हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में इंसान जितना सोचता है, इस महान हस्ती के हालात के बारे में ग़ौर करता है, उतना ही हैरत में पड़ जाता है। इंसान न सिर्फ़ इस आयाम से हैरत करता है कि किस तरह एक इंसान नौजवानी में अध्यात्मिक और भौतिक लेहाज़ से महानता के ऐसे दर्जे पर पहुंच सकता है! यह अपने आप में एक हैरत अंगेज़ हक़ीक़त है, लेकिन इस आयाम से और ज़्यादा हैरत होती है कि इस्लाम तरबियत की इतनी हैरतअंगेज़ ताक़त से इतने ऊंचे स्थान पर है कि एक जवान महिला, इतने कठिन हालात में, इस ऊंचे स्थान को हासिल कर सकती है! इस हस्ती, इस महान इंसान की अज़मत भी हैरतअंगेज़ है, उस मत की अज़मत भी हैरतअंगेज़ व आश्चर्यजनक है जिसने ऐसी महान व गरिमापूर्ण हस्ती को पैदा किया।
इमाम ख़ामेनेई
16 दिसम्बर 1992