बरसों के पाकीज़ा डिफ़ेन्स के बाद, अल्लाह के धर्म की मदद का स्वरूप बदल गया है। जंग के लिए तैयारी की ज़रूरत और ज़्यादा बढ़ गयी है। अल्लाह और उसकी मख़लूक़ के दुश्मन एक लम्हे के लिए भी ग़ाफ़िल नहीं हैं और घात में बैठे हुए हैं कि जो कुछ भी पवित्र है उसे मिटा दें। शहीदों के ख़ानदानों ने इतिहास में हमेशा के लिए औलिया की राह में मशाल रौशन रखने और इलाही तरीक़ों पर चलने वालों की रहनुमाई की क़ाबिले फ़ख़्र ज़िम्मेदारी अपने ज़िम्मे ली है। शहीद, दोस्तों की अंजुमन की शमा हैं। शहीदों के मस्ताने क़हक़हे और अल्लाह  से मिलाप की ख़ुशी इस वजह से है कि परवरदिगार के पास से उन्हें रिज़्क़ मिल रहा है। वो संतुष्ट दिल के स्वामी हैं जिनको अल्लाह ने अपने बंदों और अपनी जन्नत में दाख़िल होने की ख़ुशख़बरी दी है।

इमाम ख़ुमैनी

23/09/1988