क़ुरआन के मुताबिक़ हमेशा डिफ़ेंस की मज़बूती अल्लाह का फ़रमान और अल्लाह के दुश्मनों और मिल्लत के दुश्मनों के ख़ौफ़ का सबब भी है। मुल्क के ख़िलाफ़ ख़तरे कभी भी पूरी तरह ख़त्म नहीं होते इसलिए आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को चाहिए कि जहां तक मुमकिन हो मुख़्तलिफ़ पहलुओं से अपनी तैयारी बढ़ाती रहें।
इमाम ख़ामेनेई
16 अप्रैल 2023
क़ुद्स दिवस हक़ और बातिल की लामबंदी, ज़ुल्म के मुक़ाबले में न्याय की लामबंदी का नक़्शा पेश करता है। क़ुद्स दिवस सिर्फ़ फ़िलिस्तान का दिन नहीं है, यह इस्लामी जगत का दिन है। यह ज़ायोनीवाद के जानलेवा कैंसर के ख़िलाफ़ मुसलमानों के आवाज़ उठाने का दिन है जिसे क़ाबिज़ हमलावरों, हस्तक्षेप करने वालों और साम्राज्यवादी ताक़तों के ज़रिए इस्लामी जगत की जान के पीछे लगा दिया गया है।
इमाम ख़ामेनेई
11/07/2015
वेस्ट को ईरानी महिलाओं से कोई हमदर्दी नहीं बल्कि दुश्मनी है। क्योंकि अगर महिलाओं की भागीदारी न होती तो इस्लामी इंक़ेलाब हरगिज़ कामयाब न होता। वाक़ई वेस्ट का औरतों के अधिकारों का दावा करना अच्छा नहीं लगता। आज भी पश्चिमी देशों में महिलाओं को बड़ी अहम मुश्किलों का सामना है।
इमाम ख़ामेनेई
5 अप्रैल 2023
ओबामा का अमरीका बुश के अमरीका से कमज़ोर था। ट्रम्प का अमरीका ओबामा के अमरीका से ज़्यादा कमज़ोर था। बाइडन का अमरीका ट्रम्प के अमरीका से भी ज़्यादा कमज़ोर है।
इमाम ख़ामेनेई
4 अप्रैल 2023
रमज़ान का महीना, दुआ का महीना है। दुआओं को मत भूलिए। रमज़ान के महीने के लिए जो दुआएं बतायी गयी हैं, वे उन नेमतों व मौक़ों में से हैं, जिनकी क़द्र करनी चाहिए। यह दुआए अबू हमज़ा सुमाली, दुआए इफ़्तेताह, दुआए जौशन कबीर और दूसरी दुआएं जो रमज़ान के महीने के दिनों, रातों और दूसरे ख़ास वक़्त के लिए बतायी गयी हैं, हक़ीक़त में अल्लाह की बड़ी नेमतों में से हैं।
इमाम ख़ामेनेई
23/02/1993
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की एक मोतबर हदीस हैः रोज़ा नरक से बचाने वाली ढाल है। रोज़े की ख़ुसूसियत, इच्छाओं पर क़ाबू पाना है। गुनाहों के मुक़ाबले में सब्र और इच्छाओं पर कंट्रोल का प्रतीक रोज़ा है। सूरए बक़रह की आयत 153 में सब्र से मुराद रोज़ा बताया गया है। रोज़ा, इच्छाओं से मुंह फेर लेने का प्रतीक है।
इमाम ख़ामेनेई
27/10/2004
जैसे ही हज़रत ख़दीजा ने अपनी पाक फ़ितरत के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) को देखा कि वो उस अलग हालत में हिरा से लौटे हैं तो वो फ़ौरन मामले की सच्चाई को समझ गयीं और उनका पाकीज़ा दिल आकर्षित हो गया और वो ईमान ले आयीं। फिर वो पूरे वजूद से ईमान पर डटी रहीं।
इमाम ख़ामेनेई
अगर हम मुसलसल अपने आप पर नज़र नहीं रख सकते और आत्म निर्माण नहीं कर सकते तो कम से कम रमज़ान के महीने को ग़नीमत समझें। रमज़ान के महीने में हालात अनुकूल होते हैं। इसमें सबसे अहम चीज़ यही रोज़ा है जो आप रखते हैं। यह अल्लाह की ओर से मिलने वाले सबसे क़ीमती मौक़ों में से एक है।
इमाम ख़ामेनेई
23/02/1993
रमज़ान का महीना बहुत क़ीमती मौक़ा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने इस महीने को अल्लाह की मेहमानी का महीना क़रार दिया है। क्या ऐसा हो सकता है कि इंसान किसी दानी के दस्तरख़ान पर पहुंचे और वहाँ से ख़ाली हाथ लौट आए?
