हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा के ज़िक्र के बिना इस्लाम के उदय के बारे में बात करना एक अधूरी बात है क्योंकि वे इस महान धर्म की संस्थापकों में से हैं। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा सिर्फ़ पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम की बीवी या पहली मुसलमान महिला नहीं थीं बल्कि वे इस्लाम की पहली मददगार, उसकी सबसे बड़ी सपोर्टर, पैग़म्बरे इस्लाम का भावनात्मक सहारा और अल्लाह के पैग़म्बर की आत्मिक व आध्यात्मिक साथी थीं। इन सबके बावजूद जैसा कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बल देकर कहा है कि इतिहास में उनकी महान शख़्सियत के संबंध में लापरवाही बरती गयी है और उसे नज़रअंदाज़ किया गया है।(1)
जब पैग़म्बरे इस्लाम पर वहि नाज़िल हुयी तो यह हज़रत ख़दीजा थीं जिन्होंने अपनी अथाह दौलत, अतुल्य पोज़ीशन और व्यक्तिगत आराम को तज दिया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम की पहली और सबसे मज़बूत मददगार बन सकें। वे मक्के के समाज में एक चमकते हुए मोती की तरह रह सकती थी लेकिन उन्होंने एक नई सभ्यता के बुनियादी स्तंभ को चुना। उन्होंने "क़ुरैश की रानी" से "उम्मुल मोमेनीन" बनने तक जो रास्ता तय किया, वह रेशम और सोने से नहीं बल्कि भूख, बलिदान और चमकते ईमान से समतल हुआ।
जाहेलियत के ख़िलाफ़ डट जाना
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ऐसे समाज में पैदा हुयीं जिसके माहौल को क़ुरआन "जाहेलियत" कहता है; ऐसा ज़माना जब लड़कियों को ज़िंदा दफ़्न कर दिया जाता था, औरतों को विरासत से वंचित रखा जाता था और बीवी को एक मूल्यहीन चीज़ समझा जाता था। ऐसी स्थिति में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ने उन रस्मों को चुनैती दी। उन्होंने अपने व्यापार को बेइंतेहा बढ़ावा दिया और उनके व्यापारिक कारवां पूरे अरब प्रायद्वीप में फैल गए।(2) कहा जाता है कि उनके कारवां, पूरे क़ुरैश के दूसरे सभी कारवानों के बराबर थे। इस कामयाबी ने उन्हें "क़ुरैश की रानी" का ख़ेताब दिलाया और उससे भी ज़्यादा अहम बात यह थी कि अपने पाक चरित्र की वजह से वे "ताहेरा" के नाम से मशहूर हो गयीं। व्यापारिक माहौल में जहाँ मुनाफ़ा सबसे अहम था, नैतिक उसूलों की कोई जगह नहीं थी और रिश्वत का चलन आम था, हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा इंसाफ़, सच्चाई और ईमानदारी के लिए जानी जाती थीं। इस्लाम के आगमन से पहले, वे उन अधिकारों का पालन करती थीं जिन्हें बाद में इस्लाम ने मंज़ूरी दीः मिलकियत, व्यापार और सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ प्रबंधन की ज़िम्मेदारी संभालने में महिलाओं का अधिकार। वे धनवान थीं, लेकिन धन उन्हें अपना क़ैदी न बना सका, बल्कि यह उनकी सेवा और परोपकार का साधन बना। उनकी आत्मनिर्भरता और कामयाबी ने औरत के बारे में कमज़ोरी और दूसरों पर निर्भरता के आम ख़याल को निरस्त कर दिया और एक मुसलमान औरत का नया आइडियल पेश कियाः पूरी पाकदामनी, सम्मान और तरक़्क़ी के साथ समाज में सरगर्म एक औरत, लेकिन साथ ही पाक दामन और उच्च मर्तबे वाली।
पाकीज़गी और अंतर्दृष्टि का नतीजा, सबसे पहले ईमान लाने का गौरव
