ऐसा कोई ज़माना तसव्वुर नहीं किया जा सकता कि ख़तरे बिल्कुल न हों। यह तो मुमकिन है कि किसी दौर में शांति और सुकून हो, जंग न हो लेकिन यह कि कम एक ऐसा दौर फ़र्ज़ करें कि जब सिरे से ख़तरे ही न हों, मेरी नज़र में इस तरह की चीज़ मुमकिन नहीं है और यह चीज़ पेश नहीं आया करती। लेहाज़ा मुक़ाबले के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई