इस्लामी इन्क़ेलाब से पहले सरकश शाही शासन काल में इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने जेल की सज़ा के दौरान जो नोट्स लिखे थे, ये किताब उन्हीं नोट्स पर आधारित है। इस किताब के उर्दू और बंगाली ज़बान में अनुवाद पर आधारित किताबों के रिलीज़ होने का समारोह, नई दिल्ली में लगे किताबों के अंतर्राष्ट्रीय मेले में इस्लामी गणराज्य के स्टाल पर आयोजित हुआ। इस समारोह में ईरान के उप संस्कृति मंत्री यासिर अहमदवंद, भारत में ईरान के कलचरल अटैजी फ़रीदुद्दीन फ़रीद अस्र, संस्कृति मंत्री के सलाहकार हुसैन देवसालार, भारत में फ़ारसी भाषा के रिसर्च सेंटर के प्रमुख क़हरमान सुलैमानी और दिल्ली किताब मेले में ईरान के स्टाल में ईरान बुक हाउस के प्रबंध निदेशक अली रमज़ानी शरीक हुए।

समारोह को संबोधित करते हुए ईरान के कलचरल अटैची फ़रीदुद्दीन अस्र ने कहा कि हालिया बरसों में इस्लामी इन्क़ेलाब के इतिहास के मद्देनज़र जो सबसे अहम किताबें छपी हैं, उनमें से एक"ख़ूने दिली के लाल शुद" है जो सरकश शाही शासन काल में इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने अपनी जिलावतनी और जेल की सज़ा के दौरान लिखी है। यह किताब उस ज़माने के घुटन भरे माहौल को चित्रित करती है। उन्होंने बताया कि इस किताब का अनेक ज़बानों में अनुवाद हो चुका है। उन्होंने कहा कि अफ़सोस कि अब तक यह किताब भारत में छपी नहीं थी और पाठकों की पहुंच में नहीं थी। उन्होंने कहा कि इस किताब का हिन्दी ज़बान में भी अनुवाद हो रहा है और जल्द ही इसके हिन्दी अनुवाद पर आधारित किताब भी सामने आ जाएगी। उन्होंने कहा कि अल्लाह की कृपा से इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी की सालगिरह के दिन यानी 11 फ़रवरी को इस किताब के उर्दू और बंगाली अनुवाद पर आधारित किताब रिलीज़ हो रही है।

इस समारोह में ईरान के उप संस्कृति मंत्री यासिर अहमदवंद ने भी इन अनुवादों के छपने पर ईरानी दूतावास के संस्कृति विभाग की कोशिशों की सराहना करते हुए कहा कि उम्मीद है कि इस अहम किताब का उर्दू अनुवाद, जो ईरान के मौजूदा इतिहास को बहुत ही आकर्षक अंदाज़ में बयान करता है, भारत में ईरान के प्रशंसकों को पसंद आएगा।

उन्होंने कहा कि इस किताब के दूसरी ज़बानों में अनुवाद का रास्ता साफ़ है। उन्होंने इसी तरह दिल्ली किताब मेले में ईरान के स्टाल में सरगर्म लोगों का शुक्रिया अदा किया। याद रहे कि नई दिल्ली में किताबों का अंतर्राष्ट्रीय मेला 10 फ़रवरी को शुरू हुआ है और यह 18 फ़रवरी तक जारी रहेगा।