सही मानी में वह महरूम है जो रमज़ान के महीने में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी न करवा पाए।
इमाम ख़ामेनेई
27/4/1990
रमज़ान का महीना, मुबारक महीना है। रमज़ान की बरकतें, इस महीने में अल्लाह की दावत में शिरकत का इरादा रखने वाले मुसलमानों से शुरू होती हैं, दिलों से शुरू होती हैं। इस महीने की बरकतों से प्रभावित होने वाली सबसे पहली चीज़ मोमिनों, रोज़ेदारों और इस पाक महीने में दाख़िल होने वालों के मन व आत्मा हैं।
इमाम ख़ामेनेई
24/12/1997
अगर आप अपने समाज में अपने और दूसरों के अंदर तक़वा (अल्लाह का डर) अच्छी ख़ूबियां, अख़लाक़, दीन पर अमल, ज़ोहद (सादगी) और अल्लाह से रूहानी निकटता पैदा कर सकें तो आपने इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के स्तंभ को और मज़बूत किया है।
इमाम ख़ामेनेई
27/6/1980
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम - हमारी जानें उन पर क़ुरबान हों - के ज़ाहिर होने और उनके वजूद का अक़ीदा रखने वाले कभी मायूसी व नाउम्मीदी का शिकार नहीं होते। वे जानते हैं कि यह सूरज निश्चित तौर पर निकलेगा और इन अंधेरों को मिटा देगा।
इमाम ख़ामेनेई
12/5/2017
रजब और शाबान ख़ुद को तैयार करने का मौक़ा है कि इंसान रमज़ान के महीने में तैयारी के साथ दाख़िल हो। सबसे पहली तैयारी है तवज्जो और दिल का मुतवज्जेह होना। अपने हर अमल के बारे में यह तसव्वुर रखना कि वह अल्लाह की नज़रों में है।
इमाम ख़ामेनेई
15 मई 2013
हम शाबान के महीने में, इबादत, तवस्सुल और मुनाजात के महीने में दाख़िल हो चुके हैं। “और जब मैं तुझ से दुआ करूं तो मेरी दुआ सुन ले, जब मैं तुझे पुकारूं तो मेरी निदा पर तवज्जहो फ़रमा।” (मुनाजाते शाबानिया) अल्लाह से मुनाजात का मौसम, इन पाकीज़ा दिलों को अज़मतों और नूर के ख़ज़ाने से जोड़ देने का मौसम। इसकी क़द्र करना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
12 जून 2013
समाज के लोगों के बीच मुहब्बत, ख़ुलूस और अपनाइयत भी बेसत के ख़ज़ानों में से एक ख़ज़ाना है। समाज में ज़िंदगी हमदर्दी और मुरव्वत की फ़ज़ा में गुज़रना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
18 फ़रवरी 2023
पैग़म्बर की बेसत का सबसे पहला मक़सद तौहीद की दावत देना था। तौहीद सिर्फ़ फ़िक्री और फलसफ़ियाना नज़रिया नहीं बल्कि इंसानों के लिए एक जीवनशैली है। अल्लाह को पूरी ज़िंदगी में ग़ालिब रखना और इंसानी ज़िंदगी में दूसरी ताक़तों के हस्तक्षेप का रास्ता रोक देना।
इमाम ख़ामेनेई
24 सितम्बर 2003
नबी-ए-अकरम की बेसत इंसानियत को अता किया जाने वाला सबसे अज़ीम तोहफ़ा है। वजह यह है कि बेसत में इंसानियत के लिए असीम ख़ज़ाने हैं जो आख़ेरत से पहले तक इंसान की सारी दुनियावी ज़िंदगी की कामयाबी की गैरेंटी बन सकते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
18 फ़रवरी 2023
