स्पीचः

बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार हज़रत मोहम्मद और उनकी पाक नस्ल ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

      आप सब लोगों का बहुत बहुत स्वागत है, प्यारे भाइयो और बहनो, बेहद अहम जूडिशरी के ओहदेदारों का कि सच्चाई यह है कि मुल्क के जूडिशरी सिस्टम में काम करना, इस डिपार्टमेंट की अहमियत के मद्देनज़र इस डिपार्टमेंट में काम करने का सवाब कई गुना है। अल्लाह आप सबको कामयाब करे।

      सबसे पहले मैं आज कल के दिनों की अहमियत का ज़िक्र करना चाहूंगा। आप लोग जो इस इस्लामी सरकार की ख़िदमत कर रहे हैं और इन्शाअल्लाह अल्लाह इसका बदला आप सबको देगा, इन दिनों में ख़ास तौर पर अहम महीने ज़िलहिज्जा के पहले दस दिनों के बचे हुए एक दो दिनों में आप लोग जितना हो सके अल्लाह से अपना दिली ताअल्लुक़ मज़बूत करें। कल अरफ़ा का दिन है, इसकी क़द्र करें और अल्लाह के सामने दुआ करके, गिड़गिड़ा कर और उससे मांग कर सही अर्थों में अपनी समस्याओं का समाधान करें, अगर अल्लाह का रहम व करम न हो तो हमारी कोशिशें, वह आप लोग जो मेहनत करते हैं, हम जो मेहनत करते हैं, उसका कोई फ़ायदा नहीं होगा। दुआए कुमैल में कहा गया है “ तेरी मेहरबानी के अलावा उस तक पहुंचना मुमकिन नहीं।“ (2) यानि हम अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को पूरा करते हैं लेकिन हमारी इन कोशिशों और मेहनतों में जो चीज़ नयी जान डालती है, रूह फूंकती है, अल्लाह की रहमत और मेहरबानी और उसकी नज़रे करम है। यक़ीनन अल्लाह से हर वक़्त संपर्क किया जा सकता है, अल्लाह से संपर्क करना बहुत आसान है, लेकिन कुछ वक़्त कुछ दिनों की ख़ास अहमियत होती है, जिनमें सबसे ऊपर जो दिन हैं उनमें से एक कल यानि अरफ़ा का दिन है, ईदे क़ुरबान भी इसी तरह है।

      यहां पर हम शहीद बहिश्ती को याद कर लें कि जिनकी वजह से यह दिन रखा गया है। शहीद बहिश्ती हर तरह की दीनी मालूमात में बड़ा ऊंचा दर्जा रखते थे, वह दीनी सेन्टर में पढ़ाए जाने वाले हर तरह के इल्म में सच में बहुत ही बड़े दर्जे पर थे और सही अर्थों में एक ज्ञानी धर्मगुरु थे और इन सबके साथ ही उनका जो व्यहवार और रवैया था वह भी हम सबके लिए सबक़ हो सकता है। सबसे पहली बात तो यह कि वह बहुत ही ज़्यादा मेहनती थे, काम से कभी थकते नहीं थे और उनमें जितनी ताक़त थी सब वह काम में लगा देते थे। बहुत ही ज़्यादा डिसिप्लिन का ख़्याल रखते थे। मैं कई बरसों तक उनके साथ रहा, उनके साथ काम किया, चाहे इन्क़ेलाब से पहले हो या बाद में हो मैंने अपने दोस्तों में से किसी को अपने आस-पास के लोगों में से किसी को भी शहीद बहिश्ती की तरह अनुशासन और डिसिप्लिन का पाबंद नहीं पाया। डिसिप्लिन, अनुशासन बहुत ही ज़्यादा अहम चीज़ है, नये रास्ते खोजते यानि इनोवेशन था उनमें, संयमी व सब्र वाले थे, एतेराज़ यहां तक कि अपमानजनक आपत्ति के बाद भी हौसला नहीं हारते थे, दूसरों की बातें सुनते थे, यहां तक कि अपने विरोधियों की बातें भी बैठ कर आराम से सुनते थे, वह बहुत ज़्यादा संयमी थे। यह सब हमारे लिए सबक़ है, हमें यह सब सीख कर इसी तरह काम करना चाहिए। दिखावा बिल्कुल नहीं था, दिखावा नहीं था उनमें, नहीं, हमने बरसों तक देखा था, उनके अंदर वही था जो बाहर से नज़र आता था। वह दिखावा करने वालों में से नहीं थे। तो ज़ाहिर सी बात है अल्लाह ने भी उन्हें अपने सबसे अच्छे बंदों का इनाम दिया और अल्लाह ने अपने इस नेक बंदे को उस दौर के बदतरीन लोगों के हाथों शहादत का तोहफ़ा दिया।

