इस्लामी इंक़ेलाब के पहलुओं में से एक वह तमांचा है जो विदेशों पर निर्भर वतनफ़रोशों, विदेशों की पिट्ठु मशीनरियों और विदेशी दुश्मनों के मुंह पर ईरानी क़ौम ने लगाया है। अस्ल में ईरानी क़ौम का इंक़ेलाब वह ग़ुस्सा है जो विदेशी असर व पैठ के ख़िलाफ़ ईरानी क़ौम ने ज़ाहिर किया है। इस्लामी इंक़ेलाब ने ईरानी अवाम को स्वाधीनता दी है। अब जबकि इस स्वाधीनता की राह में इतना ख़ून बह चुका है, इस मुल्क के आक़ा होने के दावेदार, इस मुल्क के मालिक होने के दावेदार - यानी अमरीकी जो ख़ुद को इस मुल्क का मालिक समझते थे - दोबारा पलट आएं! इस मुल्क के अंदर आएं और अपने हुक्म, कामों में हस्तक्षेप, तरह तरह के तंत्रों में पैठ के ज़रिए और दुश्मनों को इकट्ठा करके इंक़ेलाब लाएं! क्या ईरानी क़ौम ऐसा होने देगी? क्या ईरानी कौम अपने इंक़ेलाब, अपने इमाम और नेता और अपनी अज़मत व शान से किनाराकश हो गयी है कि वह अमरीकियों को इजाज़त दे कि वो फिर से ईरान वापस आएं और इस मुल्क में उनकी आवाजाही के रास्ते खुल जाएं? अमरीकी हुकूमत इस्लामी गणराज्य व्यवस्था की दुश्मन है, इंक़ेलाब की दुश्मन है और ईरानी क़ौम की दुश्मन है। वो इसको ज़ाहिर कर चुके हैं और वो बार बार यह बात कह चुके हैं।

इमाम ख़ामेनेई

16/जनवरी/1998