आज़ादी इस चीज़ से हटकर है कि जिसका जी चाहे आज़ादी का नाम लेकर जिस तरह का भी ग़लत फ़ायदा उठाना चाहे, उठा ले। जैसा कि दुनिया में यह काम हुआ, जैसा कि आज़ादी के नाम पर इंसानों पर सबसे बड़े बोझ लाद दिए गए, आज़ादी के नाम पर सबसे भयायक जुर्म अंजाम दिए गए, आज़ादी के नाम पर इंसानी नस्लों को अख़लाक़ी बुराइयों और बेलगाम यौनेच्छा में ढकेल दिया गया। हम अगर औरतों के बारे में अपना नज़रिया बयान करें तो दुनिया के मक़रूज़ नहीं क़रार पाएंगे। दुनिया हमारे ख़िलाफ़ बात नहीं कर सकती। अगर समाज में औरतों के फ़रीज़े और कार्यक्षेत्र निर्धारित हों तो यह हम हैं कि जिसकी ज़बान दुनिया के सामने खुल कर चलेगी। अगर हम आज़ादी के बारे में भी इस्लाम का नज़रिया सही तौर पर बयान करें और उसकी व्याख्या करें तो हम दुनिया और उन मुल्कों के सामने जो झूठी, नक़ली और गुमराह करने वाली आज़ादी का दम भरते हैं, मक़रूज़ नहीं होंगे। यह हम हैं कि जिनकी ज़बान खुलकर दुनिया के सामने यह मुतालेबा कर सकती है कि आख़िर क्यों यह आज़ादी इंसानों को नहीं दी जाती और क्यों आज़ादी के नाम पर इंसानों पर ज़ुल्म होता है, उन्हें हमले का निशाना बनाया जाता है। इसलिए आज़ादी के बारे में इस्लाम के नज़रिए को पहचनवाना चाहिए। यह एक ज़रूरी काम है।
इमाम ख़ामेनेई
05/12/1986