रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई की यादों पर आधारित किताब के उर्दू और बंग्ला अनुवादों का दिल्ली बुक फ़ेयर में अनावरण किया गया।
फ़ार्सी में इस किताब का शीर्षक ‘ख़ूने दिली के लाल शुद’ है जबकि इसके उर्दू अनुवाद पर आधारित किताब का नाम ‘ज़िंदां से परे रंगे चमन’ है।
फ़ोटोज़ साभार कामयार ख़तीबी
ग़ज़ा के मसले में सरकारों का दायित्व है कि ज़ायोनी सरकार की राजनैतिक, प्रचारिक, सामरिक मदद और प्रयोग की वस्तुओं की सप्लाई बंद करें। यह सरकारों की ज़िम्मेदारी है। अवाम की ज़िम्मेदारी है कि सरकारों पर दबाव डालें कि वे अपने फ़र्ज़ पर अमल करें।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 2024
ग़ज़ा के वाक़ए ने पश्चिमी सभ्यता को बेनक़ाब कर दिया। पश्चिमी सभ्यता में इतनी बेरहमी है कि अस्पतालों पर हमले करते हैं, एक रात के अंदर सैकड़ों इंसानों को क़त्ल कर डालते हैं, चार महीने की मुद्दत में लगभग 30 हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 2024
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पैदाइश का दिन अज़ीम दिन है। तीन शाबान की महानता को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की महानता की एक झलक के तौर पर देखने की ज़रूरत है।
इमाम ख़ामेनेई
12 जून 2013
सन 2023 ऐसी स्थिति में ख़त्म हुआ कि क़ाबिज़ ज़ायोनियों के ज़ुल्म व अपराध के सामने फ़िलिस्तीनी मुजाहिदों की बहादुरी और ग़ज़ा की औरतों और बच्चों की दृढ़ता दिन प्रतिदिन बढ़ती रही और नए साल में भी जारी है। इस दौरान ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ एक नया मोर्चा खुल गया है जिससे न सिर्फ़ यह कि इस शासन की विश्व स्तर पर साख पहले से ज़्यादा कलंकित हुयी बल्कि उस पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ा है।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई की किताब "ख़ूने दिली के लाल शुद" के उर्दू और बंगाली अनुवाद पर आधारित किताब का 11 फ़रवरी 2024 को दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय किताब मेले में अनावरण किया गया। उर्दू अनुवाद का शीर्षक "ज़िन्दां से परे रंगे चमन" है।
आज भी और हर दौर में पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाएं सारी इंसानियत के लिए हैं। जिस तरह उस ज़माने में पैग़म्बर ने लोगों को बुतों से दूरी और बुतों को तोड़ देने की दावत दी आज भी यही दावत मौजूद है। यह ख़ुद हमसे रसूले इस्लाम और बेसत का मुतालबा है।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 2024
अगर मुसलमान अपनी इस्लाह कर लें और इंसानियत के सामने इस्लाम का अस्ली और वास्तविक नमूना पेश करें तो इंसानियत इस्लाम की ओर आकर्षित हो जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 2024
हालिया बरसों में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की ओर से तथ्यों को बयान करने के जेहाद पर लगातार बल दिया जाना, इस विषय की अहमियत को दर्शाता है जो आज इस्लामी इंक़ेलाब की अहम बहसों में तबदील हो चुका है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि पूरे इतिहास में इंसानियत के लिए दुनिया में होने वाला सबसे मुबारक और सबसे अज़ीम वाक़या नबी-ए-अकरम की बेसत है। उन्होंने कहा कि ग़ज़ा के मसले में सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि ज़ायोनी शासन को राजनैतिक, प्रचारिक, हथियारों और इस्तेमाल की चीज़ों की मदद रोक दें। क़ौमों की ज़िम्मेदारी इस बड़ी ज़िम्मेदारी को अंजाम देने के लिए सरकारों पर दबाव डालना है।