      जूडिशरी के बारे में बहुत सी बातें हैं, कुछ याद दिलाने की बातें और कुछ शुक्रिया अदा करने की, शुक्रिया भी अदा किया जा सकता है, और चेतावनी भी दी जा सकती है, बातें बहुत हैं। जनाब मोहसेनी ने यहां जो बातें कही हैं वह बहुत अहम हैं, इन्होंने जो बातें कहीं हैं, मैंने भी बहुत सी रिपोर्टों में यह सब सुना है और मुझे इन बातों का पता है। इन्होंने अहम बातें बतायी हैं। बहरहाल जनाब मोहसेनी की एक ख़ूबी यह है कि इन्हें न्यापालिका के पहलुओं की अच्छी मालूमात है, बरसों से वह इसी विभाग में रहे हैं, मैं भी इस बारे में कुछ बातें करना चाहूंगा।

      सबसे पहली बात तो जूडिशरी की अहमियत है। आप लोग या तो जज के तौर पर या फिर ओहदेदार के तौर पर या किसी भी तौर पर इस विभाग में काम कर रहे हैं तो आप को यह जानना चाहिए कि आप इस्लामी व्यवस्था के एक बेहद अहम विभाग में काम कर रहे हैं और उसकी तुलना बहुत सी दूसरी जगहों से नहीं की जा सकती। सच में न्यायपालिका, इस्लामी व्यवस्था को बनाने में एक मज़बूत व अहम पिलर है। यह सबको पता है कि अगर इन अस्ली स्तंभों को नुक़सान पहुंचा तो फिर पूरी व्यवस्था को नुक़सान पहुंच जाएगा। इस बुनियाद पर आप लोगों का काम बहुत ही अहम है। इसी लिए अगर यहां और आपके विभाग में ग़लती होगी, कोई समस्या होगी, तो उससे पहुंचने वाली चोट भी बड़ी होगी, यही बात है, जब इन्सान का दर्जा बुलंद होता है तो फिर उसके अच्छे कामों का भी और बुरे कामों का भी बहुत ज़्यादा असर पड़ता है। आप लोग भी इसी तरह के हैं, आप के अच्छे कामों का बहुत बड़ा असर है, लोगों के जीवन पर, इस्लामी सरकार की तरक़्क़ी पर और अगर ख़ुदा न करे आप से ग़लती हो जाए तो भी उसका असर बड़ा होगा।