पहली वहि के नाज़िल होने का वाक़ेआ, इंसान और आसमान की मुलाक़ात की दास्तान है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम, वह ईमानदार व्यापारी जो "ईमानदार" के नाम से मशहूर थे, हेरा नामक गुफा में लंबे समय के एकांतवास और पहली आयत के नाज़िल होने के बाद एक बदली हुयी हालत में घर लौटे। यह हज़रत ख़दीजा का मुबारक दिल था जो पैग़म्बरे इस्लाम की पहली पनाहगाह बना। वे सिर्फ़ बीवियो की ओर से दी जाने वाली तसल्ली पर नहीं रुकीं और पैग़म्बरे इस्लाम पर वही के नाज़िल होने की घटना को सपना नहीं समझा, बल्कि उन्होंने पूरा वाक़ेआ ग़ौर से सुना और फिर उसकी पुष्टि की। उनका ईमान एक सोच समझकर किया जाने वाला फ़ैसला था। 15 साल तक पैग़म्बरे इस्लाम के साथ गुज़ारी गयी ज़िंदगी ने उन पर यह बात साबित कर दी थी कि जिस शख़्स ने कभी भी झूठ नहीं बोला था, वह अल्लाह के बारे में हर्गिज़ झूठ नहीं बोलेगा।
इमाम ख़ामेनेई कहते हैं, "वे अपनी पाकीज़ा प्रवृत्ति की मदद से बात की सच्चाई और सत्यता को फ़ौरन समझ गयीं...उनका पाकीज़ा दिल सत्य की ओर आकर्षित हो गया और वे ईमान ले आयीं। फिर हमेशा उस पर क़ायम रहीं।"(3) इस यक़ीन और सपोर्ट ने पैग़म्बरे इस्लाम को अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए ताक़त दी, जब सभी उनके ख़िलाफ़ खड़े हुए थे।
फ़तह से पहले, अपने धन, संपत्ति और जान का तोहफ़ा
आम तौर पर कहा जाता है कि हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ने "अपना सारा माल इस्लाम की राह में ख़र्च कर दिया" लेकिन यह इबारत, उनके बलिदान की गहराई को पूरी तरह स्पष्ट नहीं करती। क़ुरआन मजीद फ़रमाता है, "तुम में से जिन्होंने मक्का के फ़तह होने से पहले माल ख़र्च किया और जंग की वे और जिन्होंने मक्का फ़तह होने के बाद ख़र्च किया और जंग की, बराबर नहीं हो सकते (बल्कि पहले वालों का) दर्जा बहुत बड़ा है।(सूरए हदीद, आयत-10) हज़रत ख़दीदा सलामुल्लाह अलैहा पर यह आयत साफ़ तौर पर चरितार्थ होती है। उन्होंने उस वक़्त अपनी सारी सपंत्ति अल्लाह के धर्म पर न्योछावर की जब इस्लाम का परचम नहीं लहराया था बल्कि यह काम उस वक़्त किया जब मुसलमान बहुत थोड़ी तादाद में थे, उनका मज़ाक़ उड़ाया जाता और उन्हें पीड़ा दी जाती थी। उस बलिदान का चरम शेबे अबी तालिब में मुसलमानों की तीन साल तक नाकाबंदी के दौरान सामने आया, यह वह ज़माना था जब भूख और तंगी सारे परिवारों पर छायी हुयी थी। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ने मुसलमानों को खाना पानी मुहैया करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया और ख़ुद भूखी रहीं, यहाँ तक कि उनके पास ईमान के सिवा कुछ न बचा। उन्होंने अपनी दौलत, आराम और आख़िर में अपनी जान को पैग़म्बरे इस्लाम पर क़ुर्बान कर दिया। इमाम ख़ामेनेई ने इस बलिदान को इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम की सख़ावत से उपमा दी है जिन्होंने अनेक बार अपनी आधी या पूरी दौलत पुन्य में दे दी। इस दर्जे का बलिदान, इस्लामी परंपरा में सबसे बड़ी महानताओं में से है। (4)
पैग़म्ब के घर की माँ
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की माँ और 11 इमामों की नानी के तौर पर जानी जाती हैं। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता कहते हैं कि हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा का घर, अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम का पालना था। उन्होंने बरसों तक इमाम अली अलैहिस्सलाम को अपने बेटे की तरह पाला और उस महान महिला की माँ बनीं जिनकी नस्ल से बाक़ी इमाम हैं। इस मानी में, वे न सिर्फ़ 11 इमामों की माँ बल्कि सभी 12 इमामों की आध्यात्मिक माँ हैं। (5)
