बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ें पूरी कायनात के मालिक के लिएदुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व नबी हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा और उनकी सबसे नेकसबसे पाकचुनी हुयीहिदायत याफ़्ताहिदायत करने वालीमासूम और सम्मानित नस्लख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

सब से पहले तो मैं आप सभी भाई बहनों का स्वागत करता हूं जो इतनी दूर से यहां आए और अपनी सद्भावना और मुहब्बत से भरे दिलों से हमारे इस इमामबाड़े में बरकत भर दी है। आप सब भाई बहनों का बहुत शुक्रिया।

मेरे लिए तो आप से मुलाक़ात, बहुत सी यादों को ताज़ा करने वाली है, चाहे वह बीरजंद के लोगों से मुलाक़ात हो, ख़ुरासाने जुनूबी के अवाम से या फिर सीस्तान व बलोचिस्तान के लोगों से मुलाक़ात हो। यह जो मैं कह रहा हूं वह सिर्फ़ इस लिए नहीं है कि मैं तारीख़ के एक दौर को बयान करना चाहता हूं बल्कि अस्ल मक़सद यह है कि मैं चाहता हूं कि हमारी क़ौम के दुश्मन हमारे मुल्क के कुछ इलाक़ों की जो ग़लत छवि पेश करत हैं, उसे ग़लत साबित कर दूं, मैं मुल्क के अलग अलग इलाक़ों में रहने वाले अपने भाइयों के बारे में जनमत के सामने सच्चाई पेश करना चाहता हूं।

मैंने तानाशाही सरकार के ख़िलाफ़ अपनी पहली खुली लड़ाई, बीरजंद में शुरु की थी। उससे पहले भी बहुत कुछ किया था लेकिन खुल कर टकराव नहीं हुआ था। सब से पहला खुला टकराव बीरजंद में हुआ था सन 1963 के मुहर्रम के महीने में हुआ था, यानी 60 बरस पहले, आप लोगों में से अक्सर लोग उस वक़्त पैदा नहीं हुए थे। दूसरा टकराव ज़ाहेदान में हुआ था, वह कब था, वह भी उसी साल रमज़ान के महीने में। तो देखें इस इलाक़े से जुड़ी मेरी यादें कितनी पुरानी हैं, 10 या 20 बरस की बात नहीं है, आधी सदी से ज़्यादा की बात है। बीरजंद में नवीं मुहर्रम को मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया, मुझे ले जाकर थाने के हवालात में बंद कर दिया गया। बीरजंद के लोग दसवीं मुहर्रम को थाने पर हमला करके मुझे वहां से निकालना चाहते थे, उन्होंने यह फ़ैसला कर लिया था। बीरजंद के मशहूर मौलाना मरहूम तहामी साहब (1) की सूझ बूझ की वजह से यह नहीं होने पाया। वह एक बहुत बड़े आलिमे दीन थे, अगर वो क़ुम या नजफ़ के मदरसों में होते तो यक़ीनी तौर पर मजरए तक़लीद बन जाते, लेकिन वह बीरजदं में जाकर बस गये थे। उन्होंने समझाया कि अगर थाने पर हमला किया गया तो मेरे लिए मुश्किल पैदा हो जाएगी इस तरह से उन्होंने लोगों को थाने पर हमला करने से रोक दिया। यह सब बताने का मक़सद क्या है? मक़सद यह बताना है कि उस दौर में लोग इस मिशन में धर्म गुरुओं के साथ थे, हम अकेले नहीं थे। मैं अकेला गया था बीरजंद लेकिन पूरा बीरजंद और वहां रहने वाले सभी लोग, सारे बड़े बड़े धर्मगुरु, हमारे साथ हो गये। यह तो बीरजंद की बात है।

उसी साल रमज़ान के महीने में मैं ज़ाहेदान गया। ज़ाहेदान में दो बड़े धर्मगुरु थेः शियों के बड़े मौलाना, जनाब कफ़अमी (2) और सुन्नियों के बड़े मौलाना जनाब मौलवी अब्दुल अज़ीज़ मुल्लाज़ेही थे। वहां भी मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया, 15 रमज़ान को मुझे ज़ाहेदान में गिरफ़्तार किया गया और तेहरान लाया गया और यहां क़ज़ल क़ले जेल में डाल दिया गया। मरहूम कफ़अमी ने खुल कर हमारा साथ दिया, मरहूम मौलवी अब्दुलअज़ीज़ ने भी हमारी बातों के मुताबिक़ एक हुक्म जारी किया। वैसे मुझे यह याद नहीं कि उस हुक्म की तारीख़ ज़ाहेदान में मेरे रहने के ज़माने में थी या उसके कितने बाद की थी यह याद नहीं लेकिन इस बयान की बातें वही थीं जो हम कर रहे थे, अब इस बयान का ब्योरा बहुत लंबा है जिसका यहां पर मैं ज़िक्र नहीं करना चाहता। यह हैं हमारी यादें वहां के बारे में। यानी मैंने तानाशाही हुकूमत के ख़िलाफ़ जो पहला खुला क़दम उठाया उसमें इन दो अहम शहरों ने, जो आज दो सूबों की राजधानियां हैं, अपने लोगों और धर्मगुरुओं के साथ मेरा साथ दिया।

