इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की 35वीं बरसी के मौक़े पर 3 जून 2024 को तक़रीर करते हुए रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इमाम ख़ुमैनी के दृष्टिकोण और विचारधारा पर प्रकाश डाला।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई की स्पीच
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
यह बड़ा प्रोग्राम हर साल एक अहम मक़सद के तहत होता है कि जिसकी ईरानी क़ौम को ज़रूरत है और वह मक़सद, इमाम ख़ुमैनी से की गयी प्रतिज्ञा को दोहराना, मुल्क की तरक़्क़ी और इन्क़ेलाब के उच्च उद्देश्यों की तरफ़ बढ़ने और मुल्क चलाने के लिए इमाम ख़ुमैनी के ज़रिए सिखाए गये पाठ से सीख हासिल करना है। इसी तरह हमारे लिए यह मौक़ा है कि हम इमाम ख़ुमैनी के पाठ से फ़ायदा उठाएं जो उनके बयानों में है, उनके लेखन में है और जो हमारे पास है, इसी तरह हम इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं से फ़ायदा उठा सकते हैं जो सच में बेमिसाल हैं, यह सब हमारे लिए पाठ हैं।
आज भी इमाम ख़ुमैनी के नज़रिये और उनके दृष्टिकोण से मैं दो अहम मुद्दों के बारे में बात करना चाहता हूँ जो पिछले साल से लेकर आज के दिन तक सामने आए हैं। इनमें से एक मुद्दा, फ़िलिस्तीन का है जो आज दुनिया का भी सब से पहला मुद्दा है और यह एक बड़े अवामी हमले से शुरु हुआ और उसके बाद से अब तक पूरी दुनिया की नज़रें उस पर टिकी हैं। इससे यह मुद्दा, दुनिया का पहला मुद्दा बन चुका है। दूसरा विषय हमारे प्यारे राष्ट्रपति के निधन का विषय है। (2) जो एक बड़ी दुर्घटना है और इसी तरह हमारे राष्ट्रपति और उनके साथियों की शहादत के मुल्क के अंदर और विश्व स्तर पर बहुत से असर सामने आएंगे। यह इन्क़ेलाब की पूरी तारीख़ की एक अहम घटना है। हम इन दोनों मुद्दों पर इमाम ख़ुमैनी के नज़रिये के हिसाब से नज़र डालेंगे और उन पर चर्चा करेंगे और उसके बाद इन्शाअल्लाह चुनाव और इस सार्वजनिक व राष्ट्रीय कर्तव्य के बारे में हम कुछ बातें कहेंगे।
इमाम ख़ुमैनी की एक ज़बरदस्त सीख और नज़रिया हमें फ़िलिस्तीन के मामले में नज़र आता है, इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी आंदोलन के आरंभ से ही, फ़िलिस्तीन के मुद्दे को उठाया, बहुत सी बातें कहीं, भविष्य का अनुमान लगाया और मुसलमानों और ख़ुद फ़िलिस्तीनियों को बहुत सी सलाह भी दी। इमाम ख़ुमैनी ने 50 साल या उससे पहले फ़िलिस्तीन के भविष्य के बारे में जो अनुमान लगाया था, आज हम उसे धीरे धीरे पूरा होता हुआ देख रहे हैं, फ़िलिस्तीन के बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह स्पष्ट अनुमान, एक बहुत अहम मुद्दा है कि जिस पर मैं बाद में बात करूंगा। निश्चित रूप से इस प्रकार का स्पष्ट अनुमान और भविष्य पर नज़र की जो इमाम ख़ुमैनी की ख़ूबी है वह सिर्फ़ फ़िलिस्तीन के बारे में ही नहीं है, हमारे देश के बहुत से अहम और रोज़मर्रा के मुद्दों के बारे में इमाम ख़ुमैनी का नज़रिया, उनकी बारीक नज़र और उनके अनुमान उन सब की आंखों के सामने व्यवहारिक हुआ जिन्होंने ख़ुद इमाम ख़ुमैनी से उनके बारे में सुना था। इसकी बहुत सी मिसालें हैं। एक मिसाल आंदोलन के शुरुआती दिनों में नज़र आयी, जब इस्लामी आंदोलन इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में शुरुआती दौर में था और शाही सरकार, क़ुम के फ़ैज़िया मदरसे में, क़ुम की सड़कों पर, तेहरान में, किसी भी क़दम को बड़ी बेहरमी से कुचल रही थी तो इन हालात में कि जब संघर्ष करने वालों की संख्या भी बहुत कम थी और उनके सामने एक ज़ालिम व बेरहम सरकार थी तो भी इमाम ख़ुमैनी ने हम नौजवान छात्रों से कहाः “यह लोग जाने वाले हैं आप सब रहने वाले हैं।” (3) उस दौर में जो लोग राजनीतिक मुद्दों का विश्लेषण करते थे और विभिन्न देशों में होने वाले आंदोलनों और संघर्षों पर नज़र रखते थे उन्हें इमाम ख़ुमैनी की इन बातो पर हैरत होती थी लेकिन इमाम ख़ुमैनी ने जो कहा था वही हुआ।
