रावी कहता है कि मैं दाख़िल हुआ तो देखा कि इमाम मूसा इबने जाफ़र अलैहेमस्सलाम के हुजरे में तीन चीज़ें रखी हैं। एक तलवार है जो इस बात की प्रतीक है कि मक़सद, जेहाद है। मोटा और खुरदुरा लेबास जो सख़्त मेहनत, जेहादी और इंक़ेलाबी ज़िन्दगी का प्रतीक है और एक क़ुरआन है जो इस बात का प्रतीक है कि अस्ल मक़सद यही है।
इमाम ख़ामेनेई
12/04/1985
ग़दीर से इस्लामी समाज के लिए हुकूमत और सत्ता का नियम तय हुआ और उसकी बुनियाद पड़ी। ग़दीर की अहमियत इसी बात में है। यह बात साफ़ हो गयी कि इस्लामी समाज, शाही हुकूमत की जगह नहीं है। व्यक्तिगत हुकूमत की जगह नहीं है, दौलत व ताक़त के ज़ोर पर हुकूमत की जगह नहीं है, एरिस्टोक्रेटिक हुकूमत की जगह नहीं है।
इमाम ख़ामेनेई
कुछ लोग यह ख़याल करते हैं कि इमामों की विलायत रखने का बस यह मतलब है कि हम इमामों से मुहब्बत करें। वो कितनी ग़लत फ़हमी में हैं, कैसी ग़लत फ़हमी का शिकार हैं?! सिर्फ़ मुहब्बत मुराद नहीं है। वरना इस्लामी दुनिया में कोई भी न होगा जो ख़ानदाने पैग़म्बर से तअल्लुक़ रखने वाले मासूम इमामों से मुहब्बत न करे।
हज अमली तौर पर दिखा देता है कि नस्ली भेदभाव, इलाक़ाई भेदभाव, तबकों के बीच भेदभाव, इन्हें क़ुबूल नहीं करता, यह बहुत अहम प्वाइंट है। आज वह मुल्क जो सिविलाइज़्ड होने का दावा करते हैं, मेरी नज़र में, तहज़ीब से दूर का भी उनका नाता नहीं रहा है।
हज, आज और कल के इंसान की अख़लाक़ी गिरावट के लिए साम्राज्यवाद और ज़ायोनीवाद की तरफ़ से रची गई सभी साज़िशों को नाकाम और बेअसर बना सकता है। आलमी सतह पर यह असर डालने के लिए ज़रूरी शर्त यह है कि मुसलमान पहले क़दम के तौर पर हज के हयात-बख़्श पैग़ाम को पहले ख़ुद सही तरीक़े से सुनें और उस पर अमल करने में कोई कसर न छोड़ें।
अचानक यह बात मन में आयी कि मैं क्यों ठीक हो गया? यह जो अल्लाह ने मुझे सेहत दी है, इसकी कोई वजह होनी चाहिए। मुझे ख़याल आया कि यक़ीनन अल्लाह को मुझसे कुछ अपेक्षा है और उस अपेक्षा को व्यवहारिक बनाने के लिए उसने मुझे बचाया है।
शहीदों के परिवारों से इस्लामी इंकेलाब के नेता का ख़ेताबः सारे शहीद आइडियल हैं। हमारे नौजवान को आइडियल की ज़रूरत होती है। यह शहीद हमारे मुल्क और हमारे नौजवानों के ज़िंदा आइडियल शुमार होते हैं। उनका नाम ज़िंदा रहना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
25 जून 2023
जेहादे अकबर! नफ़्स से संघर्ष सबसे बड़ा जेहाद है। अगर हम इस आयाम से भी देखेंगे तब भी हम पाएंगे कि शहीदों के बाप, शहीदों की माएं, शहीदों की बीवियां, जेहादे अकबर के सबसे ऊंचे दर्जे पर हैं।
