आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शनिवार को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुल्क की इंडस्ट्रियल उपलब्धियों की नुमाइश का तीन घंटे मुआयना किया। यह नुमाइश विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन की उपलब्धियों की तस्वीर पेश करती है।
दुआ, मुश्किलों के हल की कुंजी, अल्लाह की याद और मन की पाकीज़गी का ज़रिया है और रजब का महीना उन लोगों की ईद है जो अपने मन को पाक करने का इरादा रखते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
9 अप्रैल 2018
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने नमाज़ की 29वीं रॉष्ट्रीय क़ॉन्फ़्रेंस के नाम अपने संदेश में, दो साल के बाद इसके आयोजन को ख़ुशी व बर्कत का सबब क़रार दिया। उन्होंने कहा कि एक ख़ुशक़िस्मत और अच्छे मुक़द्दर वाले समाज में दोस्ती, क्षमाशीलता, मेहरबानी, हमदर्दी, आपसी मदद, एक दूसरे की भलाई और ऐसी ही दूसरे अहम रिश्ते नमाज के प्रचलित और क़ायम होने की बर्कत से मज़बूत होते हैं।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और दूसरे इमामों, सभी ने इस रास्ते की ओर क़दम बढ़ाया कि अल्लाह का हुक्म, अल्लाह का क़ानून समाजों में लागू हो। कोशिशें हुई हैं, जिद्दोजेहद हुयी है, तकलीफ़ें उठायी गयी हैं। इस राह में जेल व जिलावतनी बर्दाश्त की गयी और नतीजाख़ेज़ शहादतें दी गई हैं।ʺ
इमाम ख़ामेनेई 8 मई 1981
जब इंसान ग़फ़लत की हालत से बाहर निकल आए और इस ओर उसका ध्यान रहे कि उसे देखा जा रहा है, उसका हिसाब किया जा रहा है। हम लिखते लिखवाते रहते थे जो कुछ तुम करते थे।(सूरए जासिया-आयत-29) उसकी सभी हरकतें, हिलना डुलना और काम अल्लाह के सामने हैं तो स्वाभाविक तौर पर वह एहतियात करेगा।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 24 सितम्बर 1982 को अपनी एक तक़रीर में फ़रज़ंदे रसूल इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शख़्सियत के कुछ पहलुओं का जायज़ा लिया और इमाम के तारीख़ी सफ़रे शाम के सिलसिले में बड़े अहम बिंदुओं पर रौशनी डाली। तक़रीर के कुछ चुनिंदा हिस्से निम्नलिखित हैं।
इस महीने में जितना ज़्यादा हो सके अल्लाह की बारगाह में दुआ व मुनाजात कीजिए और अहलेबैत को वसीला क़रार दीजिए! अल्लाह की याद में रहिए! अगर हम सब, अल्लाह से अपने संपर्क को मज़बूत बनाएं तो बहुत से मसले, मुश्किलें, परेशानियां, रुकावटें अपने आप ही दूर हो जाएंगी।
ज़माने के बड़े बड़े ओलमा इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से इल्म हासिल करते थे। (मशहूर सहाबी) इब्ने अब्बास के शिष्य अकरमा, एक मशहूर शख़्सियत हैं, जब इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पास आते हैं ताकि उनसे कोई हदीसे रसूल सुनें -शायद उनका इम्तेहान लेने की नीयत से- तो उनके हाथ पैर थरथराने लगते हैं और वो इमाम के क़दमों में गिर जाते हैं, बाद में ख़ुद ही ताज्जुब करते हुए कहते हैं कि फ़रज़ंदे रसूल! मैंने इब्ने अब्बास जैसी हस्ती को देखा, उनसे हदीसें सुनीं लेकिन उनके सामने मेरी यह हालत नहीं हुयी जैसी आपके सामने हो गई तो इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम उसके जवाब में साफ़ लफ़्ज़ों में कहते हैं, हे शामियों के ग़ुलाम! तुम ऐसी रूहानी अज़मत के सामने हो कि तुम्हारी यह हालत होना स्वाभाविक है।
अबू हनीफ़ा जैसा शख़्स, जो अपने ज़माने के बड़े धर्मगुरुओं में थे, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में आकर उनसे दीन की तालीम हासिल करते हैं और दूसरे बहुत से ओलमा, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शागिर्द थे और इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के इल्म का डंका पूरी दुनिया में इस तरह बजा कि बाक़िरुल उलूम (इल्म की तह तक पहुंच जाने वाले) के नाम से मशहूर हुए।
इमाम ख़ामेनेई
17 जुलाई 1986
रजब महीने का हर दिन अल्लाह की एक नेमत है। एक अक़्लमंद, होशियार व जागरुक इंसान इसके लम्हों में से हर लम्हे में ऐसी चीज़ हासिल कर सकता है कि जिसके सामने दुनिया की सारी नेमतें महत्वहीन हैं। यानी अल्लाह की मर्ज़ी, लुत्फ़, इनायत और तवज्जो हासिल कर सकता है।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 1991
वेस्ट एशिया के इलाक़े में ऐसी क्या ख़ास बात है जो साम्राज्यवादी ताक़तें किसी भी क़ीमत पर उसे अपने कंट्रोल से बाहर नहीं जाने देना चाहतीं, इसके लिए उन्होंने कैसे मंसूबे बनाए और उन मंसूबों का अंजाम क्या हुआ? इन अहम सवालों का जायज़ा।