ईदे बेसत (पैग़म्बर की पैग़म्बरी के एलान) के पावन मौक़े पर मुल्क के बड़े अधिकारियों, इस्लामी मुल्कों के राजदूतों और क़ुरआन के अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबलों में शामिल होने वालों ने 8 फ़रवरी की सुबह आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने ईदे बेसत (पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के एलान) के मुबारक मौक़े पर मुल्क के बड़े अधिकारियों, इस्लामी मुल्कों के राजदूतों और प्रतिनिधियों और अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों से गुरूवार 8 फ़रवरी की सुबह मुलाक़ात की।
यह मुसीबत इस्लामी जगत की मुसीबत है बल्कि इससे भी बड़ी यह इन्सानियत की मुसीबत है। यह इस बात की ओर इशारा करती है कि मौजूदा वर्ल्ड ऑर्डर, कितना नाकारा सिस्टम है।
इस्लामी दुनिया के ओलमा, बुद्धिजीवी, नेता और पत्रकार बिरादरी अवाम में मांग पैदा करें कि उनकी सरकारें ज़ायोनी सरकार पर वार करने पर मजबूर हों। हम यह नहीं कहते कि जंग शुरू कर दें, वो जंग नहीं करेंगी और कुछ के लिए शायद मुमकिन भी न हो, लेकिन आर्थिक रिश्ते तो तोड़ ही सकती हैं।
इमाम ख़ामेनेई
5 फ़रवरी 2024
मैंने सुना कि कुछ इस्लामी देश ज़ायोनी सरकार को हथियार दे रहे हैं, कुछ हैं जो अलग अलग रूप में आर्थिक मदद कर रहे हैं। यह अवाम का काम है कि इसे रुकवाएं। अवाम दबाव डाल सकते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
5 फ़रवरी 2024
अहम हस्तियों, ओलमा, बुद्धिजीवियों, नेताओं और पत्रकारों की ज़िम्मेदारी है कि अवामी सतह पर मुतालबा पैदा करें कि सरकारें ज़ालिम ज़ायोनी सरकार पर ज़ोरदार वार करें।
इमाम ख़ामेनेई
5 फ़रवरी 2024
पिछले कुछ दशकों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और क़ानून की जानकार सोसायटी के सामने जो एक बड़ी चुनौती रही है वो शांति और जंग के मुख़्तलिफ़ हालात में मीडिया कर्मियों की सुरक्षा की है। अगरचे बीसवीं सदी के आरंभिक बरसों में जंग के हालात में क़ैदी रिपोर्टरों के सपोर्ट में हेग के सन 1907 के कन्वेन्शन जैसे अंतर्राष्ट्रीय क़ानून बनाए गए लेकिन इस सदी के दूसरे भाग में रिपोर्टरों के काम के क़ानूनी पहलू पर ख़ास ध्यान दिया गया। इस सिलसिले में जनेवा के चार पक्षीय 1977 के पहले अडिश्नल प्रोटोकॉल का उल्लेख किया जा सकता है जिसमें रिपोर्टिंग की शब्दावली में, जिसे अडिश्नल प्रोटोकॉल में इस्तेमाल किया गया है, उन सभी लोगों को शामिल किया गया है जो मीडिया से जुड़े हुए हैं कि जिनमें रिपोर्टर, कैमरामेन, वॉइस टेक्निशियन वग़ैरह शामिल हैं। इस प्रोटोकॉल के मुताबिक़, जंग के इलाक़ों में ख़तरनाक पेशावराना काम करने वाले रिपोर्टरों की आम नागरिकों की हैसियत से हिमायत की गयी है और उन्हें वो सारे अधिकार दिए गए हैं जो आम नागरिकों को दिए जाते हैं, अलबत्ता इस शर्त के साथ कि वो कोई ऐसा काम न करें जो आम नागरिक की हैसियत से उनकी पोज़ीशन से टकराता हो। दूसरी ओर यूएनओ की सेक्युरिटी काउंसिल ने सन 2006 के प्रस्ताव नंबर 1674 और सन 2009 के प्रस्ताव नंबर 1894 को मंज़ूरी दी जिनका मक़सद झड़पों में आम नागरिकों की हिमायत है और इसी तरह उसने रिपोर्टरों और मीडिया कर्मियों की हिमायत में सन 2006 में प्रस्ताव नंबर 1738 को पास किया। सन 2015 में मंज़ूर होने वाला प्रस्ताव नंबर 2222 भी झड़प और जंग के हालात में रिपोर्टरों सहित मीडिया कर्मियों की रक्षा पर बल देता है और रिपोर्टरों के काम को जातीय सफ़ाए के बारे में सचेत करने वाला एक मेकनिज़्म बताता है।