फ़िलिस्तीन की तहरीके हमास के पोलिटिकल ब्योरो के प्रमुख इस्माईल हनीया से मुलाक़ात में रहबरे इंक़ेलाबः फ़िलिस्तीन के हालात दो तीन साल पहले के मुक़ाबले में बहुत बदल चुके हैं। आज नौजवान ख़ुद बख़ुद मैदान में उतरे हैं और वो इस्लाम पर भरोसा करते हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी गणराज्य ईरान, उज़बेकिस्तान को तुर्कमेनिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र से आसानी से जोड़ सकता है, अलबत्ता आपसी सहयोग का दायरा व्यापार और परिवहन से कहीं ज़्यादा विस्तृत है और नए तरीक़ों पर ग़ौर करके साइंस और टेक्नालोजी सहित दूसरे क्षेत्रों में भी सहयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
जेहादे इस्लामी फ़िलिस्तीन ग़ज़्ज़ा की हालिया जंग के दौरान इम्तेहान में सफल रही। ज़ायोनी सरकार के अधिकारियों का इस सरकार के अपनी उम्र के 80 साल पूरे न कर पाने की ओर से चिंतित होना सही है।
परमाणु प्रोडक्ट्स और सेवाओं का कमर्शियलाइज़ेशन होना चाहिए, हमारी इन कामयाबियों का दुनिया में अच्छा मार्केट मौजूद है। मुल्क की अर्थव्यवस्था के लिए इसे इस्तेमाल किया जा सकता है।
इमाम ख़ामेनेई
11 जून 2023
इन बरसों के दौरान, परमाणु उद्योग के अहम इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार किए गए हैं, मुमकिन है आप किसी मामले में कुछ समझौता करना चाहें, कोई मुश्किल नहीं है समझौता कीजिए, लेकिन इन इंफ़्रास्ट्रक्चर को हाथ न लगाया जाए।
जो भी ईरान से मुहब्बत करता है, जो भी फ़्यूचर में, न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में ईरान की इज़्ज़तदार पोज़ीशन की ख़्वाहिश रखता है, उसे क़ौम में ईमान और उम्मीद को फैलाना चाहिए।
इमाम ख़ुमैनी ने तीन बड़े महान व ऐतिहासिक काम किए...एक मुल्क ईरान की सतह पर कि इस्लामी इंक़ेलाब को वजूद दिया, एक इस्लामी जगत की सतह पर कि इस्लामी जागरुकता का आंदोलन शुरू किया और एक विश्व स्तर पर अध्यात्म के माहौल को दुनिया में ज़िन्दा किया।
इमाम ख़ामेनेई
आज इस्लामी जगत, इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी से पहले के दौर और इमाम ख़ुमैनी के ज़माने से पहले की तुलना में ज़्यादा सरगर्म, ज़्यादा तैयार और ज़्यादा पुरजोश है।
इमाम ख़ुमैनी तीन सतह पर बदलाव लाए। मुल्क की सतह पर उन्होंने, ग़ैरों की नज़रे करम का इंतेज़ार करने वाली क़ौम को, सब कुछ करने की सलाहियत रखने वाली क़ौम में बदल दिया।
ओमान के सुल्तान से मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दो तरफ़ा तअल्लुक़ात, इलाक़ाई मुल्कों से सहयोग की ईरान की पालीसियों और इस्लामी दुनिया की एकता व समन्वय जैसे विषयों पर रौशनी डाली।
भेदभाव को ख़त्म करने की इस्लाम की ज़बान दरअस्ल अमल की ज़बान है, कहाँ? हज में। काले हैं, गोरे हैं, दुनिया के फ़ुलां क्षेत्र से आए हैं, फ़ुलां तहज़ीब के हैं, फ़ुलां तारीख़ के हैं, सब एक साथ बिना किसी भेदभाव के, एक साथ हैं, कोई भेदभाव नहीं है। ये हज के राज़ हैं, इन्हें मारेफ़त के साथ अंजाम देना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
17 मई 2023