एक मिसाल इमाम ख़ुमैनी की बरकतों वाली उम्र के आख़िरी दिनों में नज़र आयी और वह वही बात है जो इमाम ख़ुमैनी ने पूर्व सोवियत संघ के प्रमुख के नाम ख़त में कही थी (4) और यह तो इतिहास में सदा बाक़ी रहने वाली चीज़ है। उस दौर में जब सोवियत संघ अपनी ताक़त के शिखर पर नज़र आ रहा था, इमाम ख़ुमैनी ने कहा कि वह कम्यूनिस्ट शासन की हड्डियों के टूटने की आवाज़ें सुन रहे हैं, उस दौर में कोई यह सोच भी नहीं सकता था लेकिन इमाम ख़ुमैनी ने यह बात कही और बहुत जल्द ही वही हुआ जो इमाम ख़ुमैनी ने कहा था।
इमाम ख़ुमैनी ने फ़िलिस्तीन के मुद्दे को इस नज़रिये और इस तरह की विचारधारा के साथ उठाया। फ़िलिस्तीन के मामले में इमाम ख़ुमैनी के नज़रिये और इच्छा का सार यह था कि ज़ायोनियों से सौदे व समझौते पर केन्द्रित वार्ता से उम्मीद न रखी जाए। उम्मीद न रखें, आशा न रखें, यह उम्मीद न रखें कि बात चीत से फ़िलिस्तीन की समस्या का समाधान हो जाएगा और इस मामले में न्याय कर दिया जाएगा, यह इमाम ख़ुमैनी की बातों का सार था। उनका मानना था कि फ़िलिस्तीनी जनता को ख़ुद मैदान में उतर कर अपना हक़ लेना चाहिए और दुश्मन यानी ज़ायोनी शासन को पीछे हटने पर मजबूर करना चाहिए, उसे कमज़ोर करना चाहिए और दुनिया की सभी क़ौमों, ख़ास तौर पर इस्लामी सरकारों को फ़िलिस्तीन का समर्थन करना चाहिए, वे हमेशा यह दोहराते थे कि अगर क़ौमें मैदान में आ जाएं, ख़ुद फ़िलिस्तीनी आगे बढ़ें और संकल्प करें तो अगर यह हो जाए तो ज़ायोनी शासन पीछे हटने पर मजबूर हो जाएगा, आज यही हो रहा है जिसके बारे में मैं बात करूंगा।
फ़िलिस्तीनियों ने अलअक़्सा तूफ़ान के तहत मैदान में उतरने का फ़ैसला किया, उतरे और कार्यवाही की और दुश्मन को मैदान के एक कोने में इस तरह से फंसा दिया कि उसके पास अब भागने और बचने का कोई रास्ता ही नहीं है। जी हां अमरीका ज़ायोनी शासन की मदद कर रहा है, बहुत सी पश्चिमी सरकारें भी उसका साथ दे रही हैं, लेकिन इसके साथ ही सभी यह भी मान रहे हैं कि ज़ायोनी शासन जिन परिस्थितियों में फंस गया है उसमें उसके बचाव का कोई रास्ता नहीं है। फ़िलिस्तीनी जनता की इस अहम कार्यवाही के बारे में मैं यहाँ पर कुछ बातें कहना चाहूँगा।
अलअक़्सा तूफ़ान के मामले में दो बुनियादी बातें हैं कि जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए, दो अहम और बुनियादी बिन्दु हैं। एक बिन्दु यह है कि यह 7 अक्तूबर को जो तूफ़ान अलअक़्सा ऑप्रेशन हुआ है उसकी हमारे इलाक़े को ज़रूरत थी, हमारे इलाक़े को इस तरह की कार्यवाही की ज़रूरत थी, यह कार्यवाही इलाक़े की एक बड़ी ज़रूरत को पूरा करने के लिए थी जिसके बारे में मैं अभी बात करुंगा। दूसरी बात यह है कि यह कार्यवाही, ज़ायोनी शासन पर एक निर्णायक चोट थी, वह चोट जिसका कोई इलाज नहीं, और ज़ायोनी शासन इस चोट की वजह से ऐसी समस्याओं में फंस गया है कि जिन से निकलना मुमकिन नहीं है।
यह जो मैंने कहा कि अलअक़्सा तूफ़ान ऑप्रेशन इलाक़े की ज़रूरत को पूरा करने के लिए था तो इस बात को मैं इस तरह से स्पष्ट करूंगा कि दरअस्ल अमरीका ने ज़ायोनियों और उनके पिट्ठुओं और कुछ क्षेत्रीय सरकारों के ज़रिए एक व्यापक मंसूबा और कार्यक्रम तैयार कर लिया गया था और इसी प्लान की बुनियाद पर इलाक़े के समीकरण और हालात बदलने वाले थे। इस प्लान के तहत ज़ायोनी शासन की इच्छा के अनुसार, इलाक़े की सरकारों से उसके संबंध बनते और उसका अर्थ यह होता कि ज़ायोनी शासन पूरे पश्चिमी एशिया के इलाक़े बल्कि पूरे इस्लामी जगत की राजनीति और अर्थ व्यवस्था पर पंजे गाड़ देता, एक बड़ा प्लान तैयार किया गया था कि जिसका यह नतीजा निकलता। उन्होंने बहुत सी भूमिकाओं की मदद से इस प्लान पर काम भी शुरु कर दिया था, अमरीका इस प्लान के पीछे थे, ब्रिटेन इस प्लान के पीछे था, इन्टरनैश्नल ज़ायोनी लाबी का हाथ भी इस प्लान के पीछे था, हमारे इलाक़े की कुछ सरकारें भी पूरी गंभीरता के साथ इस प्लान में सहयोग कर रही थीं, यह प्लान अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था, यानी यह प्लान और दीर्घकालिक योजना बस व्यवाहरिक होने ही वाली थी। इन संवेदनशील परिस्थितियों में अल अक़्सा तूफ़ान नामक कार्यवाही शुरु हुई और दुश्मन की सारी योजनाओं पर पानी फिर गया। 