      मैंने पिछले साल, यह जो आप लोगों के साथ सालाना मुलाक़ात होती है उसमें कई अहम बातें कही थीं। (3) मैं अब फिर से वह बातें दोहराना नहीं चाहता और न ही बहुत ज़्यादा इस सिलसिले में बात करना चाहता हूं, बस कुछ बातों पर ज़ोर देना चाहता हूं। हमने पिछले साल जो बातें कही थीं जो उसी वक़्त मुझे पता चला कि जूडिशरी में एक कमेटी बनायी गयी थी उन कामों पर नज़र रखने के लिए। कुछ मामलों में अच्छे काम किये गये, कुछ मामलों में कोई ख़ास काम नहीं हुआ लेकिन काम हुआ, इंतेज़ाम किये गये और काम करने के लिए इंतेज़ाम करना भी ख़ुद एक अहम और ध्यान देने वाली चीज़ है लेकिन मैं यहां पर एक बात कहना चाहता हूं और वह यह कि आप लोग अपने बारे में फ़ैसला करने के लिए जो काम किया है उसे तराज़ू न बनाएं बल्कि तराज़ू काम के नतीजे को बनाएं। मिसाल के तौर पर आप यह न कहें कि उस काम के लिए हमने यह सब किया, इतनी मीटिंग्स कीं या इस तरह की बातें, नहीं यह सब कसौटी नहीं है, कसौटी यह है कि उसका नतीजा क्या निकला, काम जो किया उससे हासिल किया हुआ? मुल्क के सभी मुद्दों में यही होना चाहिए। आंकड़े, अहम हैं बताना चाहिए कि जो काम किया गया है उसका नतीजा क्या है और जो कहा गया है उसका मतलब क्या है, यह अहम है, नतीजा अहम है जो आम लोगों तक पहुंचता है।

      सब से पहली बात जो मैं कहना चाहता हूं वह यही जूडिशरी में बदलाव का प्लान है। ज़ाहिर सी बात है जूडिशरी के पास 40 साल का तर्जुबा है, यह बहुत अहम चीज़ है। 40 बरस से ज़्यादा वक़्त से हमने जूडिशरी में तरह-तरह के प्रोग्राम देखे हैं, अलग-अलग प्लान तैयार किये गये, बहुत से काम किये गये और यह सब एक्स्पर्टस के लिए तजुर्बे का ख़ज़ाना है, यह बहुत अहम चीज़ है, इन तजुर्बों को बड़े बदलाव के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। हमने बदलाव का मतलब भी बताया है, बदलाव यानि अच्छे पहलुओं को मज़बूत करें और कमज़ोर पहलुओं को ज़ीरो तक पहुंचाएं, बदलाव का यह मतलब होता है। कभी कभी, कमज़ोर पहलुओं को ज़ीरो तक पहुंचाने के लिए आर्गनाइज़ेशन की सतह पर एक बड़े और अहम काम की ज़रूरत पड़ती है, विभाग में बदलाव लाना होता है, कभी नज़रिया बदलना पड़ता है, कहीं कहीं इन्सानों को भी बदलना पड़ता है, बदलाव के लिए यह सब चीज़ें ज़रूरी हैं, यह बदलाव है।

      बदलाव का प्लान आज से कई बरस पहले, जूडिशरी में तैयार किया गया है। इन बरसों में जिन एक्सपर्ट्स ने इस प्रोग्राम के बारे में मुझसे बात की है या लिखित रिपोर्ट दी है, उन सबका यही कहना है कि यह प्रोग्राम, एक अच्छा प्रोग्राम है, मज़बूत प्रोग्राम है। यह प्लान आप के पास है, जूडिशरी के पास है। मैंने पिछले साल भी उसका ज़िक्र किया था। इस प्रोग्राम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए, इसमें आगे जाना चाहिए, उस पर ज़्यादा काम नहीं हुआ है। जूडिशरी में बदलाव के दस्तावेज़ और प्रोग्राम को लागू किये जाने की ज़रूरत है। यक़ीनी तौर पर इसके लिए बजट की ज़रूरत है और इस सिलसिले में सरकार और पार्लिमेंट को मदद करना चाहिए, इसके लिए काम के लोगों की ज़रूरत होगी और बहुत सी जगहों पर इस तरह के लोग ख़ुदा के शुक्र से हैं और कुछ जगहों पर शायद मज़बूत और काम के लोगों के मामले पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत हो। हो सकता है कि इस दस्तावेज़ की कुछ चीज़ों में बदलाव की ज़रूरत पड़े अब ज़ाहिर सी बात है कोई भी प्रोग्राम और दस्तावेज़ ऐसा नहीं हो सकता कि उसमें कभी कोई बदलाव ही न हो।

      शायद कुछ मामलों में अपडेटिंग की ज़रूरत पड़े, यह भी एक बात है। दस्तावेज़ को देखें और पता करें कि उसमें कहां कमी है, कहां अपडेट करना है, उसे अपडेट करें, लेकिन अब उसे लागू किया जाना चाहिए। इस दस्तावेज़ या किसी भी प्रोग्राम के दस्तावेज़ की ख़ूबी यह होती है कि वह काम में डिसिप्लिन पैदा करता है, बिखराव से बचाता है। काम एक प्रोग्राम के तहत आगे बढ़ता है, यह बहुत ही बड़ी और अहम चीज़ है। यक़ीनी तौर पर इसके लिए क़ानून की भी ज़रूरत है। बहुत से मौक़ों पर किसी दस्तावेज़ को लागू करने के लिए क़ानून की ज़रूरत होती है इसमें पार्लिमेंट को मदद करना चाहिए, आप लोगों को मांग करना चाहिए, सरकार से, पार्लिमेंट से मांग करें कि आपके लिए क़ानून बनाया जाए।

      यह जो मैंने कहा है कि जूडिशरी में बदलाव के लिए काम के आदमियों की ज़रूरत होती है तो यहीं मौक़े से फ़ायदा उठाते, एक्स्पर्ट्स बनाने, एक्स्पर्ट्स की ट्रेनिंग पर भी ज़ोर दे दूं यह भी बहुत ज़रूरी कामों में शामिल है। जूडिशरी के पास डिपार्टमेंट में, ट्रेंड एक्स्पर्ट्स तैयार रखने चाहिए ताकि जब भी ज़रूरत हो, कोई बदलाव करना हो कुछ बढ़ाना हो तो यह लोग काम आएं। यह जो मैंने बहुत से डिपार्टमेंट्स के बारे में सब्‍टिट्यूट की बात की है वह यहां जूडिशरी में एक्स्पर्ट्स की ट्रेनिंग है जैसा कि मैंने कहा। यह वह बात है जिस पर मैं बहुत ज़ोर देता हूं और बार बार उसका ज़िक्र करता हूं। इन बातों को ध्यान रखते हुए बदलाव के दस्तावेज़ को गंभीरता से लें।

      एक और मुद्दा, करप्शन से मुक़ाबले का है, जूडिशरी के अंदर भी और उसके बाहर ही, आप लोगों की एक ज़िम्मेदारी यह है। जूडिशरी के अदंर करप्शन से मुक़ाबले के बारे में जब कल और परसों जनाब मोहसिनी साहब से मुलक़ात हुई तो मैंने उनसे कहा और उस पर ज़ोर दिया। यक़ीनी तौर पर जूडिशरी में अक्सर लोग, लगभग सभी लोग, अच्छे लोग हैं, चाहें जज हों या ओहदेदार, कम सहूलतों के साथ, कम आमदनी के साथ, सच में कम है, बड़ी मेहनत से काम कर रहे हैं। इन लोगों की शराफ़त की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। कुछ गिने-चुने लोग हैं जो अपनी पोज़ीशन से ग़लत फ़ायदा उठाते हैं और जूडिशरी की इमेज अवाम में ख़राब करते हैं। वह जो यह काम करता है, यानि ग़लत काम करता है तो यह ज़रूरी नहीं है कि वह जज ही हो, कभी यह भी होता है कि किसी दूर दराज़ के शहर की अदालत का एक रजिस्ट्रार कोई ग़लत काम करता है तो उसे फैला कर बढ़ा कर पूरी जूडिशरी को उसमें लपेट दिया जाता है। यह अफ़सोस है अगर इस तरह का काम होता रहे, इस पर रोक लगाए जाने की ज़रूरत है। जूडिशरी के सभी लोगों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि करप्शन किसी तरह से जूडिशरी में आने न पाए। करप्शन छुआछूत की बीमारी की तरह है, ख़ुदा न करे लेकिन अगर किसी एक डिपार्टमेंट में करप्शन आ गया तो यह फैलने वाली बीमारी है, दिन गुज़रने के साथ ही बढ़ती जाएगी। जब करप्शन का मुक़ाबला नहीं किया जाएगा तो वह बढ़ जाएगा। जूडिशरी के अंदर भी और बाहर भी यही हाल है।

अब जूडिशरी के बाहर होने वाले करप्शन को रोकने की ज़िम्मेदारी जूडिशरी के अलावा दूसरे लोगों पर भी है, यानि कभी करप्शन होता है लेकिन उसकी जड़, जूडिशरी की पहुंच में नहीं है, सरकार के हाथ में है, या पार्लिमेंट के हाथ में या फिर सेना के हाथ में है, तो इस अवसर पर इन लोगों को करप्शन की जड़ को उखाड़ना चाहिए। अब अगर उसकी जड़ उखाड़ी नहीं गयी, उसे रोका नहीं गया तो फिर जूडिशरी की ज़िम्मेदारी है कि वह आगे आए। आजकल दुश्मनी रखने वाले और मनोरोगी लोग, “ वह जिनके दिलों में बीमारी है।“(4) जूडिशरी के ख़िलाफ़ अफ़वाहें फैलाते हैं, कभी हंगामा करते हैं, कभी कुछ कहते हैं जो जूडिशरी की सच्चाई से कोसों दूर होती है लेकिन फिर भी उनको यह सब करने की इजाज़त न दें। यह भी दूसरी बात है जो मैंने करप्शन के बारे में कही है।

      एक और चीज़ जो मैंने यहां लिख कर रखी है जो करप्शन की जड़ों में शामिल है और हमने कहा कि यह दूसरे विभागों के हाथ में है, यह वही बात है कि जिसका ज़िक्र जनाब मोहसिनी ने भी किया है यानि ज़मीन जायदाद के ग़ैर रजिस्टर्ड मामलों को ग़ैर क़ानूनी क़रार देना यानि उनकी क़ानूनी हैसियत को न मानना है, यह बहुत अहम काम है। ज़मीन जायदाद के सिलसिले में बहुत से करप्शन यही बिना रजिस्ट्री वाले मामलों में और आपसी लिखा पढ़ी के बाद किये जाने वाले सौदों में होते हैं। इस तरह के सौदों की रोक-थाम की जानी चाहिए और सच में यह बात है कि अगर मिसाल के तौर पर गार्डियन कौसिंल की नज़र में, अगर पार्लिमेंट के इस क़ानून में कोई प्राब्लम भी हो तब भी मुल्क और सिस्टम के हित में यह है कि इस क़ानून पर अमल हो, यानि यह जो आजकल किया जाता है कि दो लाइनें लिख कर जायदाद दूसरे के हवाले कर दी जाती है और इस तरह के जो काम होते हैं वह सब करप्शन की जड़ हैं। यह भी एक बात है।

