इस्लामी क्रान्ति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 4 मई 2025 को हज के मामलों के ज़िम्मेदारों व कार्यकर्ताओं और कुछ हज यात्रियों से मुलाक़ात की और हज की प्रकृति और उसमें निहित रहस्यों पर चर्चा की तथा कुछ निर्देश दिये।(1)
स्पीच इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के पालनहार के लिए है और दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी पाक व पाकीज़ा नस्ल और उनके चुने हुए सहाबियों और क़यामत तक नेकी के साथ उनकी पैरवी करने वालों पर।
प्यारे भाइयो और बहनो! आप सभी का स्वागत है। मैं आप सभी को बधाई देता हूँ, आप हाजियों को भी और हाजियों की सेवा करने वाले लोगों को भी। उन लोगों को भी बधाई जो हज के लिए जा रहे हैं। यह एक बहुत बड़ा सौभाग्य है, एक बड़ी नेमत है जो अल्लाह की तरफ़ से आपको तोहफ़े के रूप में मिली है। इसकी क़द्र करें, और इंशा अल्लाह यह सफ़र आपके लिए मुबारक हो। मैं उन सेवा करने वालों को भी बधाई देता हूँ जो हज के लिए काम कर रहे हैं, चाहे वे सरकारी संस्थाएं हों जिनका उल्लेख हुआ, विभिन्न मंत्रालय, विभाग, संस्थाएँ, देश के विभिन्न विभाग जो किसी न किसी तरह इस बड़े काम में शामिल हैं, या फिर कारवानों के ज़िम्मेदार लोग, प्रबंधक विभाग, हज की संस्था और 'बेसा' (हज के दौरान मक्के और मदीने में वरिष्ठ नेता का प्रतिनिधि दफ़्तर) वग़ैरा। मैं आप को भी बधाई देता हूँ कि अल्लाह ने आपको हाजियों की सेवा का सम्मान प्रदान किया है। इसकी भी क़द्र करें और इंशा अल्लाह इसे अच्छे तरीक़े से पूरा करें।
अभी मैं अपनी बात शुरू करने से पहले, जो कुछ मैंने आप के सामने पेश करने के लिए तैयार किया है, उससे पहले बंदर अब्बास की दुखद घटना(2) की तरफ़ एक बार फिर ध्यान दिलाना ज़रूरी समझता हूँ और जान से हाथ धो बैठने वालों और प्रभावित परिवारों को दिली संवेदना पेश करता हूँ। यह घटना वाक़ई बहुत दर्दनाक थी और हम सभी के लिए एक बड़ा सदमा थी, ख़ास तौर पर प्रभावित परिवारों के लिए।
बेशक अलग-अलग संस्थाओं के सामने तरह-तरह की घटनाएं आती रहती हैं — भूकंप, आग लगने की घटनाएँ, विध्वंसक कार्यवाहियां, चाहे जानबूझ कर या ग़लती से होने वाली घटनाएँ, हर तरह की घटनाएं होती रहती हैं लेकिन उनकी भरपाई हो जाती है। यहाँ भी अगर किसी संस्था को कोई नुक़सान हुआ है, तो इंशा अल्लाह, हमारे चुस्त, ताक़तवर और युवा ज़िम्मेदार संस्थान तुरंत, मज़बूती से और पूरी ताक़त के साथ उसकी भरपाई करेंगे। लेकिन जो बात सबसे ज़्यादा दिल दुखाती है, वह उन परिवारों का दर्द है जिनके अपने इस हादसे में हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गए। हम उनके दुख में शामिल हैं और उन्हें यह कहना चाहते हैं कि अगर हम ज़िंदगी के अलग-अलग दुखों पर सब्र करें, तो अल्लाह की तरफ़ से इस सब्र का जो इनाम और बदला मिलेगा वह इस मुसीबत की कड़वाहट से हज़ार गुना ज़्यादा होगा। यही लोग है जिन पर उनके पालनहार की विशेष कृपाएँ हैं।(3) जो लोग सब्र करते हैं, अल्लाह उन पर अपनी रहमतें नाज़िल करता है, यह बहुत बड़ी बात है। और इंशा अल्लाह, अल्लाह उनके दिलों को सुकून दे और उन्हें सब्र व शांति प्रदान करे।
जहाँ तक़ हज का सवाल है, तो उससे जुड़ी तैयारियों के बारे में हमारे कुछ निर्देश हैं, कुछ हिदायतें हैं, जिनमें कुछ हाजियों के लिए हैं और कुछ हाजियों की सेवा करने वालों के लिए हैं। हमने इन बातों को कई बार दोहराया है और इंशा अल्लाह आगे भी दोहराते रहेंगे। लेकिन आज मेरी बात का असली विषय यह नहीं है। असली बात यह है कि आप उस काम की हक़ीक़त को समझें जो आप करने जा रहे हैं, यानी हज की पहचान। आप मोहतरम हाजी! जो लोग हज के लिए जा रहे हैं, इंशा अल्लाह हाजी बनने वाले हैं, यह समझ लें कि आप क्या करने जा रहे हैं।
यह कोई आम ज़ियारत का सफ़र नहीं है, न ही यह सिर्फ़ सैर-सपाटे का सफ़र है। आपका यह सफ़रे हज और आपका यह अमले हज दरअस्ल एक बड़े मैदान का हिस्सा बनना है जिसे अल्लाह ने इंसानियत की हिदायत के लिए, सिर्फ़ मोमिनों और मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत की प्रगति और रास्ता दिखाने के लिए निर्धारित किया है। हज इंसानियत की तालीम और व्यवस्था का माध्यम है। इसी लिए क़ुरआने मजीद में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से कहा जाता है: और लोगों में हज का ऐलान कर दो।(4) इसमें “अन्नास” से मुराद सभी इंसान हैं, पूरी दुनिया के लोग। हालांकि उस वक़्त ज़्यादातर लोग हज़रत इब्राहीम के अनुयायी नहीं थे लेकिन हज की दावत, हज की अज़ान, हज का ऐलान, पूरी इंसानियत के लिए था।
अल्लाह ने हुरमत वाले घर काबा को लोगों के लिए मज़बूती और क़ायम रहने का साधन बनाया है।(5) अल्लाह ने इस पवित्र घर को पूरी इंसानियत की स्थिरता और मज़बूती के लिए बनाया है। यह उसकी महानता का स्थान है। या फिर दूसरी आयत: बेशक सबसे पहला घर जो लोगों (की इबादत) के लिए बनाया गया वह वही है जो मक्के में है। (6) यह घर जो हमने मक्के में बनाया, बक्का में क़रार दिया, "वोज़ेआ लिन्नास" यानी यह घर पूरी इंसानियत के लिए है।
इस नज़र से देखिए! आपका यह सफ़र, आपका तवाफ़, आपकी ज़ियारत, ये सब अस्ल में ऐसे काम हैं जिनका फ़ायदा पूरी इंसानियत को पहुँचता है, बशर्ते कि यह अमल सही तरीक़े से अंजाम दिया जाए और तमाम शर्तों के साथ पूरा किया जाए, जिनका हम अपने हज के पैग़ामों में बार-बार ज़िक्र कर चुके हैं। सही मायनों में हज, इंसानियत की सेवा है, यह सिर्फ़ अपने आप तक सीमित नहीं है, सिर्फ़ अपने मुल्क की सेवा या सिर्फ़ मुस्लिम उम्मत की सेवा नहीं है, बल्कि पूरी इंसानियत की सेवा है। अब ग़ौर कीजिए कि हज की क्या अज़मत है! आप इस अज़ीम काम में शरीक हो रहे हैं। यह पहली बात है।
दूसरी बात यह है कि हज दरअस्ल एक ऐसा वाजिब काम है बल्कि शायद यह कहा जा सकता है कि यह अकेला ऐसा फ़र्ज़ या वाजिब काम है, जिसकी ज़ाहिरी शक्ल, जिसका ढाँचा और जिसकी तर्ज़ पूरी तरह सियासी है।
देखिए! हर साल एक ही वक़्त में, एक ही जगह पर, दुनिया भर के लोगों को — जो भी हज की क्षमता रखता हो — इकट्ठा करना, यह क्या है? यह अवामी इजतेमा, लोगों का एक-दूसरे के इर्द-गिर्द इकट्ठा होना, यह काम बुनियादी तौर पर एक सियासी ढांचा रखता है। यानी हज की असल रूह, उसकी बनावट और उसकी तर्तीब सियासी है। चाहे कुछ लोग अपनी कोशिशों, अपनी बातों या अपने क़दमों से इस हक़ीक़त का इन्कार ही क्यों न करें। यह उसका एक अहम पहलू है।
