"सन 1948 का युद्ध अभी ख़त्म नहीं हुआ है। यह, उन युद्ध श्रृंखलाओं का सिर्फ़ एक चरण है जिनमें शामिल होने के लिए इस्राईल को पूरी तरह तैयार रहना चाहिए ताकि वह हर दिशा में अपनी सीमाओं को फैला सके।" इस वाक्य से, जो ज़ायोनी सेना के जनरल स्टाफ़ से संबंधित दस्तावेज़ों का एक हिस्सा है, पता चलता है कि "ग्रेटर इस्राईल" के सपने को पूरा करने के लिए "भूमि और सीमा विस्तार" कोई अस्थायी नीति नहीं बल्कि ज़ायोनी सरकार की एक बुनियादी रणनीति है; यह रणनीति क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार की स्थापना के समय से ही हमेशा उसके एजेंडे में शामिल रही है।(1)
अवैध क़ब्ज़े की बुनियाद पर हासिल किया गया वुजूद
ज़ायोनी सरकार ने अपना वुजूद "अवैध क़ब्ज़े" की बुनियाद पर हासिल किया है। इस सरकार ने "बिना नेशन की ज़मीन, बिना ज़मीन के नेशन के लिए" के झूठे नारे के ज़रिए फ़िलिस्तीनियों की ज़मीनों पर अवैध क़ब्ज़े की राह समतल की। इस बारे में, अरब मामलों के विश्लेषक एहसान अल-फ़क़ीही ने अख़बार अल-क़ुद्स अल-अरबी में प्रकाशित एक लेख में लिखा है: "झूठ बोलो, फिर झूठ बोलो और इतना झूठ बोलो कि लोग उसे सच मान लें।" यही ज़ायोनी प्रोजेक्ट के प्रोपेगैंडा की बुनियाद है। एक ऐसा प्रोजेक्ट जो झूठी बातों की बुनियाद पर खड़ा किया गया और जिसने हर संभव तरीक़ा इस्तेमाल करके इन झूठी बातों को ऐसा 'तथ्य' बनाने की कोशिश की जिसका इंकार ही नहीं किया जा सकता। फ़िलिस्तीन की धरती को 'बिना लोगों की' बताना दरअस्ल फ़िलिस्तीनियों की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने और उनके इतिहास व पहचान को लूटने की एक खुली कोशिश थी। अलबत्ता उन्होंने इस नारे के ज़रिए न सिर्फ़ फ़िलिस्तीनी क़ौम के इतिहास व सभ्यता को झुठलाने की कोशिश की बल्कि अपनी अरब दुश्मनी को भी ज़ाहिर कर दिया और ख़ुद को अरबों से बेहतर क़ौम साबित करने की कोशिश की।"(2)
"ग्रेटर इस्राईल" ज़ायोनी सरकार का बुनियादी लक्ष्य
ज़ायोनी सरकार बरसो से "ग्रेटर इस्राईल" के सपने को पूरा करने की योजना पर काम कर रही है। ज़ाहिर है कि यह सपना अरब इलाक़ों पर ज़्यादा से ज़्यादा क़ब्ज़ा करके ही पूरा हो सकता है और ज़ायोनी अधिकारियों ने भी कभी-कभार इसका इक़रार किया है। हाल ही में ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने "ग्रेटर इस्राईल" को हासिल करने की तेल अवीव की कोशिशों की बात मानी है। इस सिलसिले में उन्होंने कहा: "मैं एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मिशन पर काम कर रहा हूं और जज़्बाती तौर पर ग्रेटर इस्राईल के विचार से जुड़ा हुआ हूं।"(3) इसे सिर्फ़ ज़ायोनी सरकार के प्रधानमंत्री के निजी विचार नहीं समझा जा सकता क्योंकि इससे पहले दूसरे ज़ायोनी अधिकारियों ने भी इसी तरह के बयान दिए हैं। मिसाल के तौर पर, ज़ायोनी वित्त मंत्री बेज़ीलल योएल स्मोत्रिच के विवादित बयान का हवाला दिया जा सकता है जिन्होंने कहा था: "मैं साफ़ और स्पष्ट तौर पर कहता हूं कि हम एक ऐसा यहूदी राज्य चाहते हैं जिसकी सरहदें जॉर्डन, सऊदी अरब, मिस्र से लेकर इराक़, सीरिया और लेबनान तक फैली हों। ग्रेटर इस्राईल की धरती को विस्तृत पैमाने पर फैला हुआ होना चाहिए।"(4) उन्होंने 2016 में भी एक बयान में, जो अरब इलाक़ों पर ज़ायोनी सरकार की लालची निगाहों को ज़ाहिर करता था, ज़ोर देकर कहा था: "येरुशलम की सरहदों को सीरिया की राजधानी दमिश्क़ तक फैल जाना चाहिए। इस्राईल को जॉर्डन पर क़ब्ज़ा कर लेना चाहिए।"(5) इस आधार पर "ग्रेटर इस्राईल" का गठन, ज़ायोनी सरकार की विदेश नीति के बुनियादी लक्ष्यों में से एक है।
अरब इलाक़ों के खंडहरों पर "ग्रेटर इस्राईल" का निर्माण