      अगली बात, जूडिशरी की दूसरी ज़िम्मेदारियों के बारे में है। आप संविधान पर अगर ग़ौर करें तो आप देखेंगे कि जूडिशरी की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ अदालतों में मुक़द्दमों का फ़ैसला करना ही नहीं है, सिर्फ़ यही नहीं है, संविधान में दूसरी अहम ज़िम्मेदारियां भी जूडिशरी पर डाली गयी हैं। मिसाल के तौर पर उनमें से एक ज़िम्मेदारी, पब्लिक इंटरेस्ट और आम लोगों के हक़ की हिफ़ाज़त है, यह बहुत अहम चीज़ है। सार्वाजनिक हितों की पहचान करना ख़ुद एक अलग काम है, जबकि उसकी हिफ़ाज़त एक दूसरा काम है जो काफ़ी मुश्किल भी है। अब मैं अगर मिसाल देना चाहूं कि पब्लिक इंटरेस्ट की एक मिसाल, समाज की मेन्टल हेल्थ की हिफ़ाज़त है। यह जो कुछ लोग बाहर बैठ कर सोशल मीडिया और मीडिया की दूसरी शक्लों को इस्तेमाल करके, हमेशा लोगों का दिमाग़ ख़राब करते रहें, लोगों की मेंटल हेल्थ को नुक़सान पहुंचाते रहें, लोगों को डराते रहें और इसी तरह के दूसरे काम करते रहें तो यह दर अस्ल, पब्लिक सिक्योरिटी के तक़ाज़ों के ख़िलाफ़ है और इस मामले में जूडिशरी को आगे आना चाहिए। मुझे मालूम है कि कुछ मौक़ों पर और कुछ मामलों में प्रोसिक्यूटर आगे बढ़े हैं और कुछ काम किये हैं लेकिन प्रोग्राम और डिसिप्लिन के साथ यह काम किया जाना चाहिए, यह काम, नियम व क़ानून के हिसाब से किया जाना चाहिए, इसकी कमी महसूस की जाती है और इस तरह के काम किये जाने चाहिए।

      या “क़ानूनी आज़ादी को यक़ीनी बनाना” भी एक मिसाल है। जूडिशरी की एक ज़िम्मेदाररी क़ानूनी आज़ादी को यक़ीनी बनाना है। बहुत साफ़ तौर पर लिखा गया है कि आज़ादी बेलगाम नहीं है, जायज़ आज़ादी। जायज़ आज़ादी वही है जिसकी इजाज़त दीन देता है। संविधान यह है। शरीअत के हुक्म के तहत लोगों को जायज़ आज़ादी मिलनी चाहिए। ज़ाहिर सी बात है सरकार के अलग अलग विभागों में कभी टकराव भी हो जाता है, तो फिर इस सिलसिले में लोगों की मदद कौन करेगा? जूडिशरी, यानि जूडिशरी का एक अहम काम यह भी है। या मिसाल के तौर पर जुर्म को पहले से ही रोकने का इंतेज़ाम करना हालांकि यह उन कामों में से है जो दूसरे डिपार्टमेंट्स की भी ज़िम्मेदारियों में शामिल है, ये वे बातें हैं जिन्हें संविधान में खुल कर बयान किया गया है और इसी लिए इनके बारे में प्रोग्राम बनाना चाहिए। यह वह काम नहीं हैं कि जो बातों से या फिर ख़ास वक़्त में किसी आदमी या बड़े ओहदेदार के फ़ैसले से हो जाएगा, बल्कि इन कामों के लिए प्लानिंग की ज़रूरत है, ऑर्डर की ज़रूरत है, तरीक़े की ज़रूरत होती है, कभी कभी क़ानून की भी ज़रूरत होती है, यह सब काम होने चाहिए और इन कामों के लिए सोची समझी प्लानिंग की ज़रूरत है इस लिए बैठ कर सोचना चाहिए, ग़ौर करना चाहिए। यह सब जूडिशरी की क़ानूनी ताक़त है जिसे पूरी तरह से इस्तेमाल किये जाने की ज़रूरत है।

      एक और बात, काम के लिए आने वालों के साथ रवैया है, इस बारे में भी हम पहले बात कर चुके हैं।(5) कुछ जगहों पर इस पर कुछ काम भी हुआ है, इसका बहुत असर होता है, यानि जो लोग अदालतों में आते हैं, तो फिर अगर वहां ओहदेदार त्योरियों पर बल डाल कर उनसे बात करता है तो वह टूटे हुए दिल के साथ वापस आते हैं भले ही त्योरियां चढ़ाने के बाद भी आपने उनका काम कर दिया हो तब भी उसका बुरा ही असर होता है और काम कर देने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, मतलब अच्छा रवैया ज़रूरी है।