यक़ीनी तौर पर सिर्फ़ यही नहीं था। यह सब तो इन्क़ेलाब की कामयाबी के 15 साल पहले सन 1963 की बात है। इन्क़ेलाब की कामयाबी से कुछ पहले, मुझे सज़ा के तौर पर ईरानशहर भेज दिया गया।(3) इसी तरह इन्क़ेलाब की कामयाबी के बाद, हम ने पूरे बलोचिस्तान के सुन्नी धर्मगुरुओं से संपर्क किया। इन्क़ेलाब की कामयाबी के फ़ौरन बाद, इमाम  ख़ुमैनी (रिज़वानुल्लाह तआला अलैह) ने मुझे सीस्तान व बलोचिस्तान भेजा ताकि मैं वहां जाकर वहां के लोगों और वहां के हालात की जानकारी हासिल करूं और फिर वापस आकर रिपोर्ट पेश करूं और फिर वहां के बारे में काम किया जाए।(4) क्योंकि मुझे पहले से ही इस इलाक़े के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी थी। इस दौरे में बलोचिस्तान के अहले सुन्नत धर्मगुरुओं ने जिस तरह से मेरी मदद की है उसे मैं कभी नहीं भूल सकता क्योंकि उस दौर में इस के लिए बड़ी हिम्मत की ज़रूरत थी। मरहूम मौलवी अब्दुलअज़ीज़ सादाती, सरावान के इस उम्र दराज़ बड़े धर्मगुरु ने खुल कर हमारा साथ दिया और इन्क़ेलाब के साथियों में शामिल हुए, यह सब पहचान है, यह सब इस सूबे की पहचान है, अवाम की पहचान है। दुश्मन को यह पसंद नहीं है कि यह सच्चाइयां हमें और आप को याद रहें, वह चाहता है कि हम यह सब कुछ भूल जाएं। चाबहार में, सरावान में, ईरान शहर में, ख़ुद ज़ाहेदान और सीस्तान में जो सच में ज़ाबुली बहादुरों का ठिकाना है, साहसी लोगों का, वफ़ादार लोगों का ठिकाना है। यह वहां काम करने का अतीत है।

इस इलाक़े के लोगों ने बड़े बड़े शहीद भी पेश किये हैं, थोपी गयी जंग में शहीद होने वालों के अलावा भी, मुनाफ़िक़ों से जंग में, मुल्क में अम्न व अमान के लिए भी उस दौर से लेकर आज तक लगातार इस इलाक़े के लोगों ने इन्क़ेलाब की राह में शहीद दिये हैं। आज भी शहीद हो रहे हैं। सन 1981 में भी शहीद हुए थे, मरहूम सैयद मुहम्मद तक़ी हुसैनी तबातबाई (5) ज़ाबुल से, मरहूम हुसैनबोर (6) यह सब सुन्नी मौलाना हैं यह सब 80 के दशक के लोग हैं, वहां से लेकर हालिया दौर तक हमारे यही भाई नज़र आते हैं जैसे जनरल शहीद शूश्तरी (7) या शहीद अब्दुल वाहिद रीगी (8) या ख़ाश ज़िले के मौलवी और इस तरह के लोग, यानी यह इलाक़ा, इन्क़ेलाब का इलाक़ा है, शहीद पेश करने वाला इलाक़ा है, ख़ुदा की राह में आगे बढ़ने वाला इलाक़ा है। दुश्मन यह नहीं देख पा रहा है और यह बर्दाश्त नहीं कर सकता। एकता के लिए भी लोग शहीद हुए हैं, मुल्क के ख़िलाफ़ जंग का मुक़ाबला करने में भी लोग शहीद हुए हैं और मुल्क में अम्न व अमान के लिए भी इस इलाक़े के लोग शहीद हुए हैं जिनमें से कुछ का मैंने नाम लिया है।

अच्छा यहां पर एक अलग सी बात कहना चाहूंगा जो यक़ीनी तौर पर बुनियादी और अहम बात है और वह यह कि मुल्क के ओहदेदारों को इन इलाक़ों के लोगों की क़द्र करना चाहिए और उनकी ख़िदमत करना चाहिए। यक़ीनी तौर पर सीस्तान व बलोचिस्तान में बहुत ख़िदमत हुई है, बहुत काम हुआ है। आज आप जिस बलोचिस्तान को देख रहे हैं, वह तानाशाह के ज़माने का बलोचिस्तान नहीं है, मैंने वह दौर देखा है, लोगों के पास कुछ भी नहीं था। पहले दिन से, शुरुआती दिनों से ही इस इलाक़े में काम शुरु कर दिया गया, वहां भी, और ज़ाबुल और इस स्टेट के दूसरे इलाक़ों में भी और आज भी काम हो रहा है। इस तरह के कामों को पूरी ताक़त से जारी रखना चाहिए।  