अमीरुल मोमेनी अलैहिस्सलाम के बचपन में पैग़म्बरे इस्लाम के साथ उनकी संगत का माहौल मुहैया करके हज़रत ख़दीजा ने नबुव्वत और इमामत के रिश्ते का रास्ता समतल किया। उनका घर अध्यात्मिक पनाहगाह और अल्लाह की पहचान का स्रोत बना। हज़रत ख़दीजा और पैग़म्बरे इस्लाम के घर की महानता सिर्फ़ शियों में ही ऊंचा स्थान नहीं रखती। बड़े सुन्नी धर्मगुरू इब्ने हजर अस्क़लानी, "ऐ अहलेबैत! अल्लाह तो बस यही चाहता है कि तुम से हर क़िस्म के रिज्स (आलूदगी) को दूरे रखे और तुम्हें इस तरह पाक व पाकीज़ा रखे जिस तरह पाक रखने का हक़ है।" (सूरए अहज़ाब, आयत-33) की तफ़सीर में लिखते हैं, "अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की अस्ल और जड़ हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा है। इसलिए कि इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से हैं और फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा की बेटी हैं और अली अलैहिस्सलाम हज़रत ख़दीजा के घर में पले बढ़े, फिर उनकी बेटी फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शादी अली अलैहिस्सलाम से हुयी। इस तरह साफ़ ज़ाहिर है कि पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत की अस्ल और बुनियाद हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा हैं।(6)
प्रेम और सम्मान से भरी शादी
क़ुरआन मजीद फ़रमाता है, "और उसकी (क़ुदरत की) निशानियों में से यह भी है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिंस से बीवियां पैदा कीं ताकि तुम उनसे सुकून हासिल करो और तुम्हारे दरमियान मोहब्बत और रहमत (नर्मदिली व हमदर्दी) पैदा कर दी।" (सूरए रूम, आयत-21) पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा की संयुक्त ज़िंदगी पर यह आयत चरितार्थ होती थी। वे पैग़म्बरे इस्लाम के लिए सुकून भरी पनाहगाह और उनकी मेहरबानी का स्रोत थीं।
उनका रिश्ता शुरू से ही हैरतअंगेज़ था और उस ज़माने के अरब समाज की रस्मों को चुनौती देता था। यह एक सम्मानित महिला और प्रभावी व्यापारी हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा थीं, जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के उच्च चरित्र को पहचान कर उनको शादी का पैग़ाम भेजा था।
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ने पैग़म्बरे इस्लाम की ख़ूबियों की तारीफ़ करते हुए अपनी सहेली "नफ़ीसा" के सामने अपने दिल का राज़ खोला और उनको माध्यम बनाया कि वे मोहम्मद सल्लललाहो अलैहि व आलेही वसल्लम के पास जाएं। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने पैसे के लेहाज़ से अपनी तंगहाली का ज़िक्र किया तो नफ़ीसा ने यह पैग़ाम पहुंचाया कि ख़दीजा ऐसी महिला हैं जिन्हें पैसों के लेहाज़ से कोई तंगी नहीं है और उन्हें अपने आर्थिक मामलों के लिए किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।
तत्कालीन समाज के कथित मूल्यों की यह ख़िलाफ़वर्ज़ी, जिसके तहत एक मालदार महिला ने एक ग़रीब मर्द को शादी का पैग़ाम दिया था, एक ऐसे संबंध का आधार बनी जो सामाजिक अपेक्षाओं पर नहीं बल्कि आपसी सम्मान पर क़ायम था। अपने 25 साल के संयुक्त जीवन में, जो हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा के निधन तक जारी रहा, पैग़म्बरे इस्लाम ने दूसरी शादी नहीं की। उस दौर को एक गहरे प्यार, सुकून और दोस्ती से भरपूर दौर क़रार दिया जा सकता है जो बाद में पैग़म्बरे इस्लाम के सामने आने वाले मुश्किल बरसों के मुक़ाबले की बुनियाद बना। (7)
पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, "वे मुझ पर तब ईमान लायीं जब लोगों ने मुझे झुठलाया, उन्होंने उस वक़्त मेरी पुष्टि की जब सब ने मुझे झूठा कहा, उन्होंने तब अपने माल से मेरी मदद की जब दूसरों ने मुझे वंचित रखा और अल्लाह ने उनके ज़रिए से मुझे संतान दी जबकि दूसरी बीवियों से नहीं दी।" (8) इन दोनों हस्तियों की आपसी मोहब्बत और सम्मान सभी जोड़ों के लिए एक मिसाल है; ईमान और बलिदान पर आधारित एक रिश्ता। वे तूफ़ानों में पैग़म्बरे इस्लाम के लिए एक मज़बूत क़िला थीं और पैग़म्बरे इस्लाम उनको कभी नहीं भूले।
औरतों और मर्दों के लिए एक अमर आदर्श
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी औरत के बारे में हर ग़लत धारणा को निरस्त कर देती है, "वे एक ही समय में चरित्रवान, प्रभुत्वशाली, धनवान और विनम्र, बीवी और माँ होने के साथ साथ समाज में प्रभाव रखने वाली महिला थीं। उन्होंने दिखा दिया कि सच्चा सम्मान ईमान, सेवा और ख़ुलूस में है।
इमाम ख़ामेनेई बल देकर कहते हैं कि हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा की महानता को ज़्यादातर भुला दिया गया हालांकि वे एक ऐसा आदर्श हैं जो ज़माने से ऊपर है, महिला की दो ग़लत छवियों का जवाब हैं, "एक पुराने जाहेलियत के दौर में जहाँ औरत को बोझ समझा जाता था और लड़की को ज़िंदा क़ब्र में दफ़्न कर दिया जाता था और दूसरी नए दौर की जाहेलियत में जहाँ औरत को एक सामान और इस्तेमाल के साधन में बदल दिया गया है। हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा "तीसरी राह" का प्रतिनिधित्व करती हैः ईमान और सेवा की बुनियाद पर पाकीज़गी और आत्मनिर्भरता की राह। इसी वजह से वे इतिहास की चार बेहतरीन औरतों में गिनी जाती हैं; हज़रत मरयम सलामुल्लाह अलैहा, हज़रत आसिया सलामुल्लाह अलैहा और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के साथ।(9) पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि अल्लाह ने ख़दीजा के लिए जन्नत में एक ऐसे महल का वादा किया है जिसमें न कोई शोर है और न कोई तकलीफ़।"(10) उनकी विरासत, ख़ामोश हिमायत नहीं बल्कि इस्लाम की बुनियाद रखने में एक सक्रिय और निर्णायक रोल की थी, उन्होंने अपनी अक़्ल, प्रभाव और अथाह धन-दौलत को अल्लाह के पैग़ाम को फैलाने में लगा दिया। यह क़ुर्बानी किसी भी तलवार से ज़्यादा ऊंची आवाज़ थी; एक ऐसा चयन जिसने नवजात इस्लाम को तबाही से बचा लिया और एक नई दुनिया की बुनियाद रखी।
लेखकः नूरा इरफ़ानी।
1. https://farsi.khamenei.ir/video-content?id=36746
2. https://al-islam.org/khadijatul-kubra-short-story-her-life-sayyid-ali-asghar-razwy/chapter-2-early-life Bihar al-Anwar, Vol. 16, pp. 21-22
3. https://farsi.khamenei.ir/video-content?id=36746
4. https://farsi.khamenei.ir/video-content?id=36746
5. https://farsi.khamenei.ir/video-content?id=36746
6. फ़त्हुल बारी, शरहे सही अलइमाम अलबुख़ारी, जिल्द-7, पेज-169
7. https://al-islam.org/khadijatul-kubra-short-story-her-life-sayyid-ali-asghar-razwy/chapter-4-marriage
8. बेहारुल अनवार, जिल्द-16- पेज-12
9. उसूले काफ़ी, जिल्द-1, पेज-458
10. बेहारुल अनवार, जिल्द-16, पेज-12