जहाँ तक माँ के हक़ की बात है तो वो ज़िन्दगी देने वाली हस्ती का हक़ है। बाप का भी असर है, लेकिन माँ से कम, माँ का असर सबसे ज़्यादा होता है। दिलों में ईमान के बीज बोने वाली माएं हैं जो बच्चे को मोमिन बनाती हैं।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने कहा कि कल्चर और तबलीग़ के मैदान के लोगों को पूरी तरह इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अल्लाह का पैग़ाम किसी भी हालत में नज़रअंदाज़ न होने पाए और इस मैदान में हंगामे, उपहास और आरोपों से घबराना नहीं चाहिए।
दुश्मन सोच रहा था कि ईरानी क़ौम, आर्थिक मुश्किलों की वजह से -जो मौजूद हैं- तख़्ता पलटने और मुल्क को तोड़ने की दुश्मन की साज़िश का साथ देगी, यह एक ग़लत अंदाज़ा था।
औरत इस्लामी माहौल में तरक़्क़ी करती है और उसकी औरत होने की पहचान बाक़ी रहती है। औरत होना औरत के लिए फ़ख़्र की बात है। यह औरत के लिए फ़ख़्र की बात नहीं है कि हम उसे ज़नाना माहौल, ज़नाना ख़ुसूसियतों और ज़नाना अख़लाक़ से दूर कर दें और गृहस्थी को, बच्चों की परवरिश को, शौहर का ख़्याल रखने को उसके लिए शर्म की बात समझें।
इमाम ख़ामेनेई
12 सितम्बर 2018
वो समझ रहे थे कि अमरीका के किसी पिट्ठू के पेट्रो डालर से इस्लामिक रिपब्लिक के इरादे को तोड़ा जा सकता है। यह उनकी भूल थी। इस्लामी जुमहूरिया का इरादा दुश्मन की ताक़त के सभी तत्वों से ज़्यादा मज़बूत साबित हुआ।
बसीज या स्वयंसेवी बल इस्लामी जुम्हूरिया का ऐसा अज़ीम सगंठन है जिसने अवाम की ख़िदमत, मुल्क की हिफ़ाज़त और सभी विभागों की तरक़्क़ी में बेमिसाल किरदार निभाया है।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के मुबारक जन्मदिन के मौक़े पर मुल्क के दीनी ख़तीबों, शायरों और मद्दाहों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। 12 जनवरी 2023 को होने वाली इस मुलाक़ात में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों से अक़ीदत रखने वाले शायरों, ख़तीबों और मद्दाहों की अहमियत और उनकी कला के महत्व पर प्रकाश डाला और कुछ निर्देश दिए। (1)
आयतुल्लाह ख़ामेनेई की तक़रीर का अनुवाद पेश हैः
जब हमारे पास पाकीज़ा डिफ़ेंस के ज़माने जैसे नौजवान हों तो नतीजा यक़ीनी प्रगति के रूप में निकलता है। यानी दुनिया की सारी ताक़तें लामबंद हो गईं कि ईरान के टुकड़े कर देना है, मगर मुल्क की एक बालिश्त ज़मीन भी न ले सकीं। यह मामूली चीज़ है? यह छोटी कामयाबी है?
वह अपने सभी संसाधनों को इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि इस मुबारक वजूद को, इस्लामी जुम्हूरिया को, इस इन्क़ेलाब को हरा सकें, लेकिन नहीं हरा सके। अल्लाह हमारा मौला है। जिसे भी यक़ीन नहीं है वह इन चालीस बरसों पर एक नज़र डाले।
सवालः अगर कोई शख़्स ख़त या मैसेज के आग़ाज़ में सलाम लिखे और उसके बाद मसला पूछे, क्या उसके सलाम का जवाब देना वाजिब है?
जवाबः आमने सामने मुलाक़ात या टेलीफ़ोन पर बात के अलावा, मैसेज या इस तरह की शक्ल में किए गए सलाम का जवाब वाजिब नहीं है।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 9 जनवरी 1978 को क़ुम के अवाम के तारीख़ी विद्रोह की सालगिरह पर इस शहर के अवाम से सोमवार की सुबह तेहरान में मुलाक़ात की। उन्होंने क़ुम के अवाम के 9 जनवरी 1978 के तारीख़ी विद्रोह की ओर इशारा करते हुए, इसे तारीख़ का रुख़ बदल देने वाली घटनाओं में क़रार दिया और इसकी याद को बाक़ी रखने पर ताकीद की।
इन लोगों ने इन सेंटरों को निशाना बनाया कि इन्हें बंद कर दें ताकि इल्म हासिल न किया जा सके। सेक्युरिटी न रहे, इल्म हासिल न हो सके। ये लोग कमज़ोर पहलुओं को ख़त्म नहीं करना चाहते थे, ये, मज़बूत कामों को ख़त्म करना चाहते थे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 9 जनवरी 2023 को क़ुम के अवाम से मुलाक़ात की। यह मुलाक़ात 9 जनवरी 1978 के क़ुम के अवाम के तारीख़ी विद्रोह की सालगिरह की मुनासेबत से इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में अंजाम पायी। इस मौक़े पर अपनी तक़रीर में रहबरे इंक़ेलाबे इस्लामी ने इस तारीख़ी दिन की व्याख्या की और देश के हालात और दुश्मनों की साज़िशों का जायज़ा लिया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीच का अनुवाद पेश हैः