यह जो रेलवे लाइन का मामला है बहुत अहम है, अगर मुल्क का उत्तरी और दक्षिण पूर्वी इलाक़ा रेलवे लाइन से जुड़ जाए तो यह बहुत अहम काम है, इस सूबे के लिए और बीच में पड़ने वाले दूसरे प्रांतों के लिए भी यह अहम है, और पूरे मुल्क के लिए भी बहुत अहम है। ज़ाबुल में पानी का मुद्दा बहुत अहम है। सभी काम किये जाने चाहिए और हर रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए ताकि पानी के बारे में लोगों का हक़ उन्हें मिल सके और इन्शाअल्लाह यह हक़ उन्हें मिलेगा, यह काम होकर रहेगा। बहुत ज़्यादा काम किये गये हैं, और बहुत से काम हैं जिन्हें किया जाना है। सन 2000 के दशक में जब मैं बलोचिस्तान आया था (9) तो उस वक़्त जो परियोजनाएं पास हुई थीं, अगर सरकारें उन पर अमल करतीं तो आज इस स्टेट की शक्ल कुछ और होती। कुछ सरकारों ने सुस्ती की, लापरवाही की। आज सब लगे हैं, काम कर रहे हैं, कोशिश कर रहे हैं। मुझे पूरी उम्मीद है और इंशाअल्लाह यह उम्मीद पूरी होगी। जी तो यह कुछ मुद्दे थे जो इस इलाक़े से ताल्लुक़ रखते हैं।

एक आम बात है जिसका ताल्लुक़ सब से है, मुझ से लेकर ईरानी क़ौम के हर आदमी तक और सभी ओहदेदारों को इस पर ध्यान देना चाहिए, वह मुद्दा क्या है? वह मुद्दा जिसके लिए मैं चाहता हूं कि सब लोग, ख़ास तौर पर नौजवान बहुत ध्यान दें यह हैः जब दुनिया में बड़ा बदलाव हो जाता है या शुरु होता है तो क़ौमों और ओहदेदारों की ज़िम्मेदारी होती है कि वह निगरानी कई गुना बढ़ा दें। अभी मैं इसे और विस्तार से बयान करुंगा। अगर निगरानी रही और ध्यान दिया गया तो क़ौमों को कोई बेवक़ूफ़ नहीं बना पाएगा और कोई क़ौम ख़ुद अपने ख़िलाफ़ काम करने पर मजबूर नहीं होगी। अगर यह निगरानी नहीं होगी और लापरवाही की गयी तो क़ौमों पर देर तक रहने वाली चोट लगायी जाएगी। मैं मिसाल देता हूं!

 एक मिसाल साम्राज्यवाद की ताक़त के दौर की है, मिसाल के तौर पर 18वीं सदी में कि जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद हमारे इलाक़े में आया और बहुत से मुल्कों ख़ास तौर पर एशिया के मध्यवर्ती और पूरब के बहुत से देशों पर क़ब्ज़ा कर लिया क्योंकि इन मुल्कों की क़ौमें सो रही थीं, ओहदेदार लापरवाह थे। अग्रेज़ आए और धीरे धीरे भारतीय महाद्वीप और इसी तरह हिन्दुस्तान के पूरब व पश्चिम के मुल्कों के अहम स्रोतों पर क़ब्ज़ा कर लिया यह जो मैं हिन्दुस्तान का नाम ले रहा हूं तो यह तो एक मिसाल है वरना अफ़्रीक़ा में भी यही हुआ, लैटिन अमरीका में भी यही हुआ, उत्तरी अमरीका में भी हालात यही थे, हर जगह अग्रेज़ों ने क़ौमों के मूल स्रोतों पर क़ब्ज़ा कर लिया और उन्हें अपने उपनिवेश में मिला लिया, इन मुल्कों को दसियों साल, या उससे ज़्यादा बल्कि शायद 200 साल पीछे ढकेल दिया, बाद में कितनी मेहनत से यह क़ौमें, ख़ुद को साम्राज्यवाद के पंजों से छुड़ा पायी हैं। अग्रेज़ों का नाम भी मिसाल के लिए लिया गया, वरना फ्रांस ने भी यही किया है, पुर्तगाल ने भी यही किया, बेल्जियम ने भी यही किया और इसी तरह युरोप के दूसरे मुल्कों ने भी लगभग इसी तरह के काम किये हैं। जब ख़ास कारणों के आधार पर युरोप में साम्राज्यवाद की लहर उठी तो क़ौमों को जागते रहना चाहिए था, मुल्क के ओहदेदारों को आंखें खुली रखनी चाहिए थी, ध्यान रखना चाहिए था, लेकिन सा नहीं किया, उसके नतीजे में दुनिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा, दो-तीन सदियों तक साम्राज्यवाद के पंजों में छटपटाता रहा। यह एक मिसाल है।