तीसरी ख़ासियत यह है कि यह सियासी ढांचा जितना बाहर से सियासी नज़र आता है, उतना ही अंदर से यानी अपने असली और भीतरी अर्थ में सौ फ़ीसद इबादती है। इस ढांचे का संदेश पूरी तरह इबादती है। जब आप एहराम बाँधते हैं तो सबसे पहला जुमला जो ज़बान पर आता है वह होता है: "लब्बैक", आप ख़ुदा के सामने अपनी ज़रूरत का इज़हार करते हैं, अपनी मुहब्बत का इक़रार करते हैं, "लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक" कहते हैं। फिर एहराम की हालत में दाख़िल होते हैं। एहराम है, दुआ है, ज़िक्र है, इबादत है। हर अमल, हर हरकत का संबंध रूहानियत और बंदगी से है। यानी यह सियासी ढांचा अपने अंदर शुद्ध इबादत की हक़ीक़त समोए हुए है।
ध्यान दीजिए! ये सारे पहलू हज के अलग-अलग रुख़ को सामने लाते हैं। और भी बातें बाकी हैं।
एक और अहम बात यह है कि हज के ये सारे इबादती काम और रूहानी पहलू, अस्ल में इंसानी ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं को सांकेतिक रूप से उजागर करते हैं। हज में जो भी काम किए जाते हैं, उनमें से हर एक का एक सांकेतिक पहलू है। अंग्रेज़ी में इसके लिए जो शब्द है और जिसे मैं आम तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहता, वह “सिम्बॉलिक” है। हज का हर काम इंसान की ज़िंदगी के किसी न किसी अहम पहलू की तरफ़ इशारा करता है।
मिसाल के तौर पर "तवाफ़" जो आप करते हैं, वह अस्ल में तौहीद (एकेश्वरवाद) के केंद्र के चारों ओर घूमने की एक व्यवहारिक सीख है। यह इंसानियत को सिखाता है कि तुम्हारी ज़िंदगी के सारे काम इसी तौहीद के केंद्र के गिर्द घूमने चाहिए। ज़िंदगी, तौहीदी ज़िंदगी हो, हुकूमत तौहीदी हुकूमत हो, अर्थव्यवस्था तौहीदी अर्थव्यवस्था हो, भाइयों और बहनों के साथ व्यवहार, तौहीदी शिष्टाचार पर आधारित हो, परिवार तौहीदी परिवार हो, ज़िंदगी के हर मामले का केंद्र तौहीद होना चाहिए। तवाफ़ का यह अमल अस्ल में ज़िंदगी का एक पूरा और गहरा सबक़ देता है। अलबत्ता हम इस कसौटी से बहुत दूर हैं। हम जो ख़ुद को मुसलमान और मोमिन समझते हैं और सोचते हैं कि ख़ुदा के रास्ते पर चल रहे हैं, वो भी इस परिपूर्णता से कोसों दूर हैं। और जिन लोगों को ख़ुदा का कोई परिचय ही नहीं, उनका तो ज़िक्र ही क्या!
अगर इंसानियत को यह तौफ़ीक़ मिल जाए कि उसकी ज़िंदगी, उसकी हुकूमत, उसकी शिक्षा, उसकी जंग और सुलह, उसकी दोस्ती और दुश्मनी, सब कुछ ख़ुदा को केंद्र बनाकर हो तो पूरी दुनिया गुलिस्तां बन जाए। अगर तौहीद ही कसौटी बन जाए, तो यह खुदग़र्ज़ी, यह बेरहमी, यह ज़ुल्म, यह हत्या व जनसंहार, यह मासूम बच्चों का ख़ून बहाया जाना, यह साम्राज्यवाद, यह दूसरे देशों में हस्तक्षेप, ये सब ख़त्म हो जाएगा।
तवाफ़ आपको यही सबक़ देता है: ज़िंदगी का अस्ली मक़सद तौहीद है और ये सबक़ सिर्फ़ मोमिनों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए है: और लोगों में हज का ऐलान कर दो।
सफ़ा व मरवा के बीच सई (तेज़ क़दमों से चलना) एक इबादत है जिसमें आप दुआ और ज़िक्र में मशग़ूल होते हैं लेकिन इसका एक गहरा प्रतीकात्मक संदेश भी है। ज़िंदगी की मुश्किलों के पहाड़ों के बीच लगातार कोशिश करते रहिए, आगे बढ़ते रहिए। "सई" का मतलब है तेज़ी से चलना, जैसे क़ुरआन में आया है: एक आदमी शहर के दूर किनारे से दौड़ता हुआ आया।(7) "सई" का मतलब है तेज़ चलना। ज़िंदगी की कठिनाइयों के पहाड़ों के बीच कभी रुकिए नहीं, कभी घबराहट या सुस्ती का शिकार न बनिए बल्कि लगातार चलते रहिए, तेज़ी से आगे बढ़ते रहिए। सई का सबक़ और उसका प्रतीकात्मक पैग़ाम यही है।
