आप इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दुआ-ए-अरफ़ा के मज़मून को शेर के रूप में ढाल सकते हैं। इमाम हुसैन की ‎दुआ-ए-अरफ़ा आशेक़ाना कलाम है। ‎

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की भी एक दुआ-ए-अरफ़ा है। सहीफ़ए सज्जादिया की 47वीं दुआ दुआ-ए-अरफ़ा ‎है। वह भी बड़े गहरे अर्थों और मज़मून वाली दुआ है। लेकिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दुआ का अंदाज़ बड़ा ‎मुशताक़ाना और आशेक़ाना है। यह अलग ही चीज़ है। ‎

अगर आप इससे पूरी तरह आशना हों, इसकी गहराई में उतरें, इस पर ग़ौर व फ़िक्र करें तो इस दुआ के एक एक ‎फ़िक़रे से पूरा एक क़सीदा, एक नज़्म, एक रुबाई, एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल कह सकते हैं। ‎

शायरों से इमाम ख़ामेनेई का ख़िताब 

15 जून 2011‎