जो भी ईरान से मुहब्बत करता है, जो भी फ़्यूचर में, न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में ईरान की इज़्ज़तदार पोज़ीशन की ख़्वाहिश रखता है, उसे क़ौम में ईमान और उम्मीद को फैलाना चाहिए।
इमाम ख़ुमैनी ने तीन बड़े महान व ऐतिहासिक काम किए...एक मुल्क ईरान की सतह पर कि इस्लामी इंक़ेलाब को वजूद दिया, एक इस्लामी जगत की सतह पर कि इस्लामी जागरुकता का आंदोलन शुरू किया और एक विश्व स्तर पर अध्यात्म के माहौल को दुनिया में ज़िन्दा किया।
इमाम ख़ामेनेई
आज इस्लामी जगत, इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी से पहले के दौर और इमाम ख़ुमैनी के ज़माने से पहले की तुलना में ज़्यादा सरगर्म, ज़्यादा तैयार और ज़्यादा पुरजोश है।
इमाम ख़ुमैनी तीन सतह पर बदलाव लाए। मुल्क की सतह पर उन्होंने, ग़ैरों की नज़रे करम का इंतेज़ार करने वाली क़ौम को, सब कुछ करने की सलाहियत रखने वाली क़ौम में बदल दिया।
ओमान के सुल्तान से मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दो तरफ़ा तअल्लुक़ात, इलाक़ाई मुल्कों से सहयोग की ईरान की पालीसियों और इस्लामी दुनिया की एकता व समन्वय जैसे विषयों पर रौशनी डाली।
भेदभाव को ख़त्म करने की इस्लाम की ज़बान दरअस्ल अमल की ज़बान है, कहाँ? हज में। काले हैं, गोरे हैं, दुनिया के फ़ुलां क्षेत्र से आए हैं, फ़ुलां तहज़ीब के हैं, फ़ुलां तारीख़ के हैं, सब एक साथ बिना किसी भेदभाव के, एक साथ हैं, कोई भेदभाव नहीं है। ये हज के राज़ हैं, इन्हें मारेफ़त के साथ अंजाम देना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
17 मई 2023
अगर आप ने एक दिन देखा कि, अल्लाह वह दिन कभी न लाए, कोई हज पर जाने वाला नहीं है, तो आप पर वाजिब है कि हज के लिए जाएं, चाहे इससे पहले आप दस बार हज कर चुके हों। इस घर, इस असली व बुनियादी केन्द्र को कभी भी ख़ाली नहीं रहना चाहिए। "लोगों को सहारा देने वाली बुनियाद" यह इबारत बहुत अहम है।
मेरी ताकीद है कि अलग अलग एज ग्रुप के बच्चों के लिए जहाँ तक मुमकिन हो किताबें तैयार करें और इस सिलसिले में हमें ग़ैरों की किताबों की ज़रूरत न पड़े। ताकि हम इंशाअल्लाह अपनी दिशा और अपने मक़सद के साथ किताबें अपने बच्चों को दे सकें।
जब हम कहते हैं वेक़ार तो इसका मतलब है ख़ुशामद की डिप्लोमेसी को नकारना। दूसरों के इशारों और बयानों से आस लगाने को नकार देना। फ़ुलां मुल्क की फ़ुलां बड़ी और पुरानी राजनैतिक हस्ती ने यह बयान दे दिया, यह राय दे दी। वेक़ार यानी हम इन चीज़ों के आसरे पर न रहें। हम अपने उसूलों पर भरोसा करें।
वह मक़सद इस्लामी उम्मत का इत्तेहाद है। किस के मुक़ाबले में? कुफ़्र के मुक़ाबले में, ज़ुल्म के मुक़ाबले में, इम्पेरियलिस्ट ताक़तों के मुक़ाबले में, इंसानी व ग़ैर इंसानी बुतों के मुक़ाबले में। उन तमाम चीज़ों के मुक़ाबले में जिन्हें ख़त्म करने के लिए इस्लाम आया।