"ग्रेटर इस्राईल" के सपने को अरब इलाक़ों के खंडहरों पर बनाने की बात आजकल की नहीं है बल्कि यह कई दहाई पुरानी है। ज़ायोनी सरकार की कई अहम हस्तियों ने इस बारे में बात की है, जिनमें सबसे अहम ज़ायोनी सरकार के संस्थापक "थियोडोर हर्ट्ज़ल" हैं जिन्होंने "नील से फ़ुरात तक इस्राईल के राज" की बात कही थी।(6) इसके अलावा ज़ायोनी सरकार में दक्षिणपंथ के संस्थापक "ज़ियो जाबोटिन्स्की" ने 1923 में अरबों को इस सरकार का दुश्मन क़रार देते हुए कहा था कि "उन्हें तेल अवीव के साथ सहयोग पर मजबूर करने के लिए उन्हें कुचलना ज़रूरी है।" चूंकि ज़ायोनी प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अनेक बार और विभिन्न अवसरों पर जाबोटिन्स्की को अपना आदर्श बताया है, इसलिए यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि उनका अरब दुनिया के बारे में क्या नज़रिया है।(7) अब सवाल यह पैदा होता है कि जायोनियों ने "ग्रेटर इस्राईल" के गठन के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कौन सा रास्ता अपनाया और इस वक़्त वे क्या कर रहे हैं?
फ़िलिस्तीन देश में कभी न ख़त्म होने वाली अवैध क़ब्ज़े की भूख
इस समय फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर ज़ायोनी सरकार के अवैध क़ब्ज़े को 80 साल यानी क़रीब एक सदी का अर्सा हो चुका है। 1948 में ज़ायोनियों ने 7 लाख से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों से निकाल बाहर किया और क़रीब 500 गाँव तबाह कर दिए और इस तरह वह फ़िलिस्तीन के एक बड़े हिस्से पर क़ाबिज़ हो गए लेकिन यह कहानी का अंत नहीं था। 1967 में (अरबों से छ: दिवसीय युद्ध के बाद) ज़ायोनियों ने पश्चिमी किनारे और ग़ज़ा पट्टी समेत फ़िलिस्तीन के बहुत से दूसरे इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर लिया (ग़ज़ा पट्टी को उन्होंने 2005 में ख़ाली कर दिया)। इस बार उन्होंने 4 लाख 60 हज़ार फ़िलिस्तीनियों को बेघर कर दिया।(8) ज़ायोनी सरकार की विस्तारवादी नीति के तहत उन्होंने इन सारे बरसों में फ़िलिस्तीन के कुल क्षेत्रफल के 85 फ़ीसद हिस्से पर अवैध क़ब्ज़ा कर लिया।(9)
अब जब फ़िलिस्तीनी धरती पर अवैध क़ब्ज़े को क़रीब 80 साल का समय बीत चुका है और व्यवहारिक रूप से पश्चिमी किनारे का सिर्फ़ छोटा सा हिस्सा फ़िलिस्तीनियों के पास बाक़ी बचा है, तब भी अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न इलाक़ों पर अवैध क़ब्ज़ा करने की जायोनियों की कभी न मिटने वाली भूख साफ़ तौर पर नज़र आती है। इसी सिलसिले में, ज़ायोनी सरकार ने ख़ुद औपचारिक रूप से स्वीकार किया है कि उसने वर्ष 2024 में पश्चिमी तट पर अपना कंट्रोल बढ़ाने के लिए पिछले 30 साल का सबसे बड़ा प्लान शुरू किया है। इस साल के दौरान यह सरकार लगभग 10 हज़ार 640 दूनम (हर दूनम 1000 वर्ग मीटर के बराबर) क्षेत्रफल पर क़ब्ज़ा करने में कामयाब हो चुकी है।(10)
गोलान से सिनाई तक अरब इलाक़ों पर अवैध क़ब्ज़े का विस्तार
ज़ायोनी सरकार की "हर दिशा में सीमाओं के विस्तार" की रणनीति के मद्दे नज़र यह अंदाज़ा लगाया ही जा रहा था कि इस सरकार की तरफ़ से अवैध क़ब्ज़े का सिलसिला सिर्फ़ फ़िलिस्तीनी भूमि तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि तेल अवीव की "ज़मीन विस्तार" की नीति दूसरे अरब इलाक़ों को भी प्रभावित करेगी। ऐसा ही हुआ और 1967 में अरबों से छ: दिवसीय जंग के बाद ज़ायोनी सरकार ने कई दिशाओं से अपनी सरहदों को क़ब्ज़े के ज़रिए विस्तृत किया। इस बार जायोनियों ने मिस्र के "सिनाई प्रायद्वीप" और सीरिया के "गोलान हाइट्स" को अपने क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में शामिल कर लिया।