इससे क़रीब की मिसाल, पहली वर्ल्ड वर के बाद की है, पहली वर्ल्ड वर के बाद और इसी तरह दूसरी वर्ल्ड वर के कुछ दिनों बाद, इसी हमारे इलाक़े में, यानी पश्चिमी एशिया में, यह वही जगह हैं जिसे युरोपीय, मध्य पूर्व कहना पसंद करते हैं जो ग़लत है, हमें इस इलाक़े को पश्चिमी एशिया कहना चाहिए, इस इलाक़े का जो हाल किया है अगर हमारे इस इलाक़े की क़ौमें, पश्चिमी एशिया की और उत्तरी अफ्रीक़ा की क़ौमें, जाग रही होतीं तो इस इलाक़े का वो लोग यह हाल न कर पाते। ब्रिटेन ने अपने हिसाब से, फ्रांस ने अपने तरीक़े से और इटली ने भी एक दूसरे तरीक़े से, सब ने मनमानी की है इस इलाक़े में जिसकी वजह से हमारा इलाक़ा, तरक़्क़ी के क़ाफ़िले से कम से कम 100 साल पीछे हो गया। तो ग़ौर करें! जब दुनिया में कोई बदलाव शुरु होता है, तो क़ौमों को अपनी आंखें खुली रखना होता है ताकि वह बदलाव, उनके नुक़सान में न चला जाए, मुल्क के ओहदेदारों को जागते रहना चाहिए लेकिन यह भी सच्चाई है कि जनता की मदद के बिना मुल्क के ओहदेदार कुछ नहीं कर सकते।

मेरे कहने का मतलब यह हैः मैं यह कह रहा हूं कि आज दुनिया में या तो एक बड़ा बदलाव शुरु हो रहा है या शुरु हो चुका है। यह वह दिन है जिसमें इलाक़े की क़ौमों को उस तरह की लापरवाही नहीं करनी चाहिए जो उन्होंने साम्राज्यवाद के दौर में या पहली वर्ल्ड वर के बाद की थी, इलाक़े की क़ौमों को आंखें खुली रखना चाहिए। मेरी गुज़ारिश है ज़रा ध्यान दें मेरी बातों पर, ख़ास तौर पर हमारे प्यारे नौजवान। हमने कहा दुनिया में बड़ा बदलाव होने वाला है। यह बदलाव क्या है? दुनिया में सा क्या हो रहा है जिसे हम “बदलाव” कह रहे हैं, उसकी बुनियाद कई चीज़ें हैं, सब से पहले दुनिया की साम्राज्यवादी ताक़तों की कमज़ोरी है, यह बदलाव का एक अहम चिन्ह है जो हो रहा है। अमरीका की साम्राज्यवादी ताक़त कमज़ोर हो चुकी है और ज़्यादा कमज़ोर होती जा रही है, जिसको और खुल कर मैं बयान करुंगा, इसी तरह कुछ युरोपीय देशों की ताक़त भी कम हो रही है, यह बदलाव की एक बड़ी निशानी है। इस बदलाव का एक और रूप, इलाक़े और दुनिया में नयी ताक़तों का सामने आना है, नयी ताक़तें सामने आ रही हैं जो या तो इलाक़ाई ताक़त हैं या फिर अंतर्राष्ट्रीय ताक़त बन चुकी हैं, तो यह भी एक बदलाव है।

