इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का ख़ेताबः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

सबसे पहले तो आप सबका स्वागत है। असाधारण प्रतिभा वालों और काम के लिए तैयार नौजवानों से मुलाक़ात हर इंसान को सचमुच ख़ुश करने वाली और उम्मीद जगाने वाली होती है। मुझे नौजवानों पर बहुत भरोसा है। बहुत से लोग हैं जो, मैंने इन बरसों के दौरान अधिकारियों से जो बातें की हैं उनके आधार पर मैं समझता हूं और देखता हूं, कि नौजवानों और नौजवानी के जोश व जज़्बे की क़द्र व क़ीमत को सही तरीक़े से नहीं समझते, उन्हे नौजवानों से बहुत उम्मीद नहीं है। मुझे नौजवानों से बहुत उम्मीद है।

पहली बात तो यह कि आप मुल्क के लिए एक संपत्ति हैं, पूरी नौजवान नस्ल ख़ास तौर पर असाधारण प्रतिभा वाले नौजवान हक़ीक़त में मुल्क के लिए एक संपत्ति हैं। सही है कि मेडल की अहमियत है, इन मेडलों की क़द्र व क़ीमत है और इनमें से हर एक फ़ख़्र करने का सबब है, लेकिन असाधारण प्रतिभा के नौजवानों की क़ीमत, मेडल की क़द्र व क़ीमत से बहुत अलग है, असाधारण प्रतिभा वाले नौजवान की क़द्र व क़ीमत इन चीज़ों से कहीं ज़्यादा है।

आप एक प्रतिकूल माहौल को शत प्रतिशत अनुकूल माहौल में बदल सकते हैं। आप इतिहास का धारा मोड़ सकते हैं, आप इतिहास को बदल सकते हैं। अफ़सोस कि आपका इतिहास का अध्ययन कम है, आम तौर पर नौजवान के पास इतिहास का अध्ययन कम होता है, अगर आप इतिहास पढ़ें तो देखेंगे कि इतिहास में उतार चढ़ाव होता है और हमारा मुल्क जो इतिहास के मुख़्तलिफ़ बदलाव का केन्द्र है, बहुत सी जगहों पर सचमुच मानो नक़्शे से पूरी तरह मिट गया, यानी मुल्क की हालत ऐसी थी। इसके बाद आप देखते हैं कि अचानक, एक अर्से के बाद अब बिल्कुल अलग है, वह मुल्क जो हक़ीक़त में खाई में चला गया था, ऐसा शानदार हो गया, उसे ऐसी अज़मत हासिल हो गयी कि जब आप उसे देखते हैं तो पाते हैं कि उसमें मैन पावर का प्रभाव रहा है। ' मैन पावर' से बिल्कुल भी राजनीति, राजनेताओं, अधिकारियों को मुराद नहीं लेना चाहिए, जी नहीं, वो कुछ मौक़ों और कुछ जगहों पर प्रभावी रहे हैं, उनका असर बुरा नहीं था, मैन पावर अस्ल में वैज्ञानिक, वैचारिक, नैतिक और आध्यात्मिक तत्वों का समूह था और मुल्क ने उनके ज़रिए तरक़्क़ी हासिल की।

उस वक़्त से जब साम्राज्यवाद हमारे मुल्क में दाख़िल हुआ, अलबत्ता हम बाज़ाब्ता तौर पर उपनिवेश नहीं बने लेकिन भीतर से हमारे यहां भी साम्राज्यवाद था यानी मुल्क में ग़ैरों के शासन और संस्कृतियों का प्रभुत्व पाया जाता था। मुल्क पतन व खाई की ओर बढ़ गया यानी मिसाल के तौर पर सन 1800 ईसवी के वर्षों से जब ब्रितानी एजेंट पहली बार भारत से हमारे मुल्क में आया और बंदर अब्बास या बूशहर से ईरान पहुंचा, मुझे सही से याद नहीं है, तो उसने भ्रष्टाचार शुरू कर दिया, यानी अपने आने के पहले दिन उसने उस शहर के शासक को जहाँ वह सबसे पहले पहुंचा था, रिश्वत दी, उसे अपने साथ मिला लिया, फिर उसकी मदद से दूसरे शहर पहुंचा, वहाँ भी रिश्वत दी, यहाँ तक कि वह तेहरान पहुंचा और शाह को रिश्वत दी, शहज़ादों को रिश्वत दी! फ़त्ह अली शाह के ज़माने में, मतलब यह कि ये लोग धीरे-धीरे मुल्क पर छा गए, उन्होंने हमारी संस्कृति को बर्बाद कर दिया, वैज्ञानिक तरक़्क़ी से हमें वंचित कर दिया, राजनैतिक सूझबूझ और राजनैतिक कारकों से हमे बहुत पहले ही निचले दर्जों पर बाक़ी रखा, यहाँ तक कि इंक़ेलाब आ गया।

