सवालः इस साल जब हज अंजाम दिया जा रहा है, इस्लामी जगत के एक अहम भाग यानी फ़िलिस्तीनी और ग़ज़ा में मुसलमानों पर बेइन्तेहा ज़ुल्म हो रहे हैं, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस बात पर बल दिया कि इस्लामी जगत अपनी शानदार सालाना सभा यानी हज में इस अहम मसले व त्रासदी को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, इसलिए इस साल के हज को आपने ‘बराअत का हजʼ क़रार दिया है। इस संबंध में आपके क्या विचार हैं?

जी बेशक! देखिए ‘बराअत का हजʼ क़रार देना, बराअत के मानी दूरी के हैं और निश्चित तौर पर लोगों में जागरुकता आनी चाहिए और हमारे पास हज से बड़ा कोई प्लेटफ़ार्म भी नहीं है। क्योंकि इस्लामी जगत हज के मौक़े पर जमा होता है, पूरी दुनिया के लोग आते हैं और अलहम्दुलिल्लाह अब यह हुआ है कि लोगों में जागरुकता आयी है, पूरी दुनिया जागरुक हुयी है, फ़िलिस्तीनी के मसले को समझ रही है, पूरी दुनिया में प्रोटेस्ट हो रहे हैं, सारी दुनिया की यूनिवर्सिटियां ख़ुद अमरीका के अंदर, यूरोप के अंदर, ऑस्ट्रेलिया के अंदर हर जगह लोग आवाज़ उठा रहे हैं, स्कूल के बच्चे बाहर निकल रहे हैं, स्टाफ़ बाहर निकल रहा है, लोग निंदा कर रहे हैं, लेकिन हक़ीक़त यह है कि मुसलमान अभी पूरी तरह से जागरुक नहीं हुआ है, दुनिया जागरुक हो रही है और हज में जब पूरी दुनिया के लोग आते हैं तो ज़रूरत इस बात की है इन तमाम लोगों के ज़रिए पैग़ाम दिया जाए। "पूरा इस्लामी जगत एक शरीर के समान" वाला अक़ीदा मौजूद है और पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है तो आख़िर हमें यह एहसास क्यों नहीं हो रहा है और इस एहसास को दूसरों में पैदा किया जाए और इस हज के पूरे लाभ को हासिल किया जाए।

सवालः इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी इस नीति के लिए क़ुरआन की इस आयत को आधार क़रार दियाः "और हमारे और तुम्हारे दरमियान अदावत और बुग़्ज़ पैदा हो गया..." (सूरए मुम्तहना, आयत-4) आप इसकी किस तरह व्याख्या करेंगे?

जी यह सवाल कि "और हमारे और तुम्हारे दरमियान अदावत और बुग़्ज़ पैदा हो गया..." (सूरए मुम्तहना, आयत-4) तो अल्लाह ने इंसान की फ़ितरत में भलाई के लिए मोहब्बत और बुराई से नफ़रत और उससे दुश्मनी डाली है और यही वजह है कि इंसान न्याय को पसंद करता है, ज़ुल्म को नापसंद करता है और अच्छे लोगों से उसे मोहब्बत होती है, बुरे लोगों से दूर रहना चाहता है, सच और झूठ इसमें भी यही मामला है, जबकि धर्म की बुनियाद ही मोहब्बत है लेकिन मोहब्बत चरम पर उस वक़्त पहुंचेगी जब भलाई के लिए मोहब्बत हो और बुराई के लिए दिल में नफ़रत हो और दुश्मनी पाई जाती हो और इस बुनियाद के ऊपर क़ुरआन मजीद की जिस आयत को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने फ़िलिस्तीन के संबंध में अपनी नीति में उसका इशारा किया, बिल्कुल मुनासिब है, क्योंकि देख भी सकते हैं आप कि इस वक़्त फ़िलिस्तीन के मसले में पूरी दुनिया एक हो रही है और पूरी दुनिया के लोग जिनका कोई भी धर्म हो, ईसाई हैं, हिंदु हैं, ख़ुद यहूदी भी क्योंकि मामला धर्मों और फ़िरक़ों का नहीं है, ज़ालिम और मज़लूम का है, फ़िलिस्तीनी मज़लूम हैं, इसलिए इस उसूल की बुनियाद पर मज़लूमों से मोहब्बत, इस उसूल की बुनियाद पर ज़ालिम से नफ़रत।

सवालः बराअत के एलान की हद और उसका दायरा क्या है?

बिल्कुल देखिए इसका दायरा तो यह है कि जागरुकता अभियान चल रहा है पूरी दुनिया में चल रहा है। सुबह शाम चर्चा हो रही है, सोशल मीडिया पर भी वायरल है लेकिन इसको बहुत ज़्यादा वायरल करने की ज़रूरत है, लोग अपने स्कूल में, कालेजों में, नौकरी पर, बिज़नेस में, जिन लोगों के साथ उठते बैठते हैं, जिनसे उनके संबंध हैं, इसको जितना आम कर सकते हैं उतना आम करें। क्योंकि इसका फ़ायदा यह होगा कि मज़लूम की मज़लूमियत का दुनिया को पता चलेगा, ज़ुल्म से नफ़रत होगी और ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया के सभी शरीफ़ इंसान अगर इस मसले पर एकमत हो गए, इस जागरुकता अभियान को उन्होंने आगे चलाया तो उसके नतीजे में इस्राईल और अमरीका जिनकी हमेशा यह नीति रही है कि जो मज़लूम के हक़ में बोलता था उसको तनहा करते थे। अब वक़्त आ गया है कि उन्हें अलग थलग किया जाए, उन्हें अकेला कर दिया जाए कि इंसानी समाज में रहने के लायक़ ये लोग नहीं हैं।