बेसत का दिन यक़ीनन तारीख़े इंसानियत का सबसे अज़ीम दिन है। क्योंकि वो हस्ती जिससे अल्लाह ने ख़ेताब फ़रमाया और जिस के कांधों पर अज़ीम ज़िम्मेदारी रखी, तारीख़ की सबसे अज़ीम हस्ती और कायनात की सबसे अज़ीम मख़लूक़ है। इसी तरह वह ज़िम्मेदारी भी जो इस अज़ीम इंसान के कांधे पर रखी गई, यानी इंसानों को नूर की वादी में ले जाने की ज़िम्मेदारी वह भी सबसे अज़ीम ज़िम्मेदारी थी।
इमाम ख़ामेनेई
17 नवम्बर 1998
11 फ़रवरी 2023 के जुलूसों में क़ीमती और भरपूर शिरकत पर ईरानी क़ौम को सलाम करता हूं। मैं ख़ुद को इस क़ाबिल नहीं समझता कि शुक्रिया अदा करुं। इसकी क़द्रदानी तो अल्लाह ही कर सकता है। मिल्लते ईरान! अल्लाह आपकी मेहनतों की क़द्रदानी करे।
इमाम ख़ामेनेई
15 फ़रवरी 2023
मिल्लते ईरान का अल्लाहो अकबर का नारा अपनी ख़ास आवाज़ और अंदाज़ रखता है। क्योंकि यह पैग़म्बर का नार-ए-अल्लाहो अकबर है। यह बुतों को तोड़ने वाला नार-ए-अल्लाहो अकबर है। यह ताक़त और धन दौलत के बुतों को महत्वहीन साबित करने वाला नारा है। यह विश्व साम्राज्यवाद के मुक़ाबले में एक क़ौम की शुजाअत और बहादुरी का आईना है।
इमाम ख़ामेनेई
28 अगस्त 1985
#सीरिया और #तुर्किए में भूकंप से प्रभावित होने वाले अपने भाइयों के लिए दुखी हूं। हताहत हो जाने वालों के लिए अल्लाह से मग़फ़ेरत और उनके सोगवारों के लिए सब्र की दुआ करता हूं।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 2023
रजब के महीने की दुआएं मारेफ़त का ठाठें मारता हुआ समंदर हैं। दुआ में सिर्फ़ यह नहीं है कि इंसान अपने मन को अल्लाह के क़रीब कर लेता है, यह तो है ही, साथ ही मारेफ़त भी हासिल होती है। दुआ में शिक्षा भी है और मन की पाकीज़गी भी है।
इमाम ख़ामनेई
9 जून 2009
हर शख़्स अपनी क्षमता भर नमाज़ से फ़ैज़ हासिल करता है। अलबत्ता इसमें नौजवान और बच्चे सबसे आगे हैं। तवज्जो और ख़ुलूस से पढ़ी जाने वाली नमाज़ से उन्हें सबसे ज़्यादा फ़ायदा हासिल होता है।
इमाम ख़ामेनेई
26/01/2023
दुआ, मुश्किलों के हल की कुंजी, अल्लाह की याद और मन की पाकीज़गी का ज़रिया है और रजब का महीना उन लोगों की ईद है जो अपने मन को पाक करने का इरादा रखते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
9 अप्रैल 2018
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और दूसरे इमामों, सभी ने इस रास्ते की ओर क़दम बढ़ाया कि अल्लाह का हुक्म, अल्लाह का क़ानून समाजों में लागू हो। कोशिशें हुई हैं, जिद्दोजेहद हुयी है, तकलीफ़ें उठायी गयी हैं। इस राह में जेल व जिलावतनी बर्दाश्त की गयी और नतीजाख़ेज़ शहादतें दी गई हैं।ʺ
इमाम ख़ामेनेई 8 मई 1981
