"मैंने जब भी जनाब फ़र्शचियान की पेंटिंग को देखा, जिसे उन्होंने कई साल पहले मुझे दिया था, रोया हूं; हम ऐसी हालत में कि मर्सिया पढ़ना जानते हैं, जनाब फ़र्शचियान ऐसा मर्सिया पढ़ते हैं कि हम सब को रुलाते हैं। यह कितनी फ़ायदेमंद और अर्थपूर्ण कला है कि एक चित्रकार उसमें ऐसी हालत पैदा कर दे। इमाम ख़ामेनेई 1 सितम्बर 1993