(11) ज़ायोनी यहीं नहीं रुके और 1982 में भी वह लेबनान के अंदरूनी हिस्सों में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण करते हुए बैरूत तक जा पहुंचे। हालांकि समय गुज़रने के साथ वे बैरूत और लेबनान के कुछ दूसरे क़ब्ज़ा किए गए इलाक़ों से पीछे हट गए लेकिन उन्होंने इस देश के दक्षिणी हिस्सों में अपना अवैध क़ब्ज़ा बाक़ी रखा।(12) यहाँ तक कि वर्ष 2000 में लेबनान के इस्लामिक रेज़िस्टेंस ने अतिक्रमण करने वालों और अवैध क़ब्ज़ा करने वालों को बिना किसी शर्त के दक्षिणी इलाक़ों से निकलने पर मजबूर कर दिया।(133) अलबत्ता एक राजशाही बनाने के सपने देखने वाले ज़ायोनी आज भी लेबनान के दक्षिणी इलाक़ों जैसे "शबा फ़ार्म्स" और "कफ़र शोबा" पर अपना क़ब्ज़ा बनाए हुए हैं।(14)
शाम को निगलने की कोशिश
ऐसा लगता है कि ज़ायोनी सरकार अपने अवैध क़ब्ज़े को फैलाने और ज़मीनी विस्तार के प्लान को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी सीमा को स्वीकार नहीं करती। इसकी खुली मिसाल पिछले छ: महीनों में और बश्शार असद की सरकार के ख़ात्मे के बाद इस्राईल द्वारा सीरिया में की जाने वाली कार्यवाहियां हैं। ज़ायोनियों ने सीरिया में अपनी आक्रामक कार्यवाहियां जारी रखते हुए गोलान हाइट्स से सटे बफ़र ज़ोन में जबल अश्शैख़ के स्ट्रैटेजिक इलाक़े और क़ुनैतरा सूबे के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया।(15)
सिंगापुर की नानयांग यूनिवर्सिटी के एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के सीनियर सदस्य जेम्स डोर्सी ज़ायोनी सरकार की विस्तारवादी आक्रामक नीति के बारे में साफ़ शब्दों में कहते हैं: "यह कार्यवाहियां ख़तरनाक पैग़ाम लिए हुए हैं। सीरिया के इलाक़ों ख़ास तौर पर क़ब्ज़े वाले गोलान से सटे इलाक़ों पर ज़्यादा से ज़्यादा कंट्रोल हासिल करने की कोशिशें और पश्चिमी तट के इलाक़े में बस्तियां बसाने का सिलसिला, यह ज़ाहिर करता है कि तेल अवीव यहूदी स्टेट की सरहदों को फैलाने की नीति पर पूरी तरह से काम कर रहा है।"(16) यहां तक कि इस्राईली अख़बार "हाआरेट्ज़" ने एक लेख में यह सवाल उठाया है कि "क्या इस्राईल इलाक़े में एक राजशाही स्थापित करने की कोशिश कर रहा है?" अख़बार लिखता है: "ग़ज़ा और दक्षिणी लेबनान पर क़ब्ज़े की कोशिशों और गोलान हाइट्स में इस्राईली गतिविधियों को देखते हुए क्षेत्र में राजशाही स्थापित करने की तेल अवीव की नीयत के बारे में बात न करना बहुत मुश्किल है।"(17)
फ़िलिस्तीन, सीरिया और लेबनान वगैरा जैसे विभिन्न देशों में जायोनियों के भयावह अपराधों समेत इलाक़े के ताज़ा हालात और इसी तरह "ग्रेटर इस्राईल" की योजना को व्यवहारिक बनाने के सिलसिले में तेल अवीव के उच्चाधिकारियों की खुलकर और औपचारिक स्वीकारोक्ति ऐसी स्थिति में है कि रहबरे इंक़ेलाब ने तीस साल पहले ज़ायोनी सरकार की इस आपराधिक और विस्तारवादी प्रवृत्ति के बारे में सचेत किया था और कहा था: "ज़ायोनी अपने लक्ष्यों से पीछे नहीं हटे हैं। उन्होंने "नील से फ़ुरात तक" के अपने घोषित लक्ष्य को वापस नहीं लिया है। उनका इरादा आज भी यही है कि वे नील से फ़ुरात तक के इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लें! अलबत्ता ज़ायोनियों की रणनीति यह है कि पहले धोखे और छल-कपट से अपने पैर जमाएँ और जब उनका क़दम जम जाए तो दबाव, हमले, हत्या, लूट और हिंसा के ज़रिए जहाँ तक संभव हो आगे बढ़ें!(18) अब जब छिपे हुए राज़ों पर से पर्दे हट गए हैं और अमन व आज़ादी के दावेदारों के चेहरों से नक़ाब हट गई है तो यह सवाल सामने आता है कि जंग, अवैध क़ब्ज़े और साम्राज्य के सरग़नाओं से संबंध स्थापित करना, सुरक्षा दिलाएगा या सुरक्षा छीन लेगा?"