ज़माने के बड़े बड़े ओलमा इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से इल्म हासिल करते थे। (मशहूर सहाबी) इब्ने अब्बास के शिष्य अकरमा, एक मशहूर शख़्सियत हैं, जब इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पास आते हैं ताकि उनसे कोई हदीसे रसूल सुनें -शायद उनका इम्तेहान लेने की नीयत से- तो उनके हाथ पैर थरथराने लगते हैं और वो इमाम के क़दमों में गिर जाते हैं, बाद में ख़ुद ही ताज्जुब करते हुए कहते हैं कि फ़रज़ंदे रसूल! मैंने इब्ने अब्बास जैसी हस्ती को देखा, उनसे हदीसें सुनीं लेकिन उनके सामने मेरी यह हालत नहीं हुयी जैसी आपके सामने हो गई तो इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम उसके जवाब में साफ़ लफ़्ज़ों में कहते हैं, हे शामियों के ग़ुलाम! तुम ऐसी रूहानी अज़मत के सामने हो कि तुम्हारी यह हालत होना स्वाभाविक है।
अबू हनीफ़ा जैसा शख़्स, जो अपने ज़माने के बड़े धर्मगुरुओं में थे, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में आकर उनसे दीन की तालीम हासिल करते हैं और दूसरे बहुत से ओलमा, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शागिर्द थे और इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के इल्म का डंका पूरी दुनिया में इस तरह बजा कि बाक़िरुल उलूम (इल्म की तह तक पहुंच जाने वाले) के नाम से मशहूर हुए।
इमाम ख़ामेनेई
17 जुलाई 1986
रजब महीने का हर दिन अल्लाह की एक नेमत है। एक अक़्लमंद, होशियार व जागरुक इंसान इसके लम्हों में से हर लम्हे में ऐसी चीज़ हासिल कर सकता है कि जिसके सामने दुनिया की सारी नेमतें महत्वहीन हैं। यानी अल्लाह की मर्ज़ी, लुत्फ़, इनायत और तवज्जो हासिल कर सकता है।
इमाम ख़ामेनेई
8 फ़रवरी 1991
औरत इस्लामी माहौल में तरक़्क़ी करती है और उसकी औरत होने की पहचान बाक़ी रहती है। औरत होना औरत के लिए फ़ख़्र की बात है। यह औरत के लिए फ़ख़्र की बात नहीं है कि हम उसे ज़नाना माहौल, ज़नाना ख़ुसूसियतों और ज़नाना अख़लाक़ से दूर कर दें और गृहस्थी को, बच्चों की परवरिश को, शौहर का ख़्याल रखने को उसके लिए शर्म की बात समझें।
इमाम ख़ामेनेई
12 सितम्बर 2018
वो समझ रहे थे कि अमरीका के किसी पिट्ठू के पेट्रो डालर से इस्लामिक रिपब्लिक के इरादे को तोड़ा जा सकता है। यह उनकी भूल थी। इस्लामी जुमहूरिया का इरादा दुश्मन की ताक़त के सभी तत्वों से ज़्यादा मज़बूत साबित हुआ।
हाल ही में एक दस्तावेज़ पब्लिश हुयी जो मुझे भेजी गई। यह दस्तावेज़ कहती है कि कार्टर ने दिसम्बर 1979 में सीआईए को हुक्म दिया कि इस्लामी जुम्हूरिया ईरान का तख़्ता उलट दो। यानी इंक़ेलाब के शुरू में ही उनका यह इरादा था। दिलचस्प बात यह है कि कैसे तख़्ता उलट दो? कहा गया कि प्रोपैगंडे के ज़रिए।
इमाम ख़ामेनेई
9 जनवरी 2023
जब हमारे पास पाकीज़ा डिफ़ेंस के ज़माने जैसे नौजवान हों तो नतीजा यक़ीनी प्रगति के रूप में निकलता है। यानी दुनिया की सारी ताक़तें लामबंद हो गईं कि ईरान के टुकड़े कर देना है, मगर मुल्क की एक बालिश्त ज़मीन भी न ले सकीं। यह मामूली चीज़ है? यह छोटी कामयाबी है?