जी तो हमने कहा कि अमरीका कमज़ोर हो रहा है, या पश्चिमी ताक़तें, साम्राज्यवादी ताक़तें कमज़ोर हो रही हैं। यह कोई नारेबाज़ी नहीं है, यह एक सच्चाई है और सी बात है जो वे ख़ुद कह रहे हैं, ख़ुद वे कह रहे हैं कि दुनिया में अमरीकी ताक़त के प्रतीक कमज़ोर हो रहे हैं। कौन से प्रतीक? जैसे अर्थ व्यवस्था, अमरीका की ताक़त का एक अहम चिन्ह अमरीका की मज़बूत इकोनमी थी जिसके बारे में अब कहा जा रहा है कि उसका सूरज डूब रहा है। उसकी ताक़त की एक और निशानी, दूसरे मुल्कों में दख़ल देने की उसकी ताक़त थी, अमरीका अलग अलग देशों के मामलों में दख़ल देता था, आज वह बात नहीं रह गयी है, युरोपीय एक तरह से, अमरीकी दूसरी तरह से और दूसरे देश अलग अदांज़ में, अपनी ताक़त गवां रहे हैं। आप सुनते ही होंगे। प्रेस में, रेडियो व टीवी की ख़बरों में, दुनिया की ख़बरों में सुनते ही होंगे आप लोग, अब वह लोग ख़ुद क़ुबूल कर रहे हैं। अमरीका की एक ताक़त यह थी कि वह दूसरे मुल्कों में सरकारें बदल दिया करता था। ध्यान रहे! यह अहम बात है। एक दौर था जब अमरीका ने अपने एक अफ़सर को नोटों से भरे एक बैग के साथ भेजा, डलर से भरे बैग के साथ, उसके अफ़सर का नाम तारीख़ में लिखा है और आप सब उसे जानते हैं , किम रोज़वेल्ट, उसका नाम किम रोज़वेल्ट था। यह कोई ढकी छुपी बात नहीं है, यह वह बातें हैं जो उस दौर में छुपी हुई थीं, लेकिन बाद में खुल कर सब के सामने आ गयीं। अपने एक अफ़सर को नोटों से भरे बैग के साथ ईरान भेजते हैं, और 19 अगस्त की तरह एक बग़ावत करा दी जाती है! अमरीका और ब्रिटेल के आपसी सहयोग से और एक अमरीकी अफ़सर के हाथों जो एक बैग भर कर नोट के साथ यहां आता है और उसे ग़ुंडों और तरह तरह के लोगों के बीच बांट देता है इस तरह से 19 अगस्त की बग़ावत करा दी जाती है और मुसद्दिक़ की सरकार जैसी हुकूमत को गिरा दिया जाता है।

किसी दौर में अमरीका इस तरह का था, क्या आज भी अमरीका यह काम कर सकता है? हरगिज़ नहीं! न ईरान में यह सब कर सकता है और न ही किसी और मुल्क में अब वह यह सब करने की ताक़त रखता है। आज अमरीका जिन सरकारों को नुक़सान पहुंचाना चाहता है उन्हें नुक़सान पहुंचाने के लिए उसे मजबूर होकर हाइब्रिड जंग का सहारा लेना पड़ता है, हालांकि उसके लिए हाइब्रिड जंग बहुत ख़र्चे वाली होती है लेकिन उससे भी उसे कोई कामयाबी नहीं मिलती। अमरीका के पास आज ख़ुफिया एजेन्सियों और सुरक्षा मैदान में जिस तरह के असाधारण साधन हैं उसके बावजूद क्या आप यह बता सकते हैं कि अमरीका ने किस मुल्क में इस तरह की हाईब्रिड जंग के सहारे सरकार बदल दी, या एक सरकार को हटा कर उसकी जगह दूसरी सरकार ला दी? 10 बरसों तक सीरिया में साज़िशें कीं, कुछ बिगाड़ नहीं पाए, 20 बरसों तक अफ़ग़ानिस्तान में पड़े रहे, सारे सैन्य हथियार भी साथ ले आए, लेकिन आप सब ने देखा कि अमरीकी किस अपमानजनक तरीक़े से अफ़गानिस्तान से निकले थे। जब हम कहते हैं कि अमरीका कमज़ोर हो गया है तो उसका मतलब यह सब होता है।

युरोप का हाल भी इससे अच्छा नहीं है। आप लोग आजकल अफ़्रीक़ा की ख़बरें सुनते होंगे, जो मुल्क फ़्रांस के प्रभाव में थे, वह एक एक करके फ़्रांस के ख़िलाफ़ खड़े हो रहे हैं और फ़्रांस की पिटठू सरकारों को गिरा रहे हैं (10) वह भी जनता! यक़ीनी तौर पर हटाने का काम उनकी फ़ौज कर रही है लेकिन जनता उनका साथ दे रही है, यानी पश्चिमी ताक़तें जिनका अगुवा अमरीका है, और फिर युरोप, आज उनकी वैसी ताक़त नहीं रही है, कमज़ोर हो रहे हैं, और उनकी यह कमज़ोरी हर रोज़ बढ़ रही है। जी इसके साथ ही नयी ताक़तें भी उभर रही हैं, मैं अब उन ताक़तों का नाम नहीं लेना चाहता, इस बहस में नहीं पड़ना चाहता। यह बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय बदलाव है।

जी अब यह बदलाव हो रहा है। मैंने कहा कि दुनिया में बड़े बदलाव के मौक़े पर राष्ट्रों को आंखें खुली रखना चाहिए, मुल्क के ओहदेदारों को जागते रहना चाहिए। यह वही दिन है जिस में हम जी रहे हैं, हमें ध्यान रखना चाहिए। यह जो मैं कहता हूं कि दुश्मन कमज़ोर हो रहा है तो उसका मतलब यह नहीं है कि अब वह मक्कारी नहीं कर सकता, दुश्मनी नहीं कर सकता, चोट नहीं पहुंचा सकता, पहुंचा सकता है, दुश्मन साज़िश तैयार कर रहे हैं। हमें नींद न आ जाए, हमें लापरवाही नहीं करना चाहिए। हम  यानी कौन लोग? यानी ओहदेदार और जनता। मैनें कहा कि जनता की मदद के बिना किसी भी मुल्क के ओहदेदार, बड़े और अहम काम नहीं कर सकते, जनता को उनके पीछे रहना चाहिए, जनता को जागते रहना चाहिए। ओहदेदारों को भी लापरवाही नहीं करना चाहिए, उन्हें जागते रहना चाहिए। अमीरुल मोमेनीन ने कहा हैः “ जो सो गया तो उसकी तरफ़ से दूसरों की आंख बंद नहीं होती।“ (11) अगर आप मोर्चे में सो गये तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप के दुश्मन को भी नींद आ गयी, नहीं! हो सकता है कि वह जाग रहा हो, हो सकता है वह आप पर नज़र रखे हो, हो सकता है वह आप की नींद से फ़ायदा उठाए, यह एक बुनियादी मुद्दा हैः लापरवाही नहीं करना चाहिए।

दुश्मन की साज़िशों की तरफ़ से होशियार रहने की ज़रूरत है। दुश्मन साज़िश कर रहा है? जी हां, सिर्फ़ हमारे लिए नहीं, अमरीका आज इस इलाक़े में इराक़ के लिए योजना बना रहा है, अफ़ग़ानिस्तान के लिए प्रोग्राम बना रहा है, परशियन गल्फ़ के मुल्कों के लिए प्रोग्राम बना रहा है जो उसके पुराने दोस्त हैं, इन सब के लिए उसके प्रोग्राम हैं। अब अमरीका इन मुल्कों के लिए जो प्रोग्राम रखता है हमें उससे मतलब नहीं लेकिन हमारे बारे में उसका क्या प्रोग्राम है? हम बेख़बर नहीं हैं, ग़ाफ़िल नहीं हैं। हमारे पास जो इंटैलीजेंस मालूमात हैं उनसे पता चलता है कि अमरीकी सरकार ने अमरीका में एक सेन्टर बना रखा है जियक “ क्राइसिस ग्रुप” कहा जाता है। उसका काम क्या है? इस ग्रुप का मिशन हमारे मुल्क और दूसरे मुल्कों में क्राइसिस पैदा करना है। इस ग्रुप का मिशन यह है कि वह संकट पैदा करे, से मुद्दे तलाश करे जिनकी मदद से उनकी नज़र में मुल्क में संकट पैदा किया जा सकता है और फिर उस पर लोगों को भड़काएं, यह अमरीका के इस क्राइसिस ग्रुप का मिशन है। उन लोगों ने बैठ कर सोच विचार किया है, रिसर्च की है और  फिर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि ईरान में संकट पैदा करने वाले कौन से मुद्दे हैं जिनको उठाया जा सकता है, जिन पर लोगों को भड़काया जा सकता है, उनमें से अलग अलग जातियों का मुद्दा है, उनमें से एक अलग अलग मसलक का विषय है, एक औरतों का विषय है, इन सब मुद्दों को ईरान में उठाया जा सकता है ताकि संकट पैदा हो और इस तरह से वह हमारे प्यारे मुल्क को चोट पहुंचा सकें, यह अमरीका की योजना है, लेकिन “बिल्ली को ख़्वाब में भी छीछड़े नज़र आते हैं”।

खुल कर कहा है, खुल कर क़ुबूल किया है कि वह ईरान में सीरिया और यमन जैसे हालात पैदा करना चाहते हैं, यह बात खुल कर कही है। यक़ीनी तौर पर यह उनकी ग़लतफ़हमी है, वे यह काम नहीं कर सकते, इसमें कोई शक ही नहीं, लेकिन इसके लिए यह शर्त है कि हम ध्यान रखें, ख़्याल रखें। अगर आप सो गये, तो एक बच्चा भी आप को नुक़सान पहुंचा सकता है, हमले के लिए तैयार और हथियारों से लैस दुश्मन की बात ही अलग है। हमें लापरवाही का शिकार नहीं होना चाहिए, हमें सोते नहीं रहना चाहिए। हमें ध्यान रखना चाहिए कि कहीं ग़लत राह पर तो नहीं लग गये हैं, ग़लत रास्ता तो नहीं चुन लिया है, ग़लती तो नहीं कर रहे हैं। अगर हमने ध्यान रखा, दुश्मन को पहचान लिया, दुश्मन के तरीक़ों को जान लिया, हमने यह कोशिश की कि अपनी बातों से, अपनी सोच से, अपने काम से, अपने किसी भी क़दम से, दुश्मन की मदद न करें तो फिर दुश्मन हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमें ध्यान रखना होगा कि ग़लत राह पर न चलें, ग़लती न करें, और सही को ग़लत और ग़लत को सही न समझें।