7 अक्तूबर को आने वाले तूफ़ान ने बड़ी बारीकी से तैयार किये गये दुश्मन के प्लान को नाकाम बना दिया और इन 8 महीनों के दौरान जिस तरह के हालात सामने आए हैं उनके मद्देनज़र अब इस बात की संभावना भी नहीं कि वो लोग इस प्लान में दोबारा प्राण फूंक पांएगे। बहुत बड़ा और अहम काम हुआ है।
यह जो आप देख रहे हैं कि ज़ायोनी शासन इतनी बुरी तरह से और इतनी क्रूरता के साथ ग़ज़ा के निहत्थे लोगों पर हमला कर रहा है, वह दर अस्ल इस प्लान की नाकामी से पैदा होने वाली तिलमिलाहट का नतीजा है। यह जो आप देखते हैं कि पूरी दुनिया की आंखों के सामने अमरीकी सरकार इस तरह के अपराधों में सहयोग कर रही है, वह उनकी उस तिलमिलाहट का नतीजा है जो इतनी मेहनत से तैयार किये गये प्लान की नाकामी के बाद पैदा हुई है। अलअक़्सा तूफ़ान ने इस तरह का चमत्कार किया है। यह अलअक़्सा तूफ़ान नामक ऑप्रेशन बिल्कुल सही समय और क्षण में किया गया। हालांकि मैं यह दावा नहीं कर सकता कि अलअक़्सा तूफ़ान की प्लानिंग करने वालों को क्या यह पता था कि वह कितना बड़ा काम करने जा रहे हैं या नहीं, यह मुझे नहीं मालूम, लेकिन सच्चाई यह है कि उन लोगों ने जो यह काम किया है यह ऐसा काम है जिसकी जगह कोई और काम नहीं ले सकता, इन लोगों ने पश्चिमी एशिया के लिए रची गयी एक बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय साज़िश को अलअक़्सा तूफ़ान के ज़रिए नाकाम बना दिया, उस पर पानी फेर दिया यह तो रही पहली बात।
अब दूसरी बात जो मैंने कही वह यह थी कि तूफ़ान अलअक़्सा ऑप्रेशन ज़ायोनी शासन के लिए एक निर्णायक चोट थी, एक ऐसी चोट थी जिसकी भरपाई नहीं हो सकती और इससे ज़ायोनी शासन ऐसी राह पर चला गया जिसका अंजाम तबाही व बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। मामले के इस पहलू पर हम ने बहुत बात की है, अलअक़्सा तूफ़ान ऑप्रेशन की शुरुआत से लेकर अब तक, हमने बार बार इस सिलसिले में बात की है। (5) आज मैं इस बारे में दूसरों की बातों का ज़िक्र करना चाहता हूँ। अपनी राय को फ़िलहाल हम अलग रखते हैं, यहाँ पर आज मैं उन लोगों के विचार का ज़िक्र करुंगा जो रुख़ और विचारधारा के लिहाज़ से हमारे साथ नहीं हैं।
सभी पश्चिमी विश्लेषक, चाहे वो युरोप के हों या अमरीका के, यहाँ तक कि ज़ायोनी शासन से जुड़े विश्लेषक भी यह मानते हैं कि इस ऑप्रेशन में, ज़ायोनी शासन को ताक़त के इतने दिखावे और शोर शराबे के बावजूद, रेज़िस्टेंस संगठनों से बड़ी हार मिली है। उनका कहना है कि ज़ायोनी शासन अलअक़्सा तूफ़ान ऑप्रेशन के 8 महीनों के दौरान इतनी मेहनत और इतना हाथ पैर मारने के बावजूद अब तक अपना कोई भी मक़सद मामूली हद तक भी पूरा नहीं कर पाया है, यह बात पश्चिमी विश्लेषक कह रहे हैं। इस से भी बड़ी बात, एक पश्चिमी टीकाकार का यह मानना है कि और वह यह कहता है कि अलअक़्सा तूफ़ान ऑप्रेशन एक ऐसी घटना है जो 21वीं सदी को बदल सकती है, यह पश्चिम के एक मशहूर विश्लेषक का मानना है, मैं इन लोगों का नाम नहीं लेना चाहता , एक और पश्चिमी टीकाकार का कहना है कि अलअक़्सा तूफ़ान ऑप्रेशन दुनिया को बदल देगा। ज़ायोनी शासन से जुड़ा एक सुरक्षा विश्लेषक जब यह कहना चाहता है कि ज़ायोनी शासन के बड़े बड़े ओहदेदारों में किस हद तक बौखलाहट है और वे कितने बदहवास हैं और यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए तो वह इस तरह कहता है कि अगर इस्राईली अधिकारियों के बीच होने वाली चर्चाओं और झगड़ों को मीडिया में ला दिया जाए तो 40 लाख लोग इस्राईल छोड़ कर चले जाएंगे, मतलब वापस चले जाएंगे, यानी इस्राईली अधिकारियों के बीच बदहवासी और बौखलाहट की यह दशा है। आप ग़ौर करें! यह बहुत अहम है। एक इस्राईली इतिहासकार का कहना हैः “ज़ायोनी मिशन अपनी आख़िरी सांसें ले रहा है, यह बात एक ज़ायोनी इतिहासकार कह रहा है, और हम ज़ायोनी शासन के अंत के आरंभ में हैं, सेना, उत्तर व दक्षिण में यहूदियों की सुरक्षा में नाकाम रही है”। वह सेना जो यह दावा करती थी कि वह दुनिया की बेहद ताक़तवर सेनाओं में से एक है, वह अपने ही इलाक़े में हार गयी, किससे हार गयी? एक मज़बूत देश से? नहीं , रेज़िस्टेंस संगठनों से, हमास से, हिज़्बुल्लाह से, इन से वह हार गयी। अलअक़्सा तूफ़ान यह है।
अगर इन सब बातों को छोड़ दें तब भी हमारी नज़रों के सामने जो है और जो कुछ हम देख रहे हैं वह यह है कि फ़िलिस्तीन का मुद्दा, आज दुनिया का पहला मुद्दा बन चुका है, यह बहुत अहम है। अमरीका और मालदार ज़ायोनी लॉबी से जुड़े मीडिया ने बरसों प्रोपगैंडों और प्रचार के ज़रिए यह कोशिश की है कि फ़िलिस्तीन का मुद्दा धीरे धीरे फीका पड़ जाए और फिर लोग उसे भूल जाएं और किसी को यह याद ही न रहे कि “फ़िलिस्तीन” नाम की कोई चीज़ कभी थी भी! बरसों यह कोशिश की, दौलत लुटाई, इस काम पर लेकिन इन सब के बावजूद आज, फ़िलिस्तीन का मुद्दा, दुनिया का सब से बड़ा मुद्दा है। लंदन की सड़कों पर, पेरिस के चौराहों पर, अमरीका की युनिवर्सिटियों में फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन में और ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ नारे लगाए जा रहे हैं। अमरीका भी दुनिया की क़ौमों के सामने रक्षात्मक मुद्रा में आ चुका है और कभी न कभी ज़ायोनी शासन के समर्थन से अपना हाथ पीछे खींचने पर मजबूर हो जाएगा।
यक़ीनी तौर पर ग़ज़्जा के दुख, आसुंओं में डूबी घटनाएं जैसे निहत्थे लोगों पर हमला, लगभग 40 हज़ार लोगों का क़त्ले आम, 15 हज़ार से ज़्यादा बच्चों की हत्या, जिनमें से कुछ तो नवजात और कुछ दूध पीते बच्चे थे, यह सब दुखदायी घटनाएं हैं, यह वह क़ीमत है जो फ़िलिस्तीनी क़ौम अपनी आज़ादी के लिए अदा कर रही है, लेकिन इसके बावजूद वह खड़ी है और डटी हुई है और रेज़िस्टेंस फ़्रंट के जियालों का बचाव और समर्थन कर रही है। फ़िलिस्तीनी क़ौम, इतनी समस्याओं और कठिनाइयों के बावजूद, रेज़िस्टेंस फ़्रंट से दूर नहीं हुई, उससे मुंह नहीं मोड़ा, बल्कि वह इस्लामी ईमान और क़ुरआन की आयतों पर यक़ीन की वजह से रेज़िस्टेंस फ़्रंट का डिफ़ेंस करती है, यह बहुत अहम है।
सच्चाई यह है कि ज़ायोनी शासन ने आकलन में एक ग़लती कर दी, उसने प्रतिरोध मोर्चे की ताक़त के आकलन में ग़लती की। आज हमारे इलाक़े में एक बड़ा मोर्चा मौजूद है जिसे “रेज़िस्टेंस फ़्रंट” कहा जाता है, यह मोर्चा बहुत शक्तिशाली है, ज़ायोनी शासन से इस सच्चाई को भांपने में ग़लती हो गयी, उससे ग़लती हुई। ज़ायोनी शासन ने अपने ही हाथों ख़ुद को एक बंद गली में पहुंचा दिया कि जहां एक के बाद एक निरंतर हार उसे मिलने लगी और अल्लाह की मदद से अब वह इस बंद गली से कभी नहीं निकल पाएगा। आज ज़ायोनी शासन पूरी दुनिया के सामने धीरे धीरे पिघल रहा है, ख़त्म हो रहा है, यह चीज़ पूरी दुनिया देख रही है। वे लोग प्रोपगंडों में बहुत कुछ कहते हैं लेकिन सच्चाई यही है और इसका उन्हें ख़ुद भी पता है, इसी तरह दुनिया के बहुत से राजनेताओं को भी पता है और इसी तरह दुनिया की बहुत सी क़ौमों को भी मालूम है और फ़िलिस्तीनी क़ौम भी समझ चुकी है। यह तो उस पहले मुद्दे की बात है जिसके बारे में मैंने कहा था कि आज चर्चा करुंगा, यानी फ़िलिस्तीन और अलअक़्सा तूफ़ान का मुद्दा।
