इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज रविवार 4 मई 2025 की सुबह हज के ओहदेदारों और ईरानी हाजियों के एक समूह से मुलाक़ात में कहा कि बैतुल्लाह के ज़ायरीन के लिए हज के उद्देश्यों और इसके विभिन्न पहलुओं की समझ इस महान फ़र्ज़ की सही अदायगी की बुनियाद है। उन्होंने कहा कि हज से जुड़ी कई आयतों में "नास" (लोग) शब्द का इस्तेमाल यह दर्शाता है कि अल्लाह ने यह फ़र्ज़ सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के मामलों के प्रबंधन के लिए निर्धारित किया है। इसलिए, हज का सही आयोजन वास्तव में पूरी मानवता की सेवा है।
उन्होंने हज के राजनीतिक पहलू को समझाते हुए इसे एकमात्र ऐसा फ़र्ज़ बताया जिसकी संरचना पूरी तरह राजनीतिक है, क्योंकि यह हर साल लोगों को एक ख़ास मक़सद के तहत एक ही समय और स्थान पर इकट्ठा करता है और यही कार्य इसकी राजनीतिक प्रकृति को दिखाता है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि हज की राजनीतिक संरचना के साथ-साथ इसके सभी हिस्सों की विषयवस्तु पूरी तरह आध्यात्मिक और इबादती है और हर एक कार्य मानव जीवन के विभिन्न मुद्दों और ज़रूरतों के बारे में प्रतीकात्मक और शिक्षाप्रद संकेत देता है।
उन्होंने तवाफ़ को तौहीद के केंद्र के चारों ओर घूमने की ज़रूरत का सबक़ बताया और कहा कि यह मानवता को सिखाता है कि सरकार, अर्थव्यवस्था, परिवार और जीवन के सभी मामलों का केंद्र तौहीद होना चाहिए। अगर ऐसा हो तो ज़ुल्म, बच्चों की हत्या और शोषण जैसी घटनाएं ख़त्म हो जाएंगी और दुनिया गुलशन बन जाएगी।
सफ़ा और मरवा के बीच सई को मुश्किलों के बीच लगातार कोशिश करने का प्रतीक बताया और कहा कि इंसान को कभी रुकना नहीं चाहिए, आलसी नहीं होना चाहिए या विचलित नहीं होना चाहिए।
अरफ़ात, मुज़दलफ़ा और मेना की ओर प्रस्थान को उन्होंने निरंतर गतिशील रहने और ठहराव से बचने का सबक़ बताया।
क़ुर्बानी के सिलसिले में उन्होंने कहा कि यह इस सच्चाई का प्रतीक है कि इंसान को कभी-कभी अपने सबसे प्रिय लोगों को क़ुर्बान करना पड़ता है, या ख़ुद क़ुर्बान होना पड़ता है।
जमरात यानी शैतान को कंकरी मारने के अमल के बारे में उन्होंने कहा कि यह शैतान को पहचानने और हर जगह उसे मार भगाने पर ताकीद के अर्थ में है।
इहराम को उन्होंने अल्लाह के सामने विनम्रता और इंसानों की बराबरी का प्रतीक बताया और कहा कि ये सभी कार्य मानव जीवन को सही दिशा देने के लिए हैं।
क़ुरान की एक आयत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हज के समागम का मक़सद मानवीय फ़ायदे हासिल करना है और आज मुस्लिम उम्मत की एकता से बड़ा कोई फ़ायदा नहीं। अगर मुस्लिम उम्मत एक होती तो ग़ज़ा, फ़िलिस्तीन में हो रहे अत्याचार नहीं होते और यमन पर यह दबाव न होता। उन्होंने कहा कि उम्मत का बंटवारा ही साम्राज्यवादी ताकतों, अमेरिका, ज़ायोनी शासन और अन्य शोषकों को मौक़ा देता है। इस्लामी देशों की एकता ही शांति, तरक़्क़ी और आपसी सहयोग की गारंटी है और हज के मौक़े को इस नज़र से देखना चाहिए।
उन्होंने इस्लामी सरकारों, ख़ासकर मेजबान सरकार, पर ज़ोर दिया कि वे हज के सच और मक़सद को स्पष्ट करें। उलमा, बुद्धिजीवियों, लेखकों और जनता की राय को प्रभावित करने वालों की भी यह ज़िम्मेदारी है कि वे लोगों को हज की असली शिक्षाओं से रूबरू कराएं।
उन्होंने बंदर अब्बास की दुखद घटना में शहीद हुए लोगों के परिवारों के साथ अपनी संवेदना जताई और सब्र की सिफ़ारिश की। उन्होंने कहा कि अल्लाह मुसीबतों में सब्र करने वालों को बेहिसाब अज्र देता है। उन्होंने कहा कि संस्थानों को हुआ नुकसान तो पूरा हो सकता है, लेकिन जो चीज़ दिल को जलाती है वह उन परिवारों का ग़म है जिन्होंने अपने प्यारों को खोया है और यह घटना हम सभी के लिए एक बड़ी त्रासदी है।
रहबरे इंक़ेलाब की तक़रीर से पहले हज व ज़ियारत के मामलों में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि हज्जतुल इस्लाम सैयद अब्दुलफ़त्ताह नव्वाब ने इस साल हज के नारे "हज; क़ुरानी आचरण, इस्लामी एकजुटता और मज़लूम फ़िलिस्तीन का समर्थन" के तहत हाजियों के लिए बनाए गए कार्यक्रमों की जानकारी दी।