क़ुरआने मजीद ने हमें तराज़ू दे दिया है। क़ुरान में कहा  गया है “मुहम्मद रसूलुल्लाह हैं और जो लोग उनके साथ हैं...” जो लोग उनके साथ हैं। हमारा मुद्दा यह है कि क्या हम पैग़म्बरे इस्लाम के साथ हैं या नहीं हैं? यह रास्ता है, इस रास्ते की निशानी है “जो लोग उनके साथ हैं वह काफ़िरों के साथ सख़्त हैं”।(12) अगर आप ने यह देखा कि आप जिस रास्ते पर चल रहे हैं इससे काफ़िर खुश हो रहे हैं, तो जान लें कि आप “काफ़िरों के साथ सख़्त” नहीं हैं तो फिर “रसुलुल्लाह के साथ” भी नहीं हैं लेकिन अगर आप ने यह देखा कि नहीं, आप जिस राह पर चल रहे हैं उससे साम्राज्यवादी ताक़तों को, दीन और इस्लाम की दुश्मन ज़ालिम सरकारों को परेशानी हो रही है, उन्हें ग़ुस्सा आ रहा है, तो फिर वह राह अच्छी है, यह “काफ़िरों के साथ सख़्त” होना है। यह रहा पैमाना और तराज़ू। हमें ध्यान रखना चाहिए, हमें यह जानना चाहिए कि हम क्या कर रहे हैं, क्या कह रहे हैं, जो बात कर रहे हैं वह दुश्मन के प्रोग्राम के मुताबिक़ न हो, दुश्मन के पज़ल को पूरा न करे। कभी हो सकता है कि कोई लापरवाही करे, कोई काम करे, कोई बात कहे जिससे दुश्मन का प्रोग्राम पूरा होता हो यह ख़तरनाक है। ध्यान रखना चाहिए कि यह न होने पाए। अगर हम ध्यान रखें तो फिर दुश्मन हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, कुछ नहीं कर सकता। इन 40 बरसों से ज़्यादा के समय में बार बार और कई बार यही आज के दुश्मन हैं और जो पहले दुश्मन थे और अब ख़त्म हो चुके हैं, जैसे सोवियत युनियन वह भी हमारे साथ बुरे थे इनके बस में जो था सब कुछ किया लेकिन ईरानी क़ौम की आंख खुली थी, जाग रही थी, उसने इमाम ख़ुमैनी की राह अपनायी। आज के दौर में भी इमाम ख़ुमनी की सिफ़ारिशें हमारे लिए बहुत अहम है, देखें कि इमाम खुमैनी क्या कहते थे? क्या चाहते थे? हमें किस तरफ़ ले जाते थे। क़ौम ने यह काम किया इस लिए आज हमारी क़ौम कामयाब है, आज भी वही हालात हैं, आज भी हमें ख़्याल रखना होगा।

दुश्मन ने दो बुनियादी चीज़ों पर निशाना साध रखा हैः एक राष्ट्रीय एकता दूसरी राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय एकता और क़ौमी इत्तेहाद बहुत अहम है, इसे ख़त्म न करने दें। एकता यानी क्या? यानी यह कि मुल्क के बुनियादी मुद्दों में जहां क़ौम का फ़ायदा हो, वहां मसलकी झगड़ों, राजनीतिक विवादों, पार्टी के एजेंडों और जातियों के फ़र्क़ को अलग हटा दें, सब एक साथ हो जाएं, अलग अलग क़ौमें एक साथ हों, अलग अलग मतों के मानने वाले एक साथ खड़े हो जाएं, जहां एक तरफ़ चलना हो वहां यह काम करें इसे कहते हैं एकता और यह अहम है। इसी तरह सेक्युरिटी और सुरक्षा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा करें वह पूरे मुल्क के दुश्मन हैं, दुश्मन के लिए काम करते हैं, चाहे वह समझ रहे हों या न समझ रहे हों। कभी कुछ लोग से काम करते हैं जिनके बारे में उन्हें पता ही नहीं होता कि क्या कर रहे हैं! इस लिए यह दो बातें अहम हैं। दुश्मन इन दो चीज़ों को यानी एकता और सुरक्षा को हमलों का निशाना बना रहा है और हमें उसके सामने डट जाना चाहिए।

ख़ुदा के शुक्र से हमारी क़ौम जाग रही है। मुझे अपनी क़ौम के जागते होने और उसकी आंखें खुली होने से बड़ी उम्मीद है, 40 बरसों से ज़्यादा पुराने तजुर्बे की वजह से। वह जो कुछ नारे लगाए जाते हैं जो हम देख चुके हैं उनकी वजह से नहीं। यह उम्मीद इस लिए भी है कि हमें आज मुल्क के नौजवानों में जो वफ़ादारी नज़र आती है, जो मुहब्बत नज़र आती है, जो ख़ुलूस व सदभावना दिखायी देती है, यह जो अरबईन जैसे प्रोग्राम में जो शिरकत होती है उसकी वजह से। अब मैं यहां पर एक बात अरबईन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चालीसवें के बारे में कहूंगा, इन सब की वजह से यह उम्मीद है। हमें इसी ताक़त से, इसी जज़्बे  से, इसी ईमान से आगे बढ़ना चाहिए। दुश्मन अपनी साज़िशों में, अपनी दुश्मनी में गंभीर है, हम भी दुश्मन से मुक़ाबले में बहुत ज़्यादा गंभीर हैं।