अब दूसरी अहम घटना यानी हमारे मेहनती, प्यारे और बरकतों के स्रोत राष्ट्रपति और उनके साथियों की शहादत की दुखदायी घटना की बात। उनके साथ मौजूद सभी लोग अपनी अपनी जगह पर अहम थे, जिन लोगों को मैं क़रीब से जानता था उनमें मरहूम जनाब आले हाशिम थे, वह तबरेज़ शहर के सक्रिय व मेहनती इमाम जुमा और पूर्वी आज़रबाइजान जैसे अहम प्रान्त में ‘वलीए फ़क़ीह’ के प्रतिनिधि थे, वह जनता के साथ, युवाओं के साथ, छात्रों के साथ, कलाकारों, खिलाड़ियों और जनता के हर वर्ग के साथ बेहद क़रीबी संपर्क में थे, उनसे दिल से संपर्क साधते और उनके लिए काम करते थे, यक़ीनी तौर पर वह एक क़ीमती हस्ती थे। इसी तरह हमारे विदेश मंत्री मरहूम जनाब अमीर अब्दुल्लाहियान, सक्रिय, मेहनती, नयी सोच के मालिक, मज़बूत वार्ताकार थे, मैं जब कभी वार्ता का ब्योरा देखता था तो मुझे नज़र आता था कि वह एक मज़बूत व सचेत और ज़हीन वार्ताकार हैं जो उसूलों पर पांबद रहते थे। यह लोग वह थे जिन्हें मैं क़रीब से पहचानता था, दूसरे भी, इसी तरह थे, चाहे आज़रबाइजान के गर्वनर हों, चाहें राष्ट्रपति की सुरक्षा के ज़िम्मेदार अफ़सर, चाहे वह तीन लोग जो चालक दल के सदस्य थे, यह सब के सब जैसा कि उन्हें जानने वाले बताते हैं, बेहद योग्य और ईमान वाले लोग थे। इन सब को खो देना यक़ीनी तौर से हमारे मुल्क के लिए एक बड़ा नुक़सान है।
हम इस दुख पर क्या करें? यह अहम है। मैं इस बड़े दुख के बारे में अपनी बात की शुरुआत क़ुरआने मजीद की इस आयत से करता हूँ जिसमें कहा गया है कि “जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाते हैं उन्हें हरगिज़ मुर्दा न कहो बल्कि वह ज़िंदा हैं लेकिन तुम्हें पता नहीं चलता” (6) इस आयत से पहले या बाद में किसी जंग या सैन्य कार्यवाही की बात नहीं है, बल्कि कहा जाता है कि “अल्लाह की राह” में, इस लिए यह दावा नहीं किया जा सकता कि “अल्लाह की राह में मारे जाने” का मतलब केवल जंग के मैदान में मारा जाना है, क्योंकि आयत के पहले या बाद में इस तरह की कोई बात नहीं है। सूरए आले इमरान की एक आयत में भी, कहा गया है कि “जो लोग मारे गये हैं उन्हें...” (7) यह आयत जेहाद के बारे में लेकिन इससे पहले वाली आयत में इस तरह की कोई बात नहीं है, इसमें बस यह कहा गया है कि जो भी “अल्लाह की राह” में मारा जाता है। जनता की सेवा की राह, “अल्लाह की राह” है, जनता के लिए संघर्ष करना, “अल्लाह की राह” है, इस्लामी मुल्क को चलाने की राह, “अल्लाह की राह” है, इस्लामी व्यवस्था की तरक़्क़ी की राह “अल्लाह की राह है”। हमारे प्यारे राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी और उनके साथी, मुल्क की तरक़्क़ी, जनता की सेवा और इस्लामी जम्हूरिया की उन्नति की राह में मारे गये, इस लिए वह इस आयत में शामिल हैं, इन्हें मरा हुआ न समझें, बल्कि यह लोग ज़िंदा हैं, जैसा कि शहीदों के बारे में कहा जाता है। इस बुनियाद पर हम इन्हें “सेवा की राह के शहीद” समझते हैं। जैसा कि जनता ने कहा है और यह शब्द जनता के बीच से सामने आया है, “जम्हूर के शहीद” और “सेवा के शहीद” यह सब जनता ने कहा है, यह बहुत अहम है, यक़ीनी तौर पर यह दुख सच में बहुत बड़ा दुख था हमारे देश के लिए।
कुछ बातें अपने मरहूम राष्ट्रपति के बारे में भी कहता चलूं। इसी तरह कुछ बातें अपनी जनता और लोगों के बारे में कहूँगा कि उनकी इस घटना पर क्या प्रतिक्रिया थी। यह सब सबक़ हैं, हमें सबक़ हासिल करना चाहिए, दुर्घटनाओं से, यह घटनाएं हमारे लिए पाठ हैं।