अरफ़ात, मशअर और मिना की तरफ़ सफ़र का मतलब है कि हाजी सिर्फ़ मक्के में ही रुक कर न रह जाए। एक जगह रुक जाना, इंसान के लिए अल्लाह की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ है। इंसान, हरकत के लिए बनाए गए हैं! हमारे पास हाथ, पाँव, ज़बान, अक़्ल, क़ाबिलियत और ताक़त है। इन सबको हरकत में रहना चाहिए, काम करते रहना चाहिए। अरफ़ात की तरफ़ जाना, मशअर की तरफ़ बढ़ना और मिना की तरफ़ सफ़र।
क़ुर्बानी एक गहरा प्रतीकात्मक पैग़ाम रखती है। यह सिखाती है कि इंसान को कभी-कभी अपनी अज़ीज़ तरीन चीज़ों को भी अल्लाह की राह में क़ुर्बान कर देना चाहिए। इसकी सबसे मुकम्मल मिसाल औलिया की तरफ़ से दी गई क़ुर्बानी है — हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के अपने बेटे इस्माईल को क़ुर्बान करने की घटना। तो जब दोनों ने अपने आपको (अल्लाह के आगे) झुका दिया और इब्राहीम ने इस्माईल को पेशानी के बल लिटा दिया (8) क्या यह कोई मामूली बात है? एक बाप अपने जवान बेटे के हाथ-पाँव बाँधे, उसे ज़मीन पर लिटाए और अल्लाह के हुक्म पर उसके गले पर छुरी चलाने लगे! क़ुर्बानी! ज़िंदगी में कुछ मौके ऐसे आते हैं जब आपको क़ुर्बानी देनी पड़ती है। आपको क़ुर्बान करना पड़ता है। बल्कि कभी-कभी आप ख़ुद क़ुर्बान हो जाते हैं। यही प्रतीकात्मक पैग़ाम है।
रमिये जमरात (प्रतीकात्मक शैतान को कंकड़ियाँ मारने) का मतलब है शैतान को मारो, वो कहीं भी हो, किसी भी शक्ल में हो, जहाँ कहीं भी शैतान नज़र आए, उसे कुचल दो! शैतान को पहचानो और उसे मारो। शैतान इंसानों में भी होते हैं, शैतान जिन्नों में भी होते हैं। और इसी तरह हमने हर नबी के लिए इंसानों और जिन्नों में से शैतानों को शत्रु बनाया है जो एक-दूसरे को धोखा देने के लिए बनावटी बातों को फुसफुसाते हैं।(9) शैतान को मारना। ध्यान दें! ये सब अमली सबक़ हैं। हज के ये सभी आमाल (संस्कार), हज में अंजाम दिए जाने वाले ये सारे काम, ये इबादतें, जिनके बारे में हमने कहा कि ये मिलकर हज को अस्तित्व देते हैं, ये सब सबक़ हैं।
एहराम एक सबक़ है। एहराम ख़ुदा के सामने नम्रता दिखाने का एक तरीक़ा है। ज़िंदगी के अलग-अलग कपड़ों, गहनों और सजावटों को एक सादा कपड़े में बदल देना इबादत है, विनम्रता है, लेकिन यह एक सबक़ भी है। यह काम दुनिया का सबसे अमीर आदमी भी करेगा और हज में मौजूद सबसे ग़रीब इंसान भी, दोनों एक ही तरह से करेंगे, उनमें कोई फ़र्क़ नहीं। अगर कोई बादशाह है तो भी यही हालत, अगर कोई प्रजा है तो भी यही तरीक़ा। जो भी हो, यही क़ानून है, ख़ुदा के सामने सब इंसानों को बराबर कर देना।
देखिए, हमने जो तीसरी बात बताई वह ये थी कि ये सारे काम, हालांकि इबादत हैं लेकिन अस्ल में इनमें इंसान की ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं की तरफ़ इशारे और निशानियां छिपी हुई हैं, हर एक काम के अंदर अपने अलग अंदाज़ में। जैसा कि मैंने थोड़ा-बहुत बताया।
अगली बात: यह इकट्ठा होना अस्ल में इंसानों के फ़ायदे के लिए है। ताकि वे उन लाभों को देखें जो वहाँ उनके लिए रखे गए हैं।(10) यहाँ लेयश्हदू शब्द में "लाम" वजह को बताने वाला है। लोग मक्के में, बैतुल्लाह में, हज की अलग-अलग जगहों पर क्यों इकट्ठा होते हैं? लेयश्हदू मनाफ़ेआ लहुम ताकि वे अपने फ़ायदे हासिल करें। अब कुछ लोग समझते हैं कि यह फ़ायदा सिर्फ़ व्यापार या लेन-देन तक ही सीमित है, लेकिन ऐसा नहीं है, हर वह चीज़ जो फ़ायदा कहलाए, इसमें शामिल है।
