रमज़ान का महीना बहुत क़ीमती मौक़ा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने इस महीने को अल्लाह की मेहमानी का महीना क़रार दिया है। क्या ऐसा हो सकता है कि इंसान किसी दानी के दस्तरख़ान पर पहुंचे और वहाँ से ख़ाली हाथ लौट आए? सही मानी में वह महरूम है जो रमज़ान के महीने में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी न करवा पाए। इमाम ख़ामेनेई 27/4/1990
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