है, यह बहुत अहम चीज़ है। यह एक परचम है जो क़ुरआन मजीद बुलंद करता है, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के दरवाज़े पर यह परचम लहराता हैः (हम तो सिर्फ़ अल्लाह की ख़ुशी के लिए तुम्हें खिलाते हैं और उसके बदले में तुमसे कोई अज्र चाहते हैं और न ही शुक्रिया, सूरए इंसान आयात-9) अल्लाह के लिए काम, ख़ुलूस, बिना किसी एक्सपेक्टेशन के खिदमत, किस की? यतीम, फ़क़ीर और क़ैदी की, तो क्या ये क़ैदी मुसलमान था? इस बात की संभावना बहुत कम है कि उस वक़्त कोई मुसलमान क़ैदी रहा हो। बिना एहसान जताए ख़िदमत, यह सबक़ है, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का परचम यह है, क़ुरआन मजीद उसकी अज़मत को बयान कर रहा है। या मोबाहले की आयत में: ʺअपनी अपनी औरतों कोʺ (सूरे आले इमरान, आयत-61) हालांकि पैग़मम्बरे इस्लाम के अतराफ़ में बहुत सी औरतें थीं। उनकी बीवियां थीं और उनकी क़रीबी औरतें थी। लेकिन ʺअपनी औरतोंʺ से मुराद सिर्फ़ हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं, क्यों? असत्य के मोर्चे से सत्य के मोर्चे के टकराव का हिस्सा बनने के लिए यह चयन हुआ है, बात यह है। फ़ातेमा ज़हरा, इन ग़ैर मामूली सच्चाइयों का प्रतीक हैं। हज़रत ज़हरा के फ़ज़ाएल ये हैं।

इमाम ख़ामेनेई

23/1/2022