साम्राज्य की दुश्मनी और इन सभी साज़िशों के बावजूद ख़ुदा के शुक्र से हमारा मुल्क और हमारे अधिकारी, इंक़ेलाब के लंबे और कठिन रास्ते को तय करने और देश के निर्माण में सफल रहे हैं। यह तरक़्क़ी दिन-प्रतिदिन बढ़ती रहेगी और अल्लाह ने चाहा तो हम दिन-ब-दिन सामाजिक न्याय की तरफ़ ज़्यादा तेज़ी से बढ़ते रहेंगे, इस देश में इस्लाम की नींव और इस्लाम पर आस्था व अमल दिन-ब-दिन ज़्यादा मज़बूत होता जाएगा। उन लोगों को, जिन्होंने ये उम्मीद पाल रखी है कि शायद कभी अवाम इस्लाम और इस्लामी गणराज्य से मुंह मोड़ लेंगे, ये जान लेना चाहिए कि उनका अंजाम भी उन्हीं लोगों जैसा होगा, जो इस्लामी इंक़ेलाब की शुरुआत में सोचते थे कि इंक़ेलाब अगले दो-तीन महीनों में, अगले छ: महीने में, अगले एक साल में समाप्त हो जाएगा! या ये सोचते थे कि वे (थोपे गए) युद्ध की शुरुआत में एक हफ़्ते में ईरान को जीत लेंगे! जिस तरह से उन्हें एक भरपूर तमाँचा लगा था, उसी तरह वो लोग भी भरपूर थप्पड़ खाएंगे जो आज ये सोचते हैं और इस उम्मीद में बैठे हुए हैं कि अवाम अपने धर्म से, अपने क़ुरआन से, अपने इस्लाम से, अपने धर्मगुरुओं से, अपने इमाम ख़ुमैनी से मुंह मोड़ लेंगे।

इमाम ख़ामेनेई

6/4/1999