ज़ीक़ादा के महीने की बरकतें बेपनाह हैं। ज़ीक़ादा पहला "हराम" महीना है (जिसमें जंग शुरू करना हराम है)। इस महीने की ग्यारहवीं तारीख़, फ़रज़ंदे रसूल आठवें इमाम, हज़रत अली इब्ने मूसा अलैहिस्सलाम का जन्म दिन है। इस महीने की 23 तारीख़, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ख़ास ज़ियारत की तारीख़ है, इस महीने की 23 तारीख़, "दह्वुल अर्ज़" (यानी ज़मीन का फ़र्श बिछाए जाने) का दिन है, ज़ीक़ादा के महीने की 15वीं रात भी बड़ी बरकतों वाली रात है और इस रात के ख़ास आमाल हैं। ज़ीक़ादा के महीने में पड़ने वाले इतवार के दिन, तौबा करने और गुनाहों की माफ़ी मांगने के दिन हैं। इन दिनों के ख़ास आमाल हैं। मशहूर आरिफ़ अलहाज मीरज़ा जवाद आक़ा मलेकी ने अपनी किताब "अलमुराक़ेबात" में ये आमाल नक़्ल किए हैं जिनके बारे में पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने अपने सहाबियों को संबोधित करते हुए कहा था कि आप में से कौन है जो तौबा करना चाहता है? सभी ने जवाब दिया कि हम तौबा करना चाहते हैं। बज़ाहिर ये ज़ीक़ादा का महीना था। इस रिवायत के मुताबिक़ सरवरे कायनात सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा कि इस महीने में इतवार को ये नमाज़ पढ़ो। अलमुराक़ेबात में इस नमाज़ की तफ़सील बयान की गई है। कुल मिला कर यह कि ज़ीक़ादा महीने के दिन, जो इन तीन लगातार हराम महीनों में से पहला महीना है, बड़ी बरकतों वाले दिन और रातें हैं, बरकतों से भरे हुए हैं। इनसे भरपूर फ़ायदा उठाने की ज़रूरत है।
इमाम ख़ामेनेई
9 सितम्बर 2015