इसके बावजूद, लड़ने वाले पक्षों द्वारा रिपोर्टरों की जान की रक्षा किए जाने पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और क़ानूनी संगठनों द्वारा बल दिए जाने के बरख़िलाफ़, सन 2002 से लेकर सन 2003 तक रिपोर्टरों के ख़िलाफ़ हिंसक व्यवहार अपनाया गया। इस बीच सन 2023 के आंकड़ों पर दो पहलुओं से ध्यान दिए जाने की ज़रूरत हैः पहला पहलु पिछले बरसों की तुलना में हिंसा के आंकड़े इज़ाफ़ा दिखाते हैं, जैसा कि ग़ज़ा जंग में कुछ महीनों में मारे जाने वाले मीडिया कर्मियों की तादाद सन 2002 और सन 2003 में मारे जाने वाले रिपोर्टरों से भी ज़्यादा है। दूसरा पहलू, आंकड़े के मुताबिक़ मारे गए सभी रिपोर्टर जंग के एक ही पक्ष के हाथों ही मारे गए हैं।
सोमवार 5 फ़रवरी 2024 को सुबह इस्लामी इंक़ेलाब की सालगिरह के मौक़े पर अपनी पारंपरिक सालाना मुलाक़ात के तहत एयर फ़ोर्स और फ़ौज की एयर डिफ़ेन्स फ़ोर्स के कमांडर, आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मिलने इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े पहुंचे, ताकि उनकी ‘बैअत’ (आज्ञापालन के वचन) को दोहराएं।
वायु सेना और आर्मी के एयर डिफ़ेंस डिपार्टमेंट के कमांडरों की इस्लामी क्रांति के नेता से मुलाक़ात, इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयतुल्लाह ख़ामेनेई का प्रवेश, क़ौमी तराना पढ़ा गया।
5 फ़रवरी 2024
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने सोमवार 5 फ़रवरी की सुबह एयर फ़ोर्स और फ़ौज के एयर डिफ़ेन्स विभाग के कुछ कमांडरों से मुलाक़ात में अमरीका की ओर से ज़ायोनी शासन के सपोर्ट से ग़ज़ा में मानवता को शर्मसार करने वाले ज़ुल्मों की ओर इशारा करते हुए, ज़ायोनी शासन पर निर्णायक वार किए जाने पर ताकीद की।
एयरफ़ोर्स के कर्मचारियों की ओर से 8 फ़रवरी 1979 को इमाम ख़ुमैनी की ऐतिहासिक बैअत (आज्ञापलन के वचन) की सालगिरह के मौक़े पर मुल्क की एयरफ़ोर्स और फ़ौज के एयर डिफ़ेन्स विभाग के कुछ कमांडरों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से 5 फ़रवरी 2024 को इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस ऐतिहासिक वाक़ये की अहमियत और इस्लामी समाज के ख़वास और विशिष्ट लोगों के वर्ग की मुख्य हैसियत और ज़िम्मेदारियों पर रौशनी डाली।(1)
“ग़ज़ा के संबंध में भविष्यवाणियां पूरी तरह सही साबित हो रही हैं। शुरू से ही हालात पर नज़र रखने वालों ने यहां भी और दूसरी जगहों पर भी यह भविष्यवाणी की थी कि इस मसले में फ़िलिस्तीन का रेज़िस्टेंस फ़्रंट फ़ातेह होगा। इस जंग में हार, दुष्ट व मनहूस ज़ायोनी फ़ौज की होगी। ज़ायोनी फ़ौज क़रीब 100 दिन से जारी अपराध के बाद भी अपना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी है। उसने कहा कि हमास को ख़त्म कर देंगे, न कर सकी। उसने कहा कि ग़ज़ा के लोगों का कहीं और पलायन करा देंगे, वो न कर सकी। उसने कहा कि रेज़िस्टेंस फ़्रंट के हमले रुकवा देंगे, वो यह भी न कर सकी।”