राष्ट्रपति के बारे में कि अल्लाह उन पर रहमत करे, सब ने यह माना है कि वह बहुत काम करने वाले इन्सान थे, कर्मठ इंसान थे, सेवा भाव बहुत ज़्यादा था उनमें, साफ़ दिल के इन्सान थे, यह सब ने माना है। सेवा के लिए रात दिन नहीं जानते थे। मुल्क की सेवा के लिए उन्होंने नया मापदंड बनाया था। हमारे मुल्क में पहले भी सेवा भाव रखने वाले नेता रहे हैं, लेकिन इस तरह का कोई नहीं था, इतनी ज़्यादा सेवा करने वाला कोई नहीं था, इस तरह की सेवा करने वाला नहीं था, इतनी सच्चाई से, इतनी मेहनत से, रात दिन काम करने वाला नहीं था, जनाब रईसी रहमतुल्लाह अलैह ने जनता व देश की सेवा का नया मापदंड बना दिया। विदेशी मामलों में उन्होंने अवसरों से बहुत सही तौर पर लाभ उठाया। इतनी विदेश यात्राओं और विदेश में की जाने वाली गतिविधियों का मुल्क को बहुत अहम फ़ायदा मिला है, आज के लिए भी और मुल्क के भविष्य के लिए भी। उन्होंने दुनिया की बड़ी हस्तियों की नज़रों में ईरान का महत्व व क़द बड़ा कर दिया। इस्लामी इन्क़ेलाब को, ईरानी क़ौम को, अपने बयानों में, विदेशों में अपनी तक़रीरों में सही तौर पर पहचनवाया, इस लिए आज जो राजनेता उनके बारे में बात करते हैं, उन्हें एक बड़ी हस्ती बताते हैं, यह हमारे जैसे लोगों के लिए जो बरसों से विदेशी मुद्दों पर नज़र रखते हैं, नयी और क़ीमती चीज़ है। अपने सहयोगियों के साथ उनका काम करने का तरीक़ा, एक ख़ास शैली का था, सच्चे दिल से वह काम करते थे, अपने सहयोगियों के साथ, मंत्रियों, सरकारी अफ़सरों के साथ सच्चे दिल से व्यवहार करते थे। जनता के लिए सम्मान में यक़ीन रखते थे, इज़्ज़त देते थे, जनता को, युवाओं को, अपनी राय ज़ाहिर करने का मौक़ा देते थे, लोगों का सम्मान करते थे। युवाओं पर भरोसा करते थे, युवाओं का सम्मान करते थे। उन लोगों के साथ भी जिन्होंने उनके प्रति बुरा रवैया अपनाया, सम्मान से पेश आते, यहाँ तक कि जिन लोगों ने उनका अपमान किया होता, उन्हें भी वह कठोर भाषा में, बुरी भाषा में, ग़ुस्से में जवाब नहीं देते। दूसरी तरफ़ इन्क़ेलाब के दुश्मनों से दूरी में यक़ीन रखते थे, जो लोग इन्क़ेलाब के दुश्मन थे, विरोधी थे, ख़िलाफ़ थे, उनसे दोहरे अर्थ वाली बात नहीं करते थे, खुल कर अपनी बात करते, साफ़ बात करते, दुश्मन की मुस्कराहट पर भरोसा नहीं करते थे। यह सब मूल्य हैं, यह सब पाठ हैं, इनमें से हर व्यवहार हमारे राजनेताओं के लिए, हमारे आने वाले राष्ट्रपतियों के लिए, उन सब के लिए जिन पर कहीं न कहीं जनता को भरोसा करना होता है, एक आदर्श है।
उनके स्वर्गवास के बाद मैंने देखा कि लगभग सारे अख़बार, पूरा प्रेस, सोशल मीडिया, अलग अलग लोग, अलग अलग मोर्चे सब के सब उनकी रात दिन की सेवा के बारे में बात कर रहे थे, उनकी तारीफ़ कर रहे थे, उनके लिए सम्मान प्रकट कर रहे थे, मुझे बड़ी तकलीफ़ हुई, मुझे रईसी के बारे में सोच कर तकलीफ़ हुई, इनमें से कुछ लोग, उनके जीवन में इस तरह का एक शब्द बोलने पर तैयार नहीं थे, उनके जीवन में भी वे उनकी यह सारी ख़ूबियां देखते थे लेकिन उन्हें छुपाते थे, बल्कि उसका उल्टा बताते थे और उन्हें तकलीफ़ पहुंचाते थे। हालांकि अक्सर वह जवाब नहीं देते थे, लेकिन कभी कभी मेरे पास आते और थोड़ी बहुत शिकायत करते थे। अल्लाह इस प्यारी और क़ीमती हस्ती का दर्जा बुलंद करे, अल्लाह उन सभी के दर्जे बुलंद करे जो उनके साथ थे और उनके घरानों को सब्र दे। यह तो इस प्यारी हस्ती के बारे में हमारी बात थी।
और अब बात करते हैं जनता की, मेरे ख़याल से यह जो जनता के बारे में बात है वह काफ़ी अहम है, ज़ाहिर है बहुत बड़ा दुख था। हम बड़े दुख के प्रति क्या रवैया अपनाते हैं? दुखों के अवसर पर, चाहे व्यक्तिगत दुख हों या फिर राष्ट्रीय दुख, प्रतिक्रिया क्या होती है? यह प्रतिक्रिया यह है कि दुख पड़ने पर इन्सान दुखी हो जाता है, अलग थलग रहने लगता है, यानी दरअस्ल वह मुसीबत व दुख से हार मान लेता है, उसकी आशा ख़त्म हो जाती है, यह दुख के वक़्त एक तरह की प्रतिक्रिया है। एक दूसरे प्रकार की प्रतिक्रिया भी है, दुख के वक़्त एक अन्य प्रतिक्रिया यह है कि दुख के सामने सीना तान कर खड़ा हो जाया जाए, यानी वही काम जिसे क़ुरआने मजीद में “सब्र” का नाम दिया गया है, सब्र यानी दुख के सामने डट जाना, संयम बरतना, बल्कि सब्र के अलावा, दुख को अपने लिए एक अवसर समझ लेना, बहादुरी की मिसाल क़ायम कर देना, दुख की घड़ी से अच्छा नतीजा निकालना, ईरान की क़ौम ने दूसरी प्रतिक्रिया का चयन किया। ईरानी क़ौम ने इस दुख के सामने बहादुरी की मिसाल क़ायम कर दी, यह बड़े बड़े इजतेमा, हमारे इन प्यारों को विदा करते वक्त ईरानी जनता की भीड़, यह सब ईरानी क़ौम के अहम कारनामों में शामिल है।