मुल्क का कल्चर बनाने के लिए हमेशा किताब की ज़रूरत होती है। अगरचे आज बहुत से दूसरे साधन भी आ गए हैं, जैसे सोशल मीडिया वग़ैरह है, लेकिन किताब अब भी अपनी जगह बहुत अहम और आला दर्जा रखती है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने तेहरान में 34वें इंटरनेश्नल बुक फ़ेयर में आज तीन घंटे गुज़ारे। उन्होंने मीडिया और आर्ट के मैदान में काम करने वालों को भी किताब पढ़ने की सिफ़ारिश की।
काम की अहमियत से मज़दूर की अहमियत समझी जा सकती है। काम, समाज की ज़िन्दगी है, काम, लोगों की ज़िन्दगी में रीढ़ की हड्डी की तरह है, काम न हो तो कुछ भी नहीं है।
मुल्क की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी प्रोडक्शन है और प्रोडक्शन की रीढ़ की हड्डी मज़दूर है। हमें मज़दूर यानी इस रीढ़ की हड्डी को कमज़ोर नहीं होने देना चाहिए।
ज़ायोनी हुकूमत का बिखराव और अंत क़रीब है, यह, प्रतिरोध की बरकत से है, यह इस वजह से है कि फ़िलिस्तीनी जवान, अपने दुश्मन की डिटेरन्स ताक़त को लगातार कमज़ोर और ख़त्म करने में कामयाब हुआ है।
फ़िलिस्तीनी अवाम के भीतर से होने वाला यह प्रतिरोध, इस बदलाव की अस्ल वजह है। जितना ज़्यादा प्रतिरोध होगा, इस्राईल उतना ही कमज़ोर होता जाएगा, उसकी तबाही और ज़ाहिर होती जाएगी।
इमाम ख़ामेनेई
दुश्मन की चाल और दुश्मन की रणनीति की पहचान में हम सबको अपटूडेट रहना चाहिए। अमीरुल मोमेनीन नहजुल बलाग़ा में कहते हैं: जो ग़फ़लत करता है, उसका दुश्मन असकी ओर से गफ़लत नहीं करता! ऐसा नहीं है कि आप अपने मोर्चे पर सो रहे हैं, तो दुश्मन के मोर्चे पर भी नींद का असर होगा और वह सो गया होगा, नहीं।
ऐ परवरदिगार! मोहम्मद व आले मोहम्मद के सदक़े में हमें, जो मुल्क के किसी भी इलाक़े और क्षेत्र में हैं, तौफ़ीक़ दे कि तेरी मर्ज़ी व ख़ुशी के मुताबिक़ कर्म करें।
ऐ परवरदिगार! तुझे मोहम्मद व आले मोहम्मद का वास्ता इस मुबारक महीने के आख़िरी दिनों में पूरी ईरानी क़ौम पर मेहरबानी व रहमत नाज़िल कर। इस्लामी दुनिया को, शिया जगत को अपनी ख़ुसूसी मेहरबानी से नवाज़।
ऐ परवरदिगार! तुझे मोहम्मद व आले मोहम्मद का वास्ता, तू अपनी ख़ुशनूदी के असबाब हमें अता कर। इस मुबारक महीने में हमें अपनी रमहत और मग़फ़ेरत से महरूम न कर।
आज पूरे इस्लामी जगत को चाहिए कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे को अपना मुद्दा समझे। यह एक रहस्मय कुंजी है जिससे इस्लामी दुनिया की मुश्किलों के हल का दरवाज़ा खुल जाएगा।
क्यों दसियों लाख फ़िलिस्तीनी, 70 साल से अपने घर और वतन से दूर रहें और जिलावतनी की ज़िन्दगी गुज़ारें? और क्यों मुसलमानों के पहले क़िब्ले बैतुल मुक़द्दस का अनादर होता रहे? तथा कथित यूएनओ अपनी ज़िम्मेदारियों को नहीं निभा रहा है और तथा कथित मानवाधिकार संगठन मर चुके हैं।
ऐ परवरदिगार! हम में से हर एक की, हमारी क्षमता भर, हमारी पोज़ीशन के मुताबिक़ और उस रोल के मुताबिक़ जो हम अदा कर सकते हैं, असत्य के मोर्चे के ख़िलाफ़, सत्य के मोर्चे की जीत में मदद कर।
फ़िलिस्तीनी क़ौम को यह फ़ख़्र हासिल है कि अल्लाह ने उस पर एहसान किया और इस पाक सरज़मीन और मस्जिदुल अक़्सा की रक्षा की अज़ीम ज़िम्मेदारी उसके कांधों पर रखी।