यह 9 जनवरी को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की स्पीच का एक हिस्सा है जिसमें उन्होंने ग़जा पट्टी में अपने लक्ष्य को हासिल करने में ज़ायोनी फ़ौज की नाकामी की ओर इशारा किया। अब जबकि ग़ज़ा पट्टी पर ज़ायोनी फ़ौज के हमले को 100 दिन से ज़्यादा हो गए हैं, अपने इन लक्ष्यों को हासिल करने में तेल अबीब की नाकामी पहले से कहीं ज़्यादा उजागर हो गयी है, जिन्हें हासिल करने का उसने प्रण किया था।
प्राइवेट सेक्टर के प्रोडक्शन केन्द्रों ने उल्लेखनीय विकास किया है। यह बहुत अहम ख़बर है। क्यों? इसलिए कि यह प्रगति और विकास और अंजाम पाने वाले काम सब कुछ प्रतिबंधों के ज़माने में हुआ।
इमाम ख़ामेनेई
30 जनवरी 2024
हमने घरेलू पैदावार की क्षमताओं की जिस नुमाइश का कल मुआइना किया, वह बड़ी हैरत अंगेज़ और शानदार नुमाइश थी। मेरा ख़याल है कि इस प्रदर्शनी को ईरान की सांइसी व तकनीकी ताक़त के नमूने के तौर पर पहचनवाया जा सकता है।
इमाम ख़ामेनेई
30 जनवरी 2024
देश के उद्योग व प्रोडक्शन के मैदानों में सक्रिय अहम लोगों ने मंगलवार 30/1/2024 की सुबह इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
रज़ब का महीना, दुआ का महीना है, तवस्सुल का महीना है। अल्लाह का शुक्र है कि चौदह मासूमों की ओर से इस महीने में जो विश्वसनीय दुआएं आयी हैं वो बहुत अच्छी और उच्च अर्थों वाली दुआएं हैं। इन्शाअल्लाह, इनसे फ़ायदा उठाया जाए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मंगलवार की सुबह देश के उद्योग व उत्पादन के क्षेत्रों में सरगर्म क़रीब 1000 लोगों से मुलाक़ात की। उन्होंने बड़े लक्ष्य को हासिल करने में निजी सेक्टर की प्रभावी क्षमताओं की ओर इशारा करते हुए, काम काज और कारोबार के मैदान में रुकावटों को दूर करने में सरकार के सपोर्ट और प्राइवेट सेक्टर की ओर से ज़िम्मेदारी क़ुबूल किए जाने पर बल दिया और इन्हें मुल्क के हालात को बेहतर बनाने तथा भरपूर तरक़्क़ी की राह समतल करने वाली दो बहुत अहम ज़रूरतें क़रार दिया।
इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 30 जनवरी 2024 को कारख़ानों के मालिकों और व्यवसियों से मुलाक़ात में आर्थिक विकास में प्राइवेट सेक्टर के योगदान के महत्व के बारे में बात की। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने प्राइवेट सेक्टर और सरकार को इसी संदर्भ में कुछ निर्देश दिए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 17 जनवरी 2024 को मुल्क के नमाज़े जुमा के इमामों से मुलाक़ात में नमाज़े जुमा के महत्व और नमाज़े जुमा के इमामों की ज़िम्मेदारियों पर बात की। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ग़ज़ा जंग और यमन की ओर से फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में उठाए गए महत्वपूर्ण क़दमों का भी ज़िक्र किया।
इस्लामी क्रांति के नेता ने सोमवार 29 जनवरी की सुबह उत्पादन के मैदान में देश के विभिन्न उत्पादों की एक प्रदर्शनी का निरीक्षण किया। इस प्रदर्शनी का आयोजन इस्लामी क्रांति के नेता से देश के अहम उद्योगपतियों और व्यवसायियों की मुलाक़ात से पहले किया गया है।
इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने सोमवार की सुबह तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयोजित इस नुमाइश में देश की प्रोडक्शन क्षमताओं का मुआयना किया।