हमारी क़ौम ने इन्क़ेलाब के दौरान और उसके बाद, बहुत बड़े बड़े काम किये हैं, इन बड़े कामों में से एक यह भी है कि शहीद सुलैमानी, शहीद रईसी और दूसरे शहीदों जैसे अपने प्यारों का इस तरह से शोक मनाती है कि जो इतिहास में अमर हो जाता है। तेहरान, मशहद, तबरेज़, क़ुम, रय में यह दसियों लाख की भीड़, दो दिनों तक लगातार, ज़न्जान में, मराग़े में, नजफ़ाबाद में, बीरजंद में, यह जो जनता की विशाल भीड़ नज़र आयी तो यह ऐतिहासिक क्षण इस बात का चिन्ह है कि हमारे देश की जनता इस क़िस्म के दुखों के अवसर पर हार नहीं मानती बल्कि इस प्रकार के दुखों में उसकी संयम शक्ति और उसका जोश बढ़ जाता है। इस विशाल जमावड़े के अपने संदेश थे, जिनमें से एक संदेश यह था कि ईरानी क़ौम, जोश से भरी है, कभी नहीं थकने वाली है, खड़ी है, ज़िंदा है, विभिन्न घटनाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है, अपने जोश व जज़्बे का प्रदर्शन करती है। एक दूसरा संदेश यह था कि जनता और देश के बड़े अधिकारियों के बीच, भावनात्मक लगाव और संपर्क है, उस चीज़ के बिल्कुल उलट जिसका प्रचार दुश्मन करते हैं। विदेशों में दुश्मनों ने निंरतर यह कहा और अफ़सोस कि देश के अंदर भी कुछ लोगों ने वही बातें दोहरायीं कि “इस्लामी व्यवस्था ने अपना जनाधार खो दिया है” जी नहीं, यह जो एक राष्ट्रपति को गवांने के बाद जनता इस तरह से दसियों लाख की संख्या में बाहर निकलती है तो यह जन पूंजी और जनाधार है। दुनिया के किसी भी इलाक़े में यह नहीं होता।
यह दुनिया के किसी भी हिस्से में, किसी भी देश में नज़र नहीं आता। बहुत से देशों में कुछ इस तरह के राष्ट्रपति थे कि जिन्हें जनता चाहती थी, उनकी मौत पर जनता ने शोक भी मनाया, कई घटनाएं मुझे याद हैं, लेकिन उसकी तुलना यहाँ ईरान में जो हुआ है उससे नहीं की जा सकती। यहाँ पर जनता इतनी बड़ी संख्या में मैदान में उतरी, इसकी मिसाल नहीं मिलती। दुनिया के किसी इलाक़े में यह नहीं होता। यह, जनता और अधिकारियों में संपर्क है, यह जनरलों और जनता के मध्य संपर्क है। अब इमाम ख़ुमैनी का मामला ही अलग है, इमाम ख़ुमैनी के स्वर्गवास पर जो कुछ हुआ वह तो एक अलग ही बात है, वह एक दूसरी सच्चाई थी। लेकिन यही जनता के सामने मौजूद अधिकारी, जैसे शहीद सुलैमानी, जैसे शहीद इब्राहीम रईसी, इन लोगों के बारे में भी जनता का व्यवहार इस तरह का है।
इस तरह के विशाल जमावड़े का एक अन्य संदेश यह था कि जनता इन्क़ेलाब के नारों का समर्थन करती है, इसे कोई छुपा नहीं सकता, क्योंकि स्वर्गवासी इब्राहीम रईसी, खुल कर इन्क़ेलाब का नारा लगाते थे, वह इन्क़ेलाबी नारों का व्यवहारिक रूप थे, जनता जब उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करती है, उनका सम्मान करती है, तो दर अस्ल वह इन्क़ेलाबी नारों से अपने लगाव का प्रदर्शन करती है, क्योंकि वह इन्क़ेलाबी नारों का व्यवहारिक रूप थे।
एक और बात यह है कि जनता अपने सेवकों की क़द्र करती है, यह बात हमारे अधिकारी जान लें, इस पर ध्यान दें। कोई बड़ा अधिकारी यह न सोचे कि अगर वह जनता की सेवा करेगा तो जनता उसे भूल जाएगी। नहीं! जनता पहचानती है, वह समझती है, क़द्र करती है, इससे सेवा की भावना बढ़ेगी। जनता की भारी उपस्थिति से निकले इन संदेशों का क्षेत्र के समीकरणों पर प्रभाव पड़ेगा, इसका क्षेत्रीय शक्ति को बयान करने और शक्ति के समीकरण पर असर होगा ताकि दुनिया के विश्लेषक और बड़े बड़े राजनीतिक टीकाकार और नेता यह देखें कि यह ईरानी क़ौम है, इतने जज़्बे के साथ, इतने लगाव के साथ, इतनी भारी उपस्थिति के साथ, इतनी तैयारी के साथ, हर जगह मौजूद है। इससे ईरान और ईरानियों के बारे में सच्चाई पूरी दुनिया के सामने आती है।
एक और बात जो अहम भी है, यह है कि देश, राष्ट्रपति को गंवाने के बावजूद पूरी तरह से शांति व सुरक्षा बनाए रखने में सफल रहा।
प्यारे भाइयो और बहनो! मेरी बात ख़त्म हुई। एक बात चुनाव के बारे में भी कहता चलूं। अब जो चुनाव होने वाले हैं, वह बहुत बड़ा काम है, यह चुनाव, वह काम है जिसके बहुत से फ़ायदे हैं, यह जो चुनाव आने वाला है अगर अल्लाह की मर्ज़ी से शानदार तरीक़े से आयोजित किया गया तो यह ईरानी क़ौम की एक बड़ी कामयाबी होगी। एक कड़वी घटना के बाद जनता जमा हो, और भारी मतों से अपने लिए अगला नेता चुने तो दुनिया में इसका असर बहुत ज़यादा होगा, असाधारण होगा, इस लिए यह चुनाव बहुत अहम है। यह चुनाव की शौर्यगाथा, शहीदों को विदा करते वक़्त लिखे जाने वाले इतिहास की पूरक है, यह उस काम का बचा हिस्सा है जो आप पहले शहीदों को विदा करते वक़्त कर चुके हैं। ईरानी क़ौम को जटिल अंतर्राष्ट्रीय समीकरणों में, अपने हितों की सुरक्षा के लिए, अपनी रणनीति को मज़बूत करने के लिए, अपनी प्राकृतिक व मानवीय योग्यताओं को व्यवहारिक बनाने और अपने देश की जनता को ख़ुश करने और इसी तरह आर्थिक और सांस्कृतिक कमियों को दूर करने के लिए, एक सक्रिय, मेहनती, जानकार और इन्क़ेलाब के सिद्धांतों में विश्वास रखने वाले राष्ट्रपति की ज़रूरत है।
मेरी आख़िरी सिफ़ारिश भी सुन लें और वह यह है कि यह जो इतना बड़ा काम हो रहा है, प्रत्याशियों के मध्य चुनावी प्रतिस्पर्धा के दौरान, नैतिकता का राज होना चाहिए, बुरी बातें कहना, आरोप लगाना, कीचड़ उछालना, काम को आगे बढ़ाने में मददगार नहीं होगा, इससे देश के सम्मान को भी चोट पहुंचती है। चुनाव का समय, इतिहास रचने और सम्मान का समय है, सेवा के लिए प्रतिस्पर्धा का अवसर है, सत्ता हथियाने के लिए खींचतान का समय नहीं है। जो भाई चुनावी मैदान में क़दम रख रहे हैं, उन्हें इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिए, उन्हें अपने इस कर्तव्य पर अमल करना चाहिए, अल्लाह भी इन्शाअल्लाह जनता के दिलों को सब से अच्छे विकल्प की तरफ़ मोड़ देगा और इन्शाअल्लाह एक योग्य राष्ट्रपति ईरानी जनता को मिल जाएगा।
वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू
1) इस कार्यक्रम के आरंभ में जो इमाम ख़ुमैनी के मज़ार पर आयोजित हुआ, इमाम ख़ुमैनी के मज़ार के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम सैयद हसन ख़ुमैनी ने तक़रीर की।
2) उस हेलीकॉप्टर दुर्घटना का ज़िक्र है जो पूर्वी आज़रबाइजान के वर्ज़क़ान इलाक़े के पास 19 मई सन 2024 को हुई थी जिसमें ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी, विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान, पूर्वी आज़रबाइजान में वलीए फ़क़ीह के नुमाइंदे हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन सैयद मुहम्मद अली आले हाशिम और हेलीकॉप्टर में सवार दूसरे सभी लोग शहीद हो गये थे।
3) सहीफ़ए इमाम, जिल्द 2, पेज 130, क़ुम, मशहद और तेहरान के मदरसों के लिए पैग़ाम
4) सहीफ़ए इमाम, जिल्द 21, पेज 220 मीख़ाइल गोर्वाचोव के लिए पैग़ाम (1989-01-01)
5) जैसे कैडिट कॉलेज के चौथे शपथ ग्रहण समारोह में तक़रीर (2023-10-10) इसी तरह साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर छात्रों के बीच तक़रीर (2023-11-01) और इसी तरह बसीज सप्ताह के अवसर पर बसीज के सदस्यों से भेंट में तक़रीर (2023-11-29)
6) सूरए बक़रह, आयत 154
7) सूरए आले इमरान, आयत 163