रहमान और रहीम दोनो लफ़्ज़, रहमत लफ़्ज़ से बने हैं लेकिन दोनों के दो अलग अलग पहलू हैं। रहमान लफ़्ज़, सूपरलेटिव डिग्री है और रहमत की बहुतायत पर दलालत करता है। रहीम भी इसी लफ़्ज़ यानी रहमत से निकला है, लेकिन यह विशेष ऐडजेक्टिव है यानी रहमत में स्थिरता व हमेशा बाक़ी रहने की ख़ासियत को बयान करता है। इन दो लफ़्ज़ों से हम दो चीज़े समझते हैं: अर्रहमान से हम समझते हैं कि अल्लाह बहुत ज़्यादा रहमत का मालिक है और उसकी रहमत का दायरा बहुत बड़ा है। अर्रहीम से हम समझते हैं कि अल्लाह की रहमत हमेशा बाक़ी रहने वाली और निरंतरता के साथ है, हमेशा क़ायम रहने वाली है, यह कभी भी ख़त्म नहीं होती। इन दोनों अर्थों को को मद्देनज़र रखिए।
इमाम ख़ामेनेई