मैं अपनी बात के आख़िर में यह ज़रूरी समझता हूं कि इराक़ के लोगों का, अरबईन के दौरान मेहमान नवाज़ी के लिए शुक्रिया अदा करूं, यह मामूली बात नहीं है, इराक़ियों ने 2 करोड़ 20 लाख से ज़्यादा ज़ायरों की नजफ़, कर्बला और काज़मैन से कर्बला के रास्ते में ख़ातिर मदारात की है, मेज़बानी की है, अपना सब कुछ उनके सामने पेश कर दिया है, इस पर सच में शुक्रिया अदा करना चाहिए। मैं दिल की गहराई से, इराक़ी भाई बहनों का शुक्रिया अदा करता हूं, इसी तरह इराक़ी ओहदेदारों का भी, ख़ास तौर पर स्वयं सेवी बल हश्दुश्शाबी का शुक्रिया अदा करता हूं, इराक़ की सेक्युरिटी फ़ोर्स का भी शुक्रिया अदा करता हूं, इराक़ी सरकार का भी जो सुरक्षा इंतेज़ाम में कामयाब रही, इन लोगों ने बहुत बड़ा काम किया है। हम अपने पुलिस विभाग का भी शुक्रिया अदा करते हैं। हमारी पुलिस ने इस आवाजाही के दौरान, सरहदों के मामले में सच में बहुत काम किया है, सोच समझ कर काम किया और रात दिन नहीं देखा, यह अहम है, यह क़ीमती है। इन बलिदानों की, पुलिसकर्मियों की, विभिन्न विभागों में काम करने वाले अच्छे नौजवानों की हमें क़द्र करना चाहिए, एक दूसरे की इज़्ज़त करना चाहिए, एक दूसरे का साथ देना चाहिए, एक दूसरे पर रहम करना चाहिए, तो ख़ुदा हम सब पर रहम करेगा। इन्शाअल्लाह।

        परवरदिगार! तुझे वास्ता है मुहम्मद व आले मुहम्मद का, अपनी बरकतें और रहमतें ईरानी क़ौम और इन दो सूबों के लोगों पर नाज़िल कर।

 

 

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

 

 

 

 

 

  1. आयतुल्लाह सैयद हसन तहामी
  2. आयतुल्लाह मुहम्मद कफ़अमी ख़ुरासानी
  3. 18 दिसंबर 1977
  4. सहीफ़ए इमाम, जिल्द 6 पेज 429, बलोचिस्तान की जनता की हालत का जायज़ा लेने के लिए जनाब ख़ामेनई के नाम हुक्म
  5. ईरान में इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी के बाद पहले पार्लिमेंट इलेक्शन में जीतने वाले ज़ाबुल के मेंबर आफ पार्लियामेंट जो 28 जून1981 को जुम्हूरी इस्लामी पार्टी के दफ़्तर में होने वाले धमाके में शहीद हो गये थे ।
  6. मौलवी फ़ैज़ मुहम्मद हुसैनबोर, सरावान के गश्त इलाक़े के मशहूर सुन्नी धर्मगुरु थे जो इस इलाक़े में इस्लामी इन्क़ेलाब का भरपूर समर्थन करते थे। उन्हें 12 मई 1981 को इंक़ेलाब के दुश्मनों ने घर में घुस कर शहीद कर दिया था।
  7. शहीद नूर अली शूश्तरी, सिपाहे क़ुद्स छावनी के कमांडर थे जो 18 अक्तूबर सन 2009 को एक धमाके में कई दूसरे लोगों के साथ शहीद हो गये थे।
  8. ख़ाश ज़िले के सुन्नी इमाम जुमा जो शिया सुन्नी के बीच एकता के लिए काम करते थे। उन्हें 9 दिसंबर सन 2022 को अज्ञात लोगों ने अग़वा कर लिया और फिर शहीद कर दिया।
  9. 28 फ़रवरी 2003 को सुप्रीम लीडर का 11 दिन का सीस्तान व बलोचिस्तान का दौरा
  10. 26 जूलाई 2023 को नाइजर में और 30 अगस्त 2023 को गेबन में फ्रांस की पिटठू सरकारों के ख़िलाफ़ बग़ावत का नाम लिया जा सकता है।
  11. नहजुल बलाग़ा ख़त नंबर 62
  12. सूरए फ़त्ह, आयत 29