आप अपने इल्म और स्पेशलाइज़ेशन के ज़रिए, समाजी, सियासी और काम के मैदानों में अपनी सेवा के ज़रिए, माँ के किरदार को जो सबसे पाक और अच्छा रोल है, अपने ज़िम्मे लेकर, बच्चों की तरबियत और परवरिश करके, अपनी आगे की ज़िन्दगी में मुल्क के भविष्य और इन्क़ेलाब की सबसे बड़ी ख़िदमत कर सकती हैं।
इमाम ख़ामेनेई
23 सितम्बर 1986
शहीद सुलैमानी बड़े ज़ेहीन इंसान थे। इस्लामिक रेज़िस्टेंस फ़्रंट के ख़िलाफ़ एक बज़ाहिर मसलकी रुजहान रखने वाली तहरीक के अस्तित्व में आने का अंदाज़ा उन्होंने लगा लिया था। मुझसे उन्होंने कहा था कि जो कुछ मैं इस्लामी दुनिया में देख रहा हूं उसके मुताबिक़ एक नई तहरीक शुरू हो गयी है। कुछ ही समय बाद दाइश ने सर उभारा।
इमाम ख़ामेनेई
16 दिसम्बर 2020
अमरीका दुनिया पर हावी ताक़त थी मगर आज नहीं है। इलाक़े में अमरीका शिकस्त खा चुका है। हर कोशिश के बावजूद, हर हथकंडा इस्तेमाल करने के बावजूद बड़ा शैतान इस इलाक़े में अपना मक़सद हासिल न कर सका। इस काम के चैम्पियन सुलैमानी थे।
इमाम ख़ामेनेई
बहुत कम मुद्दत के अंदर पैग़म्बरे इस्लाम के दिल को हज़रत ख़दीजा और हज़रत अबू तालिब की वफ़ात से दो गहरे सदमे पहुंचे। पैग़म्बर को शिद्दत से तनहाई का एहसास हुआ। उन दिनों हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा सहारा बनीं और अपने नन्हें हाथों से पैग़म्बर के चेहरे पर पड़ी दुख और पीड़ा की गर्द हटाई। उम्मे अबीहा यानी अपने वालिद की मां, पैग़म्बर की ढारस बंधाने वाली। यह लक़ब उसी दौर का है।
इमाम ख़ामेनेई
24 नवम्बर 1994
रवायतों में नज़र आता है कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के पास बस नबूवत व इमामत की ज़िम्मेदारी नहीं थी वरना रूहानी बुलंदी के एतेबार से उनमें और पैग़म्बर व अमीरुल मोमेनीन अलैहिमुस्सलाम में कोई फ़र्क़ न था। इससे औरत के बारे में इस्लाम के नज़रिए का पता चलता है। एक औरत इस मक़ाम पर पहुंच सकती है वह भी इस नौजवानी की उम्र में।
इमाम ख़ामेनेई
29 नवम्बर 1993
अल्लाह के करम से इस्लामी इंक़ेलाब के बाद हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का नाम इंक़ेलाब से पहले के दौर की तुलना में दस गुना नहीं दर्जनों बल्कि सैकड़ों गुना ज़्यादा दोहराया जाता है। यानी समाज फ़ातेमी समाज बन चुका है।
इमाम ख़ामेनेई 23 जनवरी 2022
अगर औरतों को क़ुरआन से लगाव हो जाए तो समाज की बहुत सी मुश्किलें हल हो जाएंगी, इंशाअल्लाह क़ुरआन पर रिसर्च करने वाली महिलाओं की ट्रेनिंग के अज़ीम क़दम की बरकत से हमारे समाज का मुस्तक़बिल आज से कहीं ज़्यादा क़ुरआनी हो जाएगा।
इमाम ख़ामेनेई
20 अक्तूबर 2009
अमरीकियों ने साफ़ लफ़्ज़ों में कहा कि दाइश का गठन उन्होंने किया और अब ह्यूमन राइट्स का परचम उठाए मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकारों के विषय पर बात करते हैं। यह सब शाहचेराग़ के आतंकी हमले में बेनक़ाब हो गए।
इमाम ख़ामेनेई
20 दिसम्बर 2022