इंक़ेलाब ठीक उसकी विपरीत दिशा में बढ़ा। इंक़ेलाब ने मुल्क में तेज़ी से आगे बढ़ने की स्थिति पैदा कर दी। मुख़्तलिफ़ मैदानों में इंक़ेलाब की तरक़्क़ी की छलांग बहुत स्पष्ट व रौशन है, आप राजनैतिक मैदान में यह तरक़्क़ी देख सकते हैं, वैज्ञानिक मैदान में यह छलांग देख सकते हैं, टेक्नॉलोजी के मैदान में यह छलांग देख सकते हैं, सामाजिक नैतिकता के मैदान में यह छलांग देख सकते हैं, इन सभी मैदानों में इंक़ेलाब ने उड़ान की स्थिति पैदा कर दी। इंक़ेलाब को कौन वजूद में लाया? मैन पावर, जिसमें ज़्यादातर तादाद नौजवानों की थी, मतलब यह कि मैन पावर का रोल यह है और यह नौजवान जितना ज़्यादा ग़ौर व फ़िक्र करने वाला, फ़ैसला करने वाला और मज़बूत इरादे का मालिक होगा, उतना ही यह असर ज़्यादा और गहरा होगा। आप दुआए कुमैल में पढ़ते हैं 'क़व्वे अला ख़िदमतेका जवारेही' पहले यह है। जवान के अंग ज़्यादा मज़बूत होते हैं। 'वशदुद अलल अज़ीमते जवानेही' (2) ऐ अल्लाह! मेरे दिल को फ़ैसले की ताक़त से मज़बूत बना दे। नौजवानों में फ़ैसले की ताक़त ज़्यादा होती है, वग़ैरह वग़ैरह, मैं आपको दुआए कुमैल के मानी नहीं समझाना चाहता। जवान ऐसा होता है।

आप मुल्क में बदलाव ला सकते हैं, उसे अच्छे रास्ते पर आगे बढ़ा सकते हैं, आपकी कुछ चिंताएं हैं, आप वाक़ई उन चिंताओं को दूर करने की राह में कोशिश कर सकते हैं। आप इस बात का इंतेज़ार न कीजिए कि मुझ जैसा कोई आपसे यह कहे कि आप इन चिंताओं को दूर करने के लिए यह कीजिए और वह कीजिए! नहीं, आप ख़ुद सोचिए, सोचिए, रास्ता ढूंढिए, मिल बैठिए, आपस में सहयोग कीजिए, वैचारिक लेहाज़ से एक दिशा में सोचिए और उन रुकावटों को दूर करने के लिए रास्ता तलाश कीजिए, वैचारिक रास्ते तलाश कीजिए, ऐसे रास्ते ढूंढिए जो आपके लिए उचित हैं! मेरे विचार में, आप लोग बहुत से काम कर सकते हैं।  