      यक़ीनी तौर पर यह मुश्किल काम है, मुझे मालूम है, यह सच है कि कभी कभी इतने ज़्यादा लोग आते हैं कि ओहदेदार थक जाता है, आने वालों के रवैयों और उनके कामों से इन्सान थक जाता है, उसका दिमाग़ ख़राब हो जाता है लेकिन उसे बर्दाश्त करना चाहिए।

      और आख़िरी बात जो मैं कहना चाहता हूं वह जूडिशरी की मीडिया इमेज है। जूडिशरी की मीडिया इमेज अच्छी नहीं है, जूडिशरी में और जूडिशरी के लिए मीडिया का सही तौर पर इस्तेमाल नहीं होता। यक़ीनी तौर पर कुछ हिस्सा तो मीडिया से ताअल्लुक़ रखता है जैसे रेडियो, टीवी और अख़बार वग़ैरा लेकिन एक हिस्सा ख़ुद जूडिशरी से ताअल्लुक़ रखता है। ख़ुदा मरहूम मूसवी अर्दबेली पर रहमत करे(6) वह अपने दौर में रेडियो टीवी विभाग की हमसे शिकायत किया करते थे। वह कहते थे कि “जूडिशरी की ख़बरें मिसाल के तौर पर जीरुफ़्त हाइवे के बंद होने या वहां बर्फ़ गिरने की ख़बरों के बाद दी जाती हैं। जब ये सब ख़बरें हो जाती हैं तब बारी आती है जूडिशरी की ख़बरों की।“ यह उनकी शिकायत थी, हालांकि अब ऐसा नहीं है, अब ख़ुदा के शुक्र से इस लिहाज़ से हालात बेहतर हैं लेकिन जूडिशरी की इमेज, यह जो इतने काम हुए हैं उन सबकी जनता को जानकारी होनी चाहिए, उन्हें जानना चाहिए। अभी जनाब मोहसिनी ने जो बात कही है, समाज के विभिन्न वर्गों के साथ उठना बैठना बहुत अहम है, बहुत बड़ा काम है, काम के नतीजे के लिहाज़ से भी अहम है, इस तरह जूडिशरी का दायरा फैल जाता है, उसका दिमाग़ खुल जाता है और फ़्यूचर उसकी नज़रों के सामने होता है। क़ानून के एक्स्पर्टस के साथ बैठकें करें, आर्थिक एक्स्पर्ट्स, राजनीतिक एक्स्पर्टस, स्टूडेंट्स, बड़ी बातें करने वाले नौजवान, अपना नज़रिया रखने वाले नौजवान, टीचर, बिज़नेसमैन, दीनी उलेमा, इन लोगों के साथ उठना बैठना बहुत ज़रूरी है और उसकी रिपोर्टिंग होनी चाहिए सही तौर पर रिपोर्टिंग, मतलब रिपोर्ट सही तैयार की जाए।       

      ख़दा आप सबकी मदद करे ताकि आप लोग, उस दूरी और अंतर को ख़त्म कर सकें जिसका ज़िक्र करते हुए इन्होंने कहा था कि सही स्थिति तक पहुंचने से हम अभी दूर हैं, यह सही बात है दूरी बहुत है।

      वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू।

 

 

  1. इस मुलाक़ात की शुरुआत में जूडिशरी के प्रमुख हुज्तुल इस्लाम वलमुसलेमीन ग़ुलाम हुसैन मोहसिनी इज्ज़ई ने एक रिपोर्ट पेश की
  2. मिसबाहुल मुतहज्जिद जिल्द 2 पेज 850
  3. पिछले साल जूडिशरी के प्रमुख और ओहदेदारों से मुलाक़त
  4. सूरए बक़रा आयत 10
  5. 6 साल पहले जूडिशरी के प्रमुख और ओहदेदारों से मुलाक़त में तक़रीर में भी यह कहा था।
  6. आयतुल्लाह सैयद अब्दुलकरीम मूसवी अर्दबेली