आज सबसे बड़ा फ़ायदा क्या है? "इस्लामी उम्मह की एकता"। मेरे विचार में, इस्लामी उम्मह के लिए एकता से बढ़कर कोई फ़ायदा नहीं है। अगर मुस्लिम उम्मह एकजुट हो जाए, एक-दूसरे का हाथ थाम ले, आपसी तालमेल और सहयोग करे, तो ग़ज़ा का दुखद मामला पेश न आए, फ़िलिस्तीन की तबाही न हो, यमन इस तरह ज़ुल्म का शिकार न बने। जब हम अलग होते हैं, तो साम्राज्यवादी ताकतें, चाहे वह अमरीका हो, ज़ायोनी सरकार हो, या यूरोप और अन्य देश, अपने हितों और लालच को देशों के हितों पर थोप देती हैं। नतीजा वह होता है जो आज हम इन मज़लूम देशों में देख रहे हैं, जैसे ग़ज़ा की हालत।
लेकिन जब एकता होती है, तो शांति आती है; जब एकता होती है, तो प्रगति होती है; जब एकता होती है, तो आपसी सहयोग बढ़ता है। हम किसी इस्लामी देश की उस चीज़ में मदद कर सकते हैं, जिसमें वह कमी महसूस कर रहा हो और वह हमारी मदद कर सकता है। सब एक-दूसरे से फ़ायदा उठाते हैं, सब एक-दूसरे की मदद करते हैं, यही हक़ीक़ी फ़ायदा है। "लेयश्हदू मनाफ़ेआ लहुम" ताकि वे उन लाभों को देखें जो वहाँ उनके लिए रखे गए हैं। हज को इसी नज़र से देखिए।
संक्षेप में यह कि हम हज को अच्छी तरह पहचानें। मैंने जो बातें कहीं, वे हज की पहचान के कुछ अहम पहलू हैं। समझ लीजिए कि आप क्या करने वाले हैं। अलबत्ता इस्लामी सरकारों का बहुत बड़ा किरदार है। मेज़बान सरकार (जहां हज होता है) की ज़िम्मेदारी बहुत ज़्यादा है, उन पर बहुत बड़ी और भारी ज़िम्मेदारी है। देशों के शासक, उलमा, बुद्धिजीवी, लेखक, वक्ता और वे सभी प्रभावशाली हस्तियाँ जो जनता में अपना एक असर रखती हैं, उन सबका अहम किरदार है। ये लोग हज की हक़ीक़त को जनता के सामने स्पष्ट कर सकते हैं, लोगों को समझा सकते हैं और जनता की सोच पर असर डाल सकते हैं।
अल्लाह से मदद माँगिए। हक़ीक़ी सफ़र शुरू हो तो दिल से कहिए: ऐ मेरे पालनहार! मुझे (हर जगह) सच्चाई के साथ दाख़िल कर और सच्चाई के साथ निकाल।(11) अल्लाह से मदद मांगिए ताकि इस बड़े मैदान में आपका दाख़िल होना और बाहर निकलना उसकी दी गई तौफ़ीक़ से और उसकी रज़ा के मुताबिक़ हो। सही तरीक़े से क़दम बढ़ाइए। इंशा अल्लाह, ख़ुदा बरकत अता करेगा।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।
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1. इस मुलाक़ात की शुरुआत में हज और ज़ियारत से जुड़े मामलों में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि और ईरानी हाजियों के मामलों के सरपरस्त हुज्जतुल इस्लाम वलमुसलमीन सैयद अब्दुल फ़त्ताह नव्वाब और हज व ज़ियारत संस्था के प्रमुख जनाब अली रज़ा बयात ने अपनी रिपोर्टें पेश कीं।
2. बंदर अब्बास में शहीद रजाई बंदरगाह पर आग लगने की घटना, जो 26 अप्रैल 2025 को हुई, जिसमें कई ईरानी नागरिक शहीद और घायल हुए। इसी उपलक्ष्य में रहबरे इंक़ेलाब ने 27 अप्रैल 2025 को एक संदेश जारी किया था।
3. सूरए बक़रह, आयत 157
4. सूरए हज, आयत 27
5. सूरए माएदा, आयत 97
6. सूरए आले इमरान, आयत 96
7. सूरए यासीन, आयत 20
8. सूरए साफ़्फ़ात, आयत 103
9. सूरए अनआम, आयत 112
10. सूरए हज, आयत 28
11. सूरए इसरा, आयत 80