मैंने आपसे कहने के लिए दो बातें नोट की हैं। एक बात यह है कि असाधारण प्रतिभा, एक शैली है, एक राह है, एक ठप्प पड़ा हुआ, रुका हुआ रास्ता नहीं है। यह वह बात थी जिसकी ओर एक साहब ने इशारा भी किया और मुझे बहुत अच्छा लगा। ऐसा नहीं है कि हम कहें कि अब जबकि हम असाधारण सलाहियत के मालिक बन चुके हैं तो बात ख़त्म हो गयी, नहीं, यह तो शुरूआत है, एक राह की शुरूआत है। आपने मेडल हासिल किया या मिसाल के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर एंट्रेंन्स इम्तेहान में आपकी रैंक बहुत अच्छी आयी, तो यह सिर्फ़ उस राह की शुरूआत है, उस राह पर आपको आगे बढ़ना चाहिए। राह की तरक़्क़ी का क्या मतलब है? इसका मतलब है क्रिएटिव सलाहियत, जहाँ आप वैचारिक काम कर रहे हों वहाँ वैचारिक क्रिएटिविटी, जहाँ प्रैक्टिकल काम कर रहे हों वहाँ प्रैक्टिकल क्रिएटिवियी। इल्म व साइंस के मैदान में, टेक्नॉलोजी के मैदान में, नैतिकता और अध्यात्म को बढ़ावा देने के मैदान में काम कीजिए, कोशिश कीजिए। उसका एक बड़ा हिस्सा ख़ुद आपके ज़िम्मे है और एक बड़ा हिस्सा अधिकारियों के ज़िम्मे है, मतलब यह कि संबंधित मंत्रालय प्रभावी हैं, असाधारण प्रतिभा के लोगों की सोसाइटी प्रभावी है, प्रतिनिधि कार्यालय प्रभावी हैं, ख़ुद यूनिवर्सिटी के अंदर अधिकारी, मुख़्तलिफ़ अधिकारी जैसे चांसलर प्रभावी हैं, इन कामों को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए, एक संपूर्ण शैली तैयार की जानी चाहिए। बहरहाल इस बात पर ध्यान दीजिए कि असाधारण सलाहियत होना, मंज़िल नहीं है, अब जब आपके पास असाधारण प्रतिभा है तो यह एक रास्ता और एक अभियान का आग़ाज़ है।

एक दूसरी बात जो मेरी नज़र में अहम है यह है कि हमारे मुल्क ने क़रीब सन 2000 से साइंस के मैदान में एक तेज़ रफ़्तार अभियान शुरू किया, साइंस के मैदान में एक छलांग लगायी है। अलबत्ता 1980-90 के दशक में भी वैज्ञानिक काम हो रहे थे लेकिन सन 2000 से या उसके कुछ बाद से, इस वक़्त मुझे ठीक से याद नहीं है, प्रोफ़ेसरों और स्टूडेंट्स के माहौल में एक आम अभियान शुरू हुआ, एक अच्छा इल्मी व वैज्ञानिक अभियान वजूद में आया, इस तरह से कि अंतर्राष्ट्रीय आंकड़े बता रहे थे कि हमारी इल्मी व वैज्ञानिक तरक़्क़ी की रफ़्तार, दुनिया की अवसत रफ़्तार से कई गुना ज़्यादा है। अलबत्ता मैंने उस वक़्त बार बार कहा था (3) कि तरक़्क़ी की रफ़्तार बहुत अच्छी बात है, बहुत अहम है लेकिन ख़ुद तरक़्क़ी हासिल करने के लिए यही पर्याप्त नहीं है। चूंकि हम पीछे रह गए थे इसलिए अगर तरक़्क़ी में हमारी यही रफ़्तार रही तो हम बीच रास्ते में पहुंचेंगे, सबसे आगे नहीं बढ़ेंगे, हमें सबसे आगे की लाइन और फ़्रंटलाइन में पहुंचना है। यह काम सन 2000 से शुरू हुआ लेकिन सन 2010 दशक के आख़िरी बरसों में हमारी रफ़्तार कुछ कम हो गयी। मुझे कुछ आंकड़े दिए गए जिन्हें मैंने नोट किया है और मुझे यह अहम लगते हैं। यह आंशिक हैं लेकिन एक बड़े अहम मसले को चित्रित करते हैं। कहा गया है कि हमने सन 2018 से 2021 के बीच वैश्विक मुक़ाबलों या वैश्विक ओलंपियाड में कुल 26 गोल्ड मेडल हासिल किए जबकि 2022 और 2023 तक के बरसों में हमने 30 गोल्ड मेडल हासिल किए, मतलब यह कि दो साल में, इन चार बरसों से ज़्यादा मेडल हासिल हुए। इन दो बरसों में फिर एक तेज़ रफ़्तार हरकत हुयी लेकिन यह काफ़ी नहीं है, हमें एक वैज्ञानिक अभियान की ज़रूरत है। आप लोग इस सिलसिले में हक़ीक़त में काम कर सकते हैं, प्रभावी हो सकते हैं, आप ख़ुद भी ज़्यादा इल्मी व वैज्ञानिक कोशिश कीजिए और माहौल तैयार कीजिए। यह दूसरी बात हुयी।

