एक औरत ज्ञान और अध्यात्म के किसी भी दर्जे पर रहकर जो सबसे अहम रोल अदा कर सकती है वह एक माँ और एक बीवी का रोल है। यह उसके दूसरे किसी भी काम से ज़्यादा अहम है। यह वह काम है जो उसके अलावा कोई भी दूसरा शख़्स अंजाम नहीं दे सकता। यह औरत अगरचे दूसरी अहम ज़िम्मेदारियां भी अदा कर रही हो लेकिन इस ज़िम्मेदारी को अपनी पहली व अस्ली ज़िम्मेदारी समझे। मानवता का बाक़ी रहना, उसकी तरक़्क़ी और भीतरी सलाहियतों का विकास इस पर निर्भर है, समाज के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा इस पर निर्भर है, बेचैनी, बेक़रारी और व्याकुलता के मुक़ाबले में इंसान का आराम व सुकून इस पर निर्भर है।
इमाम ख़ामेनेई
04/07/2007