इस्तेग़फ़ार के बारे में हमारी सोच सिर्फ़ यह न हो कि यह केवल व्यक्तिगत गुनाहों की माफ़ी और हमारे दिलों की पाकीज़गी के लिए है। इस्तेग़फ़ार का राष्ट्रीय स्तर के मैदानों में, सामाजिक मैदानों में गहरा असर है और यह हमें बड़ी बड़ी कामयाबियां दिलाता है।
रमज़ान के महीनें की दुआओं में जो चीज़ बार बार दोहरायी गयी है, वह इसतेग़फ़ार और ख़ुदा से मग़फेरत मांगना है। यानी ख़ुदा से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगना जैसा कि दुआओं में कहा गया है कि “यह बख़्शिश का महीना है।” इस महीने की दुआओं में अल्लाह से बख़्शिश की दुआ करने की बात बार बार कही गयी है, बहुत ज़्यादा कही गयी है।
इससे ज़्यादा साफ़ तौर पर तौबा का असर, दुश्मन से जंग के मैदान में होता है। जैसा कि सूरए आले इमरान की एक आयत में कहा गया है कि यह लोग जो पैग़म्बरे इस्लाम के साथ जेहाद करते थे, जंग के मैदान में जब पैग़म्बर जाते थे और दुश्मनों से जंग करते थे तो ख़ुदा पर ईमान रखने वाले यानी “रब्बानियून” की दुआ यह होती थी कि पालने वाले हमारे गुनाह बख़्श दे और हमारे क़दम जमा दे और काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर! मतलब, गुनाहों की माफ़ी मांगने का जंग से, क़दम की मज़बूती से, जीत से गहरा ताल्लुक़ है। इस्तेग़फ़ार इसे कहते हैं।
अगर इन्सान पूरी सच्चाई के साथ अपनी ग़लतियों की ख़ुदा से माफ़ी मांग ले तो ख़ुदा भी उसे जवाब देगा और माफ़ कर देगा। यह तो क़ुरआने मजीद की आयत में खुल कर कहा गया है। जब इन लोगों ने तौबा किया और अल्लाह से दुआ की कि उनकी मदद की जाए तो अल्लाह की तरफ़ से जवाब आया जिसका ज़िक्र क़ुरआन में है “तो अल्लाह ने आख़ेरत से पहले, दुनिया में उन्हें जवाब दिया, उन्हें दुनिया व आख़ेरत दोनों का सवाब दिया क्योंकि उन्होंने तौबा किया था।”
इमाम ख़ामेनेई
12 अप्रैल 2022