आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने दो रात पहले ज़ायोनी शासन की दुष्टता भरी करतूत की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन्होंने जो मूर्खता की है और वे ख़ास लक्ष्य के मद्देनज़र इसे बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहे हैं, उसे मामूली भी नहीं समझना चाहिए अगर हम इसे छोटा दर्शाएं, यह कहें कि कुछ नहीं हुआ, इसकी कोई अहमियत नहीं है, तो यह भी ग़लत है।
उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि ज़ायोनी शासन को यह समझा देना चाहिए कि ईरान के बारे में उनका कैलकुलेशन ग़लत है, कहा कि वे लोग ईरान के बारे में कैलकुलेशन की ग़लती करते हैं क्योंकि वे ईरानी राष्ट्र और जवान पीढ़ी को नहीं पहचानते हैं और अभी भी वे ईरानी क़ौम की ताक़त, क्षमता, इनोवेशन और ईरादे को सही तरह से समझ नहीं पाए हैं कि जिसे हमें उन्हें समझा देना चाहिए।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बल दिया कि मुल्क के अधिकारी तय करें और सही तरीक़े से समझें कि राष्ट्र और मुल्क के हित में क्या है और उसे अंजाम दें ताकि उन्हें समझ में आ जाए कि ईरान क्या है और उसके जवान कैसे हैं?
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आगे कहाः आज ईरानी क़ौम में मौजूद यह जोश, यह बहादुरी, यह तैयारी ख़ुद सुरक्षा मुहैया करने वाले तत्व हैं। हमें इन्हें बाक़ी रखना चाहिए।
उन्होंने सुरक्षा मुहैया कराने और उसे बाक़ी रखने वाले मुख्य तत्वों की व्याख्या में कहा कि कुछ लोगों को अपनी काल्पनिक समीक्षा में लगता है कि मीज़ाइल सहित उन हथियारों का प्रोडक्शन न करना जिन पर साम्राज्यवादी ताक़तें सेंसिटिव हैं, ईरान को सुरक्षित रख सकता है लेकिन यह ग़लत विचार व कल्पना हक़ीक़त में क़ौम और अधिकारियों से यह कहती है कि मुल्क को कमज़ोर रखिए ताकि सुरक्षित रहिए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध में ईरान की ओर से निष्पक्षता के एलान के वावजूद उस पर नाजायज़ क़ब्ज़ा हो जाने का कारण मुल्क के अयोग्य, ग़द्दार और पिट्ठु शासकों की ग़लत नीतियों को बताया और कहा कि उन्होंने ताक़त के वास्तविक साधनों से मुंह मोड़कर मुल्क और राष्ट्र को अपनी सुरक्षा मुहैया करने में कमज़ोर और असमर्थ रहने की ओर ढकेल दिया।
उन्होंने अपने ख़ेताब के दूसरे भाग में ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन की बर्बरता को, जिसमें 10 हज़ार बच्चे और 10 हज़ार से ज़्यादा औरतें शहीद हुयीं, युद्ध अपराध बताया और ग़ज़ा सहित लेबनान में इस शासन की करतूतों से निपटने में यूएन जैसे अंतर्राष्ट्रीय सगंठनों और सरकारों की कोताहियों की आलोचना की।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस संदर्भ में कहाः जंग के नियम व उसूल होते हैं, उसका दायरा होता है, ऐसा नहीं है कि जंगों में सभी सीमाओं को लांघा जाए लेकिन मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन पर शासन कर रहे अपराधी गैंग ने सभी सीमाओं और नियमों को अपने पैरों तले कुचल दिया है।
उन्होंने अपराधी ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करने के लिए सरकारों और ख़ास तौर पर इस्लामी सरकारों से दृढ़ता दिखाने और इस जल्लाद शासन के ख़िलाफ़ एक अंतर्राष्ट्रीय कोलीशन बनाने पर ज़ोर देते हुए कहाः दृढ़ता का मतलब आर्थिक मदद रोकना नहीं है क्योंकि यह तो सीधी सी बात है कि क़ाबिज़ शासन की मदद सबसे बड़े व घिनौने गुनाहों में है बल्कि दृढ़ता का मतलब इस घटिया शासन का मुक़ाबला करने के लिए विश्व स्तर पर राजनैतिक, आर्थिक और ज़रूरत हो तो सैनिक एलायंस बने क्योंकि यह शासन सबसे बर्बर युद्ध अपराध कर रहा है।
उन्होंने अपने ख़ेताब के दूसरे भाग में, अवाम की मनोवैज्ञानिक शांति पर बल दिया और देशों तथा राष्ट्रों के दुश्मनों की ओर से हार्ड वॉर के साथ साफ़्ट वॉर के साधनों के इस्तेमाल किए जाने की ओर इशारा करते हुए कहा कि समाज को मनोवैज्ञानिक नज़र से चिंतित रखना, इस साफ़्ट वॉर का हिस्सा है जैसा कि सभी देख चुके हैं कि वे लोग किस तरह साइबर स्पेस को अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब के अंत में शहीदों के घर वालों से कहाः कामयाब रहिए, अपने शहीदों पर फ़ख़्र कीजिए क्योंकि अगर वे और सुरक्षा करने वाले दूसरे जियाले न होते तो मुल्क और क़ौम को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता।