पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की एक मोतबर हदीस हैः रोज़ा नरक से बचाने वाली ढाल है। रोज़े की ख़ुसूसियत, इच्छाओं पर क़ाबू पाना है। गुनाहों के मुक़ाबले में सब्र और इच्छाओं पर कंट्रोल का प्रतीक रोज़ा है। सूरए बक़रह की आयत 153 में सब्र से मुराद रोज़ा बताया गया है। रोज़ा, इच्छाओं से मुंह फेर लेने का प्रतीक है।
इमाम ख़ामेनेई
27/10/2004
ऐ परवरदिगार! मोहम्मद व आले मोहम्मद के सदक़े में हमें इस्लामी इंक़ेलाब का क़द्रदान बना। ऐ परवरदिगार! हमें हमारे फ़रीज़ों से आगाह कर और उन पर अमल करने वाला बना।
अगर हम मुसलसल अपने आप पर नज़र नहीं रख सकते और आत्म निर्माण नहीं कर सकते तो कम से कम रमज़ान के महीने को ग़नीमत समझें। रमज़ान के महीने में हालात अनुकूल होते हैं। इसमें सबसे अहम चीज़ यही रोज़ा है जो आप रखते हैं। यह अल्लाह की ओर से मिलने वाले सबसे क़ीमती मौक़ों में से एक है।
इमाम ख़ामेनेई
23/02/1993
रमज़ान का महीना बहुत क़ीमती मौक़ा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने इस महीने को अल्लाह की मेहमानी का महीना क़रार दिया है। क्या ऐसा हो सकता है कि इंसान किसी दानी के दस्तरख़ान पर पहुंचे और वहाँ से ख़ाली हाथ लौट आए?
सही मानी में वह महरूम है जो रमज़ान के महीने में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी न करवा पाए।
इमाम ख़ामेनेई
27/4/1990
परवरदिगार! हम तुझे मोहम्मद व आले मोहम्मद की क़सम देते हैं, शहीदों की पाक आत्माओं और इमाम ख़ुमैनी की पाक आत्मा को मोहम्मद व आले मोहम्मद की पाक आत्माओं के साथ महशूर कर।
परवरदिगार! हम सबका, हमारी ज़िन्दगी का और हमारी उम्र का अंजाम नेक क़रार दे। मुझ नाचीज़ की और जो भी चाहता है, उसकी ज़िन्दगी की आख़िरी सीढ़ी शहादत क़रार दे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता इमाम ख़ामेनेई ने मंगलवार 12 अप्रैल 2022 की शाम को इस्लामी शासन व्यवसथा के उच्चाधिकारियों से मुलाक़ात में कहा कि देश के सामने मौजूद सारे मुद्दे हल होने के क़ाबिल हैं। उन्होंने नए साल के नारे का विवरण पेश किया। सुप्रीम लीडर ने फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में फैली जागरूकता और फ़िलिस्तीनी युवाओं की कार्यवाहियों की सराहना की। उन्होंने सऊदी अधिकारियों को यमन की जंग बंद करने की नसीहत की।(1)
इस्लामी क्रांति के नेता की स्पीच का हिंदी अनुवादः
रमज़ान, तौबा और “इनाबा” का महीना है, माफी मांगने और अपने गुनाहों को बख़्शवाने का महीना है। तौबा का मतलब, उस राह से वापसी है जिस पर हम अपनी ग़लतियों और अपने गुनाहों की वजह से चलने लगे थे। इनाबा का मतलब, हमारा दिल खुदा की तरफ़ मुड़ जाए और हम दिन रात ख़ुदा से उम्मीद लगाएं। कहते हैं कि तौबा और इनाबा में यह फर्क़ है कि तौबा, बीते हुए कल के लिए होता है जबकि इनाबा, आज और आने वाले कल के लिए होता है।
रमज़ान का माहौल, ख़ुलूस, रूहानीयत और सच्चाई का माहौल है। हमें कोशिश करना चाहिए कि हम इस माहौल से ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठाएं। हमारे दिल और ख़ुदा के बीच जो ताल्लुक़ है, इस रूहानी ताल्लुक़ को, खुदा से इस ज़ाती ताल्लुक़ को मज़बूत करना चाहिए क्योंकि किसी भी इन्सान के लिए सब से ज़्यादा बड़े फ़ायदे की बात यही होती है कि उसका ख़ुदा के साथ ताल्लुक़ मज़बूत हो जाए।
रमज़ान के महीने को “ मुबारक” कहा गया है, इसके मुबारक होने की वजह यह है कि यह महीना, जहन्नम की आग से ख़ुद को बचाने और इनाम में जन्नत पाने का महीना है जैसा कि हम, रमज़ान महीने की दुआ में पढ़ते हैं “और यह महीना जहन्नम से छुटकारे और जन्नत पाने का महीना है” अल्लाह की जहन्नम और इसी तरह उसकी जन्नत सब इसी दुनिया में है। आख़ेरत में जो कुछ होगा वह दर अस्ल इस दुनिया में मौजूद चीजों की वह अस्ली शक्ल होगी जो फ़िलहाल छुपी हुई है।
अगर आप सब बेहतरीन अंदाज़ में इस मेहमानी में शरीक हुए तो अल्लाह आपको क्या देगा? अल्लाह की मेहमान नवाज़ी यह है कि वह अपने क़रीब होने का मौक़ा देता है और इससे बड़ी कोई चीज़ नहीं।
रसूले ख़ुदा ने कहा है कि “यह वह महीना है जिसमें तुम सब को अल्लाह ने दावत दी है।” ख़ुद यही बात ग़ौर के लायक़ है, अल्लाह की तरफ़ से दावत। ज़बरदस्ती नहीं की गयी है कि सारे लोगों को इस दावत में जाना ही है। नहीं! ज़िम्मेदारी डाली गयी है लेकिन इस दावत से फ़ायदा उठाना या न उठाना ख़ुद हमारे अपने हाथ में रखा गया है।
सैयद अली ख़ामेनेई
2007-09-14
जिस तरह चौबीस घंटों में नमाज़ के वक़्त इस लिए रखे गये हैं कि इन्सान, कुछ देर के लिए दुनियावी चीज़ों से बाहर आ जाएं, उसी तरह साल में रमज़ान का महीना भी वह मौक़ा है.
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता इमाम ख़ामेनेई ने रविवार की शाम पहली रमज़ान को क़ुरआन से लगाव नाम की महफ़िल में तक़रीर की। यह महफ़िल तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामा बारगाह में आयोजित हुई।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने रमज़ान मुबारक के पहले दिन रूहानी प्रोग्राम ‘क़ुरआन से उन्सियत की महफ़िल’ में रमज़ान को, अल्लाह की ख़त्म न होने वाली रहमत के दस्तरख़ान पर मेहमान बनने का महीना बताया जिससे इंसान, मन की पाकीज़गी, क़ुरआन से गहरे लगाव और उसमें ग़ौर-फ़िक्र के ज़रिए फ़ायदा उठा सकता है।
रमज़ान महीने के आग़ाज़ पर तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में “क़ुरआन से उंसियत” नाम से एक महफ़िल का आयोजन हुआ जिसमें इस साल भी इस्लामी क्रांति के लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने भी भाग लिया। 3 अप्रैल 2022 के इस कार्यक्रम में इस्लामी इंक़ेलाब के लीडर ने अपनी तक़रीर में तिलावत, हिफ़्ज़े क़ुरआन, क़ुरआन के ज्ञान, क़ुरआन पढ़ने की शैलियों और क़ुरआनी उलूम के बारे में बड़ी अहम तक़रीर की।
स्पीच का अनुवाद पेश हैः