अगर आप ने एक दिन देखा कि, अल्लाह वह दिन कभी न लाए, कोई हज पर जाने वाला नहीं है, तो आप पर वाजिब है कि हज के लिए जाएं, चाहे इससे पहले आप दस बार हज कर चुके हों। इस घर, इस असली व बुनियादी केन्द्र को कभी भी ख़ाली नहीं रहना चाहिए। "लोगों को सहारा देने वाली बुनियाद" यह इबारत बहुत अहम है।
मेरी ताकीद है कि अलग अलग एज ग्रुप के बच्चों के लिए जहाँ तक मुमकिन हो किताबें तैयार करें और इस सिलसिले में हमें ग़ैरों की किताबों की ज़रूरत न पड़े। ताकि हम इंशाअल्लाह अपनी दिशा और अपने मक़सद के साथ किताबें अपने बच्चों को दे सकें।
जब हम कहते हैं वेक़ार तो इसका मतलब है ख़ुशामद की डिप्लोमेसी को नकारना। दूसरों के इशारों और बयानों से आस लगाने को नकार देना। फ़ुलां मुल्क की फ़ुलां बड़ी और पुरानी राजनैतिक हस्ती ने यह बयान दे दिया, यह राय दे दी। वेक़ार यानी हम इन चीज़ों के आसरे पर न रहें। हम अपने उसूलों पर भरोसा करें।
वह मक़सद इस्लामी उम्मत का इत्तेहाद है। किस के मुक़ाबले में? कुफ़्र के मुक़ाबले में, ज़ुल्म के मुक़ाबले में, इम्पेरियलिस्ट ताक़तों के मुक़ाबले में, इंसानी व ग़ैर इंसानी बुतों के मुक़ाबले में। उन तमाम चीज़ों के मुक़ाबले में जिन्हें ख़त्म करने के लिए इस्लाम आया।
मुल्क का कल्चर बनाने के लिए हमेशा किताब की ज़रूरत होती है। अगरचे आज बहुत से दूसरे साधन भी आ गए हैं, जैसे सोशल मीडिया वग़ैरह है, लेकिन किताब अब भी अपनी जगह बहुत अहम और आला दर्जा रखती है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने तेहरान में 34वें इंटरनेश्नल बुक फ़ेयर में आज तीन घंटे गुज़ारे। उन्होंने मीडिया और आर्ट के मैदान में काम करने वालों को भी किताब पढ़ने की सिफ़ारिश की।
काम की अहमियत से मज़दूर की अहमियत समझी जा सकती है। काम, समाज की ज़िन्दगी है, काम, लोगों की ज़िन्दगी में रीढ़ की हड्डी की तरह है, काम न हो तो कुछ भी नहीं है।
मुल्क की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी प्रोडक्शन है और प्रोडक्शन की रीढ़ की हड्डी मज़दूर है। हमें मज़दूर यानी इस रीढ़ की हड्डी को कमज़ोर नहीं होने देना चाहिए।
ज़ायोनी हुकूमत का बिखराव और अंत क़रीब है, यह, प्रतिरोध की बरकत से है, यह इस वजह से है कि फ़िलिस्तीनी जवान, अपने दुश्मन की डिटेरन्स ताक़त को लगातार कमज़ोर और ख़त्म करने में कामयाब हुआ है।
फ़िलिस्तीनी अवाम के भीतर से होने वाला यह प्रतिरोध, इस बदलाव की अस्ल वजह है। जितना ज़्यादा प्रतिरोध होगा, इस्राईल उतना ही कमज़ोर होता जाएगा, उसकी तबाही और ज़ाहिर होती जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
दुश्मन की चाल और दुश्मन की रणनीति की पहचान में हम सबको अपटूडेट रहना चाहिए। अमीरुल मोमेनीन नहजुल बलाग़ा में कहते हैं: जो ग़फ़लत करता है, उसका दुश्मन असकी ओर से गफ़लत नहीं करता! ऐसा नहीं है कि आप अपने मोर्चे पर सो रहे हैं, तो दुश्मन के मोर्चे पर भी नींद का असर होगा और वह सो गया होगा, नहीं।