प्रतिरोध और डट जाने की विशेषता, ये वो चीज़ है जिसने इमाम ख़ुमैनी को एक नज़रिए के रूप में, एक विचारधारा की शक्ल में, एक सोच के तौर पर और एक रास्ते की हैसियत से पहचनवाया।
अगर घर के अंदर औरत को मानसिक और नैतिक शांति हासिल हो, सुकून और चैन हासिल हो, शौहर वाक़ई बीवी के लिए ‘लिबास’ का किरदार अदा कर रहा हो और इसी तरह बीवी भी शौहर के लिए ‘लिबास’ की भूमिका निभा रही हो। दोनों के बीच उसी अंदाज़ की मुहब्बत हो जिस पर क़ुरआन ने ताकीद की है।
अगर ख़ानदान के अंदर इस क़ुरआनी उसूल पर अमल किया जा रहा हो कि उनको जितनी ज़िम्मेदारी दी गई है उसी मात्रा में उन्हें साधन और अधिकार भी मुहैया कराए जाएं तो ख़ानदान से बाहर का वातावरण और हालात महिला के लिए सहन करने योग्य होंगे। वह उन हालात का सामना कर ले जाएगी।
अगर औरत अपने आवास के अंदर, अपने असली मोर्चे के भीतर अपनी मुश्किलों को कम करने में कामयाब हो जाए तो यक़ीनन समाज के स्तर पर भी वह इसमें कामयाब होगी।
इमाम ख़ामेनेई
4 जनवरी 2012
फ़िलिस्तीन का मसला हल करने और इस पुराने घाव को ठीक करने के लिए इस्लामी गणराज्य ईरान का सुझाव बिल्कुल साफ़, तर्कपूर्ण और विश्व जनमत के स्तर पर मान्य राजनैतिक पैमानों के मुताबिक़ है जिसे पहले भी विस्तार से पेश किया जा चुका है।
इस्तेग़फ़ार के बारे में हमारी सोच सिर्फ़ यह न हो कि यह केवल व्यक्तिगत गुनाहों की माफ़ी और हमारे दिलों की पाकीज़गी के लिए है। इस्तेग़फ़ार का राष्ट्रीय स्तर के मैदानों में, सामाजिक मैदानों में गहरा असर है और यह हमें बड़ी बड़ी कामयाबियां दिलाता है।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और उनके ज़माने के ख़लीफ़ाओं के बीच होने वाले जंग में जिसे ज़ाहिरी और निहित दोनों रूप में फ़तह मिली, वह इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम थे। उनके बारे में बात करते समय यह बिंदु हमारे मद्देनज़र रहना चाहिए।
हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व और पैग़म्बरी के बारे में इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई के कुछ चुनिंदा जुमले इस महान पैग़म्बर के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में पेश किए जा रहे हैं।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की दुखद घटना के बाद लगभग 34 साल उस समय के इस्लामी माहौल में जीवन बिताया और उनका यह जीवन हर तरह से पाठ है। काश जो लोग, इस जीवन की बेजोड़ विशेषताओं को जानते हैं, वे इसे लोगों के लिए, मुसलमानों बल्कि ग़ैर मुस्लिमों के लिए बयान करते ताकि मालूम होता कि कर्बला की घटना के बाद जो, (दुष्ट यज़ीद की तरफ़ से) सच्चे इस्लाम के शरीर पर एक गहरा वार थी, चौथे इमाम ने किस तरह प्रतिरोध करके धर्म को ख़त्म होने से बचाया है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हज़रत के बारे में आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई के संबोधनों के कुछ चुनिंदा हिस्से पेश किए जा रहे हैं।
अगर कोई किसी बीमार के पास पूरी ज़िम्मेदारी के साथ दो घंटे बैठे, तब उसकी समझ में आएगा कि उस नर्स का क्या हाल होता होगा जिसे अलग अलग रोगियों के साथ दिन और रात के कई कई घंटे बिताने होते हैं?