रमज़ान के महीनें की दुआओं में जो चीज़ बार बार दोहरायी गयी है, वह इसतेग़फ़ार और ख़ुदा से ‎मग़फेरत मांगना है। यानी ख़ुदा से अपने गुनाहों की माफ़ी ‎मांगना जैसा कि दुआओं में ‎कहा गया है कि “यह बख़्शिश का महीना है।” ‎इस महीने की दुआओं में अल्लाह ‎से बख़्शिश की दुआ करने की बात बार बार ‎कही गयी है, बहुत ज़्यादा कही गयी है। ‎

इससे ज़्यादा साफ़ तौर पर तौबा का असर, दुश्मन से जंग के मैदान में होता ‎है। जैसा ‎कि सूरए आले इमरान की एक आयत में कहा गया है कि यह लोग ‎जो पैग़म्बरे ‎इस्लाम के साथ जेहाद करते थे, जंग के मैदान में जब ‎पैग़म्बर जाते थे और ‎दुश्मनों से जंग करते थे तो ख़ुदा पर ईमान रखने वाले ‎यानी “रब्बानियून” की दुआ ‎यह होती थी कि पालने वाले हमारे गुनाह बख़्श दे ‎और हमारे क़दम जमा दे और ‎काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर! मतलब, गुनाहों की माफ़ी मांगने का जंग ‎से, क़दम की मज़बूती से, जीत से ‎गहरा ताल्लुक़ है। इस्तेग़फ़ार इसे कहते हैं।

अगर इन्सान पूरी सच्चाई के साथ अपनी ग़लतियों की ख़ुदा से माफ़ी मांग ले ‎तो ख़ुदा ‎भी उसे जवाब देगा और माफ़ कर देगा। यह तो क़ुरआने मजीद की ‎आयत में खुल ‎कर कहा गया है। जब इन लोगों ने तौबा किया और अल्लाह से ‎दुआ की कि उनकी ‎मदद की जाए तो अल्लाह की तरफ़ से जवाब आया जिसका ‎ज़िक्र क़ुरआन में है “तो ‎अल्लाह ने आख़ेरत से पहले, दुनिया में उन्हें जवाब ‎दिया, उन्हें दुनिया व आख़ेरत ‎दोनों का सवाब दिया क्योंकि उन्होंने तौबा किया ‎था।”

इमाम ख़ामेनेई

12 अप्रैल 2022