इन मैदानों में राजनीति का भी असर रहा है, यानी जैसा कि मैंने इशारा किया कि जब मुल्क में अंग्रेज़ों की राजनीति हावी हो गयी, जो क़रीब 200 साल तक जारी रही, ईरान में अंग्रेज़ों की राजनीति क़रीब 200 साल तक हावी रही अलबत्ता आख़िर में अमरीकियों ने इसे जारी रखा, तो इससे मुल्क को बहुत ज़्यादा नुक़सान हुआ। इस वक़्त अल्लाह की कृपा से हम राजनैतिक संप्रभुता के मालिक हैं, यानी ईरान, इस्लामी गणराज्य, दुनिया के बुनियादी मसलों के सिलसिले में एक तर्क, एक स्टैंड और एक निर्धारित पोज़ीशन रखता है। फ़िलिस्तीन के मसले के बारे में हमारा स्टैंड, दुनिया के मुख़्तलिफ़ वाक़यों के बारे में हमारा स्टैंड है, यानी हमारी बात सुनी जाती है, दुनिया में हमारी बात सुनी जाती है और उस पर ध्यान दिया जाता है, मुमकिन है कि बहुत से लोग इसे न मानें लेकिन इस स्टैंड पर ध्यान दिया जाता है, यह स्वाधीनता है, इसे हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। अब चाहे जो भी सरकार सत्ता में आए, उसका एक अहम मसला यह होना चाहिए कि हम इस राजनैतिक स्वाधीनता की, जो अल्लाह की कृपा से मिली है, रक्षा करें।

एक साहब ने चुनाव की ओर इशारा किया (4) इलेक्शन बहुत अहम है और पहले चरण में अवाम की भागीदारी अहम है और आप, चाहे स्टूडेंट्स के माहौल में, चाहे काम के माहौल में और चाहे घर वग़ैरह में, जहाँ तक हो सके कोशिश कीजिए कि भागीदारी बढ़े। इसके बाद देखिए कि कौन सा उम्मीदवार इंक़ेलाब के मानदंड के ज़्यादा क़रीब है और किस में इंक़ेलाब के मानदंड की राह में काम करने की सलाहियत है, अगर आप इन चीज़ों को देखें तो शायद एक अच्छा चयन कर पाएंगे। हमें उम्मीद है कि इंशाअल्लाह, अल्लाह उस स्थिति को आसानी और बिना चिंता के वजूद में लाए जो इस मुल्क तथा कौम के हित में है।

मेरी बातें ख़त्म हुयीं, एक बार फिर आप सबका स्वागत करता हूं और एक बार फिर आपके उन दोस्तों की सेवा में सलाम अर्ज़ करता हूं जो न आ सके और हम उनके दीदार से वंचित रह गए।

आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।

  1. इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में जो इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की इमामत में ज़ोहर और अस्र की नमाज़ पढ़े जाने के बाद शुरू हुयी, स्कूलों, कालेजों और यूनिवर्सिटियों के ओलंपियाड में मेडल हासिल करने वाले 8 स्टूडेंट्स ने, असाधारण प्रतिभा के मालिक स्टूडेंट्स के मुख़्तलिफ़ मसलों के बारे में अपने विचार पेश किए।
  2. मिस्बाहुल मुतहज्जिद, जिल्द-2, पेज 849
  3. यूनिवर्सिटियों, रिसर्च सेंटरों और साइंस व टेक्नॉलोजी के पार्क्स के अध्यक्षों से मुलाक़ात में ख़ेताब (11/11/2015)
  4. चौदहवें राष्ट्रपति चुनाव जो